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क्रिसमस एक ऐसा त्यौहार है,जो सीमाओं और मान्यताओं से परे है, और लाखों लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है। क्रिसमस एक वैश्विक त्यौहार है जो यीशु मसीह (Jesus Christ) के जन्म का प्रतीक है। वैसे तो क्रिसमस का त्यौहार मूल रूप से ईसाई धर्म से जुड़ा हुआ है, लेकिन इसके बावजूद क्रिसमस का त्यौहार धार्मिक सीमाओं से परे है। इस लेख में, हम क्रिसमस के त्यौहार, इसकी ऐतिहासिक जड़ें, जीवंत उत्सव और भारत में इसके महत्व के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
क्रिसमस का इतिहास प्राचीन परंपराओं, धार्मिक महत्व और सांस्कृतिक प्रभावों के धागों से बुनी हुई एक चित्र यवनिका है। वास्तव में, क्रिसमस के त्यौहार के जिस रूप को हम आज देखते हैं वह सदियों में विकसित हुआ है। भारत में क्रिसमस के त्यौहार का इतिहास सांस्कृतिक आदान-प्रदान, उपनिवेशवाद और भक्ति / विश्वास की स्थायी शक्ति की कहानी है। भारत में इस त्यौहार की शुरुआत पुर्तगालियों के आगमन के साथ मानी जा सकती है, जिन्होंने 16वीं शताब्दी में भारत के कुछ हिस्सों में ईसाई धर्म की शुरुआत की थी। जिसके बाद हमारे देश में ईसाई समुदायों का विकास होता गया, और भारत की विविध संस्कृतियों और परंपराओं के साथ मेल खाते हुए, क्रिसमस समारोह चरम हर्षोल्लास एवं उत्साह के साथ अधिकांशतः सभी समुदायों द्वारा मनाया जाने लगा।
वर्तमान में, भारत में 28 मिलियन से अधिक ईसाई धर्म से जुड़े लोग रहते हैं, जिनमें से अधिकांश आबादी केरल, गोवा और उत्तर पूर्वी राज्यों में रहती है। भारत में गोवा में, विशिष्ट रूप से, क्रिसमस का त्यौहार विशिष्ट उत्सवों और समारोहों के लिए जाना जाता है। अपनी पुर्तगाली विरासत के साथ, गोवा पश्चिमी और भारतीय रीति-रिवाजों का एक अनूठा मिश्रण समेटे हुए है। इस दौरान चर्चों को शानदार सजावट और रोशनी से सजाया जाता है। आधी रात को लोग कैरोल भक्ति गीत (Carols) गाते हैं, जिससे एक अविस्मरणीय माहौल बनता है।
अगर भारत के मेट्रो शहरों की बात की जाए, तो सबसे बड़ा ईसाई समुदाय मुंबई शहर में बसा हुआ है, जिसमें मुख्यतः रोमन कैथोलिक अनुयायी हैं। भारत में क्रिसमस को विशेष रूप से 'बड़ा दिन' के नाम से जाना जाता है। दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में क्रिसमस का एक अलग ही भव्य रूप देखने को मिलता है। भारत में क्रिसमस का उत्सव इतना भव्य होता है कि दूसरे देशों से भी लोग यहां आते हैं और इस कार्यक्रम में भाग लेते हैं।
भारत में, क्रिसमस विभिन्न धर्मों के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला एक जीवंत और समावेशी त्यौहार है। यह त्यौहार पारंपरिक ईसाई रीति-रिवाज़ों को स्थानीय सांस्कृतिक तत्वों के साथ जोड़ता है। इस त्योहार के जश्न के रूप में सजावटी रोशनी, दावतें, कैरोल गायन और उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता है। वास्तव में यह त्यौहार विविध समुदायों के बीच एकता और खुशी की भावना को बढ़ावा देता है।
भारत में क्रिसमस के जश्न में रंगीन रोशनी, सितारे और सजावटी वस्तुएं सड़कों और घरों को रोशन करती हैं। ईसाई घरों के साथ साथ अन्य धर्म के लोगों के घरों में भी आभूषणों और रोशनी से सजाए गए क्रिसमस ट्री सजाये जाते हैं। इस क्रिसमस ट्री के शीर्ष पर स्थित तारा बेथलहम के तारे का प्रतीक माना जाता है। किवदंतियों के अनुसार, इसने बुद्धिमान लोगों / संतों को यीशु के जन्मस्थान तक का मार्ग दिखाया था।
क्रिसमस उत्सव का मुख्य आयोजन, ईसाई समुदाय द्वारा चर्च की सेवाओं में भाग लेना है। अर्धरात्रि में आयोजित होने वाली धार्मिक संगीत सभा, वर्षों से पोषित एक ऐसी परंपरा है जहां उपासक ईसा मसीह के जन्म का जश्न मनाने के लिए एकत्रित होते हैं। चाहे बाहर कितनी ही ठण्ड क्यों न हो, मधुर क्रिसमस कैरोल और भजन पूरे वातावरण में गुंजायमान होते हैं, जिससे वातावरण आध्यात्मिक और आनंदमय बन जाता है।
क्रिसमस के दौरान उपहार देने की परंपरा भारत में भी व्यापक रूप से निभाई जाती है। क्रिसमस पर लोग परिवार में और अपने दोस्तों को प्यार और सद्भावना के संकेत के रूप में उपहार देते हैं। सांता क्लॉज़ इस परंपरा में एक केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। घरों, विद्यालयों एवं संस्थाओं में भी सांता क्लॉज़ का रूप रखकर लोग बच्चों के लिए उपहार लाते हैं। कई संस्थाओं और विद्यालयों द्वारा तो जरूरतमंद लोगों को इस अवसर पर विशेष रूप से उपहार देकर उनकी सहायता की जाती है।
