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आखिरकार महामारी ने प्रदान की स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को रोजगार के महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में मान्यता

रामपुर

 12-05-2023 09:30 AM
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

पहाड़ों में एक कहावत कही जाती है कि “पहाड़ का पानी और जवानी, पहाड़ के काम नहीं आती!" ऐसा इसलिए होता है क्योंकि, पहाड़ का पानी बहकर तराई क्षेत्र के खेतों को पोषित करता है और पहाड़ों के युवा नौकरी की खोज में शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं! हालांकि, धीरे-धीरे यह कहावत पहाड़ी इलाकों के साथ-साथ, भारत के अन्य क्षेत्रों / शहरों पर भी लागू हो रही है, क्योंकि जिन युवाओं ने इंजीनियर (Engineer) या उपचारिकाएं अर्थात नर्स (Nurse) बनने के लिए समय और पैसा दोनों खर्च किया था, वे अच्छी तरह से प्रशिक्षित होकर भी नौकरी के अवसरों और अन्य सुविधाओं के अभाव में बेहतर जीवनशैली और नौकरी के लिए विदेशों का रुख करने लगे हैं, खासतौर पर तब, जब भारत को उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है। लेकिन उनकी भी अपनी मजबूरियां हैं, चलिए जानते है कि क्या हैं, वह मजबूरियां?
कोरोना महामारी के दौरान भारत में नर्सों का धैर्य और वीरतापूर्ण प्रयास, वाकई में काबिले तारीफ है। इस भारी संकटकाल में भी इन्होंने मरीजों की यथासंभव देखभाल की और वायरस (Virus) के प्रसार को रोकने में बेहद अहम् भूमिका निभाई। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि तीस लाख नर्सिंग कार्यकर्ता होने के बावजूद, पूरी दुनिया में भारत, नर्सों की सबसे ज्यादा कमी झेलने वाला देश है। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organization) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में, भारत में प्रति 1,000 लोगों की देखभाल के लिए केवल 1.7 नर्सें हैं, जबकि विशेषज्ञ मानते हैं कि एक स्वस्थ समाज के लिए 1,000 लोगों के लिए कम से कम चार नर्सें अवश्य होनी चाहिए। हालांकि ऐसा नहीं है कि भारत में नर्सिंग से संबंधित अध्ययन करने वाले या कर चुके युवाओं की कमी है, बल्कि ऐसा इसलिए है क्योंकि कड़ी मेहनत करने के बावजूत भी भारत में नर्सों को डॉक्टरों की तुलना में कम वेतन, सुविधाओं की कमी और सीमित मान्यता जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। और इसीलिए भारत की नर्सें देश में सेवा देने के बजाय विदेशों में नौकरी करने का विकल्प चुनती हैं। उदाहरण के तौर पर, भारत की दक्षिण-पश्चिम तटीय सीमा पर बसे केरल राज्य में स्थिति बहुत बुरी है, जहां की होनहार नर्सें बेहतर काम, उच्च वेतन और बेहतर जीवन शैली के अवसरों की तलाश में विदेशों में काम करने के लिए अपना देश छोड़ रही हैं।ऐसी ही एक केरल की नर्स राधिका के माता-पिता, जो केरल के चंगनास्सेरी में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं, हमेशा चाहते थे कि उनकी बेटी नर्स बने। इसलिए उन्होंने एक शिक्षा ऋण (Education Loan) लिया, और राधिका के स्नातक होने के बाद, उन्हें कोच्चि के एक प्रसिद्ध निजी अस्पताल में नौकरी भी मिल गई। हालाँकि, एक नर्स के रूप में उनका दो साल का अनुभव जल्द ही एक दुखद सपने में बदल गया। बदलती शिफ्ट, शारीरिक रूप से थका देने वाले काम और कम वेतन तथा अपना शिक्षा ऋण और अपने परिवार द्वारा लिए गए दहेज ऋण को चुकाने के लिए मजबूरी में उन्हें इस नौकरी को छोड़कर विदेशों में नौकरी तलाशनी पड़ी।
भारत में आधिकारिक तौर पर काम के छह से आठ घंटे तय होने के बावजूद, उन्हें अक्सर दस घंटे काम करना पड़ता था। उनका वेतन मात्र 12,000 रुपए था, लेकिन आवास और जरूरी आवश्यकताओं में उनके 6,000 रुपए खर्च होने के बाद उसमें से जो कुछ भी बचता था उसे वह घर भेज देती थी। ऐसी स्थिति में 2 साल बाद आखिरकार उन्होंने विदेश में नौकरी करना ही उचित समझा। हर साल, हजारों नर्सिंग छात्र केरल के महाविद्यालयों से स्नातक होते हैं, लेकिन इसके तुरंत बाद वे विदेशों में चले जाते हैं। विदेशों में बेहतर अवसरों और उच्च वेतन के साथ-साथ, हमारे देश में नर्सों के शारीरिक और वित्तीय शोषण के कारण नर्सों का पलायन जारी है। हालांकि, सरकार ने हाल ही में राज्य में नर्सों के लिए न्यूनतम वेतन में वृद्धि भी की है, लेकिन इसके बावजूद अस्पतालों में कर्मचारियों की कमी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। पश्चिमी देशों में नर्सों के लिए काम करने की स्थिति तुलनात्मक रूप से अच्छी है, उन्हें वेतन भी अच्छा मिलता है और उनका सम्मान भी काफी किया जाता है। यही कारण है कि कई भारतीय नर्सें बेहतर अवसरों की तलाश में वहां प्रवास करने का विकल्प चुनती हैं। हालांकि, देश में अधिक से अधिक युवाओं को नर्सिंग के क्षेत्र में प्रशिक्षित करके इस संकट को अवसर में भी बदला जा सकता है। उदाहरण के तौर पर कोरोना महामारी के दौरान कोरोना के मामले बढ़ने के साथ-साथ सभी देशों में डॉक्टरों तथा नर्सों की कमी हो गई थी। मालदीव (Maldives), अपने स्वास्थ्य कर्मियों और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भारत पर बहुत अधिक निर्भर है और संकट के समय मालदीव ने भारत से मदद मांगी। लेकिन महामारी के दौरान भारत खुद भी त्रस्त था, इसलिए हम मालदीव को कोई भी सहायता प्रदान नहीं कर सके।
