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बौद्ध धर्म विश्व के सबसे महान एवं प्रमुख धर्मों में से एक है, जिसकी उत्पत्ति 2,500 वर्ष पहले छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में हुई थी। भारत से बौद्ध धर्म की शिक्षाएँ चीन (China), कोरिया (Korea) और जापान (Japan) से होते हुए पूरे मध्य और दक्षिण पूर्व एशिया (Asia) में फैल गईं। आज पूरे विश्व में बौद्ध धर्मावलम्बी हैं। बौद्ध धर्म के संस्थापक 'शाक्यमुनि' (जिन्हें "सिद्धार्थ गौतम" के नाम से भी जाना जाता है) का जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व हुआ था। गौतम बुद्ध के जन्मदिवस को बौद्ध धर्म में सबसे पवित्र दिन माना जाता है। अलग-अलग देशों एवं क्षेत्रों में बुद्ध के जन्मदिवस को कई नामों से मनाया जाता है, जैसे भारत में बुद्ध जयंती और बुद्ध पूर्णिमा, जापान(Japan) में 'हाना मत्सुरी' (Hana Matsuri) या कनबुत्सु (Kanbutsue) और थाईलैंड (Thailand) में ‘विशाखा बुजा दिवस’ (Vishakha Buja Day)। इसी प्रकार तिब्बत में भगवान बुद्ध के जन्म का उत्सव 'सागा दावा' (Saga Dawa) के रूप में मनाया जाता है। सागा दावा महोत्सव तिब्बती कैलेंडर के चार प्रमुख त्यौहारों में से एक है।
यह त्यौहार तिब्बत के प्रमुख स्थानों पर तथा नगारी के सुदूर पश्चिमी क्षेत्रों से लेकर सिचुआन (Sichuan) के तिब्बती क्षेत्रों के पूर्वी हिस्सों तक, बड़े पैमाने पर मनाया जाता है, और यह त्यौहार बौद्धों और हिंदुओं दोनों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण होता है। यहां तक कि इस समारोह में शामिल होने के लिए भारतीय तीर्थयात्री पूरे तिब्बती पठार की यात्रा भी करते हैं।
तिब्बती भाषा में ‘सागा दावा’ में ‘सागा’ शब्द का अर्थ तिब्बती कैलेंडर में चौथे महीने की पूर्णिमा से है। जबकि दावा का अर्थ "महीना" होता है, इसलिए ‘सागा दावा’ का अर्थ चौथे महीने का त्यौहार है। इस दिन को बुद्ध के जन्म, ज्ञानोदय (जागृति) और मृत्यु (परिनिर्वाण) को याद करने के रूप में मनाया जाता है। यह एक ऐसा उत्सव है जो बुद्ध द्वारा छोड़ी गई विरासत - बौद्ध धर्म - के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है। बुद्ध , जिन्होंने सिर्फ 35 साल की उम्र में बुद्धत्व प्राप्त किया था, उन्होंने अपनी मृत्यु पर अपने अनुयायियों को शोक मनाने के बजाय, उनके परिनिर्वाण का सम्मान करने और उनकी शिक्षाओं का पालन करने के निर्देश दिए थे। यह दिन हमें अपने लिए और दूसरों के अच्छे के लिए एक प्रेरक शक्ति के रूप में भी कार्य करता है। तिब्बत में सागा दावा को "गुणों का महीना" भी कहा जाता है, जिसका अर्थ यह है की हर समय शुभ एवं गुणवत्तापूर्ण कार्य करने चाहिए। इस महीने के 15वें दिन पूर्णिमा को ‘सागा दावा ड्यूचेन’ (Saga Dawa Düchen) के रूप में जाना जाता है, जो बुद्ध के जन्म, निर्वाण और परिनिर्वाण का वास्तविक दिन है।
