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शरीर में छोटी-छोटी सुइयों को चुभोकर उपचार करने की ‘एक्यूपंक्चर’ (Acupuncture) नामक अनोखी चिकित्सा पद्धति की उत्पत्ति का श्रेय चीन (China) को दिया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतिहासकारों के अनुसार, प्राचीन भारत में भी इससे मिलती-जुलती उपचार पद्धतियों का चलन था। लेकिन आज पर्याप्त दस्तावेजी प्रमाणों के अभाव में इनकी पुष्टि नहीं की जा सकती है ।
चिकित्सा उद्देश्यों या दर्द को कम करने के लिए, शरीर के विशेष (निर्दिष्ट) बिंदुओं में नुकीली सुइयों को चुभोकर इलाज करने की प्रक्रिया को एक्यूपंक्चर कहा जाता है। हालांकि, चीन में एक्यूपंक्चर की उत्पत्ति अनिश्चित मानी जाती है। परंतु चीन में पाषाण युग के नुकीले चिकित्सीय पत्थरों, जिन्हें बियान शि (Bianshi) कहा जाता है, के रूप में एक्यूपंक्चर के प्रमाण पाए जाते हैं। प्रारंभिक स्तर पर एक्यूपंक्चर का वर्णन करने वाला सबसे पहला चीनी चिकित्सा लेख, ‘येलो एम्परर्स क्लासिक ऑफ इंटरनल मेडिसिन’ (Yellow Emperor Classic Of Internal Medicine), जिसे एक्यूपंक्चर का इतिहास कहा जाता है और जो लगभग 305-204 ईसा पूर्व में निर्मित हुआ था, को माना जाता है, ।
एक किंवदंती के अनुसार, चीन में एक्यूपंक्चर की शुरुआत तब हुई जब एक युद्ध में तीरों से बुरी तरह घायल सैनिकों ने शरीर के विभिन्न हिस्सों में दर्द के बजाय राहत महसूस होने की बात कही । इसके बाद कई लोगों ने तीरों और बाद के वर्षों में सुइयों के साथ प्रयोग करना शुरू किया और इस प्रकार एक्यूपंक्चर पद्धति एक चिकित्सा पद्धति के रूप में प्रचलित हो गई। गुजरते समय के साथ एक्यूपंक्चर पद्धति चीन से कोरिया (Korea), और फिर जापान (Japan), वियतनाम (Vietnam) तथा पूर्वी एशिया (East Asia) के देशों में फैल गई। 16वीं शताब्दी में पुर्तगाली मिशनरी (Portuguese Missionaries) के साथ एक्यूपंक्चर पद्धति पश्चिम में भी फ़ैल गई।
एक्यूपंक्चर पद्धति द्वारा उपचार, रक्त प्रवाह का प्रबंधन करता है। एक्यूपंक्चर के चिकित्सा साहित्य का प्रमुख सिद्धांत “कोई रुकावट नहीं; कोई दर्द नहीं”, होता है। 6000 ईसा पूर्व में पहले एक्यूपंक्चर उपचार के लिए सुइयों के बजाय नुकीले पत्थरों और लंबी नुकीली हड्डियों का इस्तेमाल किया जाता था। इन उपकरणों का उपयोग साधारण शल्य प्रक्रियाओं (Surgical Procedures) जैसे कि फोड़ा निकालने आदि के लिए भी किया जाता था। एक्यूपंक्चर सिद्धांत की परंपरा का मानना है कि मानव शरीर के भीतर ऊर्जा प्रवाहित होती है और संतुलन तथा स्वास्थ्य बनाने के लिए इस ऊर्जा को निर्दिष्ट किया जा सकता है। इस ऊर्जा प्रवाह को ‘क्यूई’ (Qi) कहा जाता है और चीनी भाषा में इसका उच्चारण ‘ची’ (Chi) होता है।
एक्यूपंक्चर सिद्धांत का मानना है कि यह क्यूई अर्थात ऊर्जा प्रवाह पूरे शरीर में 12 मुख्य धाराओं में बहता है जिन्हें मेरिडियन (Meridian) कहा जाता है। ये मेरिडियन शरीर के प्रमुख अंगों और कार्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि, ये मेरिडियन नसों या रक्त प्रवाह के सटीक मार्गों का पालन नहीं करते हैं।
