Post Viewership from Post Date to 16-Aug-2024 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2591 72 2663

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

स्वतंत्रता संग्राम में ग़ालिब व् गांधीजी का साथ देने वाली तवायफों के अहसान को क्या हम भूल गए?

रामपुर

 16-07-2024 09:41 AM
द्रिश्य 2- अभिनय कला

'तवायफ' शब्द सुनते ही अधिकांश लोगों के मन में एक विशेष वर्ग की महिलाओं के प्रति अपमान एवं घृणा उभरने लगती है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज भी बहुत कम लोग इस वास्तविक तथ्य से अनजान हैं कि "भारत की आज़ादी से लेकर भारतीय लोकनृत्यों को संजों के रखने तक" हम सभी तवायफों के ऋणी हैं। भारतीय समाज में तवायफों की महत्ता को समझने के लिए आज हम प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य ‘कथक’ एवं स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान तथा रामपुर के नवाबों के साथ तवायफों के संबधों को समझने की कोशिश करेंगे।
तवायफ, जिन्हें बाई जी के नाम से भी जाना जाता है, उत्तरी भारत की महिला कलाकार थीं, जिन्होंने संगीत, नृत्य, कविता और स्वतंत्रता संग्राम में अतुलनीय योगदान दिया था। आज भले ही इन महिलाओं को भारतीय सिनेमा में अपमानजनक तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन वास्तव में इनके घर, (जिन्हें कोठा कहा जाता है।) सांस्कृतिक केंद्र हुआ करते थे जहाँ कुलीन लोग शिष्टाचार, नृत्य और संगीत सीखते थे।


लेकिन समय के साथ, तवायफों को अनुचित रूप से वेश्याओं के दर्जे में गिरा दिया गया और उनकी कला का अक्सर अनादर किया गया। अपने महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद, तवायफों को हाशिए पर रखा गया और उनकी वास्तविक पहचान को धूमिल रखा गया। आपको जानकर दुःख होगा कि उनके कई लोकप्रिय गीतों को अभी भी भारतीय सिनेमा में बिना उन्हें उचित श्रेय दिए या बिना उनकी इजाज़त के इस्तेमाल किया जाता है। इस मुद्दे को प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना, मंजरी चतुर्वेदी ने बैंगलोर इंटरनेशनल सेंटर (Bangalore International Centre) के सहयोग से जेपी नगर में इंडियन म्यूजिक एक्सपीरियंस (Indian Music Experience) में अपने व्याख्यान, "द लॉस्ट सॉन्ग्स ऑफ द कोर्टेसन्स (The Lost Songs of the Courtesans)" के दौरान उजागर किया।

“आरंभ में तवायफों का विशिष्ट क्षेत्र संगीत और नृत्य होता था, लेकिन आज, कई लोग उन्हें कलाकार नहीं, बल्कि सेक्स वर्कर (sex workers) के रूप में देखते हैं। दरबारों में पुरुष कलाकारों को उस्ताद माना जाता था, जबकि वही कलाएं यदि महिला प्रदर्शित करने लगे तो उसे एक गायिका, नर्तकी या मुजरा करने वाली कह दिया जाता था।


प्रसिद्ध "हमार कहीं मानो राजाजी" नामक गाने को मूलतः बेगम अख्तर जो एक तवायफ थीं, द्वारा गाया गया था। बाद में आशा भोसले और मोहम्मद रफी जैसे मशहूर गायकों ने 1967 की फिल्म "दुल्हन एक रात की" के लिए इस गाने को फिर से नवीनीकृत किया गया, जिसमें नर्तकियों को गलत तरीके से तवायफों के प्रतिनिधि के रूप में दिखाया गया था। तवायफों के गाने, जो अक्सर मौखिक रूप से पारित किए जाते हैं, ग्रामोफोन युग के दौरान रिकॉर्ड किए गए थे, लेकिन ठीक से प्रलेखित नहीं किए गए थे।

के. आसिफ की 'मुगल-ए-आजम' (1960) का एक प्रतिष्ठित बॉलीवुड गीत 'मोहे पनघट पे' को मूल रूप से इंदु बाला नाम की एक तवायफ ने ही गाया था। हालांकि, फिल्म में उन्हें श्रेय नहीं दिया गया। हाल ही में आई लोकप्रिय वेब सीरीज 'हीरामंडी' सहित कई गानों में भी मूल तवायफ गायकों और संगीतकारों को श्रेय नहीं दिया गया है।"

 गौहर जान 19वीं सदी की एक प्रसिद्ध गायिका और नर्तकी थी। वह तवायफ़ और बाई जी कलाकारों की विरासत का एक हिस्सा थी, जिनका इतिहास चार शताब्दियों पुराना है। यदि आप "हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का अध्ययन करते हैं, तो गौहर जान जैसी महिलाओं को नज़रअंदाज़ करना असंभव है।"  भले ही पॉप संस्कृति और विक्टोरियन विचारों ने उन्हें "चरित्रहीन महिलाओं" की तरह दिखाया हो, लेकिन उनकी असली कहानी कहीं ज़्यादा जटिल है। गौहर जान उम्दा कलाकारों के कई मशहूर नामों में से एक हैं, जिनमें उनकी मां मलका जान, बेगम अख्तर, जद्दन बाई, ज़ोहरा बाई अंबालेवाली, रसूलन बाई और रोशन आरा बेगम शामिल हैं।