वैसे तो यह त्यौहार पूरे तिब्बत में मनाया जाता है, लेकिन ल्हासा (Lhasa) और न्गारी (Ngari) दोनों में इस त्यौहार के अवसर पर बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। ल्हासा में, यह त्यौहार पवित्र जोखांग (Jokhang) मंदिर के क्षेत्र के आसपास मनाया जाता है, जबकि न्गारी में, यह दुनिया के सबसे पवित्र पर्वत कैलाश पर्वत की तलहटी में मनाया जाता है। माना जाता है कि यह पर्वत मेरु पर्वत का सांसारिक प्रतिनिधित्व है, जो देवताओं का पौराणिक घर और ब्रह्मांड का केंद्र है। हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और बोनपो, इन सभी धर्मों में इस पर्वत को अत्यंत पवित्र माना जाता है। कैलाश पर्वत पर मनाया जाने वाला 'सागा दावा' महोत्सव सभी स्थलों पर मनाए जाने वाले उत्सवों से सबसे शुभ माना जाता है। यहां यह उत्सव पूरे एक महीने तक मनाया जाता है। माना जाता है कि इस चौथे महीने में किए गए सकारात्मक और नकारात्मक कार्य 100,000 गुना बढ़ जाते हैं, इसलिए हिंदुओं और बौद्धों द्वारा इस दौरान कैलाश पर्वत की कोरा तीर्थयात्रा करने के लिए सबसे अच्छा एवं शुभ समय माना जाता है।
तिब्बती भाषा में कैलाश पर्वत को 'गैंग रिनपोछे' (Gang Rinpoche) के नाम से जाना जाता है और इसे तिब्बत के सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। चौथे महीने में कैलाश पर्वत के चारों ओर ‘कोरा’ करने का अर्थ परिक्रमा पूरी करने के पुण्य को कई गुना बढ़ाना है। हालाँकि इस पर्वत की तलहटी में कई अन्य समारोह भी आयोजित किए जाते हैं, लेकिन कोरा तीर्थयात्रा सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। समारोह का मुख्य आकर्षण धार्मिक अनुष्ठान समारोह और तारबोचे के प्रसिद्ध ध्वजस्तंभ की स्थापना है, जो तिब्बत का सबसे महत्वपूर्ण ध्वजस्तंभ है। प्रारंभिक बौद्ध अनुष्ठानों, समारोहों और बौद्ध सूत्रों के धार्मिक जप के बाद, लोग धूप और जलती हुई जुनिपर शाखाएं लेकर ध्वजस्तंभ के चारों ओर घूमना शुरू करते हैं। फिर ध्वजस्तंभ को हटा दिया जाता है, और पिछले वर्ष के सभी पुराने प्रार्थना झंडे हटा दिए जाते हैं। फिर ध्वजस्तंभ पर हजारों की संख्या में नए झंडों को चढ़ाया जाता है, जिसके बाद ध्वजदंड को उसकी सीधी स्थिति में फिर से स्थापित किया जाता है। मान्यता है कि 25 मीटर ऊंचे इस अनोखे ध्वजस्तंभ को बिल्कुल सीधा खड़ा किया जाना चाहिए। यदि यह ध्वजस्तंभ लंबवत से कम कोण पर स्थापित किया जाता है, तो परंपरा के अनुसार तिब्बत पर संकट आ सकता है। ध्वजस्तंभ की स्थापना के दौरान भिक्षु और लामा बौद्ध धर्मग्रंथों का पाठ करते हैं और विशाल तुरही बजाते हैं। तिब्बती बौद्ध धर्म में इस समय ध्वजस्तंभ की 13 परिक्रमा पूरी करना कैलाश कोरा की एक परिक्रमा के बराबर माना जाता है। ध्वजस्तंभ के चारों ओर घूमने वाले भिक्षुओं के जुलूस में हजारों लोग भी शामिल होते हैं और कागज के रंगीन टुकड़े हवा में फेंकते हैं।
