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भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में स्थित रामास्वामी मंदिर भारत के सबसे खूबसूरत राम मंदिरों में से एक है। इस मंदिर पर की गई शानदार नक्काशी महाकाव्य रामायण की कई उल्लेखनीय घटनाओं को प्रदर्शित करती है। आमतौर पर विभिन्न राम मंदिरों में हमें राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां देखने को मिलती हैं, किंतु यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां आपको श्री राम, सीता और लक्ष्मण के साथ भरत और शत्रुघ्न की मूर्तियां भी देखने को मिलेंगी। तो आइए, आज इस मंदिर में प्रदर्शित रामायण के अद्वितीय तत्वों और रूपांकनों के बारे में जानकारी प्राप्त करें।
भगवान विष्णु के अवतार राम को समर्पित रामास्वामी मंदिर भारत के तमिलनाडु के कुंभकोणम शहर में कावेरी नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण कार्य तंजावर नायक राजवंश के काल में राजा अच्युतप्पा नायक (1560-1614) द्वारा शुरू कराया गया था, जो कि रघुनाथ नायक (1600-34) के शासनकाल के दौरान पूरा हुआ था। मंदिर के चारों तरफ एक विशाल ग्रेनाइट दीवार स्थित है और इस परिसर के अंदर ही सभी मंदिरों के साथ-साथ जल निकाय भी स्थित हैं। मंदिर के स्तंभों पर विभिन्न हिंदू दिव्य चरित्रों को दर्शाती उत्कृष्ट मूर्तियां स्थापित की गई हैं। पहले परिक्षेत्र में तीन खंडों में रामायण को चित्रात्मक प्रारूप में दर्शाया गया है। मंदिर में सुंदर वास्तुकला के विभिन्न खंड देखने को मिलते हैं, जिन्हें 16वीं शताब्दी के दौरान तंजावर नायक राजाओं द्वारा बनवाया गया था। नायक शासकों के प्रधान मंत्री गोविंदा दीक्षितार ने इस मंदिर के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपने नए मंदिर और पुराने चक्रपाणि मंदिर के बीच एक व्यावसायिक गैलरी का निर्माण किया। विभिन्न किवदंतियों के अनुसार, इस मंदिर की मूर्तियाँ दरासुरम गाँव के पास स्थित एक मंदिर के तालाब में मिली थीं।
यह मंदिर कुंभकोणम के प्रमुख विष्णु मंदिरों में से एक है। मंदिर में दीवारों से घिरा एक 3-स्तरीय प्रवेश द्वार (गोपुरम) मौजूद है। केंद्रीय मंदिर में भगवान राम अपनी पत्नी देवी सीता के साथ बैठने की मुद्रा में विराजमान हैं। अन्य मूर्तियों में भगवान राम के भाइयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की मूर्तियां शामिल हैं, जिन्हें खड़ी मुद्रा में दिखाया गया है। इसके अलावा भगवान हनुमान की मूर्ति भी प्रार्थना की मुद्रा में दर्शायी गयी है। गोपुरम के पास स्थित सभा गृह के चौसठ स्तंभों को महाकाव्य रामायण के विभिन्न प्रसंगों द्वारा अति सूक्ष्मता के साथ उकेरा गया है तथा प्रत्येक स्तंभ को एक ही पत्थर से तराशा गया है। एक अन्य विशेष बात यह है कि यहां भगवान हनुमान को श्री राम के समक्ष पांडुलिपियों को पकड़े हुए दिखाया गया है। इसे देखकर ऐसा लगता है कि जब भगवान राम हनुमान जी को आज्ञा देते, तब वे पुराणों का पाठ करते। उनका दाहिना हाथ व्याख्यान मुद्रा में है, जो दर्शाता है कि वे भगवान राम को कुछ सुना रहे हैं। इस प्रकार यहां भगवान हनुमान की छवि एक विशेषज्ञ संगीतकार के रूप में प्रदर्शित की गई है। हालांकि, संगीत के एक विशेषज्ञ के रूप में भगवान हनुमान की अवधारणा नई नहीं है। संस्कृत के विद्वान डॉ. वी. राघवन ने अपने एक व्यापक सर्वेक्षण में बताया कि कैसे भगवान हनुमान को प्राचीन काल से संगीत का एक आचार्य माना जाता था। लेकिन शायद इस बात को आधार विजयनगर साम्राज्य (14वीं से 16वीं शताब्दी) के समय में मिला।
