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भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि सबसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। 2020-21 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान लगभग 19.9% था। इसके अलावा, यह क्षेत्र भारतीय आबादी के 42.6% लोगों को रोजगार देता है। हालांकि, यह क्षेत्र मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड (Methane and Nitrous Oxide) जैसी खतरनाक ग्रीनहाउस गैसों का एक प्रमुख स्रोत है, जिनका ग्रीनहाउस प्रभाव और जलवायु परिवर्तन में योगदान हैं। इस जलवायु परिवर्तन के कारण देश भर में उच्च तापमान और अप्रत्याशित वर्षा हो रही है, जिसके परिणामस्वरूप फसल की पैदावार और समग्र खाद्य उत्पादन कम हो रहा है। तापमान में वृद्धि, वर्षा के पैटर्न में बदलाव, चरम मौसम की घटनाओं में बदलाव और पानी की उपलब्धता में परिवर्तन के कारण, जलवायु परिवर्तन कृषि तंत्र को प्रभावित कर रहा है।
1.4 बिलियन से अधिक लोगों को आश्रय देने वाला हमारा देश भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है। अपनी बड़ी आबादी के कारण, भारत 2020 में 2.4 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) उत्सर्जन के साथ तीसरा सबसे बड़ा राष्ट्रीय उत्सर्जक था। और इसी वजह से भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील देशों में से है। जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में मौसमों में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया है। लगभग 50% भारतीय लोग कृषि और अन्य जलवायु संवेदनशील क्षेत्रों में काम करते हैं, जिससे उत्पादकता और स्वास्थ्य को भी नुकसान हो रहा है। वर्ष 1901 से 2018 तक भारत का औसत तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। गर्मियों के मानसून के मौसम के दौरान, भारत में बार-बार शुष्क और अधिक तीव्र बारिश दोनों प्रकार के मौसम का अनुभव किया जा रहा है।
कम ऊंचाई वाले तटीय क्षेत्रों में रहने वाली भारत की 310 दशलक्ष आबादी को समुद्र के स्तर में वृद्धि से भी खतरे की संभावना है। भारत में लगभग 363 दशलक्ष लोग गरीब और 1.77 दशलक्ष लोग बेघर हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक भारत के 148.3 दशलक्ष लोग गंभीर जलवायु संवेदनशील क्षेत्रों में रहेंगे। इसके अलावा भारत की 80% से अधिक आबादी चरम मौसम की घटनाओं के लिए अत्यधिक संवेदनशील जिलों में रहती है। भारत लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही जलवायु वार्ताओं में लगातार हिस्सा ले रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप भारत में ऊर्जा दक्षता में सुधार, स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को विकसित करने और बदलती जलवायु के प्रभावों के लिए तैयार रहने हेतु राष्ट्रीय स्तर पर और अलग-अलग राज्यों में विविध नीतियों और योजनाओं का कार्यान्वयन शुरू कर दिया गया है।
2015 में, भारत ने 2030 तक अपनी उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करने, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से अपनी 40% बिजली पैदा करने और वन क्षेत्र में वृद्धि करने के उद्देश्य से अपनी पहली जलवायु कार्य योजना प्रस्तुत की थी। जिसके बाद भारत ने अपनी सौर ऊर्जा क्षमता को तेजी से बढ़ाया है। इससे स्थापित सौर क्षमता के लिए 2020 की मानव विकास रिपोर्ट में भारत पांचवें स्थान पर है। भारत की योजना 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा का 450 GW क्षमता तक विस्तार करने की है। साथ ही, भारत ने 2070 तक शून्य उत्सर्जन हासिल करने का संकल्प लिया है। हालाँकि, 2070 के उत्सर्जन लक्ष्य को पूरा करने के लिए, हमें अनुमानित तौर पर $10.1 ट्रिलियन ($10.1 Trillion) निवेश की आवश्यकता होगी।
आर्थिक विकास का समर्थन और निम्न-कार्बन अवसंरचना का निर्माण करने हेतु, भारत को आज अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के हिस्से के रूप में विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में 1.5 गुना या उससे अधिक निवेश करने की आवश्यकता है। अंतर्राष्ट्रीय समर्थन के बिना, इस अतिरिक्त निवेश के वित्तपोषण से भारत के कुल घरेलू खपत में 2% की गिरावट आने की संभावना है तथा जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में लगभग 5 दशलक्ष नौकरियों को संकट है। जबकि नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग में 12 दशलक्ष नए रोजगार सृजित होने की उम्मीद है। अतः वानिकी जैसे जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों के अनुकूलन को प्रेरित करने के लिए भारत द्वारा राष्ट्रीय अनुकूलन कोष के लिए 55.6 दशलक्ष डॉलर अलग रखे गए हैं।
