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आज से तकरीबन 20 साल पहले तक, भारत में शायद ही किसी ने यह सोचा होगा कि, आनेवाले वर्षों में देश में लेनदेन की प्रक्रिया इतनी आसान हो जाएगी कि आपको बैंक में खाता खुलवाने के लिए भी बैंक जाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। लेकिन आज यह अकल्पनीय अवधारणा भी एक वास्तविकता बन चुकी है। इस कल्पना को वास्तविकता में बदलने में ऑनलाइन बैंकिंग (Online Banking) ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई है।
ऑनलाइन बैंकिंग पूरी दुनियां के वित्तीय परिदृश्य को पूरी तरह से बदल रही है।
इंटरनेट के ज़रिये, वित्तीय लेनदेन को प्रबंधित करने की प्रथा को “ऑनलाइन बैंकिंग” कहा जाता है। इसमें फंड ट्रांसफर (Transfer Funds), करना, पैसे प्राप्त करना या बिलों का ऑनलाइन भुगतान करना जैसी गतिविधियां शामिल हैं। अब आप अपने कंप्यूटर या फोन से पैसे ट्रांसफर करने, बिलों का भुगतान करने और अपना बैलेंस चेक (Balance Check) करने जैसे काम कर सकते हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें इंटरनेट के माध्यम से हमारे बैंक खातों तक पहुंच बनाई जाती है, इसलिए इसे 'ऑनलाइन बैंकिंग' या 'इंटरनेट बैंकिंग (Internet Banking)' कहा जाता है।
बैंकिंग क्षेत्र में क्रांति की शुरुआत 1 जनवरी 1983 को इंटरनेट के आगमन के साथ शुरू हो गई।
ऑनलाइन बैंकिंग पहली बार 1987 में शुरू की गई थी, लेकिन कई वर्षों बाद तक भी यह अपेक्षा के अनुरूप लोकप्रिय नहीं हो पाई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शुरुआत में लोगों को यह अजीब लगता था कि आप अपने पैसे को वास्तव में देखे बिना उसका प्रबंधन कर सकते हैं। आज, ऑनलाइन बैंकिंग पैसे का प्रबंधन करने के सबसे आम तरीकों में से एक बन चुकी है। यह सुविधाजनक और सुरक्षित साबित हो रही है, और यह आपको लगभग वह सब कुछ करने की अनुमति देती है जो आप आमतौर पर बैंक शाखा में करते हैं।
चलिए जानते हैं कि आप ऑनलाइन बैंकिंग की मदद से क्या कुछ कर सकते हैं:
➲आप अपने खाते की शेष राशि जाँच सकते हैं।
➲आप अपने खातों के बीच पैसे ट्रांसफर कर सकते हैं।
➲आप अपने बिलों का भुगतान कर सकते हैं।
➲आप अपना चेक जमा कर सकते हैं।
➲आप अपने चेक ऑर्डर (Order) कर सकते हैं।
➲आप अपने ऋण और क्रेडिट कार्ड (Credit Card) के लिए आवेदन कर सकते हैं।
➲आप अपना लेन-देन इतिहास देख सकते हैं।
➲आप अपनी खाता गतिविधि के लिए अलर्ट सेट कर सकते हैं।
ऑनलाइन बैंकिंग का विचार 1987 से भी बहुत पहले विकसित हो गया था। एटीएम (ATM) की खोज को ऑनलाइन बैंकिंग की दिशा में पहला कदम माना जाता है, जिसका आविष्कार 1967 में हुआ था। यह पारंपरिक बैंकिंग में एक बड़ी प्रगति साबित हुई।
1980 और 1983 के बीच, सिटीबैंक (Citibank), चेज़ मैनहैट्टन (Chase Manhattan), केमिकल बैंक (Chemical Bank) और न्यूयॉर्क शहर (New York City) में मैन्युफैक्चरर्स हनोवर (Manufacturers Hanover) सहित कई बैंकों ने वित्तीय उद्योग में क्रांति लाने के लिए कम्प्यूटरीकृत बैंकिंग (Computerized Banking) का प्रयोग किया।
1980 के दशक में, न्यूयॉर्क शहर के कई बैंकों ने अपने ग्राहकों को होम बैंकिंग (Home Banking) सुविधा प्रदान करना शुरू किया। यह परीक्षण यह देखने के लिए किया गया था कि लोग ऑनलाइन बैंकिंग का उपयोग करेंगे या नहीं। 1985 में, बैंक ऑफ स्कॉटलैंड (Bank Of Scotland) ने अपने ग्राहकों के लिए इलेक्ट्रॉनिक होम बैंकिंग (Electronic Home Banking) सेवाएं शुरू कीं। 1995 में, स्टैनफोर्ड क्रेडिट यूनियन (Stanford Credit Union) ने बैंकिंग सेवाओं के लिए पहली वेबसाइट लॉन्च (Website Launch) की। ये सभी घटनाएँ ऑनलाइन बैंकिंग के विकास में एक प्रमुख मोड़ साबित हुईं।
