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कौन सा वृक्ष कहलाया जाता है, सर्व रोग निवारिणी?

रामपुर

 01-11-2022 12:25 PM
शारीरिक

वेदों ने नीम को "सर्व रोग निवारिणी" कहा है, जिसका अर्थ है 'वह जो सभी बीमारियों को ठीक करता है'। नीम का पेड़ बहुत लंबे समय से भारतीय ग्रामीणों का मित्र और रक्षक रहा है। सदियों से भारतीय अपनी रोग निवारक क्षमता को बढ़ाने एवं कई बिमारियों के उपचार हेतु नीम पर भरोसा करते आए हैं। इसके अलावा, इसका उपयोग खाद्य और भंडारित अनाज की रक्षा के लिए तथा खेतों के लिए उर्वरक और प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में किया गया है। इसका उपयोग किसी भी अन्य पेड़ की तुलना में कहीं अधिक व्यापक उद्देश्यों के लिए किया गया है! इसके औषधीय गुणों को प्राचीन संस्कृत ग्रंथों, - पुराणों में प्रलेखित किया गया है और यह अनुमान है कि नीम किसी न किसी रूप में, 75% आयुर्वेदिक योगों में मौजूद है।प्राचीन भारतीयों ने पेड़ के कई चिकित्सीय उपयोग देखे और यह भी देखा कि पेड़ तब तक जीवित रह सकता है और लगभग कहीं भी बढ़ सकता है जब तक कि यह सूख न जाए। इस वृक्ष को दैवीय उत्पत्ति का माना जाता है।
भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब अमृत को स्वर्ग ले जाया जा रहा था तब इसकी कुछ बूंदें नीम के पेड़ पर गिर गयी थीं।एक और कहानी बताती है कि राक्षसों की भयानक शक्तियों से बचने के लिए सूर्य ने नीम के पेड़ की शरण ली थी। अपने जीवनकाल में तीन या अधिक नीम के पेड़ लगाना स्वर्ग के लिए एक निश्चित रास्‍ता माना जाता था। माना जाता है कि नीम की उत्पत्ति असम और बर्मा (जहां यह पूरे मध्य शुष्क क्षेत्र और शिवालिक पहाड़ियों में आम है) में हुई थी। हालांकि, इसकी सटीक उत्पत्ति अनिश्चित है: कुछ लोग कहते हैं कि नीम पूरे भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है; अन्य इसका श्रेय पाकिस्तान, श्रीलंका, थाईलैंड (Thailand), मलेशिया (Malaysia) और इंडोनेशिया (Indonesia) सहित पूरे दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया (Southeast Asia) में शुष्क वन क्षेत्रों को देते हैं।
भारत में इस पेड़ का सबसे व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। यह केरल के दक्षिणी सिरे से हिमालय की पहाड़ियों तक, उष्णकटिबंधीय से उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, अर्ध-शुष्क से आर्द्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में और समुद्र तल से लगभग 700 मीटर की ऊँचाई तक उगाया जाता है।समय के साथ, प्रवासी भारतीयों द्वारा इसे दूर देशों में ले जाया गया यानी: अफ्रीका (Africa), फिजी (Fiji), मॉरीशस (Mauritius), मलेशिया (Malaysia), इंडोनेशिया (Indonesia), थाईलैंड (Thailand), कंबोडिया (Cambodia), संयुक्त राज्य अमेरिका (United States), मैक्सिको(Mexico), ऑस्ट्रेलिया (Australia) और चीन (China) और लैटिन अमेरिका (Latin America) के कई देशों में इस वृक्ष का विस्‍तार किया गया। कुछ मामलों में इसे संभवत: गिरमिटिया मजदूरों द्वारा अन्‍य देशों में ले जाया