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कोई भी "खेल खेलना", अनाज उगाने या हथियार बनाने जैसी बेहद आवश्यक और गंभीर प्रक्रिया नहीं है। खेलों की शुरुआत मनोरंजन के तौर पर हुई थी, इसलिए खेलों के साथ सदियों से हमारा भावनात्मक रूप से गहरा लगाव रहा है। “खेल भावना” (Sportsmanship) का सीधा मतलब, खेल के प्रति अधिक नैतिक दृष्टिकोण रखना होता है। अपने प्रतिद्वंदी का सम्मान करना, निष्पक्षता, सत्यनिष्ठा और जिम्मेदारी से खेलना, अच्छी खेल भावना (Game Spirit) की निशानी होती है।
लेकिन क्या आपने भी ध्यान दिया है कि, “आज हमारी खेल भावना या खेल से जुड़ी नैतिकता को कई मायनों में महज पैसे कमाने का एक जरिया बना दिया गया है।” आज के समय में खेल सट्टेबाजी (Sports Betting), खेल उद्योग का एक अभिन्न अंग बन चुकी है। हर दिन लाखों लोग अपनी पसंदीदा टीमों और खिलाड़ियों पर दांव लगाते हैं, और पैसा कमाते या गवांते हैं।
लेकिन वास्तव में देखा जाए तो खेल सट्टेबाजी कई मायनों में हमारे लिए गंभीर नैतिक चिंताएं पैदा कर सकती है। सबसे पहले खेल सट्टेबाजी के कारण “जुए की लत”, एक गंभीर समस्या के रूप में दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रभावित कर रही है। सट्टा लगाने की यह लत भी नशे की लत की तरह ही हो सकती है, क्योंकि इसमें प्रशंसक अपनी पसंदीदा टीमों पर पैसों के साथ-साथ अपनी भावनाओं का भी निवेश करते हैं। इसके अलावा मैच फिक्सिंग (Match Fixing) की संभावना को खेल सट्टेबाजी से जुड़ी एक और बड़ी नैतिक चिंता माना जाता है। क्यों कि जब बात पैसे की आती है, तो इस बात का जोखिम हमेशा बना रहता है कि कहीं खिलाड़ी, कोच या कोई अधिकारी, जीतने के लिए, खेल के नतीजों में हेरफेर न कर दें। इससे न केवल खेल की अखंडता प्रभावित होती है, बल्कि खिलाड़ियों की सुरक्षा को भी खतरा रहता है। इसलिए खेल संगठनों और कानून निर्माताओं को, मैच फिक्सिंग रोकने और इसमें शामिल लोगों को दंडित करने के लिए सख्त नियम और कानून बनाने चाहिए।
खेल सट्टेबाजी का सबसे बुरा प्रभाव, खेल संस्कृति पर देखा जा रहा है। कई लोग मानते हैं कि खेल सट्टेबाजी ने खेलों के व्यावसायीकरण को बढ़ावा दिया है, और आज के समय में खेल के दौरान, प्रेम और मनोरंजन प्राप्त करने के बजाय खिलाड़ियों से पैसा कमाने पर ध्यान केंद्रित किया जाने लगा है। इससे खेल भावना की हानि हो सकती है और खेल कौशल में कमी आ सकती है। हालांकि इसके विपरीत कई अन्य लोगों का तर्क है कि खेल सट्टेबाजी ने खेलों को अधिक रोमांचक और व्यापक दर्शकों के लिए सुलभ बना दिया है। साथ ही इसने खेल संगठनों के राजस्व में भी वृद्धि की है।
देखा जाए तो भारत में खेल सट्टेबाजी को नियंत्रित करने वाले कानूनों की स्थिति काफी जटिल है और अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। भारत के संविधान के तहत, सभी राज्यों को सट्टेबाजी और जुए के संबंध में अपने स्वयं के कानून और नीतियां बनाने का अधिकार प्राप्त है। इसलिए, सट्टेबाजी और जुए को विनियमित करने की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य की मानी जाती है। भले ही अधिकांश राज्यों ने जुए पर प्रतिबंध लगाने के लिए अलग-अलग कानून बनाए हैं, इनमें गोवा और सिक्किम राज्य भी हैं, जिन्होंने सट्टेबाजी और जुए के कई रूपों को वैध यानी कानूनी तौर पर मंजूर कर दिया है।
