Post Viewership from Post Date to 31-Jul-2023 31st
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2521 618 3139

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

उत्तर–पूर्वी पहाड़ों में गोवंशीय मिथुन का पारिस्थितिक, आर्थिक व् सांस्कृतिक महत्व

रामपुर

 03-06-2023 10:58 AM
स्तनधारी

‘पहाड़ों के मवेशी’ के रूप में प्रख्यात, मिथुन एक गोवंशीय प्रजाति का जानवर है। इसे गयाल नाम से भी जाना जाता है। यह उत्तर-पूर्वी भारत के पहाड़ी क्षेत्र और चीन, म्यांमार, भूटान और बांग्लादेश की एक महत्वपूर्ण स्थानीय पशु प्रजाति है। गयाल का वैज्ञानिक नाम बॉस फ्रोंटैलिस (Bos Frontalis) है। यह पशु स्थानीय आदिवासी आबादी के सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मिथुन को भारत के उत्तर–पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र का गौरव भी माना जाता है। वर्तमान समय में, इस जानवर को मुख्य रूप से इस के मांस के लिए पाला जाता है। मिथुन के मांस को अन्य प्रजातियों के मांस की तुलना में कोमल और श्रेष्ठ माना जाता है। मिथुन का दूध गुणवत्ता में श्रेष्ठ होता है और प्रोटीन और वसा की मात्रा के मामले में गाय और बकरी के दूध से बेहतर माना जाता है। इसका उपयोग विभिन्न दुग्ध उत्पादों को बनाने के लिए किया जा सकता है, हालांकि, मिथुन कम मात्रा में दूध का उत्पादन करते हैं। इस जानवर से प्राप्त चमड़ा भी अन्य मवेशियों से बेहतर होता है। कुछ स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, मिथुन को सूर्य का वंशज माना जाता है। जबकि विभिन्न स्थानीय जनजातियों में मिथुन की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न रोचक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं।मिथुन उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्य नागालैंड तथा अरुणाचल प्रदेश का राजकीय पशु है। नागालैंड राज्य के आधिकारिक प्रतीक में, एक हरे–भरे पहाड़ी परिदृश्य पर एक खड़े हुए राजसी मिथुन को दर्शाया गया है। असमिया भाषा में मिथुन को ‘मेथोन’ (Methon) कहा जाता है। अरुणाचल प्रदेश में इसे ‘एसो’ (Eso), ‘होहो’ (Hoho) या ‘सेबे’ (Sebe) कहा जाता है। मिज़ोरम में लोग इसे ‘सियाल’ (Sial) कहते हैं। मणिपुर में इसे ‘संदांग’ (Sandang); जबकि, मणिपुर की नागा जनजातियां इसे ‘वेइ’ (Wei) और ‘सेइजांग’ (Seizang) कहती हैं।
अखिल भारतीय पशुधन गणना के अनुसार, वर्ष 1997 तक भारत में मिथुन की कुल संख्या 1,76,893 थी। जबकि वर्ष 2003 में देश में मिथुन की संख्या 2,46,315 थी। 1997 की गणना में दर्ज की गई संख्या की तुलना में 2003 तक इनकी संख्या में प्रति वर्ष केवल 6.5% की ही वृद्धि दर दर्ज की गई थी। हालांकि, 2019 की पशुधन गणना के अनुसार, इस प्राणी की संख्या में 2012 की गणना की तुलना में 26.66% की वृद्धि दर दर्ज की है। 2022 तक , देश में मिथुन की कुल संख्या 3.8 लाख दर्ज की गई है। पशुधन गणना के आंकड़ों के अनुसार, 2012 और 2019 के बीच, नर मिथुन की संख्या मादा मिथुन की संख्या की तुलना में तेज दर से बढ़ी है। भारत में, नर और मादा मिथुन की कुल संख्या क्रमशः 1.7 लाख और 2.1 लाख है। मिथुन, भारत में मुख्य रूप से अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम और उत्तर–पूर्वी पहाड़ी राज्यों के उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में पाया जाता है। यह शानदार प्राणी समुद्र तल से 1000 से 3000 मीटर की ऊंचाई पर ठंडी और हल्की जलवायु में रहना पसंद करता है। मिथुन मोटे चारे को अपना खाद्य बनाते हैं। जंगलों में वृक्षों और झाड़ियों से प्राप्त पत्तियां, टहनियां, जड़ी-बूटियां और अन्य प्राकृतिक वनस्पतियां मिथुन का भोजन होती हैं। मादा मिथुन 16 से 18 वर्ष की आयु तक एक वर्ष में एक बार प्रजनन कर सकती है। मिथुन के मांस, दूध और चमड़े की गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है और इसे एक जैविक मांस और दूध उत्पादक के रूप में बढ़ावा देने की गुंजाइश है। विभिन्न स्थानों पर मिथुन का उपयोग किसी दुल्हन के उपहार से लेकर वस्तु विनिमय व्यापार तक विभिन्न रूपों में भी किया जाता है। नागालैंड में दीवारों, सरकारी भवनों, गाँव के प्रवेश द्वारों, सभा के स्थानों पर मिथुन का प्रतीक उकेरा जाता है, जो इस जानवर का “राज्य के गौरव” के रूप में महत्त्व दर्शाता है। मिथुन का गांव में होना उनकी समृद्धि और श्रेष्ठता का प्रतीक माना जाता है। यह ग्रामीण आजीविका का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मिथुन का रखरखाव अत्यंत साधारण तरीके से किया जाता है। किसान बिना किसी अतिरिक्त आवास और भोजन सुविधाओं के वन क्षेत्रों में मुक्त-चराई की स्थिति में मिथुन का पालन-पोषण करते हैं। कभी-कभी, किसान मादा मिथुन को प्रसव से ठीक पहले जंगल से वापस ले आते हैं और प्रसव के बाद उसे वापस जंगल में छोड देते हैं।
तेजी से वनों की कटाई, पैर और मुँह की बीमारी, भूमि उपयोग के पैटर्न में बदलाव के साथ-साथ, “सांस्कृतिक महत्व के जानवर” से एक “व्यावसायिक जानवर” में परिवर्तन आदि ऐसे अनेकों कारण हैं जो मिथुन की आबादी के लिए खतरा बने हुए हैं। यह जानवर पूरी तरह से जंगल की पत्तियों और झाड़ियों पर निर्भर करता है और पूर्वोत्तर में वनों की कटाई की वर्तमान दर के साथ, मिथुन की घटती आबादी को और स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में मिथुन की घटती आबादी को ध्यान में रखते हुए, उनकी आबादी को स्थिर करना राज्यों की प्राथमिकता बनी हुई है। राज्यों को उनके गुणवत्ताधारक मिथुन का जननद्रव्य का संरक्षण और प्रसार करने की आवश्यकता है।
मिथुन के आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण के दरअसल तीन तरीके हैं:
जीवित अंडाणु, भ्रूण या वीर्य जैसे आनुवंशिक सामग्री का वैज्ञानिक तरीके से संरक्षण;
उनके डीएनए (DNA) के रूप में मिथुन के आनुवंशिकता का संरक्षण; और
जीवित आबादी का संरक्षण।
भविष्य के प्रजनन कार्यक्रमों हेतु जीवित पशु संरक्षण के साथ-साथ मिथुन के आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता को मान्यता दी जानी चाहिए। मिथुन जैसे प्राणी को भविष्य में उनके संभावित आर्थिक उपयोग के लिए संरक्षण की आवश्यकता है। साथ ही, इन्हें उनके संभावित वैज्ञानिक उपयोग के लिए भी संरक्षित किया जाना चाहिए। भारत के उत्तर–पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र में मिथुन का पालन पशुधन उत्पादन प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक है। इस प्रजाति के वैज्ञानिक पालन से प्रोटीन (Protein) की आवश्यकता पूरी होती है। इस प्राणी का पालन इसके गरीब पालकों को उनकी आजीविका में अतिरिक्त आय का स्त्रोत भी प्रदान करता है। अतः यह समय की मांग है कि, उन राज्यों में मिथुन की वैज्ञानिक खेती को लोकप्रिय बनाया जाए, जहां मिथुन पालन सदियों पुरानी प्रथा है। इसके लिए सहायक प्रजनन तकनीकों के क्षेत्र में हो रही प्रगति निश्चित रूप से ही किसानों को भविष्य में मदद करेगी।