गया, क्‍योंकि वे मुख्‍यत: भारतीय ग्रामीण ही थे और अपने गांव के दिनों और मूल्‍यों को याद करने के लिए इसे अपने साथ ले गए। अन्य मामलों में इसे वनकर्मियों द्वारा अन्‍य देशों में पेश किया गया। नीम को इस सदी की शुरुआत में अफ्रीका (Africa) में लाया गया था। यह अब लगभग 30 देशों में विस्‍तारित है, विशेष रूप से सहारा के दक्षिणी किनारे के क्षेत्रों में, जहां यह ईंधन और लकड़ी दोनों का एक महत्वपूर्ण स्‍त्रोत बन गया है। भारतीयों के लिए नीम के पेड़ के कई आकर्षक पहलू थे। बच्चों के लिए यह सदाबहार, आकर्षक पेड़ धूप और बारिश के दौरान सर्वश्रेष्‍ठ आश्रय था, वे घंटों इसकी ठंडी छाया में बिताते थे, नाश्ते के लिए मीठे पके फल को तोड़ लेते थे और इस पर ट्री हाउस (tree house) बनाते थे, जिसे तितलियों, पक्षियों और मधुमक्खियों के साथ साझा करते थे। इस पेड़ को इसलिए चुना जाता था क्योंकि इसकी छाया को किसी भी अन्य पेड़ की तुलना में ठंडा माना जाता है, और इसके विकर्षक क्रिया के कारण इसके नीचे कोई कीड़े नहीं होते हैं। महिलाओं के लिए, नीम हर्बल सौंदर्य परंपरा का मुख्य आधार था। यह खरोंच और त्वचा पर चकत्ते से लेकर मलेरिया और मधुमेह तक, 100 से अधिक स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए दवा का एक स्रोत भी था। महिलाएं साल भर अपने भंडारित अनाज और दालों की रक्षा के लिए भी इसका इस्तेमाल करती थीं।विशेष रूप से महिलाओं के लिए, नीम स्वास्थ्य, स्वच्छता और सुंदरता का एक अमूल्य स्रोत साबित हुआ जो कि मुफ्त में उपलब्ध था। पुरुषों के लिए पेड़ के बीज, पत्ती और छाल उर्वरक और कीट नियंत्रण सामग्री में परिवर्तित किया जा सकता है। इसने उनके मवेशियों और पशुओं के लिए औषधि भी प्रदान की। इसके अलावा, पेड़ से बहने वाली हवा ने उनके घरों को बैक्टीरिया (bacteria) और वायरस (viruses) से मुक्त रखा और गर्मियों में ठंडा रखा।
ऐसा माना जाता था कि नीम का तेल गंजेपन और बालों को सफेद होने से रोकता है और इसका उपयोग जूँ-विरोधी और रूसी-विरोधी उपचार के रूप में किया जाता था। एक चम्मच सूखे नीम के पत्तों का पाउडर, समान मात्रा में घी (स्पष्ट मक्खन) और शहद के साथ मिलाकर त्वचा की एलर्जी को नियंत्रित करने में मदद के लिए जाना जाता है।नीम के बीज का पाउडर, सेंधा नमक और फिटकरी को बराबर मात्रा में मिलाकर अच्छी तरह से मिलाकर दांतों और मसूड़ों को स्वस्थ रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।नीम के तेल की सिफारिश आमतौर पर त्वचा रोगों के लिए की जाती है जबकि नीम के पत्तों का उपयोग सौंदर्य प्रयोजनों के लिए किया जाता है। नीम के बीज के तेल के विपरीत, नीम के पत्तों में एक सुखद गंध होती है। नीम के पत्तों का अर्क अल्कोहलिक टिंचर (alcoholic tincture) या चाय के रूप में तैयार किया जा सकता है। अल्कोहल के अर्क का रंग गहरा हरा होता है और यह कई हफ्तों तक प्रभावी रहता है। इसका उपयोग एंटीएजिंग (Anti-aging) पौष्टिक फ़ार्मुलों, माउथवॉश (mouthwashes), फेसवॉश (face washes), शॉवर जैल (shower gels), फेसमास्क (face masks), स्किनटोनर (skin toners) आदि में किया जा सकता है।
