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प्राचीन काल में शत्रुओं से राज्य की सुरक्षा हेतु शहरों के बाहर किले बना दिए जाते थे, जिनकी चारों दिशाओं में प्रवेश द्वार होते थे, जो विभिन्न गन्तव्यों पर जाने वाली सड़कों पर खुलते थे, इन द्वारों को रात में बंद कर दिया जाता था। ये प्रवेश द्वार शहरों की सुरक्षा, व्यापार, और सामाजिक जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रकट करते थे। ऐतिहासिक रूप से किसी शहर का प्रवेश द्वार शहर में पहली बार प्रवेश करने वालों के लिए इसकी ताकत और शक्ति का संकेतक होता था। इन प्रवेश द्वारों का महत्व विभिन्न समयों और स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता था। जैसे-जैसे किलेबंद शहर बढ़ते गए, उनके आसपास की दीवारें भी उनके साथ-साथ विकसित होती गईं। कभी-कभी पुरानी दीवारों को हटा दिया जाता था और उनके स्थान पर नई दीवारों को बनवा दिया जाता था। समय के साथप्रारंभिक किलेबंदी की आवश्यकता नहीं रही, लेकिन वे आज भी खड़े हैं। समय के साथ विश्वभर में बढ़ती स्थिरता और स्वतंत्रता के कारण किलेबंद शहरों ने अपने द्वारों को हटा दिया, हालांकि इनमें से कई आज भी खड़े हैं; यद्यपि सुरक्षा की बजाय आज ये ऐतिहासिक प्रतीक के रूप में कार्य कर रहे हैं। और आज इन्हें आधुनिक शहरी इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा माना जाता है। इनमें से बचे हुए कई द्वारों का बड़े पैमाने पर जीर्णोद्धार भी किया गया है। कई स्थानों पर तो शहर का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए नए द्वार भी बनाए गए हैं।
आज शहर इतने विस्तारित हो गए हैं कि यह समझना कठिन है कि किसी शहर में संभावित प्रवेश द्वार कहां हो सकता है, और कभी-कभी इसे केवल एक नाम से दर्शाया जाता है। ऐतिहासिक शहर के रक्षात्मक द्वार समय के साथ लुप्त हो गए, गगनचुंबी इमारतों के बीच यह स्मारकीय संरचनाएं अभी भी शहरों की प्रतिष्ठा को बढ़ाती हैं। आज के द्वार-रहित शहरों में अब कम प्रतिबंधित गेटवे मौजूद हैं, जो प्रतिष्ठित विकास परियोजनाओं की तुलना में अधिक विविध और व्यापक हैं।
इन्हें साधारण स्वागत संकेतों से लेकर हवाई अड्डे और बंदरगाह में प्रवेश हेतु बनाया जाता है। प्राचीन प्रवेश द्वारों के कुछ उदाहरण विश्व भर में आज भी देखे जा सकते हैं, जैसे फ्रांसीसी शहर ‘कारकासोन’ (Carcassonne) का प्रवेश द्वार, इटली (Italy) में मौजूद पोर्टा डी सैन फ़्रेडियानो (Porta di San Frediano), यह फ्लोरेंस (Florence) के पश्चिमी किनारे और अर्नो (Arno) नदी के दक्षिण में स्थित एक प्रवेश द्वार है। पियाज़ा सैन मार्को (Piazza San Marco) के पास वेनिस (Venice) शहर का प्रमुख प्रवेश द्वार जोदो स्तंभ सेंट मार्क (Saint Marc) और सेंट थियोडोर (Saint Theodore) के रूप में खड़ा है।
रोमन साम्राज्य के चारों तरफ 1156 में एक मध्यकालीन दीवार बनाई गई थी। इस दीवार में सात मुख्य द्वार - पोर्टा टिसिनीज़ (Porta Ticinese), पोर्टा वर्सेलिना (Porta Vercellina), पोर्टा जियोविया (Porta Giovia), पोर्टा कोमासिना (Porta Comasina), पोर्टा रोमाना (Porta Romana), पोर्टा नुओवा (Porta Nuova) और पोर्टा ओरिएंटेल (Porta Orientale) - थे और लगभग दस "पस्टरले" (pastorale) या पोस्टर्न (postern), अर्थात छोटे प्रवेश द्वार थे। अधिकांश मध्यकालीन दीवारें 16वीं और 19वीं शताब्दी के बीच ध्वस्त कर दी गईं। इनमें से कुछ द्वार आज भी मौजूद हैं।
