लखनऊ के सिकंदर बाग में 1857 के बर्बर विद्रोह की अभी भी हैं निशानियां

वास्तुकला I - बाहरी इमारतें
27-10-2021 09:00 PM
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लखनऊ के सिकंदर बाग में 1857 के बर्बर विद्रोह की अभी भी हैं निशानियां

वर्ष 2021 में पूरे देश ने आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाई। आज हमारे देश को ब्रिटिश हुकूमत से मुक्त हुए पूरे 75 वर्ष हो चुके हैं, और इन बीते वर्षों में हमारा देश तेज़ी से आगे बड़ा है, तथा आज दुनिया के अन्य कई देशों के साथ विकास के मार्ग पर अग्रसर है। इस बात में कोई संदेह नहीं है की इस आज़ादी की लड़ाई में देशभक्ति से ओत-प्रोत, हज़ारों-लाखों लोगों ने अपनी अनमोल देह को कुर्बान कर दिया। किंतु दुर्भाग्य से आज देशभर में इन महान देशभक्तों की कुर्बानी को बयां करने वाले कुछ गिने-चुने साक्ष्य ही मौजूद हैं, जो इनके साहस और बलिदान की गाथा को बड़े ही गर्व के साथ दोहराते हैं, और इन दुर्लभ साक्ष्यों में से एक हमारे शहर लखनऊ का सिकंदर बाग़ भी अंग्रेजी हुकूमत की बर्बरता और तत्कालीन भारतीय नागरिकों की दुविधा को बयां करता है। सिकंदर बाग (उर्दू: سِکندر باغ‎), को सिकंदरा बाग के नाम से भी जाना जाता है। यह एक किले की दीवार से घिरा भवन और उद्यान है, जो भारत में उत्तरप्रदेश के लखनऊ, अवध के 150 गज वर्ग, 4.5 एकड़ (1.8 हेक्टेयर) भूमि में फैला हुआ है, जिसमें एक द्वार और कोने के बुर्ज हैं। इसका निर्माण नवाब सआदत अली खान द्वारा लगभग 1800 में अपनी बेगम सिकंदर महल के लिए शाही उद्यान के रूप में करवाया गया, बाद में अवध के अंतिम देशी शासक नवाब वाजिद अली शाह द्वारा 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में इसे सुधारा गया, जिन्होंने इसे अपने ग्रीष्मकालीन विला के रूप में इस्तेमाल किया। आज यह स्थान भारत के राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान का घर है, और इसे शहर के सबसे शानदार उद्यानों में गिना जाता है। इसे लखनऊ के वनस्पति उद्यान के नाम से भी जाना जाता है।
हालांकि बगीचे का मुख्य द्वार हर समय बंद रहता है, फिर भी आगंतुकों के लिए एक छोटा सा साइड गेट खुला रहता है। इसकी वास्तुकला में भारतीय, फारसी, यूरोपीय और चीनी डिजाइन के तत्व मेहराब, पेडिमेंट, छत्रियां, स्तंभ और शिवालय के रूप में शामिल हैं। मुगलों के बीच बड़े सम्मान के बिल्ले के रूप में लोकप्रिय माही मरातिब नामक मछली की आकृति भी दिखाई देती है। सिकंदरबाग प्लास्टर मोल्डिंग से सजाए गए लखौरी ईंटों के एक ऊंचे घेरे के अंदर एक ग्रीष्मकालीन घर, एक मस्जिद और एक बगीचा था, बगीचे के केंद्र में एक छोटा लकड़ी का मंडप था जहाँ पहले कई सांस्कृतिक गतिविधियाँ जैसे रास-लीला, कथक नृत्य, संगीत और काव्य 'महफिल' और नाटक आयोजित किए जाते थे। हालांकि इस बगीचे के निर्माण करने का उद्द्येश्य विश्राम करने, संगीत और नृत्य संबंधी कार्यक्रमों को आयोजित के लिए किया गया था किंतु उस समय किसी ने भी यह नहीं सोचा होगा की एक दिन यह स्थान अंग्रेजी हुकूमत की बर्बरता का इतिहास भी लिखेगा।
