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रोग के निवारण और स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार की चिकित्सा
पद्धति को अपनाया गया है, जिनमें से लोक चिकित्सा भी एक है।लोक चिकित्सा वह
पारंपरिक चिकित्सा है,जिसका गैर-पेशेवर तरीके से अभ्यास किया जाता है। विशेष रूप से उन
लोगों के द्वारा जो आधुनिक चिकित्सा सेवाओं को प्राप्त नहीं कर पाए हैं, या उनसे अलग-
थलग हैं। इसमें आमतौर पर अनुभवजन्य आधार पर पौधे से प्राप्त उपचारों के उपयोग को
शामिल किया जाता है।भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में लगभग सभी उपचार
विधियों में पौधों से प्राप्त औषधि का उपयोग किया जाता है। अथर्ववेद और चरक संहिता
जैसे वैदिक ग्रंथों में उन पौधों के उपयोग के संदर्भ प्राप्त होते हैं, जिन्हें दवाओं के रूप में
उपयोग किया गया।यही कारण है कि भारत को आयुर्वेद के जन्मस्थान के रूप में जाना
जाता है, जो सबसे पुराना और दवा के सबसे लोकप्रिय रूपों में से एक है।
वर्तमान समय में
एलोपैथी (Allopathy) ने भारत में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। लेकिन इसके बावजूद भी
भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा अभी भी हर्बल दवाओं का उपयोग करता है। क्यों कि हर्बल
दवाएं अपेक्षाकृत सस्ती कीमत पर उपलब्ध हैं तथा उनका किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव नहीं
होता है। हाल के दिनों में, मेरठ और गाजियाबाद ऐसे क्षेत्रों (पश्चिमी घाट राज्यों, आंध्र प्रदेश
और उत्तराखंड आदि) में शामिल हो गए हैं, जहां उपचारात्मक मूल्य वाले पौधे अधिक मात्रा में
पाए जाते हैं। अर्थात लोक चिकित्सा के केंद्र के रूप में मेरठ का महत्व और भी अधिक बढ़
गया है।इंडियन जर्नल ऑफ ट्रेडिशनल नॉलेज (Indian Journal of Traditional Knowledge) के
2008 के एक पेपर के अनुसार मेरठ में 39 सामान्य और 28 दुर्लभ परिवारों से संबंधित ऐसी
39 औषधीय पौधों की प्रजातियां पाई गईं हैं,जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों को ठीक करने
या उनके प्रभाव को कम करने में सहायक हैं।भारत में, ऐसे पौधों की कीमत 5,000 करोड़
रुपये है और हर्बल दवाओं के निर्यात की मात्रा 550 करोड़ रुपये है।मेरठ और गाजियाबाद
एलोवेरा जैसे विविध वनस्पति संसाधनों से समृद्ध हैं और भारत के कई हिस्सों से उद्योग
के स्थानांतरण के कारण छोटे पैमाने की खेती को बड़े पैमाने में बदलने के लिए जिले को
बहुत ज्यादा मदद मिली है।
अब कई लोग बड़े पैमाने पर इनकी खेती में रुचि ले रहे हैं।भारत
में, जंगलों के तेजी से क्षरण के कारण जंगलों से चिकित्सीय जड़ी-बूटियों की उपलब्धता कम
हो रही है। पश्चिमी घाट जैसे क्षेत्रों से उत्पादन में कमी के कारण, मेरठ जहां पहले हर्बल दवा
उद्योग का क्षेत्र सीमित था, में अब खेती बढ़ रही है। विकास को आगामी चिकित्सा शहरों
द्वारा भी संचालित किया जाएगा जो उपभोक्ताओं को हर्बल और आयुर्वेदिक उपचार का
विकल्प प्रदान करने का वादा करते हैं।मेरठ में अंबिक आयुर्वेद इंडिया(AmbicAyurved India),
वाइटलाइज हर्ब्स प्राइवेट लिमिटेड (Vitalize Herbs Pvt Ltd) और शत्रंग (Shatrang) जैसी छोटी
इकाइयां हैं, जो स्थानीय तरीकों से हर्बल उत्पादों का उत्पादन करती हैं।कई मूल्यवानचिकित्सीय पौधे विलुप्त हो गए हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं।"विश्व वन्यजीव कोष ने
भारतीय मूल के कई हर्बल पौधों को गंभीर रूप से लुप्तप्राय सूची में डाल दिया है। लेकिन
मेरठ में अभी भी कुछ लुप्त हो रहे पौधों के परिवार जैसे कि सिसाम्पेलोस परेरा
(Cissampelos), ऑक्टिनम सैंटम (Octinumsantum), सोलनम वर्जिनियाटम (solanum
virginiatum) और तियानथेमा पोर्टुलाकैस्ट्रम (Tianthemaportulacastrum)मौजूद