हमारे रामपुर शहर में भी ऐसे कई दरवाजों का इतिहास छिपा है और हम आज भी इन स्थानों को उनके पुराने दरवाज़ों के नाम से जानते हैं। वास्तव में, हमारे रामपुर शहर के द्वारों का अपना एक इतिहास है जिसे विकास और विध्वंस के तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है। विकास का पहला चरण तब हुआ जब हामिद मंजिल (आज, रज़ा लाइब्रेरी) का आंतरिक महल बनाया गया और हामिद दरवाजा, शाहबाद दरवाजा और राइट गेट (Wright gate) (अंग्रेजी वास्तुकार, डब्ल्यू. सी. राइट (WC Wright) के नाम पर) जैसे द्वार बनाए गए। जैसे ही कोठी खास बाग का निर्माण हुआ, रामपुर के दरवाजों की सुरक्षा की प्रासंगिकता खत्म हो गई लेकिन वे सुंदर कला के अनूठे प्रदर्शन के रूप में विख्यात रहे। हालाँकि, लगभग 10 साल पहले, शहर के आंतरिक हिस्से से कुछ पुराने दरवाज़ों को उनकी कलात्मक सुंदरता के बावजूद रातों-रात नष्ट कर दिया गया था। यहां के दरवाजों के नाम पुराने फ़ारसी शब्द ‘दरवाज़ा’ के स्थान पर अरबी शब्द ‘बाब’ से प्रतिस्थापित कर दिए गए। अब इन आधुनिक द्वारों को उन प्रसिद्ध भारतीय सैनिकों का नाम दिया जा रहा है जिन्होंने देश के लिए अपनी जान दे दी। जैसे ‘बाब-ए-निजात’ दरवाजे को ‘कर्नल साहबजादा मुहम्मद यूनुस अली खान’ गेट और ‘बाब-ए-हयात’ गेट को ‘शहीद मेजर अब्दुल रफ़ी खान’ गेट के नाम से जाना जाता है। कर्नल साहबजादा यूनुस ने 1948 में पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ा था और बाद में भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के एडीसी (ADC) रहे। मेजर अब्दुल रफ़ी खान 1965 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हो गए और उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया। हमारे द्वार रामपुर के एक प्रमुख वास्तुशिल्प पहलू और ऐतिहासिक स्थल बने हुए हैं।
रामपुर के रोहिल्ला राज्य की स्थापना 7 अक्टूबर 1774 को ब्रिटिश कमांडर कर्नल चैंपियन (British Commander Colonel Champion) की उपस्थिति में नवाब फैजुल्ला खान द्वारा की गई थी, और उसके बाद ब्रिटिश संरक्षण के तहत हमारा रामपुर एक समृद्ध राज्य के रूप में फला-फूला। नवाब फैजुल्ला खान ने रामपुर में नए किले का पहला पत्थर रखा और इस तरह 1775 में रामपुर शहर की स्थापना हुई। 1905 में लार्ड कर्ज़न रामपुर की यात्रा पर आए और यहाँ उन्हें रामपुर के नवाब ने 55 इमारतों की तस्वीरों वाली किताब भेंट स्वरूप दी। इन तस्वीरों में हामिद दरवाजा, शाहबाद दरवाजा और राइट गेट की तस्वीरें भी शामिल हैं। नवाब दरवाजा रामपुर केमूल इस्लामी वास्तुकला का एक उदाहरण है, जिसके बड़े हिस्से को डब्ल्यू.सी. राइट द्वारा 'इंडो-सारसेनिक शैली' में पुनर्निर्मित किया गया था। रामपुर की वास्तुकला ऐसी है जो कि पूरे भारत के कुछ ही स्थानों पर पायी जाती है जैसे कि कलकत्ता, मुंबई, मद्रास आदि। इंडो सारसैनिक का भारतीय परिपेक्ष्य में पहली बार आगमन चेपाक, मद्रास में हुआ था जहाँ पर चेपाक पैलेस का निर्माण सन 1768 में किया गया था। यह कला मुख्य रूप से हिन्दू, मुग़ल और गोथिक (Gothic) कला के मिश्रण से बनी थी।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/4xrxkpp2
https://tinyurl.com/2a7s766f
https://tinyurl.com/2p874wbc
https://tinyurl.com/a36mkkzh
https://tinyurl.com/bdcr2wp5
https://tinyurl.com/45xccm7n
https://tinyurl.com/54t7e8uh
https://tinyurl.com/8k5rfym7
https://tinyurl.com/2b86wphd
चित्र संदर्भ
1. हामिद गेट रामपुर को दर्शाता एक चित्रण (bl.uk)
2. लाल किले के दरवाजे को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
3. इटली (Italy) में मौजूद पोर्टा डी सैन फ़्रेडियानो को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
4. भीतर से हामिद दरवाजे को दर्शाता एक चित्रण (bl.uk)
5. शाहबाद गेट रामपुर को दर्शाता एक चित्रण (bl.uk)
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