जल्द ही ऑनलाइन बैंकिंग तेजी से यूके और न्यूयॉर्क शहर (UK And New York City) से दुनिया के अन्य हिस्सों में फैल गई। 1994 में, स्टैनफोर्ड फेडरल क्रेडिट यूनियन (Stanford Federal Credit Union) ने अपने ग्राहकों के लिए मुख्यधारा समाधान के रूप में ऑनलाइन बैंकिंग जारी की। अगले वर्ष, प्रेसिडेंशियल बैंक (Presidential Bank) ग्राहकों को अपने खातों तक ऑनलाइन पहुंचने का अवसर प्रदान करने वाला अमेरिका का पहला बैंक बन गया। अन्य प्रमुख बैंकों ने जल्द ही ऑनलाइन बैंकिंग की पेशकश शुरू कर दी, और यह जल्द ही वित्तीय क्षेत्र की एक मानक विशेषता बन गई।
2000 के दशक में, ऑनलाइन बैंकिंग अपनाने में तेज़ी से वृद्धि हुई। दुनिया भर के वित्तीय संस्थानों ने ऑनलाइन बैंकिंग पहुंच की पेशकश शुरू कर दी। यह प्रवृत्ति जारी है, और बैंक आज भी अपनी ऑनलाइन बैंकिंग सेवाओं में सुधार कर रहे हैं। पिछले चालीस वर्षों में ऑनलाइन बैंकिंग तेज़ी से कुशल हो गई है। 1980 के दशक में होम बैंकिंग (Home Banking) के शुरुआती दिनों से लेकर आज के सुपर ऐप्स (Super Apps) तक, ऑनलाइन बैंकिंग ने आपके वित्त को प्रबंधित करना पहले से कहीं अधिक आसान बना दिया है।
चलिए ऑनलाइन बैंकिंग के इतिहास की समयरेखा को एक बार संक्षेप में जान लेते है:
➥1980: यूनाइटेड अमेरिकन बैंक (United American Bank) ने संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली होम बैंकिंग सेवा शुरू की।
➥1981: सिटी बैंक, चेज़ मैनहट्टन, केमिकल बैंक और निर्माता हनोवर ने न्यूयॉर्क शहर में ग्राहकों के लिए होम बैंकिंग उपलब्ध कराई।
➥1983: बैंक ऑफ स्कॉटलैंड (Bank Of Scotland), इंटरनेट बैंकिंग की पेशकश करने वाला ब्रिटेन का पहला बैंक बन गया।
➥1994: स्टैनफोर्ड फेडरल क्रेडिट यूनियन (Stanford Federal Credit Union) अपने सभी ग्राहकों को इंटरनेट बैंकिंग प्रदान करने वाला उत्तरी अमेरिका का पहला वित्तीय संस्थान बन गया।
➥2006-2010: ऑनलाइन बैंकिंग अपनाने में तेजी से वृद्धि हुई, 2006 तक 80% अमेरिकी बैंक यह सेवा प्रदान करने लगे। एली बैंक (Eli Banks) की स्थापना 2009 में दुनिया के पहले पूर्ण-डिजिटल बैंक के रूप में हुई।
➥2022: वैश्विक स्तर पर 80% बैंकिंग ग्राहक अब मोबाइल बैंकिंग तकनीक के नियमित उपयोगकर्ता हैं। Defi और ब्लॉकचेन तकनीक (Blockchain Technology) भी वित्तीय उद्योग को बदल रही है, और कई विशेषज्ञों का मानना है कि 2026 तक कई पश्चिमी देश आधिकारिक तौर पर कैशलेस (Cashless) हो जाएंगे।
यदि हम भारत की बात करें तो 1996 में इंडस्ट्रियल क्रेडिट एंड इंवेस्टमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (Industrial Credit And Investment Corporation Of India (ICICI) ऑनलाइन बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने वाला भारत का पहला बैंक बना। 1999 में एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank), इंडसइंड बैंक (IndusInd Bank) और सिटीबैंक भी इसका अनुसरण करने लगे।
भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank Of India (RBI) और भारत सरकार ने भारत में इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग के विकास को बढ़ावा देने और समर्थन करने के लिए कई कदम उठाए हैं। भारत सरकार द्वारा पारित आईटी अधिनियम, 2000 (IT Act, 2000) ई-लेन-देन और ई-कॉमर्स (E-Commerce) को कानूनी मान्यता देता है।
चलिए अब विशेष तौर पर भारत में इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग के इतिहास पर एक संक्षिप्त नजर डालते हैं:
➦ 1980-1990: भारत में डेबिट और क्रेडिट कार्ड पेश किए गए।
➦ 1984-1988: बैंकों ने कंप्यूटर का उपयोग करना शुरू कर दिया और एमआईसीआर चेक (MICR Check) पेश किए गए।
➦ 1987: HSBC ने भारत में पहला एटीएम पेश किया।
➦ 1990: भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ईसीएस भुगतान (ECS Payment) शुरू किया गया था।
➦ 1991: भारत सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (Society For Worldwide Interbank Financial Telecommunication (SWIFT) में शामिल हुआ।