जबकि इस त्यौहार को बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं को याद करने के रूप में मनाया जाता है, वहीं इस दिन गरीबों को अधिक उदारता से दान करने का भी महत्व है। चीनी भाषा में, इस त्यौहार को "क्यूओंग रेन जी" (Qiong ren jie) कहा जाता है, जिसका अनुवाद 'गरीब लोगों का दिन' होता है, और तिब्बत में, लोग भिक्षुओं, ननों और समुदाय के गरीब लोगों को यथासंभव दान देते हैं। तिब्बतियों का मानना है कि गरीबों को दान देने से पुण्य बढ़ता है, और सागा दावा के महीने में तो यह पुण्य 10 गुना बढ़ जाता है।
तिब्बती बौद्ध धर्म के चार प्रमुख विद्यालय हैं, निंग्मा (Nyingma), काग्यू (Kagyu), शाक्य (Sakya), और गेलुग (Gelug)। 'निंग्मा' जिसे अक्सर 'नगांग्युर' कहा जाता है, तिब्बती बौद्ध धर्म के चार प्रमुख विद्यालयों में से सबसे पुराना है। निंग्मा विद्यालय की स्थापना आठवीं शताब्दी में राजा ट्रिसोंग डेट्सन (King Trisong Detsen) के शासनकाल के दौरान की गई थी। काग्यू विद्यालय तिब्बती बौद्ध धर्म के मुख्य विद्यालयों में से एक है। काग्यू विद्यालय की स्थापना 11वीं शताब्दी के दौरान भारतीय महासिद्धों नरोपा, मैत्रिपा और योगिनी निगुमा के छात्र मारपा लोत्सावा (1012-1097) के माध्यम से हुई थी, जो अपनी शिक्षाएँ तिब्बत में लाए थे। शाक्य परंपरा 11वीं शताब्दी के अंत में बौद्ध धर्मग्रंथों के संस्कृत से तिब्बती में अनुवाद की दूसरी अवधि के दौरान विकसित हुई थी। इसकी स्थापना एक प्रसिद्ध विद्वान और अनुवादक ड्रोग्मी (Drogmi ) द्वारा की गई थी, जिन्होंने विक्रमशिला में नरोपा, रत्नाकरशांति, वागीश्वकीर्ति और भारत के अन्य महान पंडितों के अधीन बारह वर्षों तक अध्ययन किया था। गेलुग तिब्बती बौद्ध धर्म के चार प्रमुख विद्यालयों में सबसे नया है। इसकी स्थापना एक तिब्बती दार्शनिक, तांत्रिक योगी और लामा जे त्सोंगखापा (Je Tsongkhapa) द्वारा 15वीं शताब्दी के दौरान की गई थी और उनके बाद इस विद्यालय को उनके शिष्यों द्वारा आगे बढ़ाया गया और विकसित किया गया। इसके अलावा तिब्बती बौद्ध धर्म का एक अन्य छोटा विद्यालय ‘जोनांग’ (Jonang) है जो आज भी अस्तित्व में है। 19वीं शताब्दी के दौरान रिम (Rimé) नामक एक आंदोलन की भी स्थापना की गई, जिसका अर्थ है "कोई पक्ष नहीं"। यह एक गैर-सांप्रदायिक आंदोलन है, जो विभिन्न परंपराओं को संरक्षित करने और समझने का प्रयास करता है। बौद्ध धर्म की शुरुआत से पहले तिब्बत में प्रमुख आध्यात्मिक परंपरा बॉन (Bon) थी, जो तिब्बती बौद्ध धर्म (विशेषकर निंग्मा स्कूल) से काफी प्रभावित रही है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yc7nftvr
https://tinyurl.com/mstkjdzk
https://tinyurl.com/42kkfaet
चित्र संदर्भ
1. तिब्बत में भगवान बुद्ध के जन्म उत्सव 'सागा दावा' त्यौहार में शामिल लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
2. सागा दावा उत्स्व की परेड में शामिल बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
3. कैलाश पर्वत को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. तिब्बती भिक्षु को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. बौद्ध भिक्षुओं की परीक्षा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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