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भारत के आधे हिस्से का निर्माण हुआ है ज्वालामुखी विस्फोट से बनने वाली चट्टानों से

रामपुर

 27-07-2024 09:24 AM
खनिज

ज्वालामुखीय चट्टानें पृथ्वी की सतह पर बनती हैं। ज्वालामुखी की घटना के माध्यम से लावा के उत्सर्जन के दौरान मैग्मा (Magma) पृथ्वी की सतह पर आ जाता है। पृथ्वी की सतह पर आने पर मैग्मा तेज़ी से ठंडा होता है जिससे पूर्ण क्रिस्टलीकरण की प्रक्रिया बाधित होती है और जिसके परिणामस्वरूप पोर्फिराइटिक (porphyritic) प्रकार की चट्टान संरचना का निर्माण होता है। यह छोटे क्रिस्टल से बना एक आधात्रिका (groundmass) होता है जिसमें कुछ अच्छी तरह से निर्मित क्रिस्टल भी शामिल होते हैं। ऐसी ही एक विशिष्ट ज्वालामुखीय चट्टान बसौल्ट (basalt) है, जिसका निर्माण, उदाहरण के लिए, आयरलैंड (Ireland) के 'एटना ज्वालामुखी' (Etna volcano) से होता है। जब मैग्मा चिपचिपा होता है और गैस से भरपूर होता है, तो इस दौरान निर्मित चट्टानें विशेष रूप से छिद्रपूर्ण होती हैं। दुनिया भर में ज्वालामुखी से निर्मित विभिन्न चट्टानें सीमेंट रेती आदि के संयोजक के रूप में प्रयोग की जाती हैं। इन सभी की संरचना माफ़िक (mafic) से लेकर सिलिकिक (silicic) तक विस्तृत होती है। बसौल्ट में पानी की मात्रा स्कोरिया (scoria) और सिंडर (cinder) से थोड़ी भिन्न होती है, लेकिन रयोलाइट (rhyolite) और सिलिकिक (silicic) चट्टानों में पानी के बीच का महत्वपूर्ण अंतर होता है। पानी की अधिकता से परलाइट (perlites) और प्यूमिसाइट (pumicite) तापीय रूप से अधिक विस्तारित होते हैं। सामान्य तौर पर, इस दौरान निर्मित चट्टानों की भिन्नता SiO2 (सिलिका), Na2O (सोडियम ऑक्साइड) , और K2O (पोटैशियम ऑक्साइड) पदार्थों की मात्रा के अंतर से निर्धारित होती है। माफ़िक चट्टानें अधिक तरल होती हैं और सिलिकिक चट्टानों में गैसों को बनाए रखने की अधिक संभावना होती है।
विभिन्न भूवैज्ञानिक स्थितियों के अनुसार, चट्टानों को आम तौर पर निम्न तीन मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
1. मैग्मीय चट्टान: मैग्मीय चट्टान को आग्नेय चट्टान भी कहा जाता है, जो मैग्मा के संघनन से बनती है। जब मैग्मा पृथ्वी की भूपर्पटी में प्रवेश करता है, तो यह मैग्मा संघनित और क्रिस्टलीकृत हो जाता है, जिससे चट्टान का निर्माण होता है। इस तरह निर्मित चट्टान को अंतर्वेधित चट्टान कहा जाता है। पृथ्वी की परत मुख्य रूप से इसी से बनी होती है। मैग्मीय चट्टान को, उसकी शीतलन स्थितियों के अनुसार, प्लूटोनिक चट्टान और सुपरजीन चट्टान में वर्गीकृत किया गया है। प्लूटोनिक चट्टान 3 किलोमीटर से अधिक गहराई पर होती है जबकि सुपरजीन चट्टान 3 किलोमीटर से कम गहराई पर होती है। ज्वालामुखीय चट्टान का उपयोग मुख्य रूप से मोर्टार और हल्के समुच्चय कंक्रीट का उत्पादन करने के लिए किया जाता है।
2. तलछटी चट्टान: तलछटी चट्टान का निर्माण मूल चट्टान के अपक्षय, भूवैज्ञानिक रूप से परिवहन और जमाव आदि के बाद होता है। यह परतदार संरचना में होती है और प्रत्येक परत की संरचना, रंग और परत की मोटाई अलग-अलग होती है। आग्नेय चट्टान की तुलना में, इस प्रकार की चट्टानें कमजोर संरचनात्मक सघनता, कम घनत्व, उच्च सरंध्रता और जल अवशोषण, कम ताकत और कमज़ोर स्थायित्व वाली होती हैं। तलछटी चट्टानें पृथ्वी में व्यापक रूप से फैली हुई हैं, और पृथ्वी की सतह के नज़दीक पाई जाती हैं। इनका खनन भी आसानी से किया जा सकता है। इनकी निर्माण स्थितियों के अनुसार, तलछटी चट्टान को यांत्रिक तलछटी चट्टान, रासायनिक तलछटी चट्टान और जैविक तलछटी चट्टान में वर्गीकृत किया जाता है।जबकि इनकी बंधक सामग्री के अनुसार, इन्हें सिलिसियस, आर्गिलेशियस और कैलकेरियस में वर्गीकृत किया गया है।
3. रूपांतरित चट्टान: रूपांतरित चट्टान तब बनती है जब मैग्मीय या तलछटी या यहां तक कि अन्य रूपांतरित चट्टान भूपर्पटी के अंदर उच्च तापमान और अत्यधिक दबाव के अधीन होती है। रूपांतरण परिवर्तन के क्रम में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार, इसे ऑर्थो-मेटामॉर्फिक (Ortho-Metamorphic) और पैरा-मेटामॉर्फिक (Para-Metamorphic) चट्टानों में विभाजित किया गया है।ऑर्थो-मेटामॉर्फिक चट्टान मैग्मीय चट्टान से रूपांतरित होती है। रूपांतरण के बाद, इसकी संरचना और शक्ति प्राथमिक चट्टान की तुलना में कमज़ोर होती है। पैरा-मेटामॉर्फिक चट्टान तलछटी चट्टान से रूपांतरित होती है। रूपांतरण के बाद, इसकी संरचना और शक्ति प्राथमिक चट्टान की तुलना में बेहतर होते हैं।
