शौकत अली और मोहम्मद अली जौहर को अली बंधु के नाम से भी जाना जाता है। दोनों का जन्म रामपुर में हुआ था। अली बंधुओं को खिलाफ़त आंदोलन (Khilafat movement) में उनके अतुलनीय योगदान के लिए जाना जाता है। रामपुर में उनकी परवरिश के दौरान, देश की आज़ादी की चर्चाएँ अक्सर होती थीं। इस माहौल ने उन पर गहरा प्रभाव डाला। आगे चलकर, दोनों ही मज़बूत नेताओं के रूप में उभरे।
उन्होंने ओटोमन खिलाफ़त की रक्षा के लिए काम किया। इसके साथ ही, उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ़ भी लड़ाई लड़ी। रामपुर से शुरू हुई अली बंधुओं की विरासत आज भी लोगों को प्रेरित करती है।
आज के इस लेख में, हम खिलाफ़त आंदोलन के बारे में गहराई से जानेंगे। आगे, हम देखेंगे कि यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रवाद से कैसे जुड़ा। यह कैसे हिंदुओं और मुसलमानों को एक साथ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसी क्रम में, हम इस आंदोलन के एक महत्वपूर्ण नेता मोहम्मद अली जौहर और उनके भाई शौकत अली के बारे में भी जानेंगे।
खिलाफ़त आंदोलन और असहयोग आंदोलन, 1919 से 1922 के बीच भारत में बहुत ही महत्वपूर्ण जन आंदोलनों के रूप में उभरे। इनका मुख्य उद्देश्य भारत में ब्रिटिश सत्ता का विरोध करना था।
खिलाफ़त आंदोलन, कमज़ोर होते ओटोमन साम्राज्य के प्रति ब्रिटिश कार्रवाइयों के जवाब में शुरू हुआ। अली भाइयों के नेतृत्व में, भारतीय मुसलमानों ने महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ मिलकर काम किया। उन्होंने खिलाफ़त की बहाली और मुस्लिम अधिकारों की सुरक्षा की मांग की। इस आंदोलन को भारतीयों का भरपूर समर्थन मिला और पूरे भारत में कई विरोध और प्रदर्शन हुए।
इसी समय, महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन (Non-cooperation movement)की शुरुआत की। इस आंदोलन ने भारतीयों को ब्रिटिश अधिकारियों के साथ सहयोग करना बंद करने के लिए प्रेरित किया। इसमें ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार करने, सरकारी स्कूलों को छोड़ने और ब्रिटिश अदालतों में न जाने का आह्वान किया गया। इसका उद्देश्य अहिंसक प्रतिरोध की ताकत दिखाना और ब्रिटिश प्रशासन को बाधित करके उनके नियंत्रण को कमजोर करना था।
इस दौरान, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग (जो हिंदुओं और मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करती थीं) दोनों ने मिलकर काम किया। दोनों समूहों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ एकजुट होकर कार्रवाई करने की आवश्यकता को समझा। उन्होंने कई राजनीतिक प्रयासों पर मिलकर काम किया। कांग्रेस और मुस्लिम लीग द्वारा पूरे भारत में कई राजनीतिक प्रदर्शनों, हड़तालों और विरोध प्रदर्शनों का आह्वान किया गया। इन आंदोलनों को जनता का भरपूर समर्थन मिला और लोगों ने सक्रिय रूप से इसमें भाग लिया। इसने ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी और भारतीयों की स्वतंत्रता और स्वशासन की मज़बूत साझा इच्छा को उजागर किया।
खिलाफ़त मुद्दे ने, उन भारतीय मुसलमानों को एक साथ ला दिया, जो ब्रिटिश शासन से नाखुश थे। 1914 में जब अंग्रेज़ो ने ओटोमन साम्राज्य के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा की, तब से यह असंतोष, और भी बढ़ गया। युद्ध के दौरान, तुर्की का समर्थन करने के लिए कई खिलाफ़त नेताओं को जेल में डाल दिया गया। 1919 में रिहा होने के साथ ही उन्होंने पूरे भारत में मुसलमानों को एकजुट करने के लिए खिलाफ़त को बढ़ावा देना शुरू किया।
खिलाफ़त आंदोलन को ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ़ लड़ाई में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सहयोग से भी समर्थन मिला। यह सहयोग, 1916 में लखनऊ समझौते के साथ शुरू हुआ! लखनऊ समझौता, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता था। 1919 में रौलट अधिनियम के खिलाफ़ विरोध के दौरान, यह सहयोग और भी मज़बूत हुआ। रौलट अधिनियम (Rowlatt Act) ने नागरिक स्वतंत्रता को काफ़ी हद तक प्रतिबंधित कर दिया था।
महात्मा गांधी, उस समय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे| उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ़ अहिंसक प्रतिरोध का आह्वान किया। उन्होंने खिलाफ़त आंदोलन का समर्थन किया क्योंकि उन्हें विश्वास था कि यह भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में मुस्लिम समर्थन हासिल करने में मदद कर सकता है। अली बंधु और उनके समर्थक भी असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए और इसके सबसे जोशीले एवं सक्रीय प्रतिभागियों में से एक बन गए।
आइए, अब एक नज़र मौलाना मोहम्मद अली जौहर की जीवनी पर डालते हैं:
मौलाना मोहम्मद अली जौहर का जन्म, 10 दिसंबर 1878 को रामपुर में हुआ था। उनकी मां, बी अम्मा, एक बहादुर महिला थीं। जौहर अपने पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटे थे।
