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रामपुर में बसे रोहिल्ला, 17वीं और 18वीं शताब्दी के दौरान अफगानिस्तान (Afghanistan) से आए थे। काफी समय तक उन्होंने अपनी भाषा नहीं बदली लेकिन धीरे-धीरे वे अपनी मूल भाषा "पश्तो" को खोने लगे और उर्दू या हिंदुस्तानी बोलने वाले बाकी लोगों की तरह “उर्दू–हिंदुस्तानी” को अपनाने लगे।लेकिन अगर आप रोहिल्लाओं द्वारा बोली जाने वाली भाषा का ध्यान से अवलोकन करेंगे, तो पाएंगे कि उनके द्वारा बोली जाने वाली उर्दू की अपनी ही एक अलग पहचान है। उर्दू उनकी मूल भाषा नहीं है, इसलिए यह आसानी से देखा जा सकता है, कि वे शुद्ध उर्दू नहीं बोलते हैं। पश्तूनों की भाषा पश्तो एक जटिल भाषा है तथा इसमें पश्तो की कई किस्में शामिल हैं। महिलाएं, जो बाहरी लोगों और अन्य भाषा समूहों के साथ कम बातचीत करती हैं, माना जाता है, कि उनके द्वारा बोली जाने वाली पश्तो भाषा विशिष्ट किस्म की होती है। अधिकांश पश्तून, पाकिस्तान (Pakistan) और अफगानिस्तान में रहते हैं, किंतु भारत में भी एक बड़ा पश्तून प्रवासी वर्ग मौजूद है। पश्तून इस देश में चौथा सबसे बड़ा मुस्लिम समूह है।तो आइए आज विभिन्न बोलियों और उनके निर्माण के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।
बोलियाँ विभिन्न प्रकार की भाषाएँ हैं, जिन्हें ध्वनि विज्ञान, व्याकरण, शब्दावली की विशेषताओं,बोलने वालों के समूह द्वारा उनके उपयोग के आधार पर एक दूसरे से अलग किया जा सकता है।एक ही भाषा की अनेकों बोलियां होती हैं, जो कि भौगोलिक या सामाजिक रूप से एक-दूसरे से अलग होती हैं।बोलियों को हम क्षेत्रीय बोली और सामाजिक बोली के आधार पर वर्गीकृत कर सकते हैं।
क्षेत्रीय बोली: क्षेत्रीय बोली एक विशेष भौगोलिक स्थान में रहने वाले वक्ताओं से जुड़ी होती है।विभिन्न बोलियों में भाषाओं का विकास अनेकों कारकों से प्रभावित होता है, जिनमें समय, स्थान और सामाजिक-सांस्कृतिक कारक शामिल हैं। उदाहरण के लिए फ़्रांस (France) में भौगोलिक स्थिति के आधार पर कई बोलियाँ बोली जाती हैं।
सामाजिक बोली: इस प्रकार की बोली,किसी दिए गए जनसांख्यिकीय समूह से संबंधित वक्ताओं से जुड़ी होती है, चाहे वह किसी भी लिंग, आयु समूह, धर्म, जाति और सामाजिक आर्थिक वर्ग का हो। उदाहरण के लिए, विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में जाने वाले व्यक्तियों ने बोलने के विभिन्न तरीके सीखे हैं, जिनमें व्याकरण, शब्द, औपचारिकता और वाक्यविन्यास शामिल है। इसके अलावा, विभिन्न व्यवसायों की अपनी-अपनी अभिव्यक्तियाँ होती हैं, जिनमें तकनीकी शब्दावली और अन्य आकस्मिक शब्द भी शामिल होते हैं। इन्हें समझना किसी ऐसे व्यक्ति के लिए कठिन हो सकता है, जो उस क्षेत्र में काम नहीं करता है।हिंदी की विभिन्न बोलियों (खड़ीबोली,ब्रजभाषा, हरियाणवी,बुंदेली,अवधी,छत्तीसगढ़ी) आदि के समान ही उर्दू की अपनी कुछ मान्यता प्राप्त बोलियाँ हैं।इन बोलियों में दखनी, रेख्ता और आधुनिक स्थानीय उर्दू (दिल्ली क्षेत्र की खड़ीबोली बोली पर आधारित) बोली शामिल है। दखनी,जिसे दकनी, दक्कनी, देसिया, मिरगन के नाम से भी जाना जाता है,दक्षिणी भारत के दक्कन क्षेत्र में बोली जाती है। यह बोली मराठी और कोंकणी की शब्दावली के साथ-साथ अरबी, फ़ारसी और तुर्की भाषा के कुछ शब्दों का मिश्रण है।शब्दों का यह मिश्रण उर्दू की मानक बोली में नहीं पाया जाता है। दखिनी, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के सभी हिस्सों में व्यापक रूप से बोली जाती है। भारत के अन्य भागों की तरह यहाँ भी उर्दू पढ़ी और लिखी जाती है। इन राज्यों में उर्दू में कई दैनिक समाचार पत्र और कई मासिक पत्रिकाएँ प्रकाशित होती हैं।
पाकिस्तान में बोली जाने वाली उर्दू भाषा का पाकिस्तानी संस्करण,भारतीय बोलियों और उर्दू के अन्य रूपों से भिन्न है,क्योंकि इसमें पाकिस्तान की पश्तो, पंजाबी और सिंधी जैसी देशी भाषाओं के कई शब्दों, कहावतों आदि का उपयोग किया जाता है।इसके अलावा, क्षेत्र के इतिहास के कारण पाकिस्तान की उर्दू बोली फ़ारसी और अरबी भाषाओं से काफी हद तक मिलती-जुलती है।भारतीय बोलियों की तुलना में पाकिस्तान की उर्दू बोली के स्वर और उच्चारण अधिक औपचारिक हैं। रेख्ता,जिसे उर्दू कविता की भाषा के रूप में जाना जाता है,का उपयोग कई महान कवियों जैसे मिर्ज़ा ग़ालिब, मीर तकी मीर और मुहम्मद इक़बाल आदि द्वारा अपनी अनेकों महत्वपूर्ण कविताओं या शायरियों में किया गया है।
संदर्भ:
https://rb।gy/7ra0a
https://rb।gy/mv0d4
https://rb।gy/n7y2t
चित्र संदर्भ
1. एक भारतीय परिवार और भाषाओँ के ग्राफ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. ग्रामीण लोगों को दर्शाता चित्रण (Pixabay)
3. पश्तून लोगों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. विविध भाषाओँ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. आपस में बात करती वृद्ध महिलाओं को दर्शाता चित्रण (PickPik)
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