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खाने योग्य पौधों के विभिन्न स्वास्थ्य लाभ और संभावित नैदानिक अनुप्रयोग हैं, इसलिए
फार्मास्युटिकल (Pharmaceutical) और पोषण विज्ञान (Nutritional sciences) ने हाल ही
में खाद्य पौधों के उपयोग की दिशा में तैयार वैज्ञानिक साहित्य में बढ़ोत्तरी देखी है।स्वास्थ्य
पेशेवर अब मानते हैं कि ड्रग थेरेपी और पोषण का सही तालमेल बीमारियों के खिलाफ लड़ाई
में इष्टतम परिणाम प्रदान कर सकता है।पौधों में औषधीय रूप से सक्रिय यौगिकों की
उपस्थिति के कारण उनके रोगनिरोधी लाभों की जांच की जा रही है, ताकि औषधीय उपचार
के रूप में उनका संभावित उपयोग किया जा सके।
प्राचीन ज्ञान और आयुर्वेद के ज्ञान की अधिकता के आधार पर हमारी भारतीय सभ्यता हजारों
वर्षों से प्राकृतिक, मौसमी खाद्य पदार्थों का सेवन करके फली-फूली है।चिकित्सीय खाद्य पदार्थ
ऐसे खाद्य पदार्थ हैं, जिन्हें एक रोग के आहार प्रबंधन के लिए विशेष रूप से तैयार किया
जाता है या ग्रहण किया जाता है। कुछ बीमारियों की विशिष्ट पोषण संबंधी आवश्यकताएं
होती हैं और उन्हें केवल सामान्य आहार से पूरा नहीं किया जा सकता है।दवा के रूप में
भोजन की अवधारणा सहस्राब्दियों से मौजूद है।पारंपरिक संस्कृतियों में भोजन और चिकित्सा
दृढ़ता से आपस में जुड़े हुए थे।कई विशेष खाद्य पदार्थों को बीमारी के इलाज या रोकथाम में
उनके उपयोग के कारण जाना जाता था और इन विशेष खाद्य पदार्थों के ज्ञान को आगे
आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाया भी गया था।
प्राचीन ग्रीस (Greece) और रोम (Rome) में, लगभग 2,000 साल पहले, यह माना जाता था
कि शरीर का इष्टतम कार्य चार मुख्य तरल पदार्थों के बीच संतुलन पर निर्भर करता है।
ऐसा माना जाता था कि इन तरल पदार्थों में स्वतंत्र गुण होते हैं, लेकिन ये एक दूसरे से और
शरीर के समग्र कार्य से भी निकटता से जुड़े होते हैं। ये चार तरल पदार्थ रक्त, पीला
पित्त,काला पित्त और कफ हैं, जिनकी एक अलग भूमिका है।इन सभी को शरीर में संतुलन में
रहना आवश्यक है, यदि एक भी पदार्थ कम या अधिक होता है, तो उससे बीमारी होगी।माना
जाता है कि कई चीजें एक व्यक्ति के भीतर इन पदार्थों के संतुलन को प्रभावित करती हैं।
खाने-पीने के साथ-साथ 'ब्लड लेटिंग' (Blood letting)की प्रक्रिया से इन तरल पदार्थों को
संतुलन में लाया गया।न केवल बीमार होने पर बल्कि "चरित्र के कमजोर" होने पर भी
अलग-अलग खाद्य पदार्थ खाने की सलाह दी गई।उदाहरण के लिए यदि कोई उदास या
क्रोधित है, तो उसके लिए भी विशिष्ट खाद्य पदार्थ खाने की सलाह दी गयी थी,क्यों कि
मनोदशा और स्वभाव को भी इन तरल पदार्थों के संतुलन से प्रभावित माना जाता था।
स्वास्थ्य के बारे में सोचने का यह ग्रीको-रोमन तरीका, जैसा कि अरब (Arab) डॉक्टरों द्वारा
संशोधित किया गया, मध्य युग में यूरोप (Europe) में आयात किया गया था। काली मिर्च,
अदरक और दालचीनी जैसे एशियाई (Asian) मसाले मध्यकालीन यूरोप में बहुत लोकप्रिय थे
क्योंकि ये न केवल भोजन के स्वाद में सुधार करते थे, बल्कि अपने औषधीय गुण के कारण
यूरोपीय आहार को पुनर्संतुलित करने और बेहतर स्वास्थ्य देने में मदद करते थे।पूरे इतिहास
में, कई फलों और सब्जियों और पौधों के अन्य खाद्य भागों का उपयोग उनके कथित
औषधीय गुणों के लिए किया गया है।उदाहरण के लिए, लोगों को बहुत अधिक खीरा और
खरबूजे खाने से बचने के लिए प्रोत्साहित किया गया क्योंकि अत्यधिक पानी वाले खाद्य
पदार्थ होने की वजह से इन्हें द्रव प्रतिधारण को बढ़ाने का कारण माना गया।अंजीर, अनार जैसे
फलों को अक्सर स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद माना गया।पुराने पारंपरिक यूरोपीय आहारों
में (ग्रीस जैसे देशों में),जंगली सागों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। थीस्ल (Thistle), डेंडेलियन
(Dandelion), ऐमारैंथ(Amaranth), स्टिंगिंग नेट्टल(Stinging nettle),मैलो (Mallow) और पर्सलेन
(Purslane) सहित विभिन्न प्रकार के पौधों से युवा पत्तेदार तने और पत्ते एकत्र किए गए।इन्हें
कच्चा या उबालकर खाया जाता था और नींबू के रस और जैतून के तेल के साथ परोसा
जाता था, क्यों कि इन्हें अच्छे स्वास्थ्य और बीमारियों से उबरने के लिए बहुत महत्वपूर्ण
