समलैंगिकता का अस्तित्व प्राचीनकाल से ही सभी देशों में पाया गया है। लेकिन यह कभी उस रूप में नजर नहीं आया जैसा कि वर्तमान युग में देखने में आता है। आधुनिक युग में कई देशों ने समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दे दी है, जिनमें से एक भारत भी है। साधारण भाषा में समलैंगिकता का अर्थ किसी पुरुष का दूसरे पुरुष के प्रति या महिला का महिला के प्रति आकर्षण है। समलैंगिक, उभयलैंगिक और लिंगपरिवर्तित लोगों को मिलाकर एल जी बी टी (LGBT) समुदाय बनता है।
हालांकि भारत में पहले समलैंगिकता कानूनी रूप से मान्य नहीं थी। 1861 में ब्रिटिशों द्वारा बनाई गई भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के मुताबिक अगर 2 वयस्क आपसी सहमति से भी समलैंगिक संबंध बनाते हैं, तो वह अपराध होगा। इस धारा के विरुद्ध कई वर्षों से भारत में “समलैंगिक अधिकार आंदोलन” चलाया जा रहा था, जिसके फलस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने 06 सितम्बर 2018 को समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है और फ़ैसले में धारा 377 को रद्द कर दिया गया है। इसके अनुसार आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंध को अब अपराध नहीं माना जाएगा। एल॰जी॰बी॰टी अधिकार आंदोलन का प्रारंभ 1969 के न्यूयॉर्क शहर में भड़के 'स्टोनवॉल दंगों' से माना जाता हैं। ये दंगे पुलिस द्वारा लोगों के समलैंगिक होने पर उन्हें प्रताड़ित करने के परिणामस्वरूप हुए थे।
इस फैसले से समलैंगिक लोगों अब अपनी लैंगिकता को छिपानें की जरुरत नहीं है। वे लोग अब खुल कर सामने आ सकते हैं जो अभी तक कानून और सामाज के डर से छुप कर बैठे थे। रामपुर में भी समलैंगिक समुदाय की छुपी हुई परंतु एक बड़ी आबादी देखने को मिलती है। सोशल मीडिया पर देखेंगे तो आपको फेसबुक पर ‘रामपुर गे’ (https://www.facebook.com/gay.rampur?ref=br_rs) पेज बना हुआ मिल जाऐगा, जिससे 2500+ के करीब युवा जुड़े हुए हैं। ये ही नहीं मीट मेन (http://1man.in/meet/man/Uttar-Pradesh/Rampur-district) और मुराबाद कम्युनिटी (https://www.facebook.com/MbdGCommunity/) जैसे पेजों में आप समलैंगिक समुदाय कि अबतक छुपी हुई आबादी का एक बड़ा हिस्सा देख सकते हैं।
लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं समलैंगिकों को अपने जैविक निजता के इस अधिकार को किन-किन चरणों से गुजरते हुए हांसिल किया। आईये जानते हैं भारत में समलैंगिक अधिकार आंदोलन के संघर्ष के इतिहास के बारे में:
1. इसकी शुरुआत 1994 में एड्स भेदभाव विरोधी आंदोलन नाम के एनजीओ ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर आईपीसी की धारा 377 को खत्म करने की मांग से हुई थी।
2. इसके बाद 2001 में नाज फाउंडेशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल कर ब्रिटिश शासनकाल से चली आ रही इस धारा को खत्म करने की मांग की थी।
3. 2003 में दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की, ऐक्टिविस्टों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसने हाईकोर्ट को फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा।
4. 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।
5. फिर 2012 में कई धार्मिक समूहों और व्यक्तियों ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, और 11 दिसंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के 2009 के फैसले को पलटा और इस मसले पर फैसला संसद पर छोड़ दिया।
6. 2015 में लोकसभा ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर की तरफ से समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए लाए गए प्राइवेट मेंबर बिल के खिलाफ वोट दिया। इस फैसले के बाद 2016 में LGBT समुदाय नें सुप्रीम कोर्ट का रूख किया।
7. 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेक्शुअल ओरिएंटेशन किसी भी व्यक्ति का निजी मामला है, और जनवरी, 2018 में सीजेआई दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 2013 के फैसले पर पुनर्विचार का फैसला किया और मामले को बड़ी बेंच में भेजा गया।
8. जुलाई, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब यह बेंच के ऊपर है कि वह गे-सेक्स पर 150 साल पुराने प्रतिबंध पर क्या फैसला ले।
9. और अंत में छह सितंबर, 2018 सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि समलैंगिक लोगों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। बेंच ने माना कि समलैंगिकता अपराध नहीं है और इसे लेकर लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी।'समलैंगिक' होना कोई बीमारी नहीं बल्कि यह जन्मजात होता है।
1. https://en.wikipedia.org/wiki/LGBT_history_in_India
2. https://www.britannica.com/topic/gay-rights-movement
3. https://www.jagranjosh.com/current-affairs/supreme-court-decriminalises-section-377-in-hindi-1536217938-2
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