City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2005 | 543 | 2548 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
गौतम बुद्ध के जन्मदिन अर्थात बुद्ध पूर्णिमा की सटीक तिथि एशियाई चन्द्र-सौर कैलेंडर (Lunisolar Calendar) के आधार पर निर्धारित की जाती है। बुद्ध पूर्णिमा को आमतौर पर बौद्ध और विक्रम संवत नामक हिंदू कैलेंडर के वैशाख महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन भारत और नेपाल में अवकाश घोषित कर दिया जाता है। इस खुशी के अवसर पर मीठे चावल की खीर और दलिया परोसा जाता है। थेरवाद परंपरा में यह उत्सव गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति (निर्वाण) और मृत्यु (परिनिर्वाण) की स्मृति में मनाया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के इसी पावन अवसर पर, हम भी आज के इस लेख में संकिसा नामक उस स्थान के काल्पनिक भ्रमण पर चलेंगे, जिसके बारे में माना जाता है कि भगवान बुद्ध, इंद्र और ब्रह्मा के साथ स्वर्ग से उतरकर इसी स्थान पर आये थे।
संकिसा अथवा संकिशा उत्तर प्रदेश राज्य में फ़र्रूख़ाबाद जिले के पखना रेलवे स्टेशन से, सात मील दूर काली नदी के तट पर स्थित, एक प्रमुख बौद्ध-धर्म स्थली है। बौद्ध ग्रंथों में इस नगर की गिनती उस समय के बीस प्रमुख नगरों में की जाती है। बौद्ध स्रोतों के अनुसार, यह स्थान श्रावस्ती से तकरीबन 30 लीग दूर स्थित था। ("लीग" शब्द प्राचीन काल में प्रयोग होने वाली दूरी की एक इकाई है। एक लीग लगभग तीन मील या 4.8 किलोमीटर के बराबर होती है।)
संकिसा में कई पुराने मठ और बौद्ध स्मारक मौजूद हैं, लेकिन दूर होने और जरूरी सुविधाओं की कमी के कारण, यह नगर तीर्थयात्रियों के बीच बहुत अधिक लोकप्रिय नहीं है। गौतम बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात्, राजा अशोक ने इस शहर का विकास किया और यहां पर एक अशोक स्तंभ, एक स्तूप तथा एक मंदिर भी बनवाया। बुद्ध की माता विशारी देवी को समर्पित यह मंदिर आज भी यहां खड़ा है।
खंडहर हो चुके संकिसा स्मारकों को 1842 में अलेक्जेंडर कनिंघम (Alexander Cunningham) नाम के एक ब्रिटिश व्यक्ति द्वारा दोबारा खोजा गया। 1957 में, पंडिता मदबाविता विजेसोमा थेरो (Panditha Madabawita Wijesoma Thero) नाम के एक श्रीलंकाई भिक्षु कुछ वर्षों के लिए संकिसा में ही रहे और यहाँ गरीब लोगों के लिए एक बौद्ध स्कूल (Wijerama Vidyalaya) भी खोला।
संकिसा को अब बसंतपुरा के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि प्राचीन काल में, इस शहर पर माता सीता के पिता राजा जनक के छोटे भाई राजा कुशध्वज द्वारा शासन किया जाता था। रामायण काल में यह नगर ‘संकस्य नगर’ के रूप में जाना जाता था। कहा जाता है कि, रामायण काल में राजा जनक का सुधन्वा नामक एक दुष्ट राजा के साथ इसलिए भीषण युद्ध छिड़ गया, क्यों कि उसने विवाह में सीता का हाथ मांग लिया था। इस युद्ध में राजा जनक विजयी हुए और अपने भाई कुशध्वज को संकस्य का राज्य प्रदान किया। बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार यह वही स्थान है, जहाँ बुद्ध, इन्द्र एवं ब्रह्मा सहित स्वर्ण अथवा रत्न की सीढ़ियों से त्रयस्तृन्सा स्वर्ग से पृथ्वी पर आये थे। इस प्रकार गौतम बुद्ध के समय में भी यह एक ख्याति प्राप्त नगर था।
बौद्ध मान्यताओं के अनुसार महात्मा बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनंद के कहने पर, इसी स्थान में संघ में स्त्रियों की प्रव्रज्या पर लगायी गयी रोक को तोड़ा था तथा, उत्पलवर्णा नामक एक भिक्षुणी को दीक्षा देकर स्त्रियों के लिए भी बौद्ध धर्म के द्वार खोल दिये थे। पाँचवीं शताब्दी के पहले दशक में चीनी यात्री फाह्यान (Fa Hien) भी मथुरा से चलकर यहाँ आया था, जिसके बाद वह यहाँ से कान्यकुब्ज और श्रावस्ती आदि स्थानों पर गया था। उसने संकिसा का उल्लेख सेंग-क्यि-शी (Seng-Kyi-Shi) नाम से किया है। उसने यहाँ हीनयान और महायान सम्प्रदायों के एक हजार भिक्षुओं को देखा था।
बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, संकिसा वही स्थान है जहाँ भगवान बुद्ध तवातिम्सा (स्वर्ग) में अभिधम्मपिटक (बौद्ध ग्रंथ) का उपदेश देने के बाद पृथ्वी पर लौटे थे। जब बुद्ध संकिसा पहुंचे, तो स्वर्ग के वासी उनके शिष्य बन चुके थे। बुद्ध के अवतरण के लिए देवों के स्वामी सक्का सिनेरू ने तीन सीढ़ियां बनाई थीं, (देवों के लिए एक सीढ़ी सोने की, एक ब्रह्मा के लिए चांदी की और एक बुद्ध के लिए रत्नों की थी।)
जब बुद्ध रत्नजड़ित सीढ़ी पर उतरे, तो उनके साथ दोनों तरफ देवता और ब्रह्मा थे। इस घटना को वहां खड़ी भारी भीड़ ने देखा, जिसके बाद संकिसा एक महत्वपूर्ण बौद्ध मंदिर बन गया। तीर्थयात्रियों, ह्वेन त्सांग (Xuanzang) और फ़ाहियान (Fa Hien) ने जब उस स्थान का दौरा किया, तो उन्हें भी यहां तीन तीन सीढ़ियाँ मिलीं, जो कि ईंट और पत्थर से बनाई गई थीं, लेकिन सीढ़ियाँ धरती में लगभग धँसी हुई थीं। राजा अशोक ने 249 ईसा पूर्व में जब इस स्थल का दौरा किया था, तो उन्होंने उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण कर दिया, जहां बुद्ध ने पृथ्वी पर अपना पहला पैर रखा था। उन्होंने एक पत्थर के स्तंभ पर शेर की प्रतिमा को भी खड़ा किया और इसके चारों ओर बुद्ध की प्रतिमाएँ स्थापित कीं। संकिसा में हाथी के शीर्ष वाला टूटा हुआ अशोक स्तंभ, ब्रह्मा, और सिक्के से घिरे भगवान बुद्ध की एक खड़ी छवि वाला एक छोटा मंदिर, आदि रुचिकर वास्तुकलाएं आज भी दर्शनीय हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/42hLpUb
https://bit.ly/3nyopkZ
चित्र संदर्भ
1. संकिसा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. गौतम बुद्ध के स्वर्ग से आगमन को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. संकिसा धरोहर के बोर्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. संकिसा में हाथी की प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. संकिसा में त्रयस्त्रीम्सा स्वर्ग से बुद्ध के अवतरण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. संकिसा में जर्जर ईमारत को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
© - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.