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कुछ महानतम अंतरिक्ष खोजों को, सक्षम बनाया है, इन शक्तिशाली दूरबीनों ने

रामपुर

 14-08-2024 09:20 AM
शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation (ISRO)), भारत की अंतरिक्ष एजेंसी है। इसरो का गठन 15 अगस्त, 1969 को किया गया था और तब से, यह भारत के लिए गौरव का स्रोत रही है। 124 अंतरिक्ष यान मिशनों और 94 प्रक्षेपणों के साथ, यह दुनिया के विशिष्ट अंतरिक्ष संगठनों में से एक है। इस संगठन द्वारा हाल ही में चंद्रयान-3 की सफलता के रूप में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की गई है, जिसे पूरी दुनिया ने जाना और माना है। इससे, भारत चंद्रमा पर उतरने वाला चौथा और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बन गया है। तो आइए, इस लेख में हम इसरो के कुछ सबसे सफल मिशनों के बारे में विस्तार से बात करेंगे। इसके बाद, हम दुनिया की सबसे उन्नत और शक्तिशाली दूरबीनों पर नज़र डालेंगे। इसके अलावा, हम हाल के वर्षों में मानवता द्वारा की गई कुछ महानतम अंतरिक्ष खोजों के बारे में भी जानेंगे।
इसरो के सफल मिशन: 1969 में अपनी स्थापना के बाद से ही इसरो ने कई बार, भारत को गौरवान्वित किया है। चंद्रमा पर चंद्रयान -3 की सफ़ल लैंडिंग तक इसरो ने ऐसे अनेकों सफल मिशनों को अंजाम दिया है। यहां इसरो की कुछ प्रमुख और सफल उपलब्धियां दी गई हैं:
1. आर्यभट्ट, 1975: आर्यभट्ट उपग्रह, पहला भारतीय उपग्रह है जिसका नाम महान भारतीय खगोलशास्त्री आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था। यह पूरी तरह से भारत में निर्मित, डिज़ाइन और असेंबल किया गया था। 360 किलोग्राम से अधिक वज़नी, इस उपग्रह को 19 अप्रैल, 1975 को रूस के 'वोल्गोग्राड लॉन्च स्टेशन' (Volgograd Launch Station) से 'सोवियत कॉसमॉस-3एम रॉकेट' (Soviet Kosmos-3M rocket) द्वारा लॉन्च किया गया था। इसने अन्य सफल मिशनों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
2. भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (Indian National Satellite System (INSAT) श्रृंखला, 1983: 1983 में लॉन्च की गई INSAT श्रृंखला ने भारत के दूरसंचार क्षेत्र में एक क्रांति ला दी। भू-स्थिर कक्षा में नौ परिचालन संचार उपग्रहों के साथ, भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (INSAT) प्रणाली, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे बड़ी घरेलू संचार उपग्रह प्रणालियों में से एक है। INSAT प्रणाली में 200 से अधिक संवाददाता हैं और यह टेलीविजन प्रसारण, उपग्रह समाचार एकत्रीकरण, सामाजिक अनुप्रयोग, मौसम पूर्वानुमान, आपदा चेतावनी और खोज और बचाव गतिविधियाँ प्रदान करती है।
3. जीसैट श्रृंखला (GSAT Series): जीसैट उपग्रह, भारत में निर्मित संचार उपग्रह हैं। इन उपग्रहों का उपयोग मुख्य रूप से डिजिटल ऑडियो, डेटा और वीडियो ट्रांसमिशन के लिए किया जाता है। इसरो द्वारा कई जीसैट उपग्रह लॉन्च किए गए थे जिनमें से आज भी 18 चालू हैं।
4. चंद्रयान-1, 2008 :यह चंद्रमा पर भारत का पहला मिशन था। यह मिशन 22 अक्टूबर 2008 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था जो भारत की सबसे बड़ी वैज्ञानिक सफलताओं में से एक साबित हुआ क्योंकि यान ने चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की उपस्थिति का पता लगाया। चंद्रयान-1 के ज़रिए ही दुनिया को चंद्रमा पर पानी के बारे में पता चला।
5. मंगल ऑर्बिटर मिशन (Mars Orbiter Mission (MOM)), 2014: मार्स ऑर्बिटर मिशन, जिसे संक्षेप में MOM के नाम से जाना जाता है, के साथ भारत अपने पहले प्रयास में मंगल पर पहुंचने वाला पहला देश बन गया। यह मिशन देश का पहला अंतरग्रहीय मिशन भी था। मंगलयान को 5 नवंबर 2013 को श्रीहरिकोटा से PSLV-C25 रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया था। इसके साथ, इसरो मंगल ग्रह के ऑर्बिट में अंतरिक्ष यान को सफलतापूर्वक लॉन्च करने वाली चौथी अंतरिक्ष एजेंसी बन गई।
