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भारत में पहली पुस्तक 1556 में गोवा में छपी थी। इसे " कन्क्लूसोएस ई आउट्रास कोइसास (Conclusões e outras coisas)" के नाम से जाना जाता था और यह पुर्तगाली भाषा में लिखी गई थी। वहीं भारत में भारतीय भाषा में छपी पहली पुस्तक को "ताम्पिरन वनक्कम (Tampiran Vanakkam (தம்பிரான் வணக்கம்)" के नाम से जाना जाता है और इसे तमिल में लिखा गया था। यह 1578 में छपी और "डॉक्ट्रिना क्रिस्टम (Doctrina Christum)" नामक पुर्तगाली पुस्तक का अनुवाद थी। भारत के बाहर किसी भारतीय भाषा में छपी पहली पुस्तक भी तमिल में थी। इसे "कार्टिल्हा (Cartilha)" कहा जाता था और इसे 1554 में लिस्बन (Lisbon) में मुद्रित किया गया था।
भारत में पहली प्रिंटिंग प्रेस (printing press) 1556 में गोवा में स्थापित की गई थी। इसे यहां पर जोआओ डी बुस्टामेंटे (João de Bustamante) नामक एक स्पेनिश मिशनरी (Spanish missionary) द्वारा स्थापित किया गया था। बुस्टामेंटे एक मुद्रक विशेषज्ञ थे और उन्होंने एक भारतीय सहायक की मदद से गोवा में प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की। भारत में छपी पहली पुस्तक सेंट फ्रांसिस जेवियर (St. Francis Xavier) द्वारा रचित "डौट्रिना क्रिस्टा (Daughtrina Christa)" नामक धार्मिक ग्रंथ थी। इसे 1557 में छापा गया था।
आज की तारिख में भारत में सबसे पुरानी उपलब्ध मुद्रित पुस्तक को "कम्पेंडियो स्पिरिचुअल दा वाइड क्रिस्टा (Compendio Spiritual Da Vide Christaa)" के नाम से जाना जाता है। इसे थारंगमबाड़ी के पुर्तगाली आर्कबिशप (Portuguese Archbishop of Tharangambadi) द्वारा लिखा गया था और 1561 में मुद्रित किया गया था। शुरुआती दिनों में भारत में छपी एक और महत्वपूर्ण पुस्तक को "कोलोक्विओस डॉस सिंपल्स ई ड्रोगास हे कूसस मेडिसिनिस दा इंडिया (Coloquios dos Simples e Drogas he Cusas Medicinas da India)" के नाम से जाना जाता है। 1563 में छपी इस पुस्तक को गार्सिया दा ओर्टा (García da Orta) द्वारा लिखा गया था। भारत में पहला सचित्र कवर पेज 1568 में "कॉन्स्टिट्यूशियंस डू अर्सेबिस्पाडो डी गोवा (Constituciones do Arcebispado de Goa)" पुस्तक के लिए मुद्रित किया गया था।
गोवा में स्थापित, प्रिंटिंग प्रेस को एशिया की पहली प्रिंटिंग प्रेस माना जाता है। इसका उपयोग स्थानीय भाषाओं में किताबें और अन्य सामग्रीयो को छापने के लिए किया जाने लगा। गोवा की यह प्रिंटिंग प्रेस 1556 से 1588 तक लगभग 30 वर्षों तक सक्रिय रही। इस दौरान यहाँ पर कई किताबें छपीं, जिनमें थॉमस स्टीफंस (Fr. Thomas Stephens) की प्रसिद्ध क्रिस्ता पुराण (Krista Purana) भी शामिल थी।
हालाँकि, 1588 के बाद 27 वर्षों तक गोवा में कुछ भी छपने का कोई भी आधिकारिक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। लेकिन 1616 में राचोल (रायतूर) कॉलेज (Rachol College) में छपाई फिर से शुरू हो गई थी।
वहां तीन प्रमुख पुस्तकें छपीं थी:
१. थॉमस स्टीफेंस द्वारा लिखित जुस क्रिस्टो नोसो साल्वाडोर एओ मुंडो पर चर्चा (Discussion on Jus Christo Noso Salvador ao Mundo by Thomas Stephens)
२. थॉमस स्टीफेंस द्वारा लिखित डौट्रिना क्रिस्टम (Dotrina Christum by Thomas Stephens)
३. डिओगो रिबेरो द्वारा लिखित डिक्लेराकैम दा डौट्रिना क्रिस्टम (Declaração da doutrina christam by diogo ribeiro)