घर पर अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने बरेली हाई स्कूल में मैट्रिकुलेशन के लिए दाखिला लिया। इसके बाद, उन्होंने अलीगढ़ के एम.ए.ओ. कॉलेज में पढ़ाई की। उन्होंने अपनी बी.ए. परीक्षा में शानदार प्रदर्शन किया और विश्वविद्यालय तथा राज्य में सफल उम्मीदवारों की सूची में शीर्ष स्थान पर रहे।
1897 में, जौहर आगे की पढ़ाई के लिए ऑक्सफ़ोर्ड के लिंकन कॉलेज गए। वहाँ उन्होंने 1898 में आधुनिक इतिहास में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की।
1911 में, उन्होंने अपना पहला अंग्रेजी अखबार "कॉमरेड" शुरू किया। यह अखबार सत्ता में बैठे लोगों सहित कई लोगों द्वारा सराहा गया। लेकिन 1913 में "चॉइस ऑफ़ तुर्क्स" नामक लेख प्रकाशित होने के बाद, अंग्रेज़ों ने 1914 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया।
1924 में, इस अखबार को फिर से शुरू किया गया, लेकिन 1926 में इसे फिर से बंद करना पड़ा। जौहर ने "हमदर्द" नामक एक उर्दू अखबार भी प्रकाशित किया, जो 1913 में शुरू हुआ और बहुत लोकप्रिय भी हुआ। दुर्भाग्य से, इसे भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जौहर को ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ लेख प्रकाशित करने के लिए कई बार जेल भी जाना पड़ा।
जौहर ने 1906 में मुस्लिम लीग में शामिल होकर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। 1917 में, वे हिरासत में रहते हुए मुस्लिम लीग के अध्यक्ष चुने गए। इसके बाद, 1919 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और 1923 में इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।
जौहर, भारत की स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे और उन्होंने खिलाफ़त आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1920 में, उन्होंने इस उद्देश्य के लिए लंदन में एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। इंग्लैंड से लौटने के बाद, उन्होंने अलीगढ़ में "जामिया मिलिया इस्लामिया" की स्थापना की, जिसे बाद में दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया।
1930 में, अस्वस्थ होने के बावजूद, जौहर ने गोलमेज़ सम्मेलन में भाग लिया। वहाँ उन्होंने कहा, "या तो मुझे आज़ादी दो या मेरी कब्र के लिए दो गज़ की जगह दो; मैं गुलाम देश में वापस नहीं जाना चाहता।"
दुख की बात है कि 4 जनवरी, 1931 को आज़ादी से पूर्व ही, लंदन में उनका निधन हो गया। उनके शव को बैतुल-मुक़दस ले जाया गया, जहाँ 23 जनवरी, 1931 को उन्हें दफ़नाया गया।
आइए, अब एक नज़र शौकत अली की जीवनी पर डालते हैं:
शौकत अली और उनके भाई मोहम्मद अली ने दो साप्ताहिक पत्रिकाएँ, "हमदर्द" और "कॉमरेड," प्रकाशित कीं। इन पत्रिकाओं ने भारतीय मुसलमानों में राजनीतिक जागरूकता बढ़ाने और ब्रिटिश विरोधी भावनाओं को प्रोत्साहित करने में एक बड़ी भूमिका निभाई।
शौकत अली ने सेंट्रल खिलाफ़त कमेटी की स्थापना में मदद की। यह एक ऐसा संगठन था, जिसने पूरे भारत में खिलाफ़त आंदोलन का प्रबंधन किया। बाद में, वे इस समिति के अध्यक्ष भी बने।
शौकत अली ने भारतीय मुसलमानों को असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए भी प्रेरित किया। इस आंदोलन के दौरान, उन्होंने महात्मा गांधी के साथ मिलकर काम किया। वे संदेश फैलाने के लिए पूरे भारत में यात्रा करते थे। इस तरह, वे हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बन गए।
शौकत अली ने अपने प्रयासों के तहत तिलक भी लगाया और गोहत्या रोकने का प्रचार किया। खिलाफ़त, असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों के दौरान, उन्हें कई बार गिरफ़्तार किया गया और जेल में डाल दिया गया।
दुख की बात यह है कि 26 नवंबर, 1938 को शौकत अली का भी निधन हो गया। वे भारत को ब्रिटिश शासन से आज़ादी प्राप्त करते देखने के लिए जीवित नहीं रहे, लेकिन उन्होंने राष्ट्रवादी और उपनिवेशवाद विरोधी भावना के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
संदर्भ
https://tinyurl.com/249puwfp
https://tinyurl.com/2dyv2r8q
https://tinyurl.com/22whq9jb
https://tinyurl.com/2dgy5hwo
चित्र संदर्भ
1. शौकत अली और मोहम्मद अली जौहर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. 1931 में, शेख याकूब अल-बुखारी, हज अमीन अल-हुसैनी, शेख अब्देल-कादर अल-मुज़फ़्फ़र और इब्राहिम दरविश द्वारा शौकत अली को फ़िलिस्तीनी झंडा पेश करने के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ब्रिटिश निर्मित कपड़ों का बहिष्कार करने के लिए की गई रैली को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. मोहम्मद अली जौहर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. शौकत अली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)