सीमेंट (Cement) और कंक्रीट (Concrete) के निर्माण कार्यों में रेत का उपयोग अनिवार्य रूप से होता ही है। आबादी बढ़ने के साथ-साथ आवास हों, स्कूल हों, अस्पताल या सड़क हों इन सभी के निर्माण में रेत, सीमेंट, कंक्रीट आदि की मांग भी तेज़ी से बढ़ी है। और इसमें नदियों से निकलने वाली रेत की मांग प्राथमिकता में है। इसलिए भारत में नदियों से रेत का अवैध खनन अत्यधिक होने लगा है, खासकर के गंगा-यमुना घाटी क्षेत्र में। लखनऊ के पास उन्नाव में भी गंगा में बड़े पैमाने पर रेत का अवैध खनन हो रहा है। जब ये खबर शासन तक पहुंची तो खनन निदेशालय के निर्देश पर कानपुर के खनन निरीक्षक ने दल के साथ बंदीपुरवा गांव के पास हुए खनन स्थल का निरीक्षण किया। इस दौरान उन्हें झाड़ी में छिपी हुई तीन पोकलैंड मशीनें (Pokland Machine) मिली जिन्हें उन्होनें जब्त कर लिया। इसके बाद उन्होंने गंगा में कितनी रेत का खनन किया गया है इसकी जांच रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को दी।
यूपी सरकार ने भी यह स्वीकार किया कि राज्य में अवैध खनन बहुत गंभीर समस्या है। अन्य राज्य भी इस समस्या से बचे नहीं हैं। बिहार में तो अवैध खनन और प्रदूषण के चलते गंगा नदी पटना से दूर होती जा रही है। पिछले 20 वर्षों में पटना से गंगा नदी का प्रवाह भी कम होता जा रहा है। कुछ वर्षों से नदी शहर से कम से कम पांच से छह किलोमीटर दूर चली गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि नदी में यह परिवर्तन भूगर्भीय प्रक्रियाओं के साथ-साथ मानव गतिविधिओं से उत्पन्न हुआ है। यहां पर निर्मित ईंट भट्टों द्वारा रेत के खनन और प्रदूषण ने पटना के पास सोन और घाघरा जैसी गंगा की सहायक नदियों के प्रवाह को प्रभावित किया है। साथ ही साथ इनके मुख पर अत्यधिक खनन से प्रवाह में बदलाव भी हो रहा है।
पिछले कुछ दशकों में पटना में खनन में लगातार वृद्धि हुई है। इस कारण गंगा नदी पटना जिले से दूर होती जा रही है। 2014 में प्रकाशित शोध के अनुसार पटना जिले से प्रति वर्ष औसतन 0.14 किलोमीटर की दूरी तक गंगा नदी स्थानांरित होती जा रही है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने बिहार सरकार को निर्देश दिया है कि कोईलवर एवं पटना में सोन और गंगा नदियों में हो रहे अवैध रेत खनन पर लगाम लगाने के लिए एक दल (खनन एवं खनिज विभाग के एक अधिकारी, पटना के जिलाधिकारी एवं एसएसपी की सदस्यता वाली टीम) का गठन किया जाये ताकि गंगा नदी पर रेत खनन उल्लंघनों पर गौर कर कानूनी कार्यवाही की जा सके। इसके अलावा एनजीटी ने राज्य सरकार को यह निर्देश भी दिये कि वह पर्यावरण को होने वाले नुकसान का आकलन करने और उसे समय रहते ठीक करने के लिए एक तंत्र विकसित करे।
रेत खनन से नदियों की पारिस्थितिकी प्रणालियों के साथ-साथ तटीय क्षरण, नदी तलहटियों की भू-आकृति संरचनाओं में बदलाव, मछलियों और जलजीवों के आवागमन व प्रजनन क्षेत्रों में अवरोध उत्पन्न होता जा रहा है। नदियों की वनस्पतियां भी रेत खनन से प्रभावित हो रही हैं। तटीय क्षेत्रों में रेत के रिक्तीकरण से नदियों का गहरीकरण होता जा रहा है और नदी के मुहाने का विस्तार होता जा रहा है। इस कारण समुद्र से खारा-पानी नदियों में भी मिल सकता है। रेत खनन से अतिरिक्त वाहन यातायात उत्पन्न होता है, जो पर्यावरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है और स्थानीय वातावरण को नुकसान पहुंचाता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का अनुमान है कि हर साल 40 बिलियन टन रेत का खनन किया जाता है। केरल में आयी बाढ़ आंशिक रूप रेत खनन के कारण ही हुई थी।
यदि खनन समुद्र तटों से दूर किया जाये तो सम्भवतः रेत खनन के नुकसान से बचा जा सकता है। इसके अतिरिक्त कंक्रीट के उत्पादन के लिये ध्वस्त इमारतों के मलबे का उपयोग करने, नदी के तट और तल के बजाय बाढ़ के मैदानों पर सीमित खनन करने आदि के द्वारा रेत खनन से हो रहे नुकसानों से बचा जा सकता है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2FxEcr6
2. https://scroll.in/article/923434/pollution-and-sand-mining-have-caused-the-ganga-to-shift-away-from-patna
3. https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/kanpur/illegal-sand-mining-in-ganga
4. https://bit.ly/2Xzn2n3
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