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वह दौर वर्ष 1825 का था,जब कलकत्ता के बंदरगाह मेंद एसएस एंटरप्राइज(SS Enterprise)का भाप इंजन से चलने वाला पहला ट्रांस-ओशन स्टीमशिप(Trans–OceanSteamship),भारत पहुंचा था। इस जहाज ने इंग्लैंड(England) और भारत के बीच की अपनी पहली यात्रा पूरी की थी।भाप इंजन और उनके पश्चात, डीजल इंजन(Diesel engine) से संचालित जहाजों ने आज दुनिया में, जहाज परिवहन के क्षेत्र में पूरी तरह से क्रांति ला दी है। भाप और डीजल इंजन से पहले पाल का उपयोग करने वाले जहाज लकड़ी के बने होते थे। जिनकी गति धीमी होती थी और वे आकार में भी छोटे होते थे। भाप इंजन के कारण जहाजों के निर्माण में लोहे का उपयोग होने लगाऔर अंततः 200 मीटर से अधिक लंबे जहाजों के निर्माण किया जाने लगा। उदाहरण के लिए, आरएमएस टाइटैनिक(RMS Titanic), लगभग 300 मीटर लंबा था और पूर्ववर्ती नौकायन जहाजों की तुलना में तीन से चार गुना अधिक गति से चलता था!
पाल वाले जहाजों से भाप इंजन वाले जहाजों को अपनाना भारत तथा अन्य किसी भी देश के लिए, एक मील का पत्थर साबित हुआ। पहला स्टीम शिप अर्थात भाप इंजन वाला जहाज, 1800 के दशक की शुरुआत में व्यावहारिक उपयोग में लाया गया था।हालांकि, कुछ ऐसे अपवाद भी थे जो इससे पहले आए थे। क्या आप जानते हैं कि, अवध के तत्कालीन नवाब ने हेनरी पिकेट(Henry Pickett) के हाथों अपने लिए एक छोटी स्टीमबोट(Steamboat) अर्थात भाप इंजन से चलने वाली सबसे शुरुवाती नावबनवाई थी? इसके बाद डायने(Diane), जैसी नदी वाली अन्य स्टीमबोट का निर्माण होने लगा। डायने भारत में निर्मित पहला स्टीमबोट था, जिसे जेटी रॉबर्ट्स(JT Roberts) द्वारा कलकत्ता में तैयार किया गया था। हालांकि, व्यापारिक दृष्टिकोण में यह नाव कुछ अच्छा कमाल नहीं कर पाई।
दूसरी ओर, 14 मार्च, 1948 का दिन भारत और विशेष रूप से विशाखापत्तनम बंदरगाह के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया। क्योंकि, 75 साल पहले, पहली आधुनिक स्टीमशिप एसएस जल उषा(SS Jal Usha) को एचएसएल यानी हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (Hindustan Shipyard Limited) द्वारा निर्माण कर हमारे देश की सेवा में कार्यान्वित किया गया था। यह स्वतंत्र भारत में, औद्योगिक विकास की शुरुआत थी।
भारत के पहले प्रधान मंत्री, जवाहरलाल नेहरू जी ने, एसएस जल उषा का जलावतरण किया था। इस मौके पर उन्होंने कहा था कि, “भारत का जहाज निर्माण उद्योग हर कीमत पर निरंतर चलता रहेगा। साथ ही, सरकार भी इस उद्योग को प्रोत्साहित करने में गहरी रुचि रखती है।’’
क्या आपको उन पलों को देखना हैं, जब एसएस जल उषा का जलावतरण किया गया था? अगर हां, तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर आप, इसका आनंद ले सकते हैं!https://tinyurl.com/2fwunke7
एचएसएल की स्थापना उद्योगपति वालचंद हीराचंद ने की थी और तब इसे सिंधिया शिपयार्ड(Scindia Shipyard) कहा जाता था, जो सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी लिमिटेड(Scindia Steam Navigation Company Limited) का हिस्सा था। इस शिपयार्ड या डॉक (Shipyard or Dock) की आधारशिला 21 जून 1941 को, डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा रखी गई थी, जो उस समय कार्यवाहक कांग्रेस अध्यक्ष थे। प्रारंभ में, इस डॉक के निर्माण हेतु कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) और बॉम्बे (वर्तमान मुंबई) उनकी पहली पसंद थे, लेकिन बाद में वालचंद ने विशाखापत्तनम पर ध्यान केंद्रित किया, क्योंकि, यहां प्राकृतिक आंतरिक बंदरगाह था।
कई उतार-चढ़ावों का सामना करने के बाद, 1961 में इस शिपयार्ड का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और इसका नाम बदलकर हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड कर दिया गया। तब इसे पत्तन, केंद्रीय पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय के अधीन लाया गया था। हालांकि, 2010 में इसे केंद्रीय रक्षा मंत्रालय को स्थानांतरित कर दिया गया।
अपनी स्थापना के बाद से, एचएसएल ने 200 से अधिक जहाजों का निर्माण और वितरण किया है और लगभग 2,000 जहाजों की मरम्मत भी की है। इसमें, भारतीय नौसेना की पनडुब्बियों की प्रमुख मरम्मत भी शामिल है। एचएसएल ने न केवल वाणिज्यिक जहाज बनाए हैं, बल्कि उच्च प्रौद्योगिकी वाली आईएनएस ध्रुव(INS Dhruv) सहित कई नौसैनिक जहाज भी बनाए हैं।जो भारतीय नौसेना, राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (National Technical Research Organisation) और रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (Defence Research Development Organisation) द्वारा संयुक्त रूप से संचालित होते हैं।
2022 में, हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड ने अपने इतिहास में अपने उत्पादन का उच्चतम मूल्य दर्ज किया था। जहाज निर्माण से इसके उत्पादन का मूल्य 613 करोड़ रुपये रहा, जो जहाज निर्माण प्रभाग में दर्ज उत्पादन का आज तक का सबसे उच्चतम मूल्य है।
भाप इंजन और उससे संबंधित नवाचारों, जैसे कि, स्टील(Steel) या लोहे के पतवार और नए स्क्रू प्रकार के प्रोपेलर(Screw Propeller), ने वैश्विक जहाज परिवहन, व्यापार और वाणिज्य में पूरी तरह से क्रांति ला दी है। कुछ बंदरगाह और जल मार्ग, जो अब तक नौकायन जहाजों के पहुंच के बाहर थे, अब खुल चुके है। अब विशाल जहाजों में, भारी मात्रा में माल वहन किया जा सकता है।जहाज निर्माण में लकड़ी और कैनवस(Canvas) पालों ने 500 वर्षों में जितनी प्रगति की थी, उससे अधिक भाप इंजन ने केवल 200 वर्षों में ही प्रगति कर दिखाई है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/53w47ex9
https://tinyurl.com/2p8949uu
https://tinyurl.com/2fwunke7
https://tinyurl.com/2uvpx2eh
https://tinyurl.com/38xpc6d2
चित्र संदर्भ
1. हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड निर्माण केंद्र के दृश्य को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. टाइटैनिक को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. एचएसएल के हवाई दृश्य को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. हिंदुस्तान शिपयार्ड के गेट को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. आईएनएस ध्रुव के डाइग्राम को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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