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हम सभी जानते हैं कि "महाभारत में अर्जुन के पुत्र “अभिमन्यु” ने चक्रव्यूह को तोड़ने की कला
अपनी माँ के गर्भ में ही सीख ली थी।" अभिमन्यु तब माता सुभद्रा के गर्भ में ही थे, जब अर्जुन अपनी
पत्नी सुभद्रा को इस कला के बारे में बता रहे थे। यह एक घटना यह दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि
इंसानों की इंद्रियां हमारी सीखने की प्रक्रिया में कितनी बड़ी भूमिका निभा सकती है! सीखने और
शिक्षा ग्रहण करने के संदर्भ में इंद्रियां बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। बहुसंवेदी शिक्षण
इसका जीवंत उदाहरण है।
हमारी पाँच प्रमुख इन्द्रियाँ, स्पर्श, दृष्टि, श्रवण, गंध और स्वादसे जुडी होती हैं। जब हम अपनी इन पांच इन्द्रियों में से किसी दो या दो से अधिक इन्द्रियों में जानकारी ग्रहण करके सीखते हैं, तब वह
बहुसंवेदी शिक्षण (Multisensory Learning) कहलाती है। यह एक शिक्षण दृष्टिकोण है,
जिसे आधुनिक समय में व्यापक रूप से अपनाया जा रहा है। इसे एडीएचडी (ADHD),
डिस्लेक्सिया (Dyslexia), या अन्य सीखने की अक्षमताओं वाले लोगों के लिए वरदान माना जाता है।
यह विधि न केवल पाँच इंद्रियों से बाध्य बच्चों को सीखने के लिए रुचिकर और सुगामी मार्ग प्रदान करती है, बल्कि शिक्षण में
समावेशिता को भी बढ़ावा देती है, क्योंकि इसके तहत सीखने की प्रक्रिया केवल सुनने, लिखने और
पढ़ने जैसे पारंपरिक तरीकों पर निर्भर नहीं करती है।
लेख में आगे विभिन्न प्रकार की संवेदी शिक्षाएं दी गई हैं जिन्हें शिक्षण में एकीकृत किया जा
सकता है:
- दृश्य: अवलोकन और कल्पना करके सीखना।
- श्रवण: सुनने और ध्वनियों को समझने के माध्यम से सीखना।
- किनेस्थेटिक (Kinesthetic): शारीरिक गतिविधि के माध्यम से सीखना।
- स्पर्शनीय: स्पर्श की भावना का उपयोग करके सीखना।
- घ्राण और स्वादात्मक: गंध और स्वाद की इंद्रियों के माध्यम से सीखना।
शोध से पता चलता है कि एक बहुसंवेदी दृष्टिकोण, (जहां छात्र सुनकर, देखकर, छूकर और
गतिविधियां करके सीखते हैं।), में मस्तिष्क का अधिक उपयोग होता है, और बेहतर ढंग से सीखने
में मदद मिलती है। यह दृष्टिकोण छात्रों को जानकारी को बेहतर ढंग से समझने और इन्हें आपस में
जोड़ने में मदद करता है। यह समझने के कौशल में भी सुधार करता है और प्रेरणा बढ़ाता है। बहुसंवेदी दृष्टिकोण को विकसित करने की आवश्यक तकनीकों के तहत कक्षा में फ़ोटो, आरेख
और मानचित्र जैसे दृश्य और संगीत या रिकॉर्डिंग (Recording) जैसे ऑडियो संसाधन (Audio
Processing) होने चाहिए। ये गतिविधियां छात्रों को न केवल पढ़ने में मदद करती हैं, बल्कि जो कुछ
वे सीखते हैं उसे अधिक सार्थक तरीके से अनुभवों के रूप में संग्रहित करने में भी मदद करती हैं।
भारतीय संस्कृति में हमारे अनुभवों के संग्रह हेतु "तत्त्व" नामक एक विशेष अवधारणा प्रचलित है।
विभिन्न भारतीय दार्शनिक विद्यालयों के अनुसार, तत्त्व, वास्तविकता के निर्माण खंड या आयाम होते
हैं, जो हमारे मानवीय अनुभव को आकार देते हैं। कुछ परंपराँओं में इन्हें “दैवीय गुणों” के रूप में
देखा जाता है। 'तत्त्व' का शाब्दिक अर्थ, वास्तविक स्थिति, ययार्थता, वास्तविकता, असलियत होता
है। 'जगत् का मूल कारण' भी तत्त्व कहलाता है। तत्वों की संख्या दार्शनिक स्कूलों के बीच भिन्न-भिन्न होती है।