6. चंद्रयान-3: चंद्रयान-2 के बाद अगला मिशन चंद्रयान-3 लांच किया गया, जिसका उद्देश्य सुरक्षित रूप से उतरना और चंद्रमा की सतह का पता लगाना था। अपनी सफलता के साथ, भारत, अमेरिका, रूस और चीन के बाद चंद्रमा पर उतरने वाले दुनिया के चार विशिष्ट देशों में से एक बन गया है। यह न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए एक प्रमुख ऐतिहासिक घटना है। इस मिशन की सफलता के साथ, भारत, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरने वाला दुनिया का पहला देश बन गया।
दुनिया के 5 सबसे शक्तिशाली दूरबीन (Telescope):ब्रह्मांड के बारे में हमने आज तक जितना ज्ञान प्राप्त किया है वह मुख्य रूप से दूरबीनों के माध्यम से प्राप्त हुआ है। दूरबीन हमें ब्रह्मांड में नग्न आंखों की तुलना में अधिक गहराई तक देखने की अनुमति देते हैं। किसी भी दूरबीन से हम कितनी दूर तक और गहराई से देख सकते हैं यह कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे कि, वह ऊंचाई जिस पर वेधशाला स्थित है, साथ ही दर्पण का आकार भी।
यहां पृथ्वी की पांच सबसे शक्तिशाली दूरबीनों का वर्णन किया गया है:
1. जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप (James Webb Space Telescope): 2021 के अंत में, जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप, सूर्य के चारों ओर की तस्वीरें खीचनें लग गया। 21 फ़ुट और 4 इंच चौड़े दर्पण के साथ, पृथ्वी से एक मिलियन मील ऊपर परिक्रमा करते हुए, जेम्स वेब अब तक का सबसे बड़ा टेलिस्कोप है। यह 13.6 अरब प्रकाश वर्ष दूर तक देखने में सक्षम है।
2. हबल स्पेस टेलिस्कोप (Hubble Space Telescope): 1990 में लॉन्च किए गए हबल स्पेस टेलिस्कोप ने दुनिया को अंतरिक्ष के चमत्कारों की पहले कभी न देखी गई तस्वीरें दिखाईं। हबल के दर्पण का आकार 2.4-मीटर है जो, हालाँकि, पृथ्वी-आधारित कुछ दूरबीनों की तुलना में बहुत बड़ा नहीं है। तो फिर प्रश्न उठता है कि हबल इतना शक्तिशाली क्यों है? वास्तव में इसका सरल उत्तर है: वातावरण। जब कोई दूरबीन पृथ्वी पर होती है, तो उसे पृथ्वी के आर-पार देखने के लिए पृथ्वी के वायुमंडल से जूझना पड़ता है। इसे वायुमंडलीय विकृति के रूप में जाना जाता है। हबल, वायुमंडल के ऊपर एक अनोखी स्थिति में है जहां उसे वायुमंडलीय विकृति से जूझना नहीं पड़ता है। यही कारण है कि हबल एक काफ़ी छोटे दर्पण के साथ इतनी स्पष्ट तस्वीरें लेने में सक्षम है।
3. केक टेलिस्कोप (Keck Telescope): पृथ्वी पर स्थित, यह एकमात्र दूरबीन, हवाई में मौना के पर्वत पर कैलटेक और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किया जाता है। 1992 (केक 1) और 1996 (केक 2) में निर्मित इस दूरबीन में 10 मीटर व्यास वाले दर्पण लगे हैं जो दुनिया के कुछ सबसे शक्तिशाली दूरबीनों की तुलना में अत्यंत बड़ा है। इसके दुनिया में सबसे शक्तिशाली में से एक माने जाने का कारण इसकी ऊंचाई है। समुद्र तल से 13,599 फ़ीट की ऊंचाई पर, मौना के ऊपर समुद्र तल की तुलना में कम वातावरण है। इससे वायुमंडलीय विकृति कम हो जाती है।
4. स्पिट्ज़र स्पेस टेलिस्कोप (Spitzer Space Telescope): इस दूरबीन ने वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष के उन क्षेत्रों को देखने की अनुमति दी है जिन्हें ऑप्टिकल दूरबीनें देखने में असमर्थ हैं। स्पिट्ज़र को अन्य दूरबीनों से अलग कक्षा में स्थापित किया गया था। पृथ्वी की परिक्रमा करने के बजाय, स्पिट्ज़र सूर्य केन्द्रित कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करता है। स्पिट्ज़र की सूर्यकेन्द्रित कक्षा के कारण यह प्रति वर्ष पृथ्वी से 0.1 खगोलीय इकाई आगे बढ़ जाता है। यह लगभग 10 मिलियन मील के बराबर है। इस विशिष्ट टेलिस्कोप को कक्षा में इसलिए स्थापित किया गया क्योंकि इन्फ्रारेड टेलिस्कोप बहुत अधिक गर्मी पैदा करते हैं लेकिन डेटा एकत्र करने के लिए उन्हें ठंडा रहना चाहिए। अपनी अतिरिक्त गर्मी को अंतरिक्ष के निर्वात में छोड़ता है, जिससे दूरबीन तरल हीलियम के रूप में न्यूनतम शीतलक का उपयोग करता है। 16 वर्षों तक संचालन के बाद, स्पिट्ज़र स्पेस टेलिस्कोप का संचालन 2020 में बंद कर दिया गया।
