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भारतीय आयुर्वेद जगत में कनक चंपा का विशेष महत्‍व

मेरठ

 23-08-2021 11:35 AM
पेड़, झाड़ियाँ, बेल व लतायें

कनक चंपा भारतीय मूल का एक सदाबहार वृक्ष है, जो सामान्‍यत: मेरठ के आस-पास भी देखा जा सकता है।फिलीपींस (Philippines) में इसे बेयोग (Bayog) के नाम से जाना जाता है। अन्य सामान्य नामों में बयूर ट्री (Bayur Tree), मेपल-लीफ्ड बयूर ट्री (Maple-Leafed Bayur Tree) आदि हैं। यह अपेक्षाकृत बड़ा पेड़ होता है, जो तीस मीटर तक ऊँचा हो सकता है। इसे ज्यादातर सजावटी या छायादार पेड़ के रूप में लगाया जाता है, बयूर के पेड़ के पत्ते, फूल और लकड़ी कई तरह के कार्य कर सकते हैं। और भूमिक्षरण को रोकने में भी इसका व्यापक उपयोग किया जाता है।
आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा में इसका प्रयोग प्राचीन समय से ही होता है।वैसे पुरातन आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका वर्णन नहीं मिलता, लेकिन इसे अमलतास एवं कचनार का ही एक भेद बताया गया है।जब स्वास्थ्य लाभ की बात आती है तो इस पेड़ के फूल और पत्ते सबसे उपयोगी सिद्ध होते हैं। इसके फूल और पत्तियों का उपयोग सिरदर्द, अल्सर, घाव, खांसी, सर्दी, रक्तस्राव विकारों आदि के इलाज में किया जाता है। जबकि फूलों को हेमिक्रानिया (hemicrania) या सिरदर्द के इलाज के लिए पेस्ट बनाकर सिर पर लगाया जाता है। इसके फूलों को कपड़ों के बीच में रखा जाता है, जो एक सुगंधित इत्र प्रदान करते हैं और कीड़ों को दूर रखते हैं। इसकी पत्तियां घावों और खुजली का इलाज करती हैं।
कनक चंपा की पत्तियां दो रंगों की होती हैं ऊपर की ओर गहरे हरे रंग की और अंदर की तरफ हल्के हरे रंग की। पत्तियां शाखाओं और पूरे पेड़ को ढके रहती हैं। पत्तियों का उपयोग इनके नाम के अनुरूप बिल्‍कुल सटीक बैठता है। इसकी परिपक्व पत्तियां बहुत बड़ी होती हैं, जिनकी लंबाई और चौड़ाई पैंतीस सेंटीमीटर तक होती है। गर्म जलवायु में नमी के नुकसान को सीमित करने के लिए पत्तियां खुरदरी और रबड़ जैसी होती हैं। इनकी पत्तियाँ मुरझाने पर भी नहीं फटती हैं। इनका उपयोग एक भोजन की थाली या फिर किसी सामाग्री को लपेटने के लिए किया जा सकता है। भारत में उन्हें नियमित खाने की प्लेटों और सांचों पर सूप के कटोरे के रूप में आकार दिया जाता है, कुछ को टहनियों के साथ भी सिला जाता है। इसलिए भारत के कुछ हिस्सों में विशेषकर पंजाब में इस पेड़ को 'डिनर प्लेट ट्री' (dinner plate tree) के उपनाम से पुकारा जाता है। प्राचीन समय से कच्‍ची छतों को मजबूत करने और रिसाव को रोकने के लिए इनका उपयोग किया जा रहा है, कुछ क्षेत्रों में तंबाकु सुखाने, या आग जलाने हेतु भी इन पत्तियों का प्रयोग किया जाता है. इसकी लकड़ी लाल रंग की होती है, जो काफी टिकाऊ और लचीली होती है,जो तख्तों और लकड़ी के बक्सों को बनाने में प्रयोग की जाती हैं।
कनक चंपा के अन्‍य नाम
हिंदी – कनकचम्पा, कठ चम्पा, कदियार आदि
संस्कृत – कर्णिकार, मुचकंद, पदोत्पल, परिव्यधि
बंगाली – कनक चम्पा
मराठी – कनकचंपा या कर्णिकार
कन्नड़ – कनकचम्पक, राजतरु
तेलगु – मत्स्कंद
बयूर के पेड़ की छाल भूरे रंग की होती है और काफी नरम मानी जाती है। इसकी छोटी टहनियाँ और नई वृद्धि कभी-कभी पंखदार लग सकती है और आमतौर पर जंग लगे भूरे रंग के समान होती हैं। कनक चम्पा का वृक्ष 50 से 70 फिट की ऊँचाई तक बढ़ सकता है। भारत के कुछ भागों में इसकी पत्ती का प्रयोग बर्तन की जगह किया जाता है। इसके फूल मार्च से मई तक खिलते हैं और अपनी सुगंध से आसपास के वातावरण को सुगंधित कर देते हैं। फूल कलियों के अन्दर बन्द होते हैं। कलियाँ पाँच खण्डों में बंटी होती हैं। जो कि एक छिले हुए केले के समान दिखाई देती हैं।प्रत्येक पंखुड़ी सात इंच तक लंबी हो सकती है। फूल के बाह्यदल बाहर की ओर और केंद्र में स्थित सफेद और सुनहरे पुंकेसर के चारों ओर मुड़े हुए होते हैं। इनका रंग सफ़ेद होता है एवं ये जोड़ो में लगते है। प्रत्येक फूल केवल एक रात तक रहता है। मधुर और सुगन्धित होने के कारण चमगादड़ इन फूलों की तरफ आकर्षित होते हैं।
यह वृक्ष पश्चिमी घाट और भारत के पर्णपाती जगलों में पाया जाता है। समुद्री खारा पानी इसके लिए अत्यन्त उपयुक्त होता है।
कनक चंपा के लिए आदर्श स्थितियां हैं मौसम के अनुसार नम और उसके बाद शुष्क जलवायु जिसमें भरपूर सूरज की रोशनी शामिल हो। वानस्पतिक जगत में इस वृक्ष को टेरोस्पर्मम एसिरिफोलियम (Pterospermum acerifolium) नाम से पुकारा जाता है। इसका वर्गीकरणटेरस्‍पर-मम(pterosper-mum) दो ग्रीक शब्दों से मिलकर बना है- पेट्रोन (petron)और र्स्‍पमा (sperma)जिनका अर्थ है पंखदार बीज और प्रजाति का नाम असेरिफोलियम (acerifolium)पत्तियों के मेपल (maple)आकार की होने का संकेत देता है। परागित फूलों में एक सख्‍त फल लगता है, जो कि पकने में बहुत समय लेता है, कभी-कभी पूरा एक साल। उसके बाद जब यह फल फटता है तो इसमें से पंख दार बीज की बारिश सी होती है। जिस कारण इनके विस्‍तार की गति अन्‍य तेजी से बढ़ने वाले वृक्षों की अपेक्षा धीमी होती है, इसलिए यह व्यापक रूप से वितरित नहीं होते हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3mnriCe
https://bit.ly/3svQx6w
https://bit.ly/3z6k6y3
https://bit.ly/2UBX8ji
https://bit.ly/2XxxRaX

चित्र संदर्भ
1. कनक चंपा, मूचुकुंडो (Moochukund) का एक चित्रण (wikimedia)
2. कनक चंपा की पत्तियों का एक चित्रण (wikimedia)
3. कनक चंपा के वृक्ष का एक चित्रण (wikimedia)

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