एक्यूपंक्चर पद्धति का विकास धीरे-धीरे अनेकों शताब्दियों के दौरान हुआ और समय के साथ चीन में उपयोग किए जाने वाले प्रमुख मानक उपचारों में से एक बन गया। 14वीं और 16वीं शताब्दी के बीच मिंग राजवंश (Ming dynasty) के कार्यकाल के दौरान ‘द ग्रेट कॉम्पेंडियम ऑफ एक्यूपंक्चर और मोक्सीबस्टन’ (The Great Compendium of Acupuncture and Moxibustion) नामक महान संग्रह को एक्यूपंक्चर के सिद्धांतों के साथ प्रकाशित किया गया था, जिस पर इस परंपरा की आधुनिक प्रथाएं टिकी हुई हैं। यह पुस्तक ऐसे 365 बिंदुओं का वर्णन करती है, जिनके माध्यम से क्यूई के प्रवाह को संशोधित करने के लिए शरीर में सुइयों को डाला जा सकता है।
17वीं सदी के बाद से इस परंपरा में लोगों की दिलचस्पी कम होने लगी। इसे अतार्किक और अंधविश्वास से जकड़ा हुआ माना जाने लगा। 1822 में सम्राट के फरमान के बाद ‘इंपीरियल मेडिकल इंस्टीट्यूट’ (Imperial Medical Institute) से एक्यूपंक्चर को बाहर कर दिया गया । अब यह ज्ञान ग्रामीण चिकित्सकों और कुछ विद्वानों तक ही सीमित रह गया। 20वीं शताब्दी में पश्चिमी चिकित्सा के उदय के साथ, एक्यूपंक्चर प्रथाएं और अधिक बदनाम हो गईं। 1929 में पारंपरिक चिकित्सा के अन्य रूपों के साथ इसे चीन में भी प्रतिबंधित कर दिया गया था।
हालांकि, 1949 में कम्युनिस्ट सरकार (Communist Government) ने एक्यूपंक्चर सहित चिकित्सा के पारंपरिक रूपों को फिर से पुनर्जीवित किया। 1950 के दशक में पूरे चीन में एक्यूपंक्चर अनुसंधान संस्थान स्थापित किए गए और यह अभ्यास कई अस्पतालों में उपलब्ध हो गया। इसके साथ ही यह प्रथा कई अन्य देशों में भी फैल गई। कोरिया और जापान ने पहले ही छठी शताब्दी में इसका ज्ञान प्राप्त कर लिया था । ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के लिए काम करने वाले यूरोपीय चिकित्सक टेन रिजने (Ten Rhijne) ने लगभग 1680 में चिकित्सकीय रूप से इस प्रथा का वर्णन किया। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में अमेरिका (America) और ब्रिटेन (Britain) दोनों देशों में भी इस प्राचीन चिकित्सा प्रणाली के प्रति रुचि बढ़ने लगी।
1971 में चीन के दौरे पर आए एक अमेरिकी प्रेस कोर के सदस्य का एक आपातकालीन उपांत्र-उच्छेदन (Emergency Appendectomy) के बाद एक्यूपंक्चर के द्वारा भी सफलतापूर्वक इलाज किया गया था। उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स (New York Times) में अपने अनुभव का वर्णन किया, जिसके कारण लोगों के बीच इसके प्रति रुचि और अधिक बढ़ने लगी।
विशेषज्ञों के अनुसार एक्यूपंक्चर प्रणाली, भारत और चीन के बीच भी दोस्ती का एक सेतु बन गई है। पिछले कुछ दशकों में कई भारतीय भी इस पारंपरिक चीनी चिकित्सा प्रणाली के इस रूप को अपना रहे हैं। डॉ. बी.के. बसु ने 1959 में पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में पहली बार भारत में एक्यूपंक्चर की शुरुआत की। पिछले साठ वर्षों में, एक्यूपंक्चर भारत के ग्रामीण, अर्ध-शहरी और शहरी क्षेत्रों विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और पंजाब राज्यों में लोकप्रिय हो गया है।