लेकिन अपने स्वास्थ्य कार्यबल की क्षमता में निवेश करने से देश न केवल अपनी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होगा, साथ ही हम अन्य देशों का भी समर्थन कर सकते हैं। संयुक्त अरब अमीरात (United Arab Emirates) को भी इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा था। मालदीव और यूएई (UAE) सहित कई देश, स्वास्थ्य कर्मियों की आपूर्ति के लिए भारत पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
इसे एक अवसर के तौर पर देखते हुए ‘कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय’ (Ministry Of Skill Development And Entrepreneurship (MSDE) के माध्यम से भारत सरकार ने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को रोजगार के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में मान्यता भी प्रदान की थी। मंत्रालय ने भविष्य में संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America), यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom), जर्मनी (Germany), ऑस्ट्रेलिया (Australia), जापान (Japan), स्वीडन (Sweden) और सिंगापुर (Singapore) जैसे देशों में डॉक्टरों, नर्सों और संबद्ध स्वास्थ्य कर्मियों सहित 300,000 स्वास्थ्य कर्मियों को भेजने की योजना की घोषणा की थी। इन श्रमिकों को उच्च मांग और जनसांख्यिकीय चुनौतियों वाले क्षेत्रों में नियोजित किया जाएगा। आने वाले दशकों में दुनिया भर में लोगों की औसत उम्र बढ़ेगी और यह बढती उम्र स्वास्थ्य कर्मियों की भारी मांग भी पैदा करेगी, जिसकी पूर्ति भारत कर सकता है। भारत जैसे देश के लिए, अपनी बड़ी आबादी और युवा कार्यबल के साथ, वैश्विक श्रम गतिशीलता में निवेश करना एक फायदेमंद सौदा साबित हो सकता है।
भारत में कुल 541 मेडिकल कॉलेज (Medical College) हैं, जहां से निकलने वाले स्वास्थकर्मी यूरोप (Europe), खाड़ी क्षेत्र, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा (Canada), ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड (New Zealand) जैसे विकसित देशों में अपनी सेवाएं देते है। इसलिए भारत में स्वास्थ्य देखभाल कार्यबल में अंतराल को दूर करने के लिए स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे, पेशेवर कॉलेजों और तकनीकी शिक्षा में अधिक निवेश करने की आवश्यकता है। सरकार ने भी इस दिशा में कदम उठाए हैं, इसी दिशा में सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा व्यवसाय अधिनियम’ (National Commission For Allied and Healthcare Professions Act, 2021) पारित किया गया जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य कर्मियों के लिए शैक्षिक और सेवा मानकों को विनियमित करना है। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में निवेश और वैश्विक श्रम गतिशीलता को बढ़ावा देने से भारत में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी को दूर किया जा सकता है, रोजगार संकट को हल करने में मदद मिल सकती है, साथ ही अन्य देशों की भी मदद की जा सकती है। आज 12 मई के दिन को पूरी दुनिया में ‘अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस’ (International Nurses Day (IND) के तौर पर मनाया जाता है, आज का दिन विशेष तौर पर समाज में उपचारिकाओं अर्थात नर्सों की अहमियत और उनके द्वारा किये गए सामाजिक योगदान को चिह्नित करता है। आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक, फ्लोरेंस नाइटिंगेल (Florence Nightingale) की जयंती 12 मई को पड़ती है। जनवरी 1974 में इसी दिन को हर वर्ष, ‘अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस’ मनाने के लिए चुना गया था। यह दिन नर्सिंग के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने की चाह रखने वाले युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत के रूप में भी काम करता है।

संदर्भ
https://bit.ly/42laFcG
https://bit.ly/3nKwu6l
https://bit.ly/3nKwLpT
https://bit.ly/42lFrlt

चित्र संदर्भ

1. कोरोना के दौरान टीकाकरण अभियान को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. एक मरीज का इलाज करते हुए नर्स को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
3. जम्मू में नर्सिंग कोर्स में दाखिला लेने वाली किशोरियों को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. हॉस्पिटल में काम करती नर्स को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
5. बुजुर्ग का इलाज करती एक भारतीय नर्स को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)



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