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रेगिस्तानी टिड्डे दुनिया में सबसे विनाशकारी प्रवासी कीट हैं। अनुकूल जलवायु परिस्थितियों में ये कीट बड़ी ही शीघ्रता से प्रजनन कर अपनी संख्या में इजाफा करते हैं । हमनें वर्ष 2020 में भारत में टिड्डियों के आक्रमण को देखा है और हम यह भी जानते है कि वह कितना भयावह था। रेगिस्तानी टिड्डियों का यह आक्रमण वर्ष 2018–2019 की सर्दियों के दौरान यमन (Yemen) और ओमान (Oman) देशों में लाल सागर के किनारे उत्पन्न हुआ था। अक्टूबर 2018 में आए लुबैन (Luban) चक्रवात के कारण हुई बारिश से कई क्षेत्रों में वनस्पति का विकास हुआ जिनसे टिड्डियों को उनका भोजन प्राप्त हुआ। तब टिड्डियों में प्रजनन हुआ और अंत में उन्होंने झुंड बनाकर प्रवास किया।
जनवरी 2019 की शुरुआत से ही, लाल सागर के किनारे अरब प्रायद्वीप में इन टिड्डियों के छोटे झुंड फैल गए और फिर वे ईरान (Iran) और पाकिस्तान (Pakistan) तक भी पहुंच गए। जून तक ये टिड्डियाँ लाल सागर को पार कर अफ्रीका (Africa) तक फैल गई। इसके बाद इन टिड्डियों ने सोमालिया (Somalia) और इथियोपिया (Ethiopia) के उत्तर में आक्रमण किया जहां अक्टूबर और नवंबर में आई बाढ़ ने रेगिस्तानी टिड्डियों को प्रजनन करने के लिए अनुकूलित वातावरण बना दिया। इसके बाद इसी झुंड द्वारा दिसंबर के महीने में केन्या (Kenya) पर भी आक्रमण किया गया। रेगिस्तानी टिड्डे बारिश और वनस्पति के क्षेत्रों की ओर आकर्षित होते हैं । ये टिड्डियाँ सऊदी अरब (Saudi Arabia) के ‘रब अल-खली’ रेगिस्तान से हवा की दिशा का अनुसरण करते हुए हमारे देश के राजस्थान और उससे आगे के क्षेत्रों तक एक विशाल खंड को प्रभावित करने के लिए फैल जाती हैं।
टिड्डियों के आक्रमण के कारण पूर्वी अफ्रीका, दक्षिण पश्चिम एशिया और लाल सागर के आसपास के क्षेत्रों में गंभीर स्थिति उत्पन्न हो गई थी। अकेले उत्तर–पूर्वी अफ्रीका प्रायद्वीप में, जिसे अपनी बनावट के कारण ‘हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका’ (Horn of Africa) के नाम से भी जाना जाता है, में 5000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र की फसलें प्रभावित हुई थीं। एक अनुमान के अनुसार, एक अरब टिड्डियों का झुंड लगभग 20 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है और हर दिन लगभग 2000 मीट्रिक टन फसल खा सकता है। इन्हीं के एक झुंड ने केन्या (Kenya) के कुछ हिस्सों में 100वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचाया था । ये टिड्डियाँ प्रतिदिन अपने शरीर के भार के बराबर भोजन ग्रहण कर सकती हैं। टिड्डियों का एक झुंड एक दिन में लगभग 2,500 लोगों का भोजन समाप्त कर सकता है। इसलिए फसलों पर उनका भक्षण विनाशकारी साबित होता हैं तथा खाद्य सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन जाता है।
रेगिस्तानी टिड्डियों से निपटने का सबसे अच्छा तरीका एक निवारक प्रबंधन रणनीति अपनाना है। इसमें, उन क्षेत्रों का पता लगाया जाता है जहां, कुछ ही एकल टिड्डे होते है और वे प्रजनन तथा आपस में संपर्क से सामूहिकीकरण की प्रक्रिया शुरू करते हैं। फिर इन क्षेत्रों में इन टिड्डियों के झुंड बनने से पहले उन पर कीटनाशक का छिड़काव किया जाता हैं। इस हेतु रासायनिक कीटनाशकों का अक्सर उपयोग किया जाता है, हालांकि इसके लिए रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर जैव कीटनाशक का उपयोग ज्यादा उपयुक्त है। ऐसे क्षेत्रों का पता लगाने के लिए नियमित सर्वेक्षण करने की आवश्यकता होती है जहां टिड्डियों का सामुहिकीकरण हो सकता है। आज प्रौद्योगिकी की उन्नति के साथ इन टिड्डियों के झुंडों का पता लगाने के लिए उपग्रह (Satellite) और कंप्यूटर मॉडलिंग (Computer modelling) उपकरणों का भी उपयोग किया जा सकता है । हालांकि सभी देशों द्वारा निवारक रणनीति का अनुपालन नहीं किया जाता है, जिसका उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ता है।
निवारक प्रबंधन की एक समस्या यह है कि यदि इस रणनीति पर लंबे समय तक ध्यान नहीं दिया जाता है तो ये टिड्डियाँ फिर से प्रजनन कर आक्रामक हो जाती हैं। और जब इन टिड्डियों के बड़े झुंडों द्वारा आक्रमण किया जाता है, तो इन टिड्डियों से लड़ने के लिए बहुत ज्यादा मानवीय और तकनीकी सहायता का उपयोग करना पड़ता है। वर्तमान में इन टिड्डियों के हमले से परेशान देशों की मदद करने और इनके प्रसार को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। जिन देशों के पास अपनी उचित निवारक प्रबंधन प्रणाली नहीं है, उन्हें अन्य देशों की विशेषज्ञता पर भरोसा करना चाहिए।
