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उल्‍काओं की देन के है पृथ्‍वी के बेशकीमती खनिज

रामपुर

 15-11-2022 11:20 AM
खनिज

उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड कहा जाता है। प्रायः प्रत्येक रात्रि को उल्काएँ अनगिनत संख्याओं में देखी जा सकती हैं, किंतु इनमें से पृथ्वी पर गिरने वाले पिंडों की संख्या अत्यंत अल्प होती है। ज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्त्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना (स्ट्रक्चर) के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये पिंड ही हैं। पृथ्वी पर कीमती धातुओं का सुलभ भंडार 200 मिलियन वर्ष पुराने उल्कापिंडों की बारिश का ही परिणाम है। हमारे ग्रह पर लगातार उल्कापिंडों (अंतरिक्ष से चट्टानें) द्वारा बमबारी की जाती है जो कि लगभग साढ़े चार अरब साल पहले पृथ्‍वी के गठन के बाद से शुरू हो गयी थी।
इन वस्तुओं में चट्टानी और धात्विक क्षुद्रग्रह, धूमकेतु और सौर मंडल के निर्माण के बाद बचे अन्य मलबे, प्रभाव की घटनाओं से ग्रह की सतहों से निकले चट्टान के टुकड़े और संभावित रूप से दुर्लभ आगंतुक भी शामिल हैं जो हमारे सौर मंडल के बाहर विचरण कर रहे हैं। चट्टानों का दसियों या सैकड़ों गीगापास्कल (gigapascal) - पृथ्वी के वायुमंडल के दबाव के सौ अरब गुना के बराबर में दबाव तक पहुंचना असामान्य नहीं है। इन दबावों पर चट्टानों द्वारा खर्च किए जाने वाले सेकंड के अंशों में भी, कुछ खनिज नए "उच्च दबाव" खनिजों में बदल जाते हैं। उदाहरण के लिए, ग्रेफाइट हीरे बना सकता है, और खनिज जिक्रोन (zircon) रीडाइट (reidite) में बदल सकता है। अंतरिक्ष वस्तुओं का आकार छोटे कणों से लेकर विशाल क्षुद्रग्रहों तक होता है। वे आमतौर पर कई किलोमीटर प्रति सेकंड के वेग से पृथ्‍वी की ओर यात्रा कर रहे हैं। सौभाग्य से, हमारे लिए, छोटी चट्टानें सबसे आम हैं, और पृथ्वी का वातावरण इनकी गति को धीमा कर देता है, या उन्हें जला देता है और उन्हें तोड़ देता है। हम अक्सर इसे आग के गोले और उल्का वर्षा के रूप में होते हुए देख सकते हैं। चट्टान के किसी भी बचे हुए हिस्सा जो पृथ्‍वी की सतह पर गिरता है, उल्कापिंड कहलाता है।एक बहुत ही दुर्लभ खनिज जो पहले केवल अलौकिक उल्कापिंडों में पाया जाता था, पहली बार पृथ्वी की चट्टानों में खोजा गया है, जो मृत सागर (Dead Sea) के किनारों से बहुत दूर एक तलछटी गठन में मौजूद है।
रूस (Russia) के पूर्वी याकुटिया (Yakutia) में बोल्शोई डोलगुचन (Bolshoi Dolguchan) नदी से लोहे के एक छोटे से उल्कापिंड के टुकड़े बरामद होने के बाद, अल्लाबोगडानाइट (Allabogdanite), एक फॉस्फाइड खनिज, विज्ञान के संज्ञान में आया।टुकड़ों के एक नमूने ने बाद में एक नई खनिज संरचना की उपस्थिति का खुलासा किया, जो क्रिस्टल की पतली परतों के रूप में उल्कापिंड के प्लासाइट मिश्रण में फैल हुआ था। खोजकर्ताओं ने इसका नाम रूसी भूविज्ञानी अल्ला बोगदानोवा (Alla Bogdanova) के नाम पर रखा।इसके बाद, अन्य उल्कापिंडों में भी अल्लाबोगडानाइट पाया गया है, जिसके बाद माना गया कि यह दुर्लभ खनिज उतना विशिष्ट नहीं हो सकता है जितना कि माना जाता था। फिर भी, केवल आकाश से गिरने वाली चट्टानों में यह पाया जाना अभी भी एक बहुत ही विशेष स्थिति है और अब ऐसा लगता है कि अल्लाबोग्डानाइट में भी सांसारिक उत्पत्ति है जिसके बारे में हम कभी नहीं जानते थे।
