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कैसे बन सकता है भारत एक अग्रणी मछली उत्पादक देश

रामपुर

 05-04-2023 10:35 AM
मछलियाँ व उभयचर

मत्स्य पालन किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे एक उदीयमान क्षेत्र माना जाता है। यह परिकल्पना की जाती है कि मत्स्यपालन के क्षेत्र में समान, जिम्मेदार और समावेशी तरीके से विकास के लिए बड़ी क्षमता है। यह क्षेत्र भारत में लगभग 28 दशलक्ष मत्स्य किसानों और मछुआरों को रोजगार देता है। सरकार के अनुसार, इस क्षेत्र में मछुआरों और मत्स्य किसानों की आय को दोगुना से अधिक करने की अपार क्षमता है।
‘भारतीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय’ (Ministry of Fisheries, Animal Husbandry and Dairying) के द्वारा साझा की गई जानकारी के अनुसार, मछली उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है। चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक है। इसके साथ ही भारत जलीय कृषि (Aquaculture) उत्पादन के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत दुनिया में मछलियों का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है क्योंकि भारत द्वारा वैश्विक मछली उत्पादन में 7.7% का योगदान दिया जाता है। 2017-18 में भारत से हुए कुल निर्यात में लगभग 10% मछलियां और लगभग 20% कृषि निर्यात शामिल था । मत्स्य पालन और जलीय कृषि उत्पादन भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 1% और कृषि सकल घरेलू उत्पाद में 5% से अधिक का योगदान देता है। खाद्य और कृषि संगठन ने बताया है कि वैश्विक समुद्री मछली भंडार को लगभग 90% या कहा जाए तो पूरी तरह से इस हद तक शोषित किया गया है कि जैविक रूप से इनकी पुनर्प्राप्ति संभव नहीं है। अत्यधिक मछली पकड़ने , जल निकायों में प्लास्टिक और अन्य अपशिष्ट जैसे हानिकारक पदार्थों का निर्वहन करने तथा बदलती जलवायु के कारण जलीय जीवन के लिए विनाशकारी परिणाम सामने आ रहे हैं।
मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए केंद्र सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाएं और बजट आवंटन में वृद्धि भी अब तक अपने उद्देश्यों में विफल रही हैं । देश में आज भी 67% से अधिक समुद्री मछली पकड़ने वाले परिवार गरीबी में ही जीवन यापन कर रहे हैं। भारत में समुद्री मछली पकड़ने में लगभग 8.93 लाख परिवार लगे हुए है। तटीय राज्य तमिलनाडु में, कुल 2.01 लाख मछुआरा परिवारों में से लगभग 91% परिवार ऐसे हैं जो गरीबी रेखा के नीचे आते हैं। भारतीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, पुडुचेरी और कर्नाटक में भी, क्रमशः 90.3% और 84% मछुआरे परिवार गरीबी रेखा के नीचे हैं। पारंपरिक मछुआरा समुदाय, वे गरीब लोग हैं, जिनके पास आजीविका का कोई अन्य साधन या कोई अन्य योग्यता नहीं है। छोटे मछुआरे अपनी नाव बनाने के लिए निजी साहूकारों से उच्च ब्याज दरों पर पैसा उधार लेते हैं। इस प्रकार वे ऋण के बोझ तले दब जाते हैं और इससे उनकी वित्तीय स्थिति और खराब हो जाती है। देश में कुल 8.93 लाख मछुआरा परिवारों में से लगभग 5 लाख परिवार गरीबी में जी रहे हैं। केवल 1–2% मछुआरों के पास मोटरबोट या उन्नत नौकाएँ हैं। एक छोटी नाव में 21 दिन तक शिकार करने का खर्चा लाखों में चला जाता है, जो छोटे मछुआरों के लिए संभव नहीं है। उन्हें जो भी पैसा मिलता है, वह उनकी नावों और डीजल पर खर्च हो जाता है। साथ ही, उन्हें लंबी समुद्री यात्रा करने के लिए किराने का सामान आदि पर भी खर्चा करना पड़ता है। यहां तक ​​कि बड़े मछुआरे भी अपनी नावों, डीजल और श्रमिकों के भुगतान पर होने वाले अतिरिक्त खर्च के कारण बहुत अधिक लाभ नहीं कमा पाते हैं। कोविड–19 महामारी के दौरान, मछली पकड़ने के क्षेत्र में भारी मंदी देखी गई, जिसमें अधिकांश स्थानों पर मछली पकड़ना बंद कर दिया गया था। यहां तक ​​कि जिन क्षेत्रों में उत्पादन हो रहा था, वहां भी इसके लिए कोई बाजार उपलब्ध नहीं था।