इन सभी प्रथाओं को आधुनिक विज्ञान द्वारा मान्य किया गया है। इसमें लगभग 132 यौगिकों की विशाल श्रृंखला मौजूद है। आधुनिक शोध ने इसकी प्रभावशीलता के रहस्य को उजागर किया है। इसके शक्तिशाली एंटीबैक्टीरियल (antibacterial), एंटी-फंगल (anti- fungal), एंटीवायरल (antiviral) और एंटीसेप्टिक (antiseptic) गुण इसे रूसी से लेकर मुंहासों, एक्जिमा (eczema) से लेकर मलेरिया (malaria) और मस्से तक किसी भी चीज के इलाज में विशेष रूप से प्रभावी बनाते हैं।
नीम एक तेजी से बढ़ने वाला पर्णपाती पेड़ है, जो 15-20मी (लगभग 50-65 फुट) की ऊंचाई तक पहुंच सकता है और कभी-कभी 35-40मी (115-131 फुट) तक भी ऊंचा हो सकता है। गंभीर सूखे में इसकी अधिकतर या लगभग सभी पत्तियां झड़ जाती हैं। इसकी शाखाओं का प्रसार व्यापक होता है। तना अपेक्षाकृत सीधा और छोटा होता है और व्यास में 1।2 मीटर तक पहुँच सकता है। इसकी छाल कठोर, विदरित (दरारयुक्त) या शल्कीय होती है और इसका रंग सफेद-धूसर या लाल, भूरा भी हो सकता है। रसदारु भूरा-सफेद और अंत:काष्ठ लाल रंग का होता है जो वायु के संपर्क में आने से लाल-भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है। जड़ प्रणाली में एक मजबूत मुख्य मूसला जड़ और अच्छी तरह से विकसित पार्श्व जड़ें शामिल होती हैं। 20-40सेमी (8 से 16 इंच) तक लंबी प्रत्यावर्ती पिच्छाकार पत्तियां जिनमें, 20 से लेकर 31 तक गहरे हरे रंग के पत्रक होते हैं जिनकी लंबाई 3-8सेमी (1 से 3 इंच) तक होती है। कोंपलों (नयी पत्तियाँ) का रंग थोड़ा बैंगनी या लालामी लिये होता है। परिपक्व पत्रकों का आकार आमतौर पर असममितीय होता है और इनके किनारे दंतीय होते हैं।
फूल सफेद और सुगन्धित होते हैं और एक लटकता हुआ पुष्पगुच्छ जो लगभग 25सेमी (10 इंच) तक लंबा होता है। इसका फल चिकना (अरोमिल) गोलाकार से अंडाकार होता है और इसे निंबोली कहते हैं। फल का छिलका पतला तथा गूदा रेशेदार, सफेद पीले रंग का और स्वाद में कड़वा-मीठा होता है। गूदे की मोटाई 0.3 से 0.5सेमी तक होती है। गुठली सफेद और कठोर होती है जिसमें एक या कभी-कभी दो से तीन बीज होते हैं जिनका आवरण भूरे रंग का होता है। मक्का (Mecca) के निकट तीर्थयात्रियों के लिए आश्रय प्रदान करने के लिए लगभग 50000 नीम के पेड़ लगाए गए हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3sLpqFD
https://bit.ly/3D2z2jX
https://bit.ly/3eYzvM5
https://bit.ly/3F967NM

चित्र संदर्भ

1. नीम के पेड़ और पत्तों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. अंकुरित नीम के पत्तों को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)
3. आँगन में उगे नीम के वृक्ष को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. नीम तेल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. दातून के लिए प्रयोग किये जाने वाली नीम की टहनियों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. नीम के पेड़ के एकत्रित फल और बीज को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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