मानव का कल्याण और प्रगति मुख्य रूप से उन पारिस्थितिक तंत्रों पर निर्भर है, जो उसे
भोजन, स्वच्छ पानी, लकड़ी-ईंधन, फाइबर और दवाओं सहित विभिन्न वस्तुएं और सेवाएं प्रदान
करते हैं। किंतु पारिस्थितिक तंत्रों के अत्यधिक उपयोग के कारण इसकी संरचना और उसकी
कार्यिकी में अनेकों परिवर्तन हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप पारिस्थितिक तंत्र के मूल भौतिक
गुणों में संशोधन हुआ है, तथा मूल पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करने वाली जटिल
अंतःक्रियाओं में विघटन उत्पन्न हो गया है।प्राकृतिक पूंजी के अत्यधिक उपयोग का बुरा असर
विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों जैसे जल संसाधन,वन संसाधन, खनन योग्य संसाधन
आदि पर पड़ता है। उदाहरण के लिए भूजल संसाधनों के निरंतर दोहन से जल स्तर में निरंतर
गिरावट आ रही है। वनों के अत्यधिक दोहन से पिछले कुछ वर्षों में, लगभग सभी राज्यों में वन
स्टॉक की वृद्धि दर 10% से भी अधिक कम हो गई है।शहरी आबादी की जरूरतों को पूरा करने
के लिए कृषि भूमि का रूपांतरण उत्पादक क्षमता को प्रभावित कर रहा है।इसी प्रकार खनन की
बात करें तो अंधाधुंध खनन भी पर्यावरण के लिए अत्यधिक घातक सिद्ध हो रहा है, जो प्रत्यक्ष
और अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण को प्रभावित करता है।
रेत खनन एक ऐसी प्रथा है जो भारत में एक पर्यावरणीय मुद्दा बनता जा रहा है।पर्यावरणविदों
ने महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश,आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु,और भारत के गोवा राज्यों में अवैध रेत खनन
के बारे में जन जागरूकता बढ़ाई है।खनन से अनेकों जीवों के आवासों को नुकसान होता है,
जिससे अनेकों प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं।खनन के कारण उड़ने वाली रेत वायु को प्रदूषित
करती है।रेत के कण हमारे शरीर के विभिन्न भागों में पहुंचकर विभिन्न बीमारियों का कारण
बनते हैं।खनन के कारण पहाड़ कटते जा रहे हैं, भूमि कटाव हो रहा है तथा भूमि की उपजाऊ
क्षमता में भी कमी आ रही है। इसके अलावा यह जल प्रदूषण को भी बढ़ा रहा है।
उपसतह भूवैज्ञानिक विवरण से पता चलता है कि रामपुर में जमीन से तक़रीबन 422 मीटर से
538 मीटर की गहराई तक विन्ध्य बेडरॉक मिलता है। इस भौगोलिक स्थिति की वजह से
जौनपुर में ज्यादा खनिज़ नहीं मिलता है।यहां सिर्फ कंकड़ जो कि चूने के टुकड़ों से और रेह जो
ऊसर भूमि में मिलता है, उपलब्ध हैं। चूने के पत्थरों को पिघलाकर मिला चूना,रेत और रेह तथा
चिकनी मिट्टी से बने ईंटों को भवन-निर्माण इत्यादि कामों के लिए इस्तेमाल किया जाता
है।बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत में नदियों से रेत का अवैध
खनन अत्यधिक होने लगा है। उत्तर प्रदेश में अवैध खनन बहुत गंभीर समस्या बन चुका
है।अन्य राज्यों में भी खनन की यह समस्या तीव्र गति से बढ़ते जा रही है। बिहार में अवैध
खनन और प्रदूषण के चलते गंगा नदी पटना से दूर होती जा रही है।कुछ वर्षों से नदी शहर से
कम से कम पांच से छह किलोमीटर दूर चली गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि नदी में यह
परिवर्तन भूगर्भीय प्रक्रियाओं के साथ-साथ मानव गतिविधिओं से उत्पन्न हुआ है।रेत खनन से
नदियों की पारिस्थितिकी प्रणालियों के साथ-साथ तटीय क्षरण, नदी तलहटियों की भू-आकृति
संरचनाओं में बदलाव, मछलियों और जलजीवों के आवागमन व प्रजनन क्षेत्रों में अवरोध उत्पन्न
होता जा रहा है। नदियों की वनस्पतियां भी रेत खनन से प्रभावित हो रही हैं। रेत खनन से
अतिरिक्त वाहन यातायात उत्पन्न होता है, जो पर्यावरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता
है और स्थानीय वातावरण को नुकसान पहुंचाता है।इन सभी नुकसानों से बचने के लिए प्राकृतिक
पूंजी की निगरानी और उसका मूल्यांकन महत्वपूर्ण है। यह किसी भी देश के सतत विकास के
निर्धारकों में से एक होती है। यदि प्राकृतिक पूंजी की निगरानी और उसका मूल्यांकन उचित रूप
से नहीं किया जाता है, तो ऐसी अनेकों जानकारी का अभाव होता है, जिनके द्वारा प्राकृतिक
संपदा को सुरक्षा प्रदान की जा सकती है।
भारत के खनन क्षेत्र में सबसे चुनौतीपूर्ण मुद्दों में से एक भारत के प्राकृतिक संसाधनों के
आंकलन की कमी है। कई क्षेत्र अभी भी अनछुए हैं और इन क्षेत्रों में खनिज संसाधनों का
आंकलन किया जाना बाकी है। ज्ञात क्षेत्रों में खनिजों का वितरण असमान है और यह वितरण
एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में काफी भिन्न होता है। खनन क्षेत्र के उदारीकरण के लिए पहली राष्ट्रीय
खनिज नीति 1993 में सरकार द्वारा प्रतिपादित की गई थी। राष्ट्रीय खनिज नीति, 1993 का
उद्देश्य निजी निवेश के प्रवाह को प्रोत्साहित करना और अन्वेषण और खनन में अत्याधुनिक
प्रौद्योगिकी की शुरूआत करना है। इन संसाधनों के ह्रास से देश के आर्थिक, सामाजिक,
राजनीतिक और भौतिक कल्याण को खतरा है और इसके परिणामस्वरूप गरीबी और खाद्य
असुरक्षा का स्तर बढ़ जाता है।पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न घटक और संसाधन आपस में
घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं और इसलिए उन्हें एक एकीकृत और समग्र तरीके से मूल्यांकित और
प्रबंधित करना अत्यधिक आवश्यक है।खनन को अधिक सतत बनाने के लिए पारंपरिक खनन
तकनीकों का उपयोग करना चाहिए,खनन अपशिष्ट का पुन: उपयोग करना चाहिए, खनन के
लिए पर्यावरण के अनुकूल उपकरणों का उपयोग करना चाहिए तथा अवैध खनन पर पाबंदी होनी
चाहिए।
संदर्भ:
https://bit.ly/3khh0BN
https://bit.ly/3H1kpyz
https://bit.ly/3ws9MzJ
https://bit.ly/30axzbH
https://bit.ly/3BMUx5y
https://bit.ly/3GWuzQX
https://bit.ly/3o7NAqN
चित्र संदर्भ
1. रेत खनन कार्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2 लकड़ी से लदे ट्रक को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. रेत निर्माण संयंत्र को दर्शाता एक चित्रण (thethirdpole)
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