परिवार के साथ क्रिसमस मनाने की परंपरा का भी ईसाई समुदाय पीढ़ियों से पालन करता आ रहा है। चाहें परिवार के सदस्य दुनिया भर में अलग अलग स्थानों में जहां भी रहते हो, वह साल के इस समय में परिवार और दोस्तों के साथ एकत्रित होकर, जश्न मनाने के लिए उत्सुक रहते हैं।
क्रिसमस पर क्षेत्रीय विविधताओँ के आधार पर विभिन्न प्रकार के लजीज़ व्यंजन भी तैयार किये जाते हैं। गोवा में पारंपरिक क्रिसमस भोजन में सोरपोटेल (एक मसालेदार पोर्क स्टू) और बेबिन्का (एक स्तरित गोवा मिठाई) जैसे व्यंजन विशेष रूप से बनाए जाते हैं। इसके साथ ही प्लम केक, मार्जिपन और कुल्कुल्स (kulkuls) जैसी मिठाइयों का देश भर में आनंद लिया जाता है।
क्रिसमस त्यौहार का एक उल्लेखनीय पहलू इसकी समावेशिता है। हालाँकि यह एक ईसाई त्यौहार है, फिर भी सभी पृष्ठभूमि और धर्मों के लोग इस त्यौहार के उत्सव में भाग लेते हैं। कई स्कूल, कॉलेज और कार्यालय सजावट, संगीत और समारोह के साथ क्रिसमस मनाते हैं। मुंबई, दिल्ली और कोलकाता जैसे महानगरीय शहरों में क्रिसमस बाज़ार जीवंत हो उठते हैं और सजावट के सामान, सान्ता के कपड़े और टोपियाँ और मौसमी मिठाइयाँ पूरे बाज़ार में देखी जा सकती है।
वास्तव में क्रिसमस का धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों रूपों में महत्व है। ईसाई समुदाय के लिए, यह गहन आध्यात्मिक श्रद्धा और पूजा का समय है। यह ईसाई धर्म के केंद्रीय संदेश - प्रेम, आशा और मुक्ति - की पुष्टि करता है। इसके अलावा अपने धार्मिक महत्व से परे, क्रिसमस का त्यौहार विविध पृष्ठभूमि के लोगों के बीच एकता और सद्भाव को बढ़ावा देता है। यह "अनेकता में एकता" के विचार का उदाहरण है, क्योंकि इस त्यौहार के जश्न में विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ आते हैं।
हमारे रामपुर में भी सात एकड़ के एक विशाल बाग में संत जोसेफ केंद्र (St. Joseph’s Centre), नामक एक चर्च है जोकि राष्ट्रीय उच्च न्यायालय के निकट और ज़िला अदालत के सामने स्थित है। 1947 तक यह स्थान एक चिड़ियाघर था। 1965 में इस चर्च को एक पैरिश के रूप में स्थापित किया गया था। वर्ष 1976 में भूमि के इस खंड को व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र शुरू करने के मद्देनजर केरल प्रांत के उत्तरी कैपुचिन मिशन (Northern Capuchin Mission) क्षेत्र को सौंप दिया गया तथा पी. ए. जोसेफ (Br. P A Joseph) को इस चर्च के पैरिश पादरी के रूप में नियुक्त किया गया। यह चर्च एक कैथलिक (Catholoic) चर्च है जोकि कैथलिक विश्वासों और सिद्धांतों का अनुसरण करता है। 2012 तक, दुनिया भर में 110 करोड़ से अधिक कैथोलिक थे तथा यह दुनिया की आबादी का 17% से अधिक हिस्सा है। शब्द कैथलिकवाद उन तरीकों को भी संदर्भित करता है जिसका अनुसरण कैथलिक धर्म के सदस्य करते हैं। यह नैतिकता के बारे में कैथलिक धार्मिक विश्वासों को भी संदर्भित करता है जिसका अनुसरण कैथलिक धर्म के सदस्य करते हैं।
क्या आप जानते हैं कि हमारे रामपुर में भी क्रिसमस का त्योहार धूमधाम से मनाया जाने लगा है? क्रिसमस के अवसर पर शहर के विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। विद्यालय का कोई भी छात्र अथवा अध्यापक सांता का रूप धारण करके बच्चों के साथ खूब मौज मस्ती करते हैं। छात्र सांता की टोपी या लाल पोशाक पहने नजर आते हैं और एक दूसरे को उपहार भी बांटते हैं। बाज़ार में दुकानों पर सजावट सामग्री, सांता की टोपियां और कपड़े सज जाते हैं। प्लम केक की खुशबू वातावरण को महकाने लगती है।
संदर्भ
https://shorturl.at/duEG0
https://shorturl.at/etUX3
https://shorturl.at/fgIQZ
चित्र संदर्भ
1. क्रिसमस का उत्सव मनाते बच्चों और अध्यापिकाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. क्रिसमस पर झांकी ले जाते लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. बच्चों के साथ संता क्लॉस को संदर्भित करता एक चित्रण (PICRYL)
4. क्रिसमस पर केक खाते बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. रामपुर के संत जोसेफ केंद्र को संदर्भित करता एक चित्रण (Youtube)
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