डायनासोर युग शुरू होने से पहले के, भारत में पाए गए पौधों के अवशेष

मेरठ

 01-06-2022 08:48 AM
शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

पर्मियन युग (Permian Age) (290 मिलियन से 248 मिलियन वर्ष पूर्व) के दौरान तथा डायनासोर का युग शुरू होने से ठीक पहले, एक पौधे की प्रजाति जो तत्कालीन गोंडवाना भूमि के बड़े भाग में फैली हुई थी, अब पूरी तरह से विलुप्त हो गई है। लेकिन हमें इसके जीवाश्म आज भी मिलते हैं, खासकर भारत में। इन्हें ग्लासोप्टेरिडेल्स (Glassopteridales ) के नाम से जाना जाता है।
इन पर लखनऊ के बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलियोबोटनी (Birbal Sahni Institute of Paleobotany) द्वारा काफी शोध किया गया है।
इस समूह के पौधे तीव्रता से उभरे, इनका विस्‍तार हुआ और अपेक्षाकृत तेजी से विलुप्त भी हो गए । बड़ी संख्या में इन प्रजातियों ने पुरापाषाण भूगोल को समझने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है , विशेष रूप से उन क्षेत्रों की पहचान में जो एक समय में एक साथ जुड़े हुए थे, लेकिन अब महाद्वीपीय बहाव की क्रिया के कारण अलग हो गए हैं। नतीजतन, ग्लसोप्टरिड्स ने स्‍वयं पर तत्‍कालीन इतिहास का पिटारा समेटा हुआ है। हालांकि, उपलब्ध जीवाश्मों में से अधिकांश बंजर पत्तियां हैं जो तनों से जुड़ी नहीं हैं, और इसी कारण कई उल्‍लेखित प्रजातियां भलि भांति विभेदित नहीं हैं, और कुछ विशिष्ट प्रजनन संरचनाओं से जाने जाते हैं। इससे प्रजातियों की वास्तविक संख्या के बारे में निश्चित होना मुश्किल हो जाता है।
ग्लोसोप्टेरिस(Glossopteris)को जिस जीनस से समूह का नाम मिला है, वह भी ग्लासोप्टेरिडेल्स का सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध सदस्य है। दक्षिण अमेरिका (South America), ऑस्ट्रेलिया (Australia), अफ्रीका (Africa) और अंटार्कटिका (Antarctica) की अतिरिक्त प्रजातियों के साथ, इस जीनस की 70 से अधिक प्रजातियों को अकेले भारत में मान्यता दी गई है। उत्तरी गोलार्ध के केवल कुछ जीवाश्मों को ही इस समूह के सदस्य के रूप में माना गया है, लेकिन इनकी पहचान निश्चित रूप से नहीं की जा सकती है। जिस प्रकार समुह में एकत्रित रूप में यह पत्‍ते पाए गए हैं ऐसा लगता है कि ग्लोसोप्टरिड्स पर्णपाती थे, और शरद ऋतु में अपने पत्‍ते गिरा देते थे, और प्रत्येक वसंत में इन पर नए पत्ते आ जाते थे। कई नमुनों में एक पत्‍ता (जो जीवित पौधे से अलग हो जाता है) या छोटे समुह में पत्‍ते पाए गए हैं। परिपक्व पत्तियाँ प्रायः 10 सेमी लंबी होती थीं, और कुछ पत्तियाँ एक मीटर से अधिक लंबी पाई गई हैं। इन परिपक्व पत्तियों को पहचानना बहुत आसान होता है, क्योंकि इनमें एक मजबूत केंद्रीय शिरा और छोटी शिराओं का एक नेटवर्क होता है। यह लेट पैलियोजोइक (Late Paleozoic) और अर्ली मेसोजोइक (Early Mesozoic) के अन्य बीज पौधों से काफी अलग है, जिसमें आमतौर पर कोई मध्य शिरा और द्वितीयक शिराएँ नहीं होती