सिकंदरबाग का विद्रोह!
16 नवंबर 1857 का दिन इस बाग़ को इतिहास के पन्नों में अमर कर देता है। दरसल आज़ादी से पूर्व 1857 के समय इस स्थान पर भारतीय सिपाहियों ने शरण ली हुई थी, और 16 नवंबर के दिन दीवार फांदकर अंग्रेजी सिपाही बाग़ में दाखिल हो गए थे। जिसके बाद इस बगीचे में हिंदुस्तान की अवध की सेना का अंग्रेज़ों से भयावह युद्ध हुआ, इस युद्ध में अवध के सिपाही इतनी बहादुरी से लड़े की अंग्रेज़ों को उन्हें एक इंच पीछे धकेलने में पसीने छूट गए, परंतु किसी एक सिपाही ने भी पीठ नहीं दिखाई। ऐसा माना जाता है की तकरीबन 2200 लोग इस स्थान पर शहीद हो गए, और यहाँ लाशों के ढेर लग गए। इस भयंकर विद्रोह से महल और बगीचे को काफी नुकसान पंहुचा। यहाँ का प्रसिद्ध इमामबाड़ा इस विद्रोह की भेंट चढ़ गया। किंतु सौभाग्य से यहां की मस्जिद सुरक्षित रही जो आज भी वहां देखी जा सकती है। यहां पर बर्बरता के निशान आज भी दीवारों पर देखे जा सकते हैं। इस नर संहार में एक साहसी महिला सेनानी उदा देवी के शौर्य की गाथा भी खूब प्रचलित है। माना जाता है की अंतिम समय में इन्होने 32 अंग्रेज़ों को मार दिया था, उनकी एक प्रतिमा आज भी बगीचे के परिसर में देखी जा सकती है।
इस युद्ध में मारे गए अंग्रेज़ों को परिसर के निकट में ही दफना दिया गया था, किन्तु हिन्दुस्तानी क्रांतिवीरों के शवों को खुले में सड़ने के लिए छोड़ दिया गया। जिसका चित्र आज भी किसी को भी विचलित कर सकता है। बगीचे की पुरानी दीवारों पर तोप के गोले के निशान आज भी उस हिंसक दिन की घटनाओं के साक्षी हैं। आज, पार्क के एक तरफ राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के कार्यालय के रूप में उपयोग किया जाता है, और दूसरी तरफ एएसआई (ASI, Archaeological Survey of India) के तहत संरक्षित है, जहां कोई अभी भी युद्ध के बाद बचे हुए द्वारों में से एक को देख सकता है। 1857 के विद्रोह के दौरान भारी बमबारी के बीच बाग़ की कई अनमोल धरोहरें ढह गई हालांकि यह प्रवेश द्वार अभी भी खूबसूरती से संरक्षित है, और लखनवी डिजाइन का एक शानदार उदाहरण प्रस्तुत करता है। सिकंदर बाग के बारे में अतिरिक्त जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें साथ ही आप लखनऊ के शानदार मूसा बाग़ की भी जानकारी यहाँ क्लिक करके प्राप्त कर सकते हैं

संदर्भ
https://bit.ly/3bbV3z7
https://bit.ly/3mhziVa
https://bit.ly/3nttw1Y

चित्र संदर्भ

1. "राष्ट्रीय सेना संग्रहालय, लंदन में रखे गए द 93वें हाइलैंडर्स स्टॉर्मिंग द सिकंदर बाग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. सिकंदर बाग के मुख्य गेट का एक चित्रण (wikimedia)
3. भीतर से सिकंदर बाग लखनऊ के खंडहर का एक चित्रण (youtube)
4. 93वीं हाइलैण्डर और 4थी पंजाब रेजीमेंट द्वारा 2000+ विद्रोहियों को मारे जाने के बाद सिकन्दर बाग़ का भीतरी भाग फेलिस बीटो द्वारा ली गयी अल्बुमेन रजत छवि का एक चित्रण (wikimedia)
5. सिकंदर बाग के प्रवेश द्वार का एक चित्रण (wikimedia)