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1954 में, मात्र 17 साल की उम्र में विंबलडन (Wimbledon) में लड़कों का खिताब जीतने के साथ ही रामनाथन कृष्णन, पूरे भारत के हीरो बन गए। उन्होंने डेविस कप (Davis Cup) में भी भारत को कुछ यादगार पल दिए। 1960 में कृष्णन ने सातवें क्रम के खिलाड़ी के रूप में विंबलडन में भाग लिया। सेमीफाइनल (Semifinal) तक पहुंचकर उनकी यात्रा उल्लेखनीय रही, हालांकि यहाँ वह चैंपियन, नील फ्रेजर (Neil Fraser) से हार गए। फ़्रेज़र इससे पहले 1959 की क्वींस क्लब चैंपियनशिप (Queens Club Championship) में कृष्णन से हार गए थे। कृष्णन ने विंबलडन में पहले दो राउंड में पांच सेटों के चुनौतीपूर्ण मुकाबलों में जीत हासिल की। इसके बाद उन्होंने क्वार्टर फाइनल (Quarter Finals) में चिली (Chile)के चौथी वरीयता प्राप्त खिलाड़ी लुइस अयाला (Luis Ayala) के खिलाफ एक और पांच-सेटर जीत हासिल की।
विशेषज्ञों ने कृष्णन की भ्रामक और चतुर खेल शैली की खूब प्रशंसा की, जिसमें सटीक स्पर्श और रणनीतिक गेंद प्लेसमेंट (Placement) शामिल था। 11 अप्रैल, 1937 को जन्में रामनाथन कृष्णन 1960 और 1961 में दो बार विंबलडन के सेमीफाइनल में पहुंचे, जिससे वह उस समय दुनिया के शीर्ष खिलाड़ियों में से एक बन गये। उन्होंने पॉटर की शौकिया रैंकिंग में विश्व नंबर 3 की उच्च रैंकिंग भी हासिल की !आगे चलकर कृष्णन को टखने की चोट का भी सामना करना पड़ा, जिसके कारण उन्हें चौथी वरीयता प्राप्त होने के बावजूद अगले वर्ष चैंपियनशिप में भाग लेने से रोक दिया गया। 1966 में, कृष्णन ने भारत को पहली बार डेविस कप फाइनल में पहुंचाया, लेकिन वे ऑस्ट्रेलिया से हार गए। कृष्णन ने एक सफल इतिहास के बाद 1968 में पेशेवर टेनिस से संन्यास ले लिया था। ऊपर दिए गए वीडियो के माध्यम से कृष्णन को टेनिस खेलते हुए देखना वाकई एक रोमांचक अनुभव है।
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