थीं जो एक दूसरे के समानांतर चलती थीं। ग्लोसोप्टरिड्स की पुनरूत्पादक संरचनाएं पर्णपाती पत्तों की तरह असामान्य होती हैं। ऐसा लगता है कि वे अन्य " टेरिडोस्पर्म " (pteridosperms) के रूप में पत्तियों पर उत्‍पन्‍न हुए हैं । खराब संरक्षण ने उनकी संरचना और जीवित पौधों पर उनकी व्यवस्था पर बहुत विवाद पैदा कर दिया है। कम से कम एक बिंदु स्पष्ट हो गया है: अलग-अलग अंगों में पराग और बीज अलग-अलग पत्तियों से जुड़े हुए थे, हालांकि अंगों की विशिष्टताएं स्पष्ट रूप से व्यवस्थित नहीं हैं। पराग अंगों को संशोधित पत्ती वाले डंठल वाले परागकोषों से लेकर शंकु जैसे समूहों तक वर्णित किया गया है।
ग्लोसोप्टरिड पैलियोबायोलॉजी (PaleoBiology) का सबसे निराशाजनक पहलू यह है कि कोई भी वास्तव में निश्चित नहीं है कि ये पौधे कैसे दिखते थे। आज पौधे का कोई भी बड़ हिस्‍सा बरकरार नहीं है, और इसलिए उनका पुनर्निर्माण छोटे टुकड़ों से किया गया है। इनके विषय में यह अनुमान लगाया जाता है कि वे बड़ी झाड़ियाँ या छोटे पेड़ हुआ करते थे, शायद थोड़े से मैगनोलिया (magnolia) या जिन्कगो (ginkgo) की तरह। कम से कम कुछ साक्ष्‍य ऐसे हैं यह दर्शाते हैं कि इनमें जिन्कगो की तरह लंबी और छोटी दोनों शूटिंग (shooting) की तना प्रणाली थी।जिन्कगो में, छोटे अंकुर होते हैं जो अधिकांश पत्तियों का उत्पादन करते हैं, और जो बीज और पराग संरचनाओं का वहन करते हैं। यह ग्लोसोप्टरिड्स के मामले में भी हो सकता है, लेकिन कोई भी निश्चित नहीं है। एक शोध में तातापानी-रामकोला कोलफील्ड के बराकर, रानीगंज और पंचेत से बरामद विविध मैक्रोफ्लोरल (macrofloral ) संयोजनों का विश्लेषण किया गया। नौ इलाकों के पौधों के जीवाश्म ग्लोसोप्टेरिस सहित प्रमुख जीनस (33 प्रजातियों) के साथ पर्मियन युग के विशिष्ट ग्लोसोप्टेरिस फ्लोरस का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि पांच स्थानों से दर्ज किए गए छोटे पुष्प तत्वों को ट्राइसिक प्रजातियों (Triassic species) अर्थात, ग्लोसोप्टेरिस सेनी (Glossopteris senii) और जी. गोपाडेन्सिस (G. gopadensis) के साथ-साथ जीनस डिक्रोडियम (genus Dicroidium) की उपस्थिति को दर्शाता है।
संपूर्ण वनस्पतियों में 24 वंश और 73 प्रजातियां शामिल हैं। मैक्रोफ्लोरस के आधार पर पहचाने गए तीन फ्लोरिस्टिक असेंबलियों (floristic assemblages) में 31 बराकर असेंबल, 38 रानीगंज असेंबल और 33 पंचेट में असेंबल हैं। इस कोलफील्ड में रानीगंज-पंचेत सीमा (पर्मियन/ट्राएसिक (Permian/Triassic) सीमा) पर अनुक्रम और इसके परिवर्तन के माध्यम से ग्लोसोप्टेरिस वनस्पतियों की विविधता प्रवृत्तियों का अनुमान लगाने हेतु इस बेसिन के मेगाप्लांट (megaplant) अवशेष, पैलिनोलॉजी (Palinology) और पेट्रोलॉजी (Petrology) से संबंधित सभी उपलब्ध आंकड़ों की समीक्षा और विश्लेषण किया गया है। बराकर फॉर्मेशन में ग्लोसोप्टेरिस (18 प्रजातियां) की मध्यम विविधता है, जो रानीगंज फॉर्मेशन (26 प्रजातियां) में