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शिलप्पदिकारम या चिलप्पतिकारम् (Cilappatikāram) को तमिल संस्कृति की सबसे प्राचीन और प्रथम महाकाव्य रचना माना जाता है। शिलप्पदिकारम का शाब्दिक अर्थ "नूपुर (पायल)" की कहानी” होता है। यह महाकाव्य एक साधारण विवाहित युगल कंनगी और उसके पति कोवलन की एक दुखद प्रेम कहानी पर केंद्रित है। शिलप्पदिकारम मूलतः 5,730 पंक्तियों की एक लंबी कविता है। माना जाता है कि इस महाकाव्य की रचना चोल वंश के शासक रहे, सेनगुट्टुवन के भाई इलांगो आदिगल (இளங்கோவடிகள்) ने संभवतः 5वीं या 6ठी शताब्दी ई.पू. के आसपास की थी। रामायण और महाभारत जैसे संस्कृत महाकाव्यों के विपरीत, यह महाकाव्य राजघराने या देवी-देवताओं के बजाय आम लोगों और उनके जीवन संघर्षों की कहानी है।
शिलप्पदिकारम की कहानी की शुरुआत प्रारंभिक चोल साम्राज्य के दौरान एक प्राचीन बंदरगाह शहर से होती है। यह कहानी कंनगी (कन्नकी) और कोवलन (Kannaki and Kovalan), नामक एक नवविवाहित जोड़े के जीवन को दर्शाते हुए आगे बढ़ती है! ये दोनों एक दूसरे से अगाध प्रेम करते हैं, और ख़ुशी से रहते हैं। लेकिन इसी बीच कोवलन अपनी पत्नी कंनगी को छोड़कर, एक दूसरी स्त्री माधवी पर मोहित हो जाता है, और उसके साथ रहने के लिए कंनगी का त्याग कर देता है। हालांकि दिल टूटने के बावजूद भी कंनगी अपने पति से प्रेम करती रहती है।
समय बीतता है और कोवलन, माधवी के पीछे अपनी सारी दौलत लुटा देता है! सबकुछ ख़त्म हो जाने के बाद कोवलन को अपनी गलती का अहसास हो जाता है और वह माधवी को छोड़कर, फिर से कंनगी के पास वापस आ जाता है! कोवलन, कंनगी के सामने अपनी गलतियों को स्वीकार करता है, जिसके बाद कंनगी भी उसे माफ कर देती है! इसके बाद वे दोनों साथ में, उस शहर को छोड़ देते हैं और पांड्य साम्राज्य की राजधानी मदुरै (मदुरई) की ओर चले जाते हैं! हालांकि अब वे गरीब और दरिद्र हो जाते हैं।
लेकिन कंनगी के पास अभी भी एक रत्नजड़ित पायल होती है, जिसे वह जिंदगी की एक नई शुरुआत करने के लिए बेचने हेतु अपने पति को दे देती है। हालाँकि, जब कोवलन इसे बेचने की कोशिश करता है, तो उस पर इसे रानी की पायल बताकर, पायल चुराने का झूठा आरोप लगा दिया जाता है! इसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है, और राजा उसे फाँसी पर चढ़ा देते हैं। लेकिन जब कंनगी को कोवलन की मृत्यु के बारे में पता चलता है, तो वह राजा से भी भिड़ जाती है! यहाँ पर कंनगी राजा के समक्ष अपनी दूसरी पायल पेश करके, अपने पति की बेगुनाही साबित कर देती है। अब राजा को भी अपनी गलती का एहसास हो जाता है! लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। क्रोध और दुःख के आवेश में कंनगी, राजा के साथ-साथ मदुरै के सभी लोगों को भी श्राप दे देती है, जिसके बाद पूरा शहर आग से नष्ट हो जाता है। महाकाव्य के अंतिम भाग में, कंनगी देवी-देवताओं से मिलती है और इंद्र के साथ स्वर्ग चली जाती है।
शिलप्पदिकारम को तमिल संस्कृति में एक महत्वपूर्ण साहित्यिक कृति माना जाता है! इसमें जैन, बौद्ध और हिंदू परंपराओं के विषयों और मूल्यों की अद्भुद समावेशी अवधारणा भी नजर आती है। संक्षेप में समझें तो यह महाकाव्य सार्वभौमिक प्रश्नों से जूझ रहे एक साधारण जोड़े की भावनात्मक यात्रा पर केंद्रित है। इस महाकाव्य को तीन भागों (‘पुहारक्कांडम’, 'मदरैक्कांडम' और 'वंजिक्कांडम') में विभाजित किया गया है। इन तीनों भागों में क्रमश चोल, पांड्य, और चेरा राज्यों का वर्णन मिलता है। इस महान महाकाव्य के रचियता "इलांगो आदिगल" ने कविता स्वरूप कहानी के माध्यम से तत्कालीन तमिल समाज का सजीव चित्र प्रस्तुत करने के साथ-साथ, उस समय के समाज में प्रचलित नृत्यों, व्यवसायों आदि का भी परिचय दिया है। शिलप्पदिकारम की रचना करने वाले चेर राजकुमार इलांगो आदिगल को चोल वंश के चेर राजा नेदुम चेरालाटन और सोनाई/नलचोनई का छोटा पुत्र माना जाता है। उन्हें कभी-कभी चेरा राजकुमार के रूप में पहचाना जाता था एक किवदंती के अनुसार जब उनका जन्म हुआ था, तब एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि वह बड़े होने पर राजा बनेंगे। लेकिन चूंकि उनके बड़े भाई चेरालाथाना चेंगुट्टवन अभी जीवित थे, इसलिए इलांगो ने खुद को उत्तराधिकार के बजाय जैन भिक्षु बनने की राह चुनी। इलांगो आदिगल रचित सिलापथिगाराम महाकाव्य ने मणिमेखलई नामक एक अन्य चेर-तमिल काव्य महाकाव्य को प्रेरित किया। यह काव्य महाकाव्य शिलप्पदिकारम की अगली कड़ी माना जाता है। यह भाग कोवलन और माधवी की बेटी मनिमेकलाई के इर्द-गिर्द घूमता है। महाकाव्य का यह भाग भी बेहद रोमांचक और प्रेरणादायक है, जिसके बारे में हम किसी और दिन विस्तार से चर्चा करेंगे!
संदर्भ
https://tinyurl.com/yw36cmz9
https://tinyurl.com/4fy9xkc9
https://tinyurl.com/42v3ejd3
https://tinyurl.com/mrychu5t
https://tinyurl.com/3ed9xpmd
चित्र संदर्भ
1. एक स्त्री और जैन भिक्षु इलांगो आदिगल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. भिक्षु इलांगो आदिगल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. कंनगी (कन्नकी) और कोवलन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. कंनगी की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. राजा रवि वर्मा द्वारा निर्मित एक पेंटिंग को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
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