विश्व दलहन दिवस: भारत की कुपोषण से लड़ाई में कैसे सहायता कर सकती हैं, दालें

रामपुर

 10-02-2023 10:42 AM
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भारत में कुपोषण के साथ लड़ाई में हमें चिकित्सकों, दवाइयों और सरकारी योजनाओं का योगदान स्पष्ट तौर पर नज़र आता है। लेकिन इस लड़ाई में एक योद्धा ऐसा भी है, जो अकेले ही कुपोषण को ख़त्म करने और सेहत में क्रांतिकारी सुधार करने में बेहद अहम् भूमिका निभा रहा है। हम सभी के खून में इस समय भी “दाल" नामक यह योद्धा पोषक तत्वों के रूप में बह रहा है।
दालें मानवता के इतिहास में कम से कम 10,000 वर्षों से खाई जा रही हैं और आज दुनिया में सर्वाधिक खाए जाने वाले खाद्य पदार्थों में से एक बन गई हैं। अच्छी बात यह है कि पूरी दुनिया में अधिकांशत भूमि पर विविध प्रकार की दालें उगाई जा सकती है, और यह बात उन्हें आर्थिक और पोषण दोनों की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण बनाती है। दालें हमारे शरीर को जरूरी प्रोटीन (Protein) और फाइबर (Fiber) प्रदान करती हैं, साथ ही दालें आयरन (Iron), जिंक (Zinc) और मैग्नीशियम (Magnesium) जैसे खनिजों तथा विटामिन (Vitamin) का भी महत्वपूर्ण स्रोत होती हैं। प्रतिदिन एक कटोरी राजमा या मटर का सेवन करने से आहार की गुणवत्ता कई गुना तक बढ़ सकती है। इसके अलावा, दालों में पादप रसायन (Phytochemicals), प्रतिउपचायक (Antioxidant) और कैंसर विरोधी (Anti-Carcinogenic) तत्व भी पाए जाते हैं, जिन्हे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से लड़ने में सहायक माना जाता हैं। दालों की खपत रक्तचाप, रक्त संचार और सूजन जैसी कई अन्य हृदय तथा रक्तवाहिका संबंधी बीमारियों के जोखिम को भी कम करती है। दालों में फाइबर की मात्रा अधिक होती है और इनका गलासेइमिक सूचकांक (Glycemic Index) भी कम होता है, जो रक्त शर्करा के स्तर को सामान्य रखते हुए, मधुमेह पीड़ितों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद साबित होता है। दालों का सेवन करने से एचआईवी (HIV) जैसी घातक बिमारियों से लड़ने की संभावना भी बढ़ जाती है। हालांकि, इतने अधिक स्वास्थ लाभों के बावजूद भी भारत में दलहनों अर्थात दालों का उत्पादन निराशाजनक ही रहा है। 2021 में ही ‘भारतीय दलहन और अनाज संघ’ (Indian Pulses and Grains Association (IPGA) द्वारा कोरोना महामारी के कारण बुवाई को लेकर उत्पन्न हुई अनिश्चितता के कारण आने वाले वर्षों में दलहन उत्पादन में संभावित कमी की चेतावनी दी गई है। आईपीजीए के उपाध्यक्ष बिमल कोठारी जी के अनुसार, इस कारण अरहर के उत्पादन में लगभग 10 लाख टन की कमी आ सकती है। दालों के संदर्भ में दीर्घकालीन नीति की कमी पर प्रकाश डालते हुए कोठारी जी ने सुझाव देते हुए कहा कि सरकार द्वारा व्यापारियों को कम शुल्कों के साथ आयात की अनुमति देनी चाहिए, ताकि आयातित वस्तुओं का न्यूनतम अवतरण मूल्य, फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक हो सके। भारत दालों के शीर्ष 10 उत्पादकों में से एक है और दुनिया में दालों की कुल 27-28% मांग की आपूर्ति करता है। भारत में अधिक भूमि का उपयोग करके और उन्नत बीज किस्मों और प्रौद्योगिकियों को शामिल करके दालों के उत्पादन को बढ़ाने की अपार क्षमता है।
भारत में निम्नलिखित दालें व्यापक रूप से उगाई जाती हैं:
देसी काबुली चना / देसी चना
अरहर (तूर/लाल चना)
हरी फलियाँ (मूंग दाल)
राजमा
लोबिया
मसूर
सफेद मटर
2015-16 से अब तक देश का औसत दाल उत्पादन बढ़कर 23 मिलियन टन हो गया है, लेकिन मांग अभी भी अधिक (लगभग 25-26 मिलियन टन) बनी हुई है। वर्तमान में देश, 25 लाख टन दाल का आयात कर रहा है, वहीं मांग हर साल 10 लाख टन बढ़ रही है जिसके कारण दालों की खुदरा कीमतें भी बढ़ रही है । दालों की ऊंची खुदरा कीमतों के बारे में कोठारी जी ने कहा कि सरकार को इन कीमतों पर बारीकी से नजर रखनी चाहिए।
नीचे कुछ तरीके दिए गए हैं जिनसे भारत टिकाऊ दलहन की खेती कर सकता है:
१. फसल क्षेत्र का विस्तार: दलहनी खेती के तहत क्षेत्र में वृद्धि कर अधिक उत्पादन की बहुत संभावना होती है।
२. उर्वरीकरण का अनुकूलन: उर्वरकों के कुशल उपयोग से दलहन जैसी फलीदार फसलों की वृद्धि में सुधार किया जा सकता है।
३. उच्च उपज वाली बीज किस्में: भारत की अनूठी कृषि-जलवायु परिस्थितियों के कारण जल्दी पकने वाली, रोग और कीट-प्रतिरोधी दलहन किस्मों को उगाना महत्वपूर्ण है।
४. मिश्रित फसलें: अन्य फसलों के साथ दलहनों की अंतरवर्तीय खेती से भूमि उत्पादन और आय में वृद्धि हो सकती है।
५. गुणवत्तापूर्ण बीज वितरणः बीज उत्पादक इकाइयाँ और कृषि विश्वविद्यालय किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज उपलब्ध करा सकते हैं।
६. किसानों के लिए वित्तीय सहायता: सरकार को किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए।