तीनों पुस्तकें स्थानीय भाषाओं में लिखी गई थीं, और उन सभी का उद्देश्य भारत में मिशनरी कार्यों में मदद करना था। राचोल कॉलेज में प्रिंटिंग प्रेस 1674 तक चलती रही। दरसल “क्रिस्ता पुराण”, ईसा मसीह के जीवन से जुड़ी हुई एक ईसाई कविता है। इसे 16वीं शताब्दी में फादर थॉमस स्टीफेंस, एस.जे. (Fr. Thomas Stephens, S.J) ने मराठी और कोंकणी भाषा के मिश्रण के साथ लिखा था। यह कविता सृष्टि के शुरुआती दिनों से लेकर यीशु के समय तक मानव जाति की पूरी कहानी को गीतात्मक पद्य रूप में दर्शाती है। यह गोवा के चर्चों में प्रार्थना के लिए बहुत ही लोकप्रिय कृति हुआ करती थी, जहाँ 1930 के दशक तक इसे विशेष अवसरों पर गाया जाता था।
हालाँकि आज इसके मूल संस्करण की कोई प्रति नहीं मिलती है, लेकिन माना जाता है कि इसे 1616, 1649 और 1654 में रचोल में प्रकाशित किया गया था।
गोवा में क्रिस्ता पुराण की कम से कम पाँच पांडुलिपियाँ आज भी संरक्षित हैं:
१. गोवा सेंट्रल लाइब्रेरी पांडुलिपि (Goa Central Library Manuscript (CL)
२. पिलर पांडुलिपि (Pilar Manuscript)
३. एम.सी. सल्दान्हा पांडुलिपि (M.C. Saldanha Manuscript (TSKK-1)
४. थॉमस स्टीफेंस कोंकन्नी केंद्र (Thomas Stephens Konkani Center (TSKK-2) में पांडुलिपि
५. गोवा विश्वविद्यालय पुस्तकालय के पिसुरलेंकर संग्रह में भौगुन कामत वाघ पांडुलिपि (Bhagun Kamat Wagh Manuscript)
क्रिस्ता पुराण के रचयिता थॉमस स्टीफंस, एक ब्रिटिश कैथोलिक पादरी (British Catholic priest) थे जो ईसा मसीह का संदेश फैलाने के लिए 1579 में भारत आए थे। वह समुद्र के रास्ते भारत आने वाले पहले अंग्रेज थे। भारत पहुंचकर उन्होंने यह सीखा कि मराठी कवि-संतों ने साहित्य और कविता के माध्यम से कैसे अपना संदेश फैलाया। इसके बाद उन्होंने मराठी में क्रिस्तापुराण नामक यह महाकाव्य कविता लिखी। इस कविता को भारतीय भाषा में एक महाकाव्य के माध्यम से ईसा मसीह के संदेश को फैलाने का पहला प्रयास माना जाता है। स्टीफंस उस काल के प्रख्यात रोमन कैथोलिक, एडमंड कैंपियन और थॉमस पाउंड (Edmund Campion and Thomas Pound) के मित्र थे।
1579 में, स्टीफंस, पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन (Lisbon, Portugal) से भारत जाने वाले जहाज लॉरेनको (Lourenço) पर सवार हुए। वह 24 अक्टूबर को गोवा पहुंचे और इस सुदूर देश में स्थानीय लोगों की भाषा में गीतों के माध्यम से सुसमाचार का प्रसार किया।
स्टीफंस के क्रिस्ता पुराण को साहित्य की दुनियां में एक महत्वपूर्ण रचना माना जाता है, क्योंकि यह भारतीय भाषा में एक महाकाव्य कविता के माध्यम से ईसा मसीह के संदेश को फैलाने का पहला प्रयास था। इसके अलावा यह पुस्तक 16वीं शताब्दी में भारत के लोगों और संस्कृति के बारे में बहुमूल्य जानकारी भी प्रदान करती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/53fdbumm
https://tinyurl.com/mw39r833
https://tinyurl.com/7zyvrvm8
https://tinyurl.com/2r5a8k8u
चित्र संदर्भ
1. क्रिस्टापुराण के विशेषज्ञ फादर नेल्सन फाल्काओ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. भारत में छपी पहली पुस्तक सेंट फ्रांसिस जेवियर द्वारा रचित "डौट्रिना क्रिस्टा " नामक धार्मिक ग्रंथ थी। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. प्रिंटिंग प्रेस गोवा राज्य संग्रहालय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. क्रिस्टापुराण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. एक चर्च में रखी गई पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
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