ऑनलाइन सट्टेबाजी (Online Betting) तो भारत में बहुत ही जटिल और अस्पष्ट क्षेत्र माना जाता है। भारत में ऑनलाइन सट्टेबाजी पर रोक लगाने वाला कोई विशिष्ट कानून नहीं है, लेकिन इसे स्पष्ट रूप से वैध (कानूनी) भी नहीं किया गया है। कुछ राज्यों ने ऑनलाइन सट्टेबाजी को विनियमित करने के लिए अहम् कदम भले ही उठाए हैं, लेकिन पूरे देश में कोई एक समान ढांचा आज भी उपलब्ध नहीं है। भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर खेल सट्टेबाजी को विनियमित करने पर विचार तो किया है, लेकिन इस मोर्चे पर कोई ठोस प्रगति अभी तक नहीं हुई है।
वास्तव में खेल सट्टेबाजी एक जटिल मुद्दा है जिसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के प्रभाव हो सकते हैं। यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी, खेल संगठनों और कानून निर्माताओं की है कि खेल सट्टेबाजी को इस तरह से विनियमित किया जाए जिससे उपभोक्ताओं की सुरक्षा हो और खेल की अखंडता बनी रहे। एक अच्छी खेल भावना दिखाते हुए सभी खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों को भी अपने खेल के नियमों और दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए। खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों के साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए या उन्हें किसी खेल में भाग लेने से बाहर नहीं किया जाना चाहिए। अंपायर और रेफरी (Umpire And Referee) को भी खेल के नियम दोनों टीमों पर समान रूप से लागू करने चाहिए। इसके अलावा किसी भी खेल में खिलाड़ी की सत्यनिष्ठा कायम रहनी चाहिए। उदाहरण के लिए, फ़ुटबॉल में चोट लगने का दिखावा करना खिलाड़ी और खेल की गरिमा के खिलाफ माना जाता है।
खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों को मैदान पर अपने प्रदर्शन और कार्यों की, विशेषतौर पर अपनी हार की जिम्मेदारी खुद लेनी चाहिए। उन्हें मैदान के साथ-साथ मैदान के बाहर भी सम्मानजनक तरीके से आचरण करना चाहिए। खेल में भी नैतिकता उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी जीवन के किसी अन्य क्षेत्र में। खेल भावना का लक्ष्य केवल जीतना नहीं है, बल्कि दूसरों के सम्मान और आदर के साथ जीत हासिल करना है। खेल भावना निष्पक्ष खेल, विरोधियों के प्रति सम्मान और उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करती है।
खेल को नैतिक तरीके से खेला जाना चाहिए। प्रशिक्षकों को भी यह पता होना चाहिए कि वे अपने आधिकारिक कोचिंग कर्तव्यों के बाहर भी, अपने एथलीटों के लिए रोल मॉडल (Role Model) हैं। उनका निजी व्यवहार और गतिविधियां (भले ही वे सीधे तौर पर कोचिंग से संबंधित न हों) कोचिंग के माहौल और उनके खिलाड़ियों की उनके बारे में धारणाओं को प्रभावित कर सकते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2k5zrbjt
https://tinyurl.com/2wmef2dn
https://tinyurl.com/4vc4tff4
https://tinyurl.com/ms47p7w8
https://tinyurl.com/e3r5sc
चित्र संदर्भ
1. महान टेनिस खिलाड़ी रोजर फेडरर को लॉन टेनिस खेलते हुए दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. खेल से पहले खिलाड़ियों की औपचारिक भेंट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. सुपर बाउल XLII के दौरान विन लास वेगास स्पोर्ट्सबुक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. ऑनलाइन सट्टेबाजी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. क्रिकेट के दौरान हुई बहस को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
6. ओलंपिक पार्क में मिच मिशेल द्वारा बनाई गई एक मूर्ति, जिसमें जॉन लैंडी द्वारा अपने साथी धावक रॉन क्लार्क की मदद करते हुए खेल भावना को दर्शाया गया है। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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