और अधिक बढ़ गयी है और पंचेट फॉर्मेशन (16 प्रजातियां) में इसकी कमी देखी गयी है। विविधता में गिरावट के साथ, रानीगंज असेंबल की टैक्सोनॉमिक संरचना में एक क्रमिक ऊपर की ओर परिवर्तन होता है, हालांकि कुछ विशिष्ट पर्मियन वंश (जैसे, पैराकलमाइट्स (Parakalmites), स्किज़ोनुरा (Schizonura), डिज़ेगोथेका (Dzygotheca), ग्लोसोप्टेरिस (Glossopteris) और वर्टेब्रारिया (Vertebraia)) पंचेट फॉर्मेशन तक जारी रहे।
कार्बोनिफेरस (Carboniferous) संचय की अनुपलब्धता के कारण पर्मियन से पहले भारत में ग्लोसोप्टेरिस वनस्पतियों का भूवैज्ञानिक इतिहास ज्ञात नहीं है। पर्मियन की पूरी अवधि को कवर करते हुए करहरबारी, बराकर, बंजर माप, रानीगंज और कामठी संरचनाओं के क्रमिक क्षितिज में विकसित तलचिर फॉर्मेशन (Talchir Formation) (पर्मियन (Permian) की शुरुआत) और वनस्पतियों से सबसे प्रारंभिक संयोजन को दर्ज किया गया है।ग्लोसोप्टेरिस वनस्पति हिमनद की शुरुआत के बाद, कार्बोनिफेरस के अंत या पर्मियन के शुरुआती भाग के दौरान अस्तित्व में आई। भारत के निचले गोंडवाना उत्तराधिकार में विभिन्न संरचनाओं के फूलों के संयोजन पर्मियन काल के क्रमिक क्षितिज में विभिन्न चरणों के माध्यम से वनस्पतियों के विकास का संकेत देते हैं। यह देखा गया है कि गंगामोप्टेरिस (gangomopteris) से ग्लोसोप्टेरिस पुष्प चरण में संक्रमण सभी गोंडवाना देशों में प्रारंभ से अंत पेनमैन तक ग्लोसोप्टेरिस वनस्पतियों का एक उल्लेखनीय विकास रहा है। हालांकि, आगे के विकास के चरण नए रूपों के विकास और पहले के रूपों के विलुप्त होने के साथ स्पष्ट हैं। प्रारंभिक ट्राइसिक में डाइक्रोडियम - फ्रैंड्स का आगमन ग्लोसोप्टेरिस फ्लोरा के अंतिम चरण का प्रतीक है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3LXHcwc
https://bit.ly/3GwwUC4
https://bit.ly/3GrGEha

चित्र संदर्भ
1. ग्लासोप्टेरिडेल्स (Glassopteridales ) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. ग्लासोप्टेरिडेल्स (Glassopteridales ) अवशेष को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. क्लेस्टोन में ग्लोसोप्टेरिस जीवाश्म बीज फर्न के पत्तों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. ग्लोसोप्टेरिस (जीवाश्म पत्ती) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. टेरिडोस्पर्म " (pteridosperms) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. सैम नोबल संग्रहालय में जीवाश्म मेडुलोसन को दर्शाता एक चित्रण (Sam Noble Museum)
7. रॉक मैट्रिक्स से जुड़ी गंगामोप्टेरिस बुरियाडिका प्रजाति के जीवाश्म पत्ती को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

RECENT POST

  • आइए जानें, देवउठनी एकादशी के अवसर पर, दिल्ली में 50000 शादियां क्यों हुईं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     22-11-2024 09:23 AM


  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id