एक समय था जब "शायर भी तवायफों से अपनी रचनाएँ गवाने की चाहत रखते थी। इस संबंध में एक किस्सा बहुत मशहूर है कि एक बार ग़ालिब ने रामपुर के नवाब को एक पत्र लिखकर पूछा था कि क्या उनके दरबार की कोई मशहूर तवायफ उनके शेर गा सकती है।" इस घटना से पता चलता है कि उस समय किसी तवायफ द्वारा अपनी रचना का प्रदर्शन करवाने का मतलब था कि आपकी कविता या शेर को लंबे समय तक याद रखा जाएगा और पीढ़ियों तक पहुँचाया जाएगा।


रामपुर के नवाब कल्ब अली खान (जिन्होंने 1865 से 1887 तक शासन किया) के समय के सांस्कृतिक परिदृश्य और स्ट्रीट फ़ूड को जान साहब रेक्तिगो द्वारा "मुसद्दस ए तहनियात ए जश्न ए बेनज़ीर" नामक एक कृति में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है। उर्दू दोहे में लिखी गई यह रचना 1870 के दशक में नवाब के जन्मदिन पर बेनज़ीर पैलेस में होने वाले वार्षिक मेले का वर्णन करती है। इसमें मेले के रंग-बिरंगे चित्र हैं, जिसमें रंडियों (सामान्य वेश्याओं), तवायफों, नर्तकियों, गायकों, संगीतकारों, कवियों और कहानीकारों जैसे विभिन्न कलाकारों को दिखाया गया है, जो आम लोगों और राजघरानों दोनों का मनोरंजन करते हैं।


बहुत कम लोग इस बात से परिचित हैं कि "जब सैन्य शिविरों से 1857 का विद्रोह फैलना शुरू हुआ, तो यहाँ पर भी तवायफों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।" भले ही उन्होंने सीधे सैनिकों के साथ मिलकर अंग्रेजों पर हमला नहीं किया, लेकिन उनके सैलून और कोठे विद्रोहियों के लिए सुरक्षित आश्रय बन गए। लखनऊ की घेराबंदी से पहले 14 महीनों तक ब्रिटिशों की बढ़त को धीमा करने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था।" 1920 में, असहयोग आंदोलन के दौरान, बनारस की तवायफों के एक समूह ने महात्मा गांधी का समर्थन किया। उनके भाषणों से प्रेरित होकर, एक प्रसिद्ध तवायफ विद्याधरी बाई ने राष्ट्रवादी गीत प्रस्तुत करना शुरू किया और, हाथ से काते हुए कपड़े “खादी” को अपनाया। इसके अलावा उन्होंने युवा राजकुमारों और रईसों को शिष्टाचार, कविता, शास्त्रीय संगीत और नृत्य की शिक्षा दी। विडंबना यह है कि जिन तवायफों को हम आज नीची निगाह से देखते हैं, वे उस समय भी कविता और शिष्टाचार की शिक्षा दे रही थीं, जब भारत की अधिकांश सामान्य महिलाएं अशिक्षित थीं।

संदर्भ 

https://tinyurl.com/4h6f4w8p

https://tinyurl.com/45j9fzbb

https://tinyurl.com/2dae656p

https://tinyurl.com/rp553y7r

https://tinyurl.com/3tewr7ct


चित्र संदर्भ

1. अवध की नृत्यांगनाओं को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)

2. लखनऊ के अवध दरबार की नृत्यांगना हैदराबाद जान को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)

3. द ब्यूटीज ऑफ लखनऊ", 1874 में खींची गई फोटो जो लखनऊ के प्रसिद्ध संगीतकारों को दर्शाती है (wikimedia)

4. बेगम अख्तर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

5. गौहर जान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

6. हैदराबाद, भारत में एक मुशायरे में ग़ज़ल गाती अज्ञात तवायफों को संदर्भित करता एक चित्रण (garystockbridge617)





***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • मेहरगढ़: दक्षिण एशियाई सभ्यता और कृषि नवाचार का उद्गम स्थल
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:26 AM


  • बरोट घाटी: प्रकृति का एक ऐसा उपहार, जो आज भी अनछुआ है
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:27 AM


  • आइए जानें, रोडिन द्वारा बनाई गई संगमरमर की मूर्ति में छिपी ऑर्फ़ियस की दुखभरी प्रेम कहानी
    म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण

     19-11-2024 09:20 AM


  • ऐतिहासिक तौर पर, व्यापार का केंद्र रहा है, बलिया ज़िला
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:28 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर चलें, ऑक्सफ़र्ड और स्टैनफ़र्ड विश्वविद्यालयों के दौरे पर
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:27 AM


  • आइए जानें, विभिन्न पालतू और जंगली जानवर, कैसे शोक मनाते हैं
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:15 AM


  • जन्मसाखियाँ: गुरुनानक की जीवनी, शिक्षाओं और मूल्यवान संदेशों का निचोड़
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:22 AM


  • जानें क्यों, सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में संतुलन है महत्वपूर्ण
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, जूट के कचरे के उपयोग और फ़ायदों के बारे में
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:20 AM


  • कोर अभिवृद्धि सिद्धांत के अनुसार, मंगल ग्रह का निर्माण रहा है, काफ़ी विशिष्ट
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:27 AM






  • © - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id