रामास्वामी मंदिर को त्रिची के पास थोप्पुर में सन् 1616 में हुए युद्ध में राजकुमार श्रीराम राय की सफलता तथा शांति का प्रतीक भी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि विजयनगर सिंहासन का उत्तराधिकार प्राप्त करने के लिए नायकों के बीच अक्सर संघर्ष होता था। इन संघर्षों में सबसे गंभीर संघर्ष 1616 में त्रिची के पास थोप्पुर में हुआ। हालांकि इस युद्ध में रघुनाथ नायक ने युवा राजकुमार श्रीराम राय का पक्ष लिया, जो उस समय सिर्फ 12 वर्ष के थे। राजकुमार को कुंभकोणम में विजयनगर साम्राज्य के शासक का ताज पहनाया गया। रघुनाथ ने उनकी ओर से अन्य युद्ध भी लड़े। विजयी होकर वापस लौटने पर उन्होंने अपनी सफलता के उपलक्ष्य में यह मंदिर बनवाने का निर्णय लिया।
रामायण महाकाव्य के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं जैसे विभीषण का राज्याभिषेक, सुग्रीव का राज्याभिषेक, अहिल्या को उसके श्राप से मुक्त करना और हनुमानजी द्वारा वीणा को बजाना, भी मंदिर में दर्शाऐ गऐ है। भगवान विष्णु के पांच मंदिर, जिनमें सारंगापानी मंदिर, चक्रपाणि मंदिर, रामास्वामी मंदिर, राजगोपालस्वामी मंदिर और वराहपेरुमल मंदिर शामिल हैं, महामहम उत्सव से जुड़े हुए हैं, जो कुंभकोणम में हर 12 साल में एक बार होता है। ये पांच मंदिर मिलकर 108 विष्णु मंदिरों में से एक दिव्य देशम बनाते हैं।
यह मंदिर पंचरात्र आगम और वडकलाई परंपरा का पालन करता है। मंदिर के पुजारी त्यौहारों के दौरान और दैनिक आधार पर पूजा या अनुष्ठान करते हैं। तमिलनाडु के अन्य विष्णु मंदिरों की तरह, यहां के पुजारी ब्राह्मण वैष्णव संप्रदाय के हैं। मंदिर के अनुष्ठान दिन में छह बार (तिरुवनंदल सुबह 8:00 बजे, कला शांति सुबह 9:00 बजे, उचिकालम दोपहर 12:30 बजे, नित्यानुसंधानम शाम 6:00 बजे, इरंदमकलम शाम 7:30 बजे और अर्ध जमम रात 9:00 बजे) सम्पन्न किए जाते हैं। प्रत्येक अनुष्ठान में सारंगापानी और थयार दोनों के लिए तीन चरण होते हैं, जिनमें अलंगारम (सजावट), नीविथानम (भोजन की पेशकश) और दीपा अरादनई (दीपों का लहराना) शामिल है। इन छह समयों में पेश किया जाने वाला भोजन क्रमशः दही चावल, वेन पोंगल, मसालेदार चावल, डोसा, वेन पोंगल और चीनी पोंगल है। पूजा के दौरान नागस्वरम (पाइप वाद्य यंत्र) और तविल (आघात वाद्य यंत्र) बजाया जाता है, तथा साथ ही पुजारियों द्वारा वेदों में लिखे गए धार्मिक निर्देश पढ़े जाते हैं। मंदिर में आए उपासक मंदिर के मस्तूल के सामने साष्टांग प्रणाम करते हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/443J2pT
https://bit.ly/41MLwaC
चित्र संदर्भ
1. तमिलनाडु के प्रसिद्ध रामास्वामी मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. रामास्वामी मंदिर के सामने के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. रामास्वामी मंदिर में ध्वजारोहण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. कुंभकोणम के प्रमुख मंदिरों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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