विद्युतीकरण के लगभग छियासी (86) साल बाद, वाराणसी में ओवरहेड पावर केबल्स (Overhead power cables) को अब हटाया जा रहा है, क्यों कि, शहर में 16 वर्ग किलोमीटर से अधिक की भूमिगत लाइनें (Lines) बिछाने की परियोजना को पूरा कर दिया गया है। दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक इस शहर में टेढ़े मेढ़े रास्तों और भीड़भाड़ से भरे बाजारों के माध्यम से लगभग 50,000 उपभोक्ताओं के लिए केबल बिछाना किसी चुनौती से कम नहीं था। एकीकृत बिजली विकास योजना (Integrated Power Development Scheme - IPDS) का संचालन कर रही कंपनी, पॉवरग्रिड (Powergrid) के लिए यह काम काफी चुनौती भरा था। वाराणसी में IPDS को लागू करते समय यह महसूस किया गया कि, शहर में भूमिगत केबल को बिछाने के लिए बुनियादी ढांचे को तैयार करना बहुत जटिल था। इस कार्य में कंपनी को लगभग दो साल लगे तथा दिसंबर 2017 में इसका समापन किया गया। भारत में घरेलू खपत के लिए बिजली की आपूर्ति पहली बार 1903 में दिल्ली में शुरू की गई थी। यह एक ऐसा समय था, जब वायसराय कर्जन (Viceroy Curzon) की देखरेख में दिल्ली में किंग एडवर्ड VII (King Edward VII) के स्वागत की तैयारी चल रही थीं।
हालांकि, एडवर्ड खुद नहीं आये, लेकिन उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए एक अन्य राजकुमार को भेजा गया। दिल्ली में विशाल जनरेटरों (Generators) के माध्यम से बिजली की आपूर्ति की जाने लगी, जिन्हें भव्य तैयारियों के हिस्से के रूप में चांदनी चौक में टाउन हॉल (Town hall) के बाहर स्थापित किया गया। जनरेटर एक ब्रिटिश (British) कंपनी द्वारा संचालित किए गए थे और बिजली से प्राप्त रोशनी के फायदों का प्रचार करने के लिए इसके कर्मचारी हर घर, दुकान आदि के मालिकों के पास गये, ताकि, लोग बिजली का कनेक्शन (Connection) प्राप्त करें। हालांकि कई लोग इससे असहमत थे, लेकिन अनेकों ने इसका समर्थन भी किया। जो लोग सहमत थे, उनके घरों, दुकानों आदि के बाहर बिजली के खम्भे स्थापित किये गये और तार को पावर ग्रिड (Power grid) और पावर पॉइंट (Power points) से जोड़ दिया गया। अगले 44 वर्षों में, इस तंत्र के विकास में अत्यंत विस्तार हुआ। बिजली की बढ़ती मांग के कारण उच्च तनाव (High tension) वाले तारों की शुरूआत हुई, जो विद्युतरोधी (Insulated) नहीं थे। इस प्रकार अन्य क्षेत्रों में भी इन तारों का विस्तार तीव्र गति से होने लगा और समय के साथ हर तरफ ओवरहेड पावर केबल्स ही दिखायी देने लगे। भले ही ओवरहेड पावर केबल्स की मदद से विद्युत का स्थानांतरण सम्भव हो पाया लेकिन, यह अनेकों नुकसानों का कारण भी बना। विद्युतीय झटकों (Electric shock) और ढीले लटके हुए उच्च तनाव वाले तारों में लगी आग ने कई लोगों, वन्य जीवों और पक्षियों की जान ली। अनेकों रिपोर्टें (Reports) ये बताती हैं कि, विभिन्न क्षेत्रों में बिजली के झटकों के कारण अनेकों जानें जाती हैं, तथा मानसून के मौसम में स्थिति और भी खराब हो जाती है, क्यों कि, इस समय तारों के टूटने और जमीन पर गिरने की संभावना बढ़ जाती है। इस नुकसान से बचने के लिए भूमिगत केबलों (Underground cable) को एक प्रभावी विकल्प के रूप में देखा गया है, जो सुरक्षा के मामले में अपेक्षाकृत कई बेहतर हैं। चांदनी चौक सहित दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में ओवरहेड तारों को हटा दिया गया है, तथा भूमिगत तारों को बिछाया गया है। इसके लिए पहले सड़कों पर खाइयों का निर्माण किया गया, तथा फिर उन खाइयों में तारों को बिछाया गया। इन तारों में टेलीफोन, इंटरनेट (Internet) और उच्च-तनाव वाले केबल शामिल थे। उच्च वोल्टेज (Voltage) को कम वोल्टेज में बदलने के लिए ट्रांसफार्मर (Transformer) स्थापित किए गए, ताकि घरों में बिजली पहुंचाई जा सके। इसी प्रकार से बेंगलुरु में भी बिजली वितरण प्रणाली को विश्वसनीय और सुरक्षित बनाने के लिए बेसकॉम (Bangalore Electricity Supply Company - BESCOM) ने 7,250 किलोमीटर की ओवरहेड बिजली लाइनों को भूमिगत केबल्स में बदलने का निर्णय लिया।
कंपनी का मानना है कि, ओवरहेड विद्युत लाइनों को भूमिगत केबल में बदलने से वितरण घाटे में कटौती होगी। हालांकि, भूमिगत केबलों के उपयोग से बिजली के झटकों का जोखिम, वोल्टेज घटाव, बिजली चोरी आदि की सम्भावनाएं कम हो जायेंगी, लेकिन इस तरह की उच्च लागत वाली परियोजना का लाभ हर शहर को मिल पाना मुश्किल प्रतीत होता है। जब साइक्लोन फानी (Cyclone Fani) का प्रकोप ओडिशा में आया तो, इसने राज्य के बिजली के बुनियादी ढांचे को भी व्यापक रूप से नुकसान पहुंचाया। ऐसे क्षेत्र जो बाढ़ के लिए संवेदनशील हैं, में भूमिगत केबलों को बिछाना अधिक प्रभावी नहीं हो सकता है। भूमिगत प्रणालियों में उपयोग किए जाने वाले पैड-माउंटेड ट्रांसफार्मर (Pad-mounted transformers) बाढ़ के दौरान क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इस प्रकार यह पूरे तंत्र की प्रभावशीलता को कम करता है। भूमिगत केबलों को बिछाना जहां बहुत महंगा है, वहीं इसकी मरम्मत लागतें भी उच्च हैं। यदि इसमें कोई भी कमी आती है, तो उसे तुरंत ठीक कर पाना मुश्किल होता है। इस प्रकार भूमिगत केबल्स कुछ क्षेत्रों के लिए तो प्रभावी हैं, लेकिन कुछ के लिए नहीं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3s8gnwq
https://bit.ly/3lytPHk
https://bit.ly/39iV9oj
https://bit.ly/3sb8Gpk
https://bit.ly/3sjyMWU
https://bit.ly/3fdtB7B
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर में जौनपुर में ओवरहेड केबल लाइनिंग दिखाया गया है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर अंडरग्राउंड केबल लाइनिंग दिखाती है। (विकिपीडिया)
अंतिम तस्वीर ओवरहेड केबल लाइनिंग दिखाती है। (स्नेपोगोट)