संदर्भ
https://bit.ly/3oJDuAX
https://bit.ly/43eoABC
https://bit.ly/3N6Q5HG
https://bit.ly/3WLAYqq

चित्र संदर्भ
1. मिथुन एक गोवंशीय प्रजाति का जानवर है। इसे गयाल नाम से भी जाना जाता है। को दर्शाता एक चित्रण (Store norske leksikon)
2. मिथुन के चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (Picryl)
3. जंगल में चरते मिथुन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. नदी किनारे खड़े मिथुन को संदर्भित करता एक चित्रण (Thai National Parks)
5. मिथुन के कंकाल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • मेहरगढ़: दक्षिण एशियाई सभ्यता और कृषि नवाचार का उद्गम स्थल
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:26 AM


  • बरोट घाटी: प्रकृति का एक ऐसा उपहार, जो आज भी अनछुआ है
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:27 AM


  • आइए जानें, रोडिन द्वारा बनाई गई संगमरमर की मूर्ति में छिपी ऑर्फ़ियस की दुखभरी प्रेम कहानी
    म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण

     19-11-2024 09:20 AM


  • ऐतिहासिक तौर पर, व्यापार का केंद्र रहा है, बलिया ज़िला
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:28 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर चलें, ऑक्सफ़र्ड और स्टैनफ़र्ड विश्वविद्यालयों के दौरे पर
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:27 AM


  • आइए जानें, विभिन्न पालतू और जंगली जानवर, कैसे शोक मनाते हैं
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:15 AM


  • जन्मसाखियाँ: गुरुनानक की जीवनी, शिक्षाओं और मूल्यवान संदेशों का निचोड़
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:22 AM


  • जानें क्यों, सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में संतुलन है महत्वपूर्ण
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, जूट के कचरे के उपयोग और फ़ायदों के बारे में
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:20 AM


  • कोर अभिवृद्धि सिद्धांत के अनुसार, मंगल ग्रह का निर्माण रहा है, काफ़ी विशिष्ट
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:27 AM






  • © - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id