2019 में, केंद्र सरकार ने भी एक्यूपंक्चर को एक प्रकार की स्वास्थ्य सेवा के रूप में मान्यता दी है।
भारत में एक्यूपंक्चर को और अधिक लोकप्रिय बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। भारत में एक्यूपंक्चर की कहानी भारतीय चिकित्सा मिशन से संबंधित है, जब 1930 और 1940 के दशक में युद्ध के दौरान लोगों की मदद करने के लिए भारतीय सैनिक चीन गए थे। डॉ. बसु मिशन के सदस्य थे और उन्होंने इसी दौरान चीन में एक्यूपंक्चर सीखा था।
डॉ. बसु ने डॉक्टरों को मुफ्त में एक्यूपंक्चर की विधि बता कर और लोगों को इसके फायदे समझने में मदद कर एक्यूपंक्चर की लोकप्रियता बढ़ाने का काम किया। उन्होंने एक्यूपंक्चर के विकास का समर्थन करने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार को अपना घर और बचत भी दान कर दी। एक्यूपंक्चर को बढ़ावा देने और मुफ्त स्वास्थ्य क्लीनिक प्रदान करने के लिए ‘डॉ. कोटनिस मेमोरियल कमेटी’ (Dr. Kotnis Memorial Committee (DKMC) की स्थापना भी की गई थी। डॉ. इंद्रजीत सिंह ढींगरा उत्तरी राज्य पंजाब में एक्यूपंक्चर के विशेषज्ञ हैं। वह लुधियाना में एक छोटा सा अस्पताल चलाते हैं जहां वे एक्यूपंक्चर से मरीजों का इलाज करते हैं। उनका मानना है कि एक्यूपंक्चर शरीर में दर्द, स्त्री रोग संबंधी मुद्दों, पक्षाघात और गठिया सहित कई अलग-अलग स्वास्थ्य समस्याओं में मदद कर सकता है।
एक्यूपंक्चर, जो पारंपरिक चीनी चिकित्सा का एक प्रमुख घटक है, प्राचीन चीन में उत्पन्न होने के लिए जाना जाता है और भारत सहित पड़ोसी देशों और अब पूरे विश्व में प्रचारित हो रहा है। प्राचीन सभ्यता वाले हमारे भारत की आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में हर्बल दवा, शल्य चिकित्सा और योग के साथ-साथ ‘सुचिवेद' नामक उपचार भी शामिल था । सुचिवेद भी एक्यूपंक्चर चिकित्सा से मिलती-जुलती एक उपचार विधि थी, लेकिन ईसाई युग और मध्य युग के दौरान इसके अभ्यास के रिकॉर्ड या सबूत भी विलुप्त हो गए हैं। पिछले 40 वर्षों में एक्यूपंक्चर, दुनियाभर में बहुत लोकप्रिय हो गया है और अब यह संयुक्त राज्य अमेरिका में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली पूरक चिकित्सा पद्धतियों में से एक मानी जाती है। एक्यूपंक्चर, स्वास्थ्य बीमा द्वारा भी कवर किया जाता है और अब इसे कुछ राज्यों में स्वास्थ्य के लिए आवश्यक माना जाता है।
संदर्भ
https://bit.ly/2ClbWXq
https://bit.ly/3TQJWBd
https://bit.ly/42DlfMH
https://bit.ly/2I6AoMK
https://bit.ly/3lKJgkf
चित्र संदर्भ
1. एक्यूपंक्चर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. सुई की चुभन को संदर्भित करता एक चित्रण (Pixnio)
3. येलो एम्परर्स क्लासिक ऑफ इंटरनल मेडिसिन’ को दर्शाता एक चित्रण (amazon)
4. हान राजवंश को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. एक्यूपंक्चर चार्ट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. एक्यूपंक्चर के अभ्यास को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
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