जलवायु परिवर्तन का भी इन टिड्डियों की संख्या पर प्रभाव पड़ता है। पिछले पांच वर्ष औद्योगिक क्रांति के कारण अन्य वर्षों की तुलना में अधिक गर्म रहे हैं। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, एक गर्म जलवायु अधिक हानिकारक टिड्डियों को आकर्षित करती है, इसी कारण अफ्रीका जैसे देश इनसे असमान रूप से प्रभावित होते हैं। आर्द्र मौसम भी टिड्डियों के बढ़ने का सूचक है। अक्टूबर से दिसंबर 2019 तक हिंद महासागर द्विध्रुव (Indian Ocean Dipole) के कारण अफ्रीका में औसत से अधिक बारिश हुई, जो कि जलवायु परिवर्तन के परिणाम की ही एक घटना है और इसने भी इन्हें आकर्षित करने में अहम भूमिका निभाई ।
ईरान और पाकिस्तान के रास्ते भारत आने के बाद, टिड्डियों ने न केवल राजस्थान और गुजरात के सीमावर्ती राज्यों में, बल्कि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के हिस्सों में भी हमले किए । संयुक्त राज्य (United Nations) के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation) ने कहा है कि टिड्डियों द्वारा किए गए अधिकांश आक्रमण बंगाल की खाड़ी में आए चक्रवात अम्फान (Amphan) के कारण उत्पन्न तेज पश्चिमी हवाओं से जुड़े थे।
भारत पर हमला करने वाले झुंड अपनी ताकत और प्रकृति में अद्वितीय हैं, लेकिन भारत अक्सर रेगिस्तानी टिड्डियों के हमले से लड़ता है। इन टिड्डियों के झुंड आमतौर पर जुलाई-अक्टूबर में भारत में आक्रमण करते हैं। कृषि मंत्रालय का अनुमान है कि 2019-20 में, भारत में लगभग 3.75 लाख हेक्टेयर भूमि कीफसलें टिड्डियों के हमलों से तबाह हो गईं, जिससे 100 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ। इसके अगले वर्ष टिड्डियों ने मई की शुरुआत में ही भारत में 2 लाख हेक्टेयर से अधिक फसलों को नष्ट कर दिया था, और 6 लाख हेक्टेयर फसल को और नुकसान पहुंचाया था।
अतः अब भारत में किसानों ने उन फसलों की ओर रुख कर लिया है जिन्हें टिड्डियों के झुंड के मौसम से बहुत पहले काटा जा सकता है। अतः टिड्डियों को स्वयं नियंत्रित किया जा सकता है और कीटनाशकों के साथ मारा जा सकता है। टिड्डियों के प्रजनन के लिए निगरानी आवश्यक है क्योंकि पूरी तरह से विकसित टिड्डियों की तुलना में अंडे को नष्ट करना बहुत आसान होता है। वर्तमान में, रेगिस्तानी टिड्डों के झुंड को नियंत्रित करने की प्राथमिक विधि में ऑर्गैनोफॉस्फेट (Organophosphate) रसायनों का छिड़काव किया जाता है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में, किसानों को दोपहर और शाम के समय स्टील (Steel) के बर्तन बजाने और रात में ज़ोर से संगीत बजाने तथा खेतों से टिड्डियों के झुंडों को भगाने के लिए आग जलाने के लिए जाना जाता है। जैसा कि भारत में फसलों पर हमला करने वाले मौजूदा टिड्डी दल ईरान और पाकिस्तान में पैदा और परिपक्व हुए हैं, केंद्र सरकार ने टिड्डियों के खतरे से संयुक्त रूप से निपटने के लिए इन दोनों देशों को सहायता की पेशकश की है। विदेश मंत्रालय ने ईरान को मैलाथियान टेक्निकल (Malathion Technical) नामक कीटनाशक के निर्माण और आपूर्ति के लिए मदद जारी की है। भारत में एक ‘टिड्डी चेतावनी और नियंत्रण संगठन’ (Locust Warning and Control Organisation (LWO) भी है, जिसका गठन 1939 में किया गया था और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा इसकी देखरेख की जाती है। यह संगठन रेगिस्तानी इलाकों में टिड्डियों की स्थिति पर नजर रखता है। गर्मियों के दौरान, टिड्डियों से संबंधित सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए भारत और पाकिस्तान के अधिकारियों के बीच भारत-पाकिस्तान सीमा पर एक मासिक बैठक भी आयोजित की जाती है। आज इन टिड्डियों के आक्रमणों को नियंत्रित करने के लिए देश भर में कड़े प्रयास चल रहे हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3nnDcP2
https://bit.ly/3M1xwV8
https://bit.ly/3ZCVPMi
चित्र संदर्भ
1. टिड्डे को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)
2. टिड्डियों के हमले को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
3. आसमान में उड़ती टिड्डियों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. इकु कटावी राष्ट्रीय उद्यान, तंजानिया में लाल टिड्डियों का छिड़काव करते हुए अंतर्राष्ट्रीय लाल टिड्डी नियंत्रण संगठन की सेना को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले कवक मेथेरिज़ियम द्वारा मारे गए टिड्डे को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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