उदाहरण के लिए, सांख्य स्कूल में 24 तत्त्वों की पहचान की गई है, जबकि शैववाद में यह संख्या 36
तक विस्तारित होती है। बहुसंवेदी दृष्टिकोण का उपयोग करके हमारा लक्ष्य सबसे पहले हमारे मन को नियंत्रित करना होना
चाहिए। भगवद-गीता में भी मन पर काबू पाने के सन्दर्भ में कई तथ्य इंगित किये गयेहैं। हालांकि आज के
संदर्भ में इस शब्दावली का ग़लत मतलब निकाला जा सकता है। आधुनिक समय में 'माइंड कंट्रोल
(Mind Control)' शब्द को ब्रेनवाशिंग (Brainwashing) जैसे नकारात्मक अर्थों के साथ जोड़ा जाने
लगा है - जिसका अर्थ है किसी और के मन पर नियंत्रण करना । हालांकि वास्तव में यह एक ग़लतफ़हमी है, जो इस व्यापक धारणा से उत्पन्न होती है कि
"हमारा मन ही हम" हैं।
हालाँकि, भगवद-गीता इस संदर्भ में एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। इसके अनुसार हमारा
मन एक साधन मात्र है। हम भौतिक शरीर में रहने वाले आध्यात्मिक प्राणी हैं, और हमारा मन इन
दोनों के बीच एक सेतु का काम करता है। भगवद-गीता कहती है कि “हमारी बुद्धि घोड़ों को
नियंत्रित करने वाली एक लगाम की तरह है। यहाँ पर घोड़े हमारी शारीरिक इंद्रियों को संदर्भित
करती हैं। बुद्धि वह चालक है जो घोड़ों (इंद्रियों) को नियंत्रित करने के लिए लगाम का उपयोग
करती है। एक बार अपने मन को नियंत्रित कर लेने के बाद हम वास्तविक स्वतंत्रता का अनुभव करते
हैं। ध्यान और आध्यात्मिक अभ्यास हमें आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध निर्णय लेने में मदद करते हैं।
इसलिए, मन पर नियंत्रण पाने से ही सच्ची मुक्ति मिल सकती है। यह नियंत्रण हमें आवेग के बजाय,
ज्ञान द्वारा निर्देशित होने की अनुमति देता है। आवेग हमें तत्काल संतुष्टि पाने के लिए प्रेरित करता
है, जबकि ज्ञान हमें उन कार्यों की ओर निर्देशित करता है, जो हमें दीर्घकालिक लाभ देते हैं।
इसलिए, ध्यान और आध्यात्मिक अभ्यास का मूल उद्देश्य ही आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध निर्णय लेने
के लिए सशक्त बनाना है। इस प्रक्रिया में, मन इन निर्णयों को क्रियान्वित करने में एक सूत्रधार बन
जाता है। जो लोग इंटरनेट के आदी होते हैं, उनके लिये भी इस लत को सुधारने के संदर्भ में माइंडफुलनेस
प्रशिक्षण (Mindfulness Training) बेहद लाभकारी हो सकता है। यह अभ्यास भावनात्मक
विनियमन को बढ़ाते हुए लालसा, आवेग और मानसिक और शारीरिक तनाव प्रतिक्रियाओं को कम
करने में मदद करता है। इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि माइंडफुलनेस प्रशिक्षण कई
गंभीर व्यसनों के इलाज में प्रभावी रहा है, जिसमें इंटरनेट और स्मार्टफोन (Internet And
Smartphone) से जुड़े अपेक्षाकृत नए व्यसनों की लत को नियंत्रित करना भी शामिल हैं।
संदर्भ
http://tinyurl.com/mpt6b569
http://tinyurl.com/5n8hrt25
http://tinyurl.com/yc45wu42
http://tinyurl.com/2th6z4tk
चित्र संदर्भ
1. बहुसंवेदी शिक्षण को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
2. 5 इंद्रियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. समावेशी शिक्षा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. 5 इंद्री रूपी घोड़ों को दर्शाता एक चित्रण (flick)
5. ध्यान मुद्रा को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
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