हैं।प्रकृतिवादियों ने 750 से अधिक हर्बल प्रजातियों की पहचान की है जो जंगलों और
प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण विलुप्त होने के करीब हैं। वनों की कटाई,
शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन हर्बल खेती के लिए चुनौती हैं।इस सब के कारण हर्बल दवा
उद्योग के पारंपरिक केंद्रों में से एक पश्चिमी घाट क्षेत्र से मेरठ और गाजियाबाद जैसे स्थानों
पर स्थानांतरित होने वाली विनिर्माण इकाइयों का पलायन हुआ है।वास्तव में, देश के अन्य
हिस्सों के दवा निर्माता, जो इस क्षेत्र से जड़ी-बूटियों की एक विस्तृत श्रृंखला की सोर्सिंग करते
रहे हैं, अब जड़ी-बूटियों की तलाश में हिमालयी क्षेत्र और मेरठ जैसे जिलों की ओर रुख कर
रहे हैं।
नए औषधीय पौधों की खोज के कारण पिछले तीन-चार वर्षों में जिले में कई नई
इकाइयां स्थापित की गई हैं।आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं का उत्पादन करने वाले कई बड़े,
मध्यम और छोटे उद्यमों ने हाल के दिनों में अपनी विनिर्माण गतिविधि उत्तराखंड, छत्तीसगढ़
और उत्तर प्रदेश में स्थानांतरित कर दी है।जिला बागवानी प्रशासन ने वन क्षेत्रों में जड़ी-
बूटियों के संसाधनों का सतत दोहन सुनिश्चित किया है ताकि उत्पादन का आधार नष्ट न
हो। इसके अलावा, आपूर्ति को फिर से भरने के लिए किसानों द्वारा जड़ी-बूटियों कीव्यावसायिक खेती को बढ़ावा देना आवश्यक पाया गया है। इसके लिए बीज, तकनीकी
जानकारी और अन्य सामग्री प्रदान करके जड़ी-बूटियों की खेती को सुविधाजनक बनाने के
लिए एक तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता हो सकती है।
मेरठ में विभिन्न प्रकार के
औषधीय पौधे पाए जाते हैं, जिनमें मधुका इंडिका जीमेल (Madhuca indica Gmel),मिमोसा
पुडिका लिनन (Mimosa pudica Linn),मिराबिलिस जलापा लिनन (Mirabilis jalapa
Linn),मोमोर्डिका चरंतिया लिनन (Momordica charantia Linn),मोरस अल्बा लिन (Morus alba
Linn),मूसा पारादीसियाका लिनन (Musa paradisiaca Linn),नेरियम इंडिकम मिल (Nerium
indicum Mill),ओसीमम सेंकटम लिनन (Ocimum sanctum Linn),प्लंबेगो ज़ेलेनिका लिनन
(Plumbago zeylanica Linn),राफनस सैटिवस लिनन (Raphanus sativus Linn) आदि शामिल
हैं।मधुका लिकर (Madua liquor) की जड़ का लेप रात को सोते समय 3-5 दिन तक लगातार
खाने से पेट के कीड़े बाहर निकल जाते हैं।
मासिक धर्म के बाद गर्भाधान को रोकने के लिए
तीन दिनों तक क्रिस्टलीय चीनी के साथ मिमोसा पुडिका लिनन की जड़ का चूर्ण उपयोग में
लाया जाता है।मिराबिलिस जलापा की जड़ का पेस्ट बवासीर के इलाज में लाभकारी होता
है।मोमोर्डिका चरंतियाकी जड़ से बनी चाय 5-7 दिनों तक दिन में दो बार पीने पर दस्त की
समस्या दूर होती है।मोरस अल्बाके पुंकेसर को केले की जड़ों में मिलाकर सुबह के समय एक
बार खाने से टाइफाइड के सबसे जटिल मामले भी ठीक हो जाते हैं। इसी प्रकार से यहां पाए
जाने वाले औषधीय पौधों के विभिन्न औषधीयगुण हैं।
यही कारण है कि भारत को आयुर्वेद के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है, जो सबसे
पुराना और दवा के सबसे लोकप्रिय रूपों में से एक है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3vdYtfV
https://bit.ly/3Ifa425
चित्र संदर्भ
1.पारंपरिक दवाइयों के बाजार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2.सिसाम्पेलोस परेरा (Cissampelos), को दर्शाता चित्रण (www.ima-india)
3.Linn),मोमोर्डिका चरंतिया लिनन (Momordica charantia Linn), को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. Mill),ओसीमम सेंकटम लिनन (Ocimum sanctum Linn), को दर्शाता चित्रण (istock)
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