अतः अब मत्स्य पालन के क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए केंद्र ने पिछले पांच वर्षों में मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए बजट आवंटन में 80% से अधिक की वृद्धि की है, और आने वाले वर्षों में हम इसमें और अधिक वृद्धि की उम्मीद कर सकते है। मत्स्य पालन के लिए 2015-16 में आवंटित 41,681 करोड़ रुपए के बजट से, 2019-20 में बढ़कर यह बजट आवंटन 77,025 करोड़ रुपए हो गया है।
दिसंबर 2014 में, प्रधान मंत्री (पीएम) नरेंद्र मोदी द्वारा “नीली क्रांति” का आह्वान किया गया था जिसके तहत मत्स्य पालन की क्षमता का दोहन करने के लिए कई उपाय किए गए । कुछ प्रमुख उपायों में मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी के लिए एक अलग मंत्रालय का निर्माण; एक स्वतंत्र प्रशासनिक ढांचे के साथ मत्स्योद्योग विभाग का गठन; नीतिगत सुधार की पहल करना; और वित्त वर्ष 2018-19 में मत्स्य पालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास के लिए 7,522.48 करोड़ रुपए मूल्य की निधि उपलब्ध कराना आदि शामिल हैं। इन्हीं उपायों के चलते अब तक, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 20 मछली पकड़ने के बंदरगाह और 16 मत्स्य स्थलन केंद्रों के लिए निजी लाभार्थियों से 120.23 करोड़ रुपये के 25 प्रस्तावों के साथ-साथ 4,923.94 करोड़ रुपये के प्रस्तावों की सिफारिश की गई है । भारत सरकार ने मत्स्य पालन क्षेत्र में 20,050 करोड़ रुपये के अब तक के सबसे अधिक निवेश के साथ अपनी प्रमुख योजना, ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’ (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana (PMMSY) भी शुरू की है। इस योजना का उद्देश्य छोटे मछली किसानों की आय को दोगुना करना एवं उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ, घरेलू खपत और निर्यात आय में वृद्धि और उपज के बाद के नुकसान को कम करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए इस क्षेत्र को समग्र रूप से बदलना है। मछली उत्पादन बढ़ाने और उपज के नुकसान को कम करने के लिए, मछली पकड़ने और उपज के बाद विविध प्रबंधन के लिए आधुनिक जलीय कृषि के तरीकों को अपनाना आवश्यक है। इसके लिए पीएमएमएस योजना द्वारा मछली किसानों एवं मछुआरों के कौशल और क्षमता निर्माण पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
देश भर में, इस योजना को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है। यह साझा करना प्रेरणादायक है कि देश में मछली उत्पादन 2019-20 के दौरान हुए 141.64 लाख टन उत्पादन से बढ़कर आज की तारीख में 162.53 लाख टन हो गया है। दूसरी ओर, भारत का मत्स्य निर्यात भी 57,586.48 करोड़ रुपये के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है। अब तक मंजूर की गई गतिविधियों और परियोजनाओं ने लगभग 3,50,000 लोगों के लिए प्रत्यक्ष रूप से रोजगार सृजित किया है, और संपूर्ण मूल्य श्रृंखला में 9,70,000 से अधिक लोगों को रोजगार दिया गया है। प्रति लाभार्थी प्रति वर्ष 3,000 रुपयों की केंद्रीय सहायता द्वारा भी कुल 6,77,462 सीमांत मछली किसानों और उनके परिवारों को मछली पकड़ने पर प्रतिबंध या कम उत्पादन के दौरान आजीविका और पोषण संबंधी सहायता प्रदान की जा रही है। मछली उत्पादन को बढ़ावा देने , टिकाऊ मत्स्य पालन प्रथाओं को बढ़ावा देने और उचित जैविक वातावरण का समर्थन करने के लिए, पीएमएमएस योजना द्वारा एक समुद्र और नदी मत्स्य पालन कार्यक्रम शुरू किया गया है। यह योजना समुद्री शैवाल की खेती और अलंकारिक मत्स्य पालन जैसे वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान करके अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं, के लिए रोजगार सृजन पर विशेष जोर देती है। यह योजना महिला उद्यमियों को विशेष लाभ प्रदान करने के उद्देश्य