माना जाता था। द्रव प्रतिधारण के इलाज के लिए डंडेलियन और सो थीस्ल (Sow thistle) का
उपयोग किया गया था।स्कर्वी (Scurvy) और एनीमिया (Anemia) के इलाज के लिए विटामिन
सी से भरपूर स्टिंगिंग नेट्टल्स का उपयोग किया जाता था।एशिया (Asia) में ओकिनावान
(Okinawans) लोगों को दुनिया में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले लोगों में से एक
माना जाता है। इसका कारण यह है, कि इन लोगों का भोजन और आहार के बारे में दृढ़
विश्वास और प्रथाएं हैं। उनका मानना है कि कुछ खाद्य पदार्थों में दीर्घायु से जुड़े कई
औषधीय गुण होते हैं। वे मानते हैं, कि 'भोजन आदमी को बनाता है' और वे जो खाना खाते
हैं वह उनके 'जीवन के लिए दवा' है।
अब लोगों का रूझान शाकाहारी भोजन में बढ़ने लगा है, तथा वे उन पदार्थों को वरीयता देते
हैं, जो स्वास्थ्य के लिए औषधी की तरह कार्य करते हैं, इसका एक कारण खाद्य पदार्थों पर
आयुर्वेद का प्रभाव भी है।आयुर्वेद, जिसे 'जीवन का विज्ञान' भी कहा जाता है,चिकित्सा की
एक प्राकृतिक प्रणाली है, जिसकी जड़ें भारत से जुड़ी हुई हैं, तथा यह प्रणाली 3,000 साल से
भी अधिक पुरानी है। इसके अनुसार एक अच्छा स्वास्थ्य तभी प्राप्त किया जा सकता है जब
किसी व्यक्ति की तीन ऊर्जाएंया दोष संतुलन में हों।आयुर्वेद जीवनशैली में बदलाव और
प्राकृतिक उपचारों को बढ़ावा देता है जो शरीर, मन, आत्मा और पर्यावरण के बीच संतुलन
हासिल करने के लिए जड़ी-बूटियों, तेल, मालिश, ध्यान और योग का उपयोग करता है।आयुर्वेद
के चिकित्सक बीमारी को रोकने के लिए अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने पर जोर
देते हैं, तथा इसके लिए वे प्राकृतिक जड़ी-बूटियों के उपयोग पर भी जोर देते है।हमारे अग्रणी
ऋषियों और वेदाचार्यों के गहन व्यापक अध्ययन और अनुभवों ने उन्हें आश्वस्त किया कि
हम जो कुछ भी खाते हैं वह न केवल हमारे भौतिक शरीर बल्कि हमारे मन की स्थिति को
भी प्रभावित करता है। वास्तव में, हमारे खाने की आदतें हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व को प्रभावित
करती हैं। आयुर्वेद इस बात का समर्थन करता है कि हमारा मानव शरीर विज्ञान ब्रह्मांड के
नियमों का प्रतिबिंब है।चूँकि सभी मनुष्य पाँच तत्वों - जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी और आकाश
से बने हैं,इसलिए वास्तव में स्वस्थ रहने के लिए प्रकृति की लय के साथ तालमेल बिठाना
अनिवार्य हो जाता है।आयुर्वेद का मानना है कि उचित भोजन शरीर, मन और आत्मा का
पोषण करता है।भारतीय भोजन, विशेष रूप से मसाले और जड़ी-बूटियाँ सभी आयुर्वेदिक और
पारंपरिक चिकित्सा का हिस्सा हैं। लगभग सभी प्राकृतिक उपचारों में भारतीय मसाले, जड़ी-
बूटियाँ और पौधे शामिल हैं। दक्षिण भारतीय व्यंजनों में आयुर्वेद का प्रभाव स्पष्ट रूप से
देखा जा सकता है।पारंपरिक भारतीय आहार में समग्र स्वास्थ्य और कल्याण के लिए अनाज
जैसे गेहूं का आटा, मक्के का आटा,बाजरा,साबूदाना आदि,दालें और बींस जैसे काबुली चने,
काले चने, राजमा, सोयाबीन, मूंग आदि,मसाले और जड़ी-बूटियाँ जैसे हल्दी,जीरा,मेथी,धनिया
के बीज या पाउडर,सरसों,अजवायन,हींग,दालचीनी,साबुत काली मिर्च,लौंग,काली इलायची,हरी
इलायची आदि,सूखे फल, मेवे और बीज जैसे अखरोट, बादाम, काजू, पिस्ता,मूंगफली,किशमिश,
खजूर आदि को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है।कोरोना महामारी जैसे समय में खाने
योग्य औषधीयपौधों की उपयोगिता और भी अधिक बढ़ गयी है, क्यों कि संक्रमण के प्रभाव
को औषधीय पौधों के सेवन से बहुत कम किया जा सकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3JRgcyQ
https://bit.ly/3zA0HXg
https://bit.ly/3Gh6tPS
https://bit.ly/3FZqs5H
https://bit.ly/3HDf0wW
https://bit.ly/3JP8vJr
चित्र संदर्भ
1. फलदार भोजन को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. पारंपरिक भारतीय मसालों को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. सुंदर सजाये गए व्यंजनों को दर्शाता एक चित्रण (unsplash)
4. दक्षिण भारतीय पारंपरिक व्यंजनों को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
5. बेहतर दिमाग के लिए व्यंजनों को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
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