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होमाई व्यारावाला और सुनील जाना ने, अपनी फ़ोटोग्राफ़ी से किया है, भारत का चित्रण

मेरठ

 06-09-2024 09:21 AM
द्रिश्य 1 लेंस/तस्वीर उतारना
भले ही, होमाई व्यारावाला और सुनील जाना, दोनों का मेरठ से कोई सीधा संबंध नहीं था; फिर भी, इन महान फ़ोटोग्राफ़रों को, हमारे शहर और पूरे भारत में आज भी प्यार और सम्मान दिया जाता है। होमाई व्यारावाला, जिन्हें आमतौर पर, ‘डालडा 13’ के उपनाम से जाना जाता है, भारत की पहली महिला फ़ोटो पत्रकार थीं। उन्होंने, 1938 में, बॉम्बे क्रॉनिकल के लिए काम करते हुए, शहर के दैनिक जीवन की तस्वीरें खींचकर अपना पेशा शुरू किया। व्यारावाला ने, 1940 से 1970 तक, ब्रिटिश सूचना सेवाओं के लिए काम किया। दूसरी ओर, सुनील जाना एक भारतीय-अमेरिकी फ़ोटो पत्रकार और वृत्तचित्र फ़ोटोग्राफ़र थे। उन्होंने, 1940 के दशक में, भारत में काम किया था।
जाना ने, भारत के स्वतंत्रता आंदोलन, किसान और श्रमिक आंदोलनों, अकालों और दंगों, ग्रामीण और आदिवासी जीवन तथा शहरीकरण और औद्योगीकरण के वर्षों का, दस्तावेज़ीकरण किया। तो आइए, आज इन फ़ोटोग्राफ़रों के बारे में विस्तार से जानते हैं। हम उनके जीवन, पेशे, उनके कार्यों के महत्व और उनकी सबसे महत्वपूर्ण तस्वीरों के बारे में चर्चा करेंगे। हम होमाई व्यारावाला की प्रदर्शनियों और उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किए जाने के बारे में भी बात करेंगे। हम इस बात पर भी प्रकाश डालेंगे कि, सुनील जाना ने आज़ादी के बाद, बदलते भारत को अपने लेंस से कैसे कैद किया। उनकी फ़ोटोग्राफ़ी तकनीक और शैली पर भी हम चर्चा करेंगे।
सुश्री व्यारावाला का जन्म, 9 दिसंबर 1913 को, गुजरात राज्य में हुआ था। उनका परिवार, भारत के छोटे, लेकिन, प्रभावशाली पारसी समुदाय से था। जब उनकी मुलाकात, एक फ़्रीलैंस फ़ोटोग्राफ़र – मानेकशॉ व्यारावाला से हुई, तब वह अपने कॉलेज में थीं। बाद में, होमाई जी ने, उनसे शादी कर ली। मानेकशॉ जी ने ही, उन्हें फ़ोटोग्राफ़ी से परिचित कराया। ‘द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया (The Illustrated Weekly of India)’ पत्रिका में, मुंबई के जीवन की उनकी तस्वीरें प्रकाशित होने के बाद, उन्होंने अधिक ध्यान आकर्षित करना शुरू किया।
फिर बाद में, ब्रिटिश सूचना सेवा के लिए, फ़ोटोग्राफ़र के रूप में, काम पाने के बाद, वर्ष 1942 में, व्यारावाला दंपति दिल्ली चले आए। हालांकि, उन्होंने अपनी सबसे प्रतिष्ठित छवियां, भारत के स्वतंत्र होने के बाद लीं। तब, उनकी कुछ उल्लेखनीय कृतियां – भारत से अंग्रेज़ों के प्रस्थान से लेकर, महात्मा गांधी और पूर्व प्रधान मंत्री – जवाहरलाल नेहरू के अंतिम संस्कार तक व्याप्त थीं। होमाई व्यारवाला ने, अपने कैमरा लेंस से, भारत की स्वतंत्रता की खोज के दौरान, महत्वपूर्ण राजनीतिक हस्तियों और घटनाओं को कैद किया। इससे, उन्हें तेज़ी से, राष्ट्रीय पहचान मिली। उनके फ़ोटो संग्रह में, जवाहरलाल नेहरू जी के स्पष्ट स्नैपशॉट से लेकर, महात्मा गांधी के मार्मिक चित्र भी शामिल थे । साथ ही, उन्होंने भारत की पहली महिला प्रधान मंत्री – श्रीमती इंदिरा गांधी जी की तस्वीरें भी रिकॉर्ड की थीं।
राजनीतिक हस्तियों की व्यापक तस्वीरें लेने के अलावा, उनके प्रदर्शनों की सूची में, अंतरंग व क्लोज़-अप चित्र(Close-up portraits) शामिल थीं। इसमें, महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय(Queen Elizabeth II) और जॉन एफ़ कैनेडी(John F. Kennedy) जैसी, स्वतंत्र भारत का दौरा करने वाली उल्लेखनीय हस्तियां भी, शामिल थीं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने, चीन के पूर्व प्रधान मंत्री – झोउ एनलाई(Zhou Enlai) और वियतनाम(Vietnam) के नेता – हो ची मिन्ह (Ho Chi Minh) जैसे लोगों की तस्वीरें भी लीं।