➦ 1994: भारतीय औद्योगिक ऋण और निवेश निगम, शाखाओं में ऑनलाइन बैंकिंग सेवाएं शुरू करने वाला पहला था।
➦ 1999: एचडीएफसी बैंक, इंडसइंड बैंक और सिटीबैंक ने ऑनलाइन बैंकिंग सेवाएं प्रदान करना शुरू किया।
➦ 2000: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम पारित किया गया, जिसने ई-लेन-देन और ई-कॉमर्स को कानूनी मान्यता दी।
➦ 2002: भारत में एसएमएस बैंकिंग (SMS Banking) के माध्यम से मोबाइल बैंकिंग की शुरुआत हुई।
➦ 2005: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की 11% शाखाओं में कोर बैंकिंग समाधान लागू किए गए। इसी साल राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर प्रणाली (National Electronic Fund Transfer System) भी शुरू की गई।
➦ 2007: भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम पारित किया गया।
➦ 2008: चेक ट्रंकेशन प्रणाली (Check Truncation System) शुरू की गई और मोबाइल बैंकिंग लेनदेन के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए।
➦ 2009: एटीएम से नि शुल्क नकद निकासी की शुरुआत की गई।
➦ 2010: तत्काल भुगतान सेवा शुरू की गई।
➦ 2016: भारत बिल भुगतान प्रणाली और एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस (Unified Payment Interface (UPI) लॉन्च किया गया।
➦ 2016: भारत इंटरफेस फॉर मनी (Bharat Interface For Money (BHIM) नामक यूपीआई पर आधारित एक मोबाइल ऐप विकसित किया गया था।
उसी दौरान सिटीबैंक ने भारत में दो नए कॉर्पोरेट बैंकिंग ई-बिजनेस समाधान (स्पीड कलेक्ट 2000 और सिटी कॉमर्स (Speedcollect 2000 And Citi Commerce) लॉन्च किए हैं। स्पीड कलेक्ट 2000, कॉर्पोरेट ग्राहकों (Corporate Customers) को वास्तविक समय में खाता विवरण और नकदी प्रबंधन रिपोर्ट ऑनलाइन देखने और डाउनलोड करने की अनुमति देता है। वहीं सिटी कॉमर्स एक वैश्विक बिजनेस-टू-बिजनेस प्लेटफॉर्म (Business-To-Business Platform) है, जो कॉर्पोरेट ग्राहकों को उत्पाद कैटलॉगिंग (Cataloguing), ऑनलाइन ऑर्डर प्रोसेसिंग (Online Order Processing) और इनवॉइसिंग (Invoicing), और पूर्ण निपटान और सुलह प्रक्रियाओं सहित सुविधाओं की एक पूरी श्रृंखला प्रदान करता है। स्पीड कलेक्ट 2000, भारत का एकमात्र B2Bबैंकिंग सिस्टम है, जो ग्राहकों को जमा पर्चियों (Deposit Slips), रिटर्न चेक (Return Cheque), रिटर्न मेमो (Return Memo) और जमा किए गए चेक की इमेजिंग (Imaging) प्रदान करता है। इसके अलावा भारत में सिटीबैंक ने "सुविधा" नामक एक शाखा रहित B2C बैंकिंग सेवा भी शुरू की , इसके तहत 150,000 खाते बनाये जा चुके हैं, जिनमें 500 करोड़ रुपये से अधिक जमा हैं और यह अन्य शहरों में भी विस्तार कर रहा था । सिटीबैंक कंपनियों के माध्यम से थोक ग्राहक अधिग्रहण पर ध्यान केंद्रित कर रहा था । बैंक का मानना था कि ई-बैंकिंग की क्षमता बहुत विशाल है, और कनेक्टिविटी बढ़ने के साथ उपयोगकर्ताओं की संख्या में वृद्धि होगी।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3utj7sbt
https://tinyurl.com/27pn5zuu
https://tinyurl.com/bdn48tpx
https://tinyurl.com/47b5sz6x
https://tinyurl.com/5ecvm6db
चित्र संदर्भ
1. एक दुकान में डिजिटल पेमेंट की स्वीकार्यता को दर्शाता एक चित्रण (pexels)
2. इंटरनेट बैंकिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (negativespace)
3. बैंक रसीद को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
4. होम बैंकिंग को दर्शाता एक चित्रण (WannaPik)
5. भारतीय रिजर्व बैंक की मुहर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. भारत इंटरफेस फॉर मनी (भीम) नामक यूपीआई कोड को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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