2020 में, जब भारत में कोरोना महामारी के कारण पहला लॉकडाउन (Lockdown) लगा था, तब सरकार द्वारा 800 मिलियन से अधिक लोगों को चावल, गेहूं और दालों सहित भोजन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से, ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ (Pradhan Mantri Garib Kalyan Anna Yojana (PMGKAY) की घोषणा की गई थी। ऐसा पहली बार था जब सरकार ने इतने बड़े पैमाने पर दालों का वितरण किया था। अप्रैल से नवंबर 2020 के बीच इस योजना के तहत 1.2 मिलियन टन से अधिक दालों का वितरण किया गया। कुछ राज्य पहले से ही अपने ‘बाल विकास और मध्यान्ह भोजन’ कार्यक्रमों में दालों को शामिल कर चुके हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System (PDS) में दालों को शामिल करने से किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे आयात पर निर्भरता कम होगी। हालांकि, पीडीएस के तहत वितरित किए जाने पर दालों की कमी को लेकर चिंताएं भी हैं। दालों का न्यूनतम समर्थन मूल्य अभी भी कम है, इसलिए किसान अक्सर उन्हें सीधे बाजार में बेच देते हैं। थोक विक्रेता भी अधिकतम 200 टन दालों का ही सीमित भंडारण कर सकते है।
दालों की बढ़ती मांग के साथ, बड़े व्यापारिक समूह भी दालों के कारोबार में प्रवेश कर रहे हैं और वितरण की कई प्रणालियों को दरकिनार करते हुए “कृषि उत्पादन से उपभोक्ता तक” (Farm to Fork) की रणनीति अपना रहे हैं। भारत में शीर्ष तीन व्यापारिक समूह, टाटा, अंबानी और अडानी भी दालों के बाज़ार में प्रवेश कर चुके हैं। यह कंपनियां विशाल प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित कर रही हैं और दालों को सीधे खुदरा बाजारों में पहुंचा रही हैं। इससे छोटे दलहन मिल मालिक प्रभावित हुए हैं, जिन्हें बड़े व्यापारिक समूहों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।
‘ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन’ (All India Dal Mill Association) के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल के अनुसार, सरकारों को छोटे मिल मालिकों की मदद करनी चाहिए, क्योंकि छोटे व्यापारी स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए अधिक आवश्यक होते हैं। दालें, खाद्य और पोषण सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। दलहनों का मिट्टी के साथ भी सहजीवी संबंध होता है क्योंकि ये मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ और उर्वरता को भी बढ़ाती हैं, और उर्वरकों की आवश्यकता को कम करती है। किसानों ने लंबे समय से दालों को अपने फसल चक्र में शामिल किया है, लेकिन हाल के दशकों में इसके उत्पादन में गिरावट आई है, जिससे पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य दोनों प्रभावित हुए हैं। भारत में अपने दाल अथवा दलहन उत्पादन को बढ़ाने और आयात पर निर्भरता कम करने की अपार क्षमता है, बशर्ते दालों के उत्पादन और बिक्री में सुधार के लिए सरकार को किसानों की जरूरतों को समझना होगा, बीज की गुणवत्ता में सुधार करना होगा और न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि करनी होगी।
दालों के महत्व और पोषण संबंधी लाभों के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा 2018 सेप्रत्येक वर्ष 10 फरवरी को ‘विश्व दलहन दिवस’ (World Pulses Day) के रूप में मनाया जाता है। पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य फसलों के महत्व का सम्मान करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र की महासभा (General Assembly) ने 20 दिसंबर, 2013 में एक विशेष संकल्प को अपनाया और 2016 को ‘दलहन के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष’ (International Year Of Pulse(I.Y.P.) के रूप में घोषित किया। संयुक्त राष्ट्र के ‘खाद्य और कृषि संगठन’ (Food and Agriculture Organization (F.A.O.) ने 2016 में इस आयोजन का नेतृत्व किया। इस आयोजन ने दालों के पोषण और पर्यावरणीय लाभों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता को सफलतापूर्वक बढ़ाया। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, गरीबी, खाद्य सुरक्षा और पोषण, मानव स्वास्थ्य और मिट्टी के स्वास्थ्य जैसी वैश्विक चुनौतियों को कम करने में दालें प्रभावशाली भूमिका निभाती हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/40syfng
https://bit.ly/3XkM1pn
https://bit.ly/3X0vypT
https://bit.ly/3X05b3D

चित्र संदर्भ
1. मध्याहन भोजन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. विविध दालों को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
3. भारतीय दलहन और अनाज संघ को दर्शाता एक चित्रण (ipga)
4. मध्याहन भोजन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. दाल उगाती महिला को दर्शाता करता एक चित्रण (flickr)



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