होमाई व्यारावाला की उल्लेखनीय फ़ोटोग्राफ़िक विरासत को, दिल्ली में स्थित ‘द अल्काज़ी फ़ाउंडेशन फ़ॉर द आर्ट्स’ में एक स्थायी घर मिला है। 2010 में, इस फ़ाउंडेशन और ‘राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, मुंबई, द्वारा संयुक्त रूप से, एक पूर्वव्यापी प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था। साथ ही, उनकी असाधारण उपलब्धियों को तब पुनः सम्मानित किया गया, जब उन्हें, 2011 में, भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार – पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
आइए, अब सुनील जाना के बारे में जानते हैं। सुनील जाना का जन्म, 1918 में असम के डिब्रूगढ़ में, कोलकाता उच्च न्यायालय के एक प्रमुख वकील, शरत चंद्र के घर हुआ था। एक युवा लड़के के रूप में, उन्होंने फ़ोटोग्राफ़ी में रुचि विकसित की। हालांकि, उन्हें इस दिशा में, कभी औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिला। लेकिन, वे पेशेवर फ़ोटोग्राफ़रों के साथ, काम करके यह कौशल सीखने में सक्षम थे ।
सुनील जाना ने , ब्रिटिश उपनिवेशवाद के घटते दशकों के साथ-साथ, स्वतंत्रता के बाद के परिवर्तनों के दौरान, भारत का दस्तावेज़ीकरण किया। उन्हें, बंगाल के अकाल, उभरते भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन, पूर्व प्रधान मंत्री – जवाहरलाल नेहरू के अधीन औद्योगीकरण एवं आदिवासी समुदायों पर उनके अध्ययन की तस्वीरों के लिए जाना जाता है।
सुनील जाना की 1943 के बंगाल अकाल की छवियों ने, दुनिया को उस मानव निर्मित तबाही के बारे में जानकारी दी, जिसे, भारत के ब्रिटिश शासकों ने छिपाने की बहुत कोशिश की थी। भोजन की प्रतीक्षा कर रहे दुर्बल लोगों की कतारें, कंकालों के समूह, मानव हड्डियों को कुतर रहे भूखे कुत्ते, आदि, भयावह चित्रों को पोस्टकार्ड में बनाया गया, और धन जुटाने के लिए, दुनिया भर में भेजा गया।
कोलकाता की ‘एक्सपेरिमेंटर गैलरी(Experimenter Gallery)’ में, कुछ काले और सफ़ेद चित्र, भारत के पुनर्निर्माण, एक आधुनिक औद्योगिक राज्य के निर्माण और वास्तुकला को दर्शाते हैं। ये इसकी बुनियादी आत्मनिर्भरता की सच्चाई में सुरक्षित हैं, क्योंकि, यह आधुनिक भारत के निर्माण में, सामूहिक ऊर्जा के बुनियादी सिद्धांतों के बारे में, बात करते हैं ।
जाना जी के फ़ोटोग्राफ़ी शैली के संदर्भ में, उनके कार्य का अधिकांश भाग, ‘हीरोइक लेफ़्ट मोड (Heroic left mode)’ में था। अर्थात, वे ऊपर की ओर देखते हुए, निचले कोण से, शूट करते थे, जो फ़ोटो के विषय को एक पौराणिक आयाम देता था। जब उनसे पूछा गया कि, वे शैलीगत उपकरण के रूप में इसके बारे में कितने जागरूक थे; तो जाना ने कहा कि, ट्विन लेंस रोलीफ़्लेक्स कैमरा(Twin lens Rolleiflex camera) ने ही, इस शैली को निर्धारित किया था। लेकिन, उन्होंने आइज़ेंस्टीन(Eisenstein), पुडोवकिन(Pudovkin) एवं जर्मन फ़िल्म निर्माताओं की फ़िल्में भी देखी थीं, और कहा था कि, उस समय भी यह शैली प्रसिद्ध थी ।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4mrkz6x6
https://tinyurl.com/5d99fdcf
https://tinyurl.com/2vyzzfb9
https://tinyurl.com/yc75t6mv


चित्र संदर्भ
1. होमाई व्यारावाला द्वारा 1953 में खींची गई, इंडिया गेट पर गणतंत्र दिवस परेड की तस्वीर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. होमाई व्यारावाला जी की तस्वीर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. होमाई व्यारावाला द्वारा नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में, एक सार्वजनिक समारोह के दौरान, शान्ति के रूप में कबूतर उड़ाते हुए नेहरू जी की खींची गई तस्वीर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. सुनील जाना जी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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