जब पहली बार पृथ्‍वी का निर्माण हुआ था उस दौरान पिघला हुआ लोहा पृथ्‍वी के क्रोड में घुस गया। इस प्रक्रिया में, लोहे ने ग्रह की अधिकांश कीमती धातुओं - सोना और प्लैटिनम सहित - को अपने साथ समा लिया।आज किसी को भी इस खादान तक पहुंचने के लिए पृथ्‍वी की बहुत गहराई तक जाना होगा, यह धातुएं इतनी मात्रा में हैं कि पृथ्‍वी को चार बार कवर कर सकती हैं। इन किमती धातुओं के इतनी गहराई में होने के बावजुद भी अभी हमारे पास बड़ी मात्रा में यह धातुएं मौजूद हैं यह कैसे हो पाया है? भूवैज्ञानिकों ने लंबे समय से यह सिद्धांत दिया है कि यह उल्‍कापिण्‍डों की बारिश से हो पाया है जो कि पृथ्‍वी की कोर के बनने के लंबे समय बाद हुयी थी।इस सिद्धांत का परीक्षण करने के लिए, स्कूल ऑफ अर्थ साइंसेज (School of Earth Sciences) में ब्रिस्टल आइसोटोप समूह (Bristol Isotope Group) के मैथियास विलबोल्ड (Matthias Willbold) और टिम इलियट (Tim Elliott) ने ग्रीनलैंड (Greenland) से आधुनिक दिन की चट्टानें और चार अरब साल पुराने महाशिला के लिए और उनकी रासायनिक संरचना को मापा।
शोधकर्ता विशेष रूप से दुर्लभ तत्व की तलाश कर रहे थे:
टंगस्टन (tungsten) (एक ग्राम चट्टान में एक ग्राम टंगस्टन का केवल दस मिलियनवां हिस्सा होता है) क्योंकि - सोने और अन्य कीमती सामग्रियों की तरह - जब ग्रह पहली बार बन रहा था तो यह भी संभवत: पृथ्‍वी की कोर में डूब गया होगा। टंगस्टन एक दुर्लभ धातु है जो पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से लगभग विशेष रूप से अन्य तत्वों के साथ यौगिकों के रूप में पाई जाती है।
अधिकांश अन्य तत्वों के समान, टंगस्टन में कई समस्थानिकों - समान रासायनिक विशेषताओं वाले परमाणु लेकिन थोड़े अलग द्रव्यमान - जो उस सामग्री की उत्पत्ति के साक्ष्‍य प्रदान करते हैं, का अध्‍ययन किया जाता है। उल्कापिंड निश्चित रूप से टंगस्टन की समस्थानिक संरचना पर एक नैदानिक ​​निशान छोड़ते हैं। विलबोल्ड (Willbold ) और इलियट (Elliot ) ने ग्रीनलैंड (Greenland ) और आधुनिक चट्टानों के बीच आइसोटोप 182W के सापेक्ष बहुतायत में 15 भागों की प्रति मिलियन में कमी देखी। यह एक बहुत छोटा बदलाव है, लेकिन इस सिद्धांत के साथ इसकी जांच में महत्वपूर्ण है कि सुलभ कीमती धातुएं उल्कापिंड बमबारी के हिस्से के रूप में पहुंचीं। विलबोल्ड कहते हैं, "हमारे काम से पता चलता है कि अधिकांश कीमती धातुएँ, जिन पर हमारी अर्थव्यवस्थाएँ और कई प्रमुख औद्योगिक प्रक्रियाएँ आधारित हैं, सौभाग्‍य से 20 बिलियन टन क्षुद्रग्रह सामग्री के हमारी पृथ्‍वी में टकराने से यहां तक पहुंची हैं।"

संदर्भ:
https://bit.ly/3hqqOL3
https://bit.ly/3TdnvnS
https://bit.ly/3Tk08Jh

चित्र संदर्भ
1. पृथ्वी पर गिरने वाले पिंडों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. नामीबिया में 60 टन, 2.7 मीटर लंबा (8.9 फीट) लंबा होबा उल्कापिंड सबसे बड़े ज्ञात अक्षुण्ण उल्कापिंड को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. पृथ्वी पर उल्कापिंड के आगमन को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. Awaruite Ni2Fe से Ni3Fe तक की संरचना के साथ निकल और लोहे का एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला मिश्र धातु है, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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