Post Viewership from Post Date to 04-Aug-2022 (30th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1897 13 1910

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

खाद्य प्रणाली पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

रामपुर

 05-07-2022 10:06 AM
जलवायु व ऋतु

भारत मौसम विज्ञान विभाग के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में गर्मी शुरू होने के बाद से 25 दिनों में अधिकतम तापमान कम से कम 42 डिग्री सेल्सियस या इससे ज्यादा दर्ज किया गया है जोकि 2012 के बाद से सबसे अधिक तापमान है। औसत गर्मी का तापमान आमतौर पर 36-38 डिग्री सेल्सियस होता है। लेकिन मई के मध्य में शहर के कुछ हिस्सों में तापमान 49 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। इस बार मार्च 2022 भारत के लिए 122 वर्षों में सबसे गर्म था। शोधकर्ताओं की मानें तो मार्च में ग्रीष्म लहरों से खेती के कुल उत्पादन कमी देखी गई है, भीषण और लंबे समय तक लू चलने से गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचा है, साथ ही साथ बाहर काम करने वाले लोगों के लिए भी यह स्थिति बहुत मुश्किल हो गई है। ऑटो रिक्शा वाले अपने सिर पर पानी से गीला किया हुआ तौलिये पहनते हैं, ताकि ग्रीष्म लहरों से बच सकें। दिल्ली में रहने वाले लोगों का कहना है कि इस तरह का उच्च तापमान इससे पहले उन्होंने नहीं देखा। जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि लंबे समय तक ग्रीष्म लहरे निस्संदेह ही वैश्विक तापन का परिणाम है। मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन की बैठक में विकसित देशों के प्रतिनिधियों से कहा है कि जलवायु संकट के कारण भारत को नुकसान पर नुकसान हो रहा है। वे बड़े पैमाने पर वित्त पोषण की मांग कर रहे हैं ताकि सरकार पूर्व चेतावनी प्रणाली बनाकर इस तरह की विषम मौसम की घटनाओं के लिए तैयार हो सके। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक तापमान में होने वाली वृद्धि से अतिशय मौसमी घटनाओं, जैसे-ऊष्मा तरंगों को और बढ़ावा मिला है। जलवायु परिवर्तन से सिर्फ ग्रीष्म लहरे ही नहीं बल्कि ऊष्णकटिबंधी चक्रवात, जंगल की आग, सूखा, भारी वर्षा और बाढ़ ने भी इस साल दुनिया भर में व्यापक उथल-पुथल मचा रखी है, जिसमें हजारों लोग मारे गए हैं और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में मानसून की बरसात कम या अनियमित हो सकती है, इसका सीधा असर मानसून आधारित कृषि अर्थव्यवस्था पर बड़े पैमाने पर पड़ सकता है। भारत को सूखे का सामना भी करना पड़ा था। इस तरह की चरम घटनाएं भविष्य में बढ़ सकती हैं। जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न ये ग्रीष्म लहरें एक नई चुनौती बनकर उभर रही हैं। हाल ही में ग्रीष्म लहर ने कृषि उत्पादकता में भी बाधा डाली है, जिससे खाद्य सुरक्षा काफी प्रभावित हुई है। उदाहरण के लिए, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में गेहूं की पैदावार में 10-35 प्रतिशत की कमी देखी गई। इसी तरह अन्य फसलों (चावल, दाल आदि) की पैदावार में भी कमी आई है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि दुनिया पर इस समय भुखमरी का संकट मंडरा रहा है। यदि मानसून में इस तरह की देरी बनी रही तो वर्ष समाप्त होने से पहले कई देशों में अकाल की स्थिति घोषित की जा सकती है और भारत गंभीर रूप से प्रभावित देशों की सूची में हो सकता है। इस बार उत्तर पश्चिमी भारत में मानसून लाने वाली पूर्वी हवाएँ जून तक यहाँ नहीं आई थी, जिससे उत्तर भारतमें शुष्क मौसम हो गया है। जिस वजह से बादल उत्तर में लाने के बजाय, पूर्वोत्तर भारत में चले गए, जिससे की यहाँ बाढ़ आ गई। जलवायु परिवर्तन के कारण विषम मौसम की घटनाओं की तीव्रता और अवधि बढ़ रही है। पूर्वोत्तर भारत में जो हुआ वह उसी का एक उदाहरण है। मॉनसून वर्षा में परिवर्तनशीलता बहुत अधिक है, हम देख सकते हैं कि मध्य और दक्षिणी राज्यों के साथ-साथ उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों में बारिश उतनी देखने को नहीं मिल रही है जैसे की अनुमान लगाया गया था परन्तु पूर्वोत्तर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बारिश ने बाढ़ ला दी हैं। यह विलंबित वर्षा फसल पैटर्न और कृषि उत्पादन को प्रभावित