से महिला लाभार्थियों को 60% सब्सिडी प्रदान करती है। इस योजना के तहत महिलाओं के लिए 1534.05 करोड़ रुपये की परियोजनाएं स्वीकृत की गई हैं, जिससे 37,576 महिला लाभार्थियों को सहायता मिली है। निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए, मत्स्य संपदा योजना द्वारा उद्यमी मॉडल के तहत 100 करोड़ रुपये का एक अलग कोष निर्धारित किया गया है जिसके द्वारा युवा उद्यमियों से प्रौद्योगिकी के माध्यम से समाधान पेश करने का आग्रह कर प्रोत्साहित किया जाता है। संस्थागत ऋण तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने और कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 से किसान क्रेडिट कार्ड सुविधाओं को भी मत्स्य किसानों तक पहुंचाया है।
केंद्र सरकार के नक्शे कदम पर चलते हुए, उत्तर प्रदेश सरकार ने भी वित्तीय वर्ष 2022-23 में राज्य में ‘मछुआ’ समुदाय की 17 उप-जातियों के सामाजिक और आर्थिक कल्याण के लिए दो नई योजनाएं शुरू की हैं। बजट 2022-23 में ‘मुख्यमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना’ और ‘निषादराज नाव सब्सिडी योजना’ नामक इन दो नई योजनाओं के लिए 4 करोड़ रुपये का प्रारंभिक प्रावधान किया गया है। ये योजनाएं पूरी तरह से राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित हैं। इन योजनाओं से राज्य में मछली उत्पादन में वृद्धि होगी और अधिक प्रभावी रूप से, उन सभी की आय दोगुनी हो जाएगी जिन्हें ग्राम सभाओं द्वारा तालाबों के लिए पट्टे आवंटित किए गए हैं। इन योजनाओं के तहत अनुसूचित जाति वर्ग के गरीब लोगों को भी लाभ पहुंचाने का प्रावधान किया गया है। योजना के तहत, राज्य सरकार नाव और मछली पकड़ने के जाल खरीदने के लिए सब्सिडी प्रदान करेगी। इस योजना के द्वारा हर साल ग्राम सभाओं में 1,500 पट्टा धारकों को लाभ पहुंचाया जाएगा, इस प्रकार पांच वर्षों में कुल 7,500 लोगों को लाभान्वित किया जाएगा। ग्राम सभाओं में मनरेगा के तहत अभिसरण के माध्यम से जिन तालाबों में सुधार किया गया है और जिनके लिए पट्टा जारी किया गया है, उन तालाबों पर राज्य सरकार प्रथम वर्ष में 100 मछली बीज बैंक स्थापित करेगी तथा आने वाले पांच वर्षों में ऐसे 500 से अधिक बैंक स्थापित किए जाएंगे। सरकार ऐसे तालाबों पर पट्टाधारकों द्वारा प्रथम वर्ष में किए गए निवेश पर 40% की सब्सिडी देगी।
इस योजना से पहले वर्ष में 500 हेक्टेयर और पांच वर्षों में 2,500 हेक्टेयर भूमि पर बने तालाबों के पट्टा धारकों को लाभ होगा। बीज बैंकों की स्थापना से स्थानीय स्तर पर मछली की कई प्रजातियों के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले मछली के बीज की उपलब्धता भी सुनिश्चित होगी। मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से अलग है जो निजी भूमि पर तालाबों को कवर करती है। इस योजना ने प्रधान मंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY) को भी मंजूरी दी, जिससे इस क्षेत्र में लगभग 20,000 करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित होने की उम्मीद है। इन हस्तक्षेपों के साथ, भारत सरकार स्थायी मत्स्य पालन और जलीय कृषि क्षेत्र में विश्व में अग्रसर बनने की दिशा में भारतीय मत्स्य पालन को विकसित करने के प्रयास कर रही है।

संदर्भ

https://bit.ly/3nuM0D0
https://bit.ly/40JbDy4
https://bit.ly/3Zszzog
https://bit.ly/3lSK32B

चित्र संदर्भ

1. एक प्रसन्न मछली पालक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. मछली पकड़ते भारतीय को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. मछली फार्म को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. मछुआरों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना को दर्शाता चित्रण (pmmsy)
6. मछली पालकों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)



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