5. फ़र्मी गामा रे स्पेस टेलिस्कोप (Fermi Gamma Ray Space Telescope (GLAST): फ़र्मी गामा रे स्पेस टेलिस्कोप, (GLAST) गामा विकिरण का पता लगाता है। गामा किरणें प्रकाश की सबसे छोटी तरंग दैर्ध्य होती हैं और आमतौर पर अंतरिक्ष में उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं द्वारा उत्सर्जित होती हैं। गामा किरणें आमतौर पर पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा अवशोषित होती हैं। गामा किरणों पर ठीक से शोध करने के लिए, इस दूरबीन को पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर रखा गया था। GLAST, 2008 में लॉन्च किया गया था और आज भी चालू है।
कुछ सबसे बड़ी अंतरिक्ष खोजें:
हिग्स बोसोन (Higgs Boson) की जानकारी: हिग्स बोसोन का सिद्धांत पहली बार 1964 में पीटर हिग्स और उनकी टीम द्वारा प्रतिपादित किया गया था, हालांकि हिग्स के सिद्धांतों को वैध साबित करने के लिए 50 साल लगे। जुलाई 2012 में जब यूरोपियन ऑर्गनाइज़ेशन फ़ॉर न्यूक्लीयर रिसर्च (CERN) के 'लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर' (Large Hadron Collider (LHC)) के शोधकर्ताओं ने हिग्स बोसोन कण की खोज की, तो इतिहास रच गया।
ब्लैक होल (Black Hole): इस सिद्धांत को पहली बार 18वीं शताब्दी में प्रतिपादित किया गया था और तब से ब्लैक होल खगोल वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बना हुआ है। ब्लैक होल, वह बिंदु है जहां से कोई प्रकाश नहीं लौटता है। इसलिए, जब वैज्ञानिकों ने 2019 में ब्लैक होल की पहली छवि जारी की तो पूरी दुनिया का ध्यान इस पर गया।
गुरुत्वाकर्षण तरंगें (Gravitational Waves): गुरुत्वाकर्षण तरंगें, अंतरिक्ष-समय की तरंगें हैं, जो बड़े पैमाने पर टकराने वाली वस्तुओं के ऊर्जावान प्रभाव के कारण तरंगित और झुकती हैं। तालाब में लहरों की तरह, ये तरंगें प्रभाव के केंद्रीय बिंदु से शुरू होती हैं, बाहर की ओर बढ़ती हैं, और एक बार शांत वातावरण को काफ़ी हद तक बदल देती हैं। इस सिद्धांत को आइंस्टीन द्वारा 1915 में अपने सामान्य सापेक्षता सिद्धांत में दिया गया था। गुरुत्वाकर्षण तरंगों पर आइंस्टीन के सिद्धांत के सत्यापन को सफल होने में लगभग एक शताब्दी का समय लगा, जब सितंबर 2015 में, यू.एस. लीगो (U.S. LIGO) और इटली के वर्गो इंटरफेरोमीटर ने पृथ्वी से गुज़रने वाली तरंगों का पता लगाया।
एक्ज़ोप्लैनेट एक्सट्रावेगेंज़ा (Exoplanet Extravaganza): केप्लर टेलिस्कोप ने पिछले दशक के एक्सोप्लैनेट बूम को संचालित किया, जिसमें 2,662 एक्सोप्लैनेट्स की पहचान की गई। वैज्ञानिकों का मानना है कि कभी रहस्यमयी रहे ये खगोलीय पिंड अंतरिक्ष के बारे में मानवता की समझ को आगे बढ़ाने में सहायक साबित होंगे। इन एक्ज़ोप्लैनेट्स में पृथ्वी 2.0 की खोज करना हर खगोलशास्त्री का सपना है। इस प्रकार, अपने तारे के "रहने योग्य" क्षेत्र की परिक्रमा करने वाला पृथ्वी के आकार का पहला एक्सोप्लैनेट, केपलर-186एफ, 2014 में अपनी उल्लेखनीय खोज के साथ लाया गया था | इस उपलब्धी को कम करके नहीं आंका जा सकता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/bp5wu6mt
https://tinyurl.com/32vzmrnk
https://tinyurl.com/57tyfmm6

चित्र संदर्भ

1. जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. इसरो के यान प्रक्षेपण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. आर्यभट्ट उपग्रह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. चंद्रयान-1 को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. चंद्रयान-3 को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. हबल स्पेस टेलिस्कोप को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
8. केक टेलिस्कोप को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
9. स्पिट्ज़र स्पेस टेलिस्कोप को दर्शाता चित्रण (PICRYL)
10. फ़र्मी गामा रे स्पेस टेलिस्कोप को दर्शाता चित्रण (PICRYL)
11. ब्लैक होल को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
12. गुरुत्वाकर्षण तरंगों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)


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