करती है, 2020 में जारी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को चक्रवात, बाढ़ और सूखे जैसी आपदाओं के कारण 89.7 बिलियन डॉलर (70 खरब) से अधिक का नुकसान हुआ था। मानसून के पैटर्न में एक छोटे से बदलाव का कृषि सहित विभिन्न उद्योगों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। मानसून वर्षा में 1% परिवर्तन होने से भी भारत के कृषि-संचालित सकल घरेलू उत्पाद में 0.34% का परिवर्तन हो जाता है, और इस साल तो मानसून में भारी परिवर्तन आया है। परंतु यदि इस साल सामान्य मानसून होता तो कृषि-प्रधान राज्यों में परिवहन, भंडारण, व्यापार और संचार क्षेत्र से सकल घरेलू उत्पाद में 1% और 3% की वृद्धि हो सकती थी। भारत की लगभग 60% आबादी कृषि पर निर्भर है और देश के विकास के लिए मानसून का मौसम बहुतमहत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन खाद्य सुरक्षा को कैसे प्रभावित करता है? 1996 में विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन ने खाद्य सुरक्षा को इस प्रकार परिभाषित किया: जब सभी लोगों के पास अपनी आहार आवश्यकताओं और एक सक्रिय और स्वस्थ जीवन के लिए खाद्य वरीयताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन की भौतिक और आर्थिक पहुंच हो तभी खाद्य सुरक्षा होती है। इस परिभाषा के अनुसार, खाद्य सुरक्षा के तीन मुख्य आयाम हैं: भोजन की उपलब्धता: मात्रा के साथ-साथ गुणवत्ता में पर्याप्त भोजन की उपलब्धता होनी जरूरी है, भोजन तक पहुंच: भोजन की पहुंच जिसमें आपूर्ति-श्रृंखला, पर्याप्त प्रावधान आदि शामिल हैं, भोजन का अवशोषण: पर्याप्त पोषण की स्थिति के साथ पर्याप्त भोजन का उपभोग करने की जनता की क्षमता। जलवायु परिवर्तन हमारे खाद्य सुरक्षा के तीनों मुख्य आयामों को प्रभावितकर रहा है। जलवायु परिवर्तन एक ऐसा ही कारक है जिससे प्रभावित होकर कृषि अपना स्वरूप बदल सकती है तथा इस पर निर्भर लोगों की खाद्यान्न एवं पोषण सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। विश्व में आज खाद्यान्न संकट, ऊर्जा की कमी, आर्थिक मंदी आदि समस्याएँ हमारे सामने आ खड़ी हैं। जलवायु परिवर्तन कई तरह से खाद्य उत्पादन को प्रभावित करता है। भारतीय कृषि जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है और मानसून वर्षा में वर्ष- दर-वर्ष परिवर्तनशीलता में वृद्धि हो रही है, इस अनिश्चिता के कारण कहीं गंभीर रूप से सूखा है तो कहीं बाढ़ से उथल पुथल मची है। साथ ही जल उपलब्धता पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भारत के लिए विशेष रूप से गंभीर हो गया है, क्योंकि देश के बड़े हिस्से में पहले से ही पानी की कमी है। अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन का भविष्य में कुपोषण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा, जलवायु परिवर्तन से फसल उगाने के समय में बदलाव और विषम मौसमी घटनाओं की उच्च आवृत्ति से किसान की शुद्ध आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, साथ ही साथ मछुआरों और वन-आश्रित लोगों की आजीविका पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जिस कारण भोजन तक इनकी पहुंच मुश्किल हो सकती है। पूरी तरह से कृषि मजदूरी पर निर्भर भूमिहीन खेतिहर मजदूरों को भोजन तक अपनी पहुंच खोने का सबसे अधिक खतरा है। जलवायु परिवर्तन से केवल फसलों की उत्पादकता ही प्रभावित नहीं होगी वरन उनकी गुणवत्ता पर भी दुष्प्रभाव पड़ेगा। अनाज में पोषक तत्वों और प्रोटीन की कमी पाई जाएगी जिस कारण आदमी का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी संक्रामक रोग होने का खतरा बढ़ जाता है, जो कुपोषण की समस्या को और बढ़ा देता है। अंत में इतना ही कि समय आ गया है की जलवायु परिवर्तन सिर्फ पर्यावरणविदों की चिंता ही नही हम सबकी चिंता का विषय होना चाहिए। आज हमें खाद्य प्रणालियों की पुनर्कल्पना के लिये इसे जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन के नज़रिये से देखना होगा, जहाँ उन्हें संवहनीय बनाने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन एवं महामारियों के प्रति लचीला बनाना भी आवश्यक है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3yzDN3l
https://bit.ly/3I4Gkpv
https://bit.ly/3NJrk1y
https://bit.ly/3NA1ixE