हालाँकि, एक प्रभावी राष्ट्रीय रणनीति में जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा से संबंधित विश्वासों, दृष्टिकोणों, नीतिगत प्राथमिकताओं और भारतीय लोगों के व्यवहार को ध्यान में रखा जाना चाहिए जो किसी भी रणनीति की सफलता या विफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जलवायु परिवर्तन से संबंधित एक और मुद्दा चर्चा में हैं, जो कृषि को प्रभावित करता है। आईए जानते है। ‘नेशनल रेनफेड एरिया अथॉरिटी’ (National Rainfed Area Authority) के अनुसार, पिछले 70 वर्षों में भारत में मृदा जैविक कार्बन (Soil Organic Carbon) की मात्रा 1% से घटकर मात्र 0.3% हो गई है। यह कृषि क्षेत्र के लिए एक चिंता का विषय है। जैविक कार्बन मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ का मुख्य घटक है और मिट्टी को इसकी जल-धारण क्षमता, संरचना और उर्वरता प्रदान करता है। इसमें इतनी भारी गिरावट के कारण मिट्टी की उत्पादकता प्रभावित होती है, क्योंकि ऐसी मृदा में पौधों को पोषक तत्व प्रदान करने वाले सूक्ष्म जीव जीवित नहीं रह सकते हैं।
मिट्टी को उचित खाद प्रदान किए बिना फसलों की खेती जैविक कार्बन में गिरावट का एक प्रमुख कारण है। जैविक उर्वरक और खाद मिट्टी में इस स्तर को बढ़ाया जा सकता है। साथ ही किसानों को कीटनाशकों और उर्वरकों पर अपनी निर्भरता कम करनी चाहिए।
इसके अलावा ग्लोबल वार्मिंग की गंभीरता को सीमित करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए तैयार रहने की नई नीतियों के लिए सार्वजनिक स्वीकृति, समर्थन और मांग का निर्माण करने के लिए शिक्षा और संचार रणनीतियों की आवश्यकता होगी।
जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के वर्षों में खाद्य उत्पादन में गिरावट से कृषि क्षेत्र में राजस्व को गंभीर रूप से हानि हुई है। इसलिए, अब समय आ गया है कि हम जलवायु- लचीली कृषि प्रणालियों (Climate-resilient agricultural systems (CRA) को अपनी खेती के तरीकों में शामिल करें। जलवायु-लचीली कृषि प्रणालियों में जलवायु परिवर्तनशीलता के तहत दीर्घकालिक उच्च उत्पादकता और कृषि आय प्राप्त करने के लिए स्थायी कृषि पद्धतियां शामिल हैं। यह दृष्टिकोण मौजूदा प्राकृतिक संसाधनों का स्थायी रूप से उपयोग करके फसल और पशुधन उत्पादन पर जोर देता है। सीआरए को लागू करके, किसान जलवायु परिवर्तन से संबंधित खतरनाक घटनाओं, प्रवृत्तियों, या व्यवधानों का पूर्वाभास कर सकते हैं, उनकी तैयारी कर सकते हैं और उनका जवाब दे सकते हैं। भारी बारिश के कारण, विशेष रूप से ढलान वाले क्षेत्रों में, उपजाऊ मिट्टी की ऊपरी परत बह सकती है। ग्राउंड कवर लगाने से भारी बारिश के बाद मिट्टी को बहने से बचाया जा सकता है, और यह सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भी अच्छा होता है क्योंकि यह मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद करता है। साथ ही जलवायु-स्मार्ट कृषि पद्धतियों से किसानों को यह ज्ञान भी प्राप्त होता है कि नए फैलने वाले कीटों से निपटने के लिए वर्ष के सही समय पर कीटनाशक की उचित मात्रा का उपयोग करने की आवश्यकता होती है और कीट प्रतिरोधी पौध भी फायदेमंद हो सकती है। स्मार्ट कृषि जलवायु परिस्थितियों, मिट्टी के गुणों, मिट्टी की नमी और अन्य पहलुओं में बदलाव की निगरानी करके फसल संबंधी विभिन्न समस्याओं का समाधान करती है। कोई भी तरीका जो मिट्टी की गुणवत्ता और संरचना में सुधार कर सकता है, मिट्टी की उत्पादकता में सुधार करता है, जलवायु-स्मार्ट कृषि का एक प्रमुख अंग है।
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक घटना है जिसने भारत में फसल की उपज को बुरी तरह प्रभावित किया है। इसने उन क्षेत्रों में मिट्टी, पानी और कीट प्रसार को प्रभावित करके कुछ क्षेत्रों में खेती की जा सकने वाली फसलों के प्रकारों को भी प्रभावित किया है। इन कुछ तरीकों को अपनाकर फसलों पर जलवायु परिवर्तन के पड़ने वाले हानिकारक दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3VmExT6
https://bit.ly/4141xb2
https://bit.ly/42k7OAp
चित्र संदर्भ
1. बदलती जलवायु के बीच फसल बचाव के उपायों पर प्रयोग करते विशेषज्ञों को दर्शाता एक चित्रण (ICRISAT)
2. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को दर्शाता एक चित्रण (pixabay)
3. 2021 में जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक रैंकिंग के अनुसार मानचित्र के वर्गीकरण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. खेत की सफाई करते किसान को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
5. खेत में बाढ़ बनाते किसानों को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
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