यद्यपि ज्वालामुखी से चट्टानों के निर्माण की प्रक्रिया एक प्राकृतिक घटना है, तथापि मानव ने इन सामग्रियों के लिए कई उपयोग विकसित किए हैं। इनका उपयोग निर्माण सामग्री से लेकर ऑटोमोबाइल को चमकाने के लिए तथा सौंदर्य प्रसाधनों तक में होता है। हमारे देश भारत में भी कई ज्वालामुखी हैं, जिनमें से कुछ सक्रिय हैं तो कुछ निष्क्रिय हैं अथवा कुछ विलुप्त हो चुके हैं। आइए जानते हैं उनके विषय में:
भारत में सक्रिय ज्वालामुखी:
बंजर द्वीप (Barren Island): यह अंडमान सागर में स्थित है और वर्तमान में भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है। यह पोर्ट ब्लेयर से 138 किलोमीटर की दूरी पर है। इसका पहला प्रकोप 1787 में देखा गया था और हाल ही में 2020 से लेकर अब तक इससे 10 से अधिक बार धुआं और ऊष्मा की लहरें बाहर निकलते देखी गई हैं। दिन के दौरान केवल राख के बादल दिखाई देते हैं, लेकिन सूरज के अस्त होने पर ढलानों पर लाल लावा निकलते हुए देखा जा सकता है।
बारातांग द्वीप (Baratang Island): इसे मिट्टी के ज्वालामुखी के रूप में भी जाना जाता है। इस ज्वालामुखी को भी सक्रिय माना जाता है, हालांकि इससे हाल ही में विस्फोट की कोई घटना दर्ज नहीं की गई है। इसमें आखिरी विस्फोट 2005 में हुआ था, जिसे 2004 में भूकंप से संबंधित माना गया था। यह अंडमान के द्वीपों की श्रृंखला के अंतर्गत आता है।
भारत में निष्क्रिय ज्वालामुखी:
नारकोंडम द्वीप (Narcondam Island): यह उत्तरी अंडमान सागर में स्थित एक छोटा ज्वालामुखी है। यह एक निष्क्रिय ज्वालामुखी है। यदि हाल ही के वर्षों की बात की जाए, तो इसमें से वर्ष 2005 में केवल धुआं निकालने और कुछ कालिख बनने की घटना दर्ज की गई थी। तब से यह ज्वालामुखी निष्क्रिय है।
भारत में विलुप्त ज्वालामुखी:
दक्कन का पठार (Deccan Plateau): अनुमान है कि पश्चिमी घाटों पर बड़ी संख्या में ज्वालामुखी विस्फोट हुए थे, जिससे निकलने वाले लावा का प्रवाह बहुत अधिक था और इससे आधुनिक भारत के लगभग आधे हिस्से का निर्माण हुआ। यह एक विलुप्त ज्वालामुखी है जो लगभग 66 मिलियन वर्ष पहले फूटा था। इसे दुनिया के सबसे बड़े ज्वालामुखीय प्रांतों में से एक माना जाता है।
धिनोधर पहाड़ियाँ (Dhinodhar Hills): यह एक ज्वालामुखीय प्लग है। ज्वालामुखी प्लग एक भू-आकृति है जो तब बनती है जब मैग्मा सक्रिय ज्वालामुखी के द्वार के अंदर सख्त हो जाता है । इन्हें कभी-कभी ज्वालामुखी की गर्दन या पुय कहा जाता है। जब आस-पास की ज़मीन का क्षरण होता है तो प्लग दिखाई देता है। यह स्थानीय बलुआ पत्थर से ऊपर उठा हुआ है और अपेक्षाकृत ताज़ा, बहुत महीन दाने वाले गहरे भूरे रंग के पदार्थ से बना है। यह गुजरात के कच्छ ज़िले में स्थित है। इसके अंतिम विस्फोट के विषय में बताया जाता है कि यह लगभग 500 मिलियन वर्ष पहले हुआ होगा।
धोसी पहाड़ियाँ (Dhosi Hills): ये पहाड़ियाँ हरियाणा में स्थित हैं। यह एक विलुप्त ज्वालामुखी है जिसका अंतिम विस्फोट लगभग 750 मिलियन वर्ष पहले हुआ था।
तोशाम की पहाड़ियाँ (Tosham Hills): यह पश्चिमी-दक्षिणी हरियाणा में आग्नेय चट्टानों की संरचना वाली अरावली पर्वत श्रृंखला का एक हिस्सा है। यह एक विलुप्त ज्वालामुखी है जिसका अंतिम विस्फोट रिकॉर्ड लगभग 732 मिलियन वर्ष पहले का है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/msveaawu
https://tinyurl.com/muhakvvf
https://tinyurl.com/2n3v6282

चित्र संदर्भ
1. गोकर्ण की याना गुफ़ाओं को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. मैग्मा चैम्बर को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. मैग्मीय चट्टान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. तलछटी चट्टान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. रूपांतरित चट्टान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. उभरती हुई ज्वालामुखीय चट्टानों  को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)



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