चित्र संदर्भ
1. पौलीहाउस फार्म को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. वार्षिक औसत तापमान मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. बाढ़ में डूबे गावों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. सूखे खेतों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • जानें, क्यों पतन हुआ महाजनपदों में से एक, मगध साम्राज्य का
    ठहरावः 2000 ईसापूर्व से 600 ईसापूर्व तक

     22-10-2024 09:25 AM


  • चलिए, चलते हैं, चन्नापटना के रंग-बिरंगे खिलौनों के अद्भुत सफ़र पर
    हथियार व खिलौने

     21-10-2024 09:24 AM


  • आइए, ‘विश्व सांख्यिकी दिवस’ के अवसर पर जानें, मैंडलब्रॉट ज़ूम के बारे में
    संचार एवं संचार यन्त्र

     20-10-2024 09:24 AM


  • हिमालयन न्यूट के प्राकृतिक निवास स्थान, अब कंक्रीट के ढांचों में बदल गए हैं
    मछलियाँ व उभयचर

     19-10-2024 09:15 AM


  • जानें कैसे लोगों का मन मोह रही है, कपड़ों पर ऊनी धागों से बनी क्रुएल कढ़ाई
    स्पर्शः रचना व कपड़े

     18-10-2024 09:20 AM


  • गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध हैं रहस्यमयी मालाबार सिवेट
    स्तनधारी

     17-10-2024 09:22 AM


  • दुनिया भर में अपनाई जाती है लिनियस द्वारा विकसित पहली जीवों की पदानुक्रमित नामकरण प्रणाली
    कोशिका के आधार पर

     16-10-2024 09:25 AM


  • स्वचालन ने खनन कार्यों को विडियो गेम जैसा बना दिया है !
    खदान

     15-10-2024 09:19 AM


  • छुईमुई को स्पर्श करने पर, वह प्रदर्शित करेगा, निक्टिनैस्टिक व्यवहार
    व्यवहारिक

     14-10-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, कैसे बनते हैं आलू के चिप्स
    वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली

     13-10-2024 09:14 AM






  • © - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id