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जानिए कैसे खेती का विकास बना पृथ्वी से लाखों जानवरों के विलुप्तिकरण का कारण

रामपुर

 30-11-2022 10:40 AM
निवास स्थान

यदि इंसान प्रकृति की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप न करें, तो कुदरत स्वयं ही स्वयं को संतुलित कर देती है। लेकिन हस्तक्षेप करने पर परिणाम बेहद विध्वंसकारी भी सिद्ध हो सकते हैं। इसका प्रमाण हमें लाखों वर्ष पहले पृथ्वी पर रहने वाले विशालकाय जानवरों की विलुप्ति का शोध करके मिल सकता है।
जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट (Journal Scientific Report) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, शोधकर्ताओं ने पाया कि मेडागास्कर द्वीप (Madagascar Island) पर बड़े स्तनधारियों के उन्मूलन में, खेती प्रमुख कारक थी। रिसर्च करने वाले मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ जियो एंथ्रोपोलॉजी (Max Planck Institute of Geoanthropology) के एक बयान के अनुसार, निष्कर्ष बताते हैं कि केवल शिकार ही इन जानवरों की विलुप्ति का एकमात्र कारण नहीं है, बल्कि मनुष्य कई तरीकों से अपने आसपास के जंगली जानवरों की आबादी को प्रभावित करते हैं। परिणाम बताते हैं कि, चराई की प्रजातियों के लिए जंगलों को जलाने, कब्जे और रहने के स्थान में परिवर्तन ने द्वीप पर बड़े जानवरों के विलुप्त होने में अहम भूमिका निभाई है।
अपने निष्कर्ष निकालने के लिए, प्लैंक इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने लगभग 1,000 साल पहले के विशालकाय और अनोखे सरीसृपों, पक्षियों और स्तनधारियों के विशाल द्वीप से अचानक विलुप्त होने की घटनाओं की जांच की। इन मेडागास्कर जीवों (अब-विलुप्त) में गोरिल्ला के आकार के लेमूर, 10 फुट लंबे हाथी पक्षी, भव्य कछुए और एक हजार साल के पिग्मी हिप्पो (Pigmy Hippo) शामिल थे। और उनके लापता होने के लिए अत्यधिक शिकार और जलवायु परिवर्तन के संयोजन को दोषी ठहराया गया था।
प्लैंक इंस्टीट्यूट (Planck Institute) के शोध दल के अनुसार, लेमूर और विशाल हाथी की आबादी , जीवाश्म रिकॉर्ड के अनुसारलगभग उसी समय गायब होने लगी जब कृषि के निशान दिखाई देने लगे। शोधकर्ताओं ने पाया कि विशाल हिप्पो और भव्य कछुओं के खात्में में कृषि सबसे प्रमुख मानव-निर्मित कारण था। हमारे प्राचीन पूर्वजों ने दुनिया के 178 से अधिक सबसे बड़े स्तनधारियों ('मेगाफौना ('Megafauna') को विलुप्त होने के लिए प्रेरित किया। इसे 'क्वाटरनरी मेगाफौना एक्सटिंक्शन' ('Quaternary Megafauna Extinction' (QME) के रूप में जाना जाता है। 52,000 और 9,000 ईसा पूर्व के बीच, दुनिया के सबसे बड़े स्तनधारियों की 178 से अधिक प्रजातियां (भेड़ के आकार से लेकर हाथियों तक, जो 44 किलोग्राम से अधिक थी) को मार दिया गया था। इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि ये मुख्य रूप से मनुष्यों द्वारा संचालित थे।
ऐसी घटनाओं से अफ्रीका सबसे कम प्रभावित था, जो अपने मेगाफौना का केवल 21% हिस्सा ही खो रहा था। मनुष्य अफ्रीका में विकसित हुए, और होमिनिन (Hominin) पहले से ही लंबे समय से स्तनधारियों के साथ संपर्क में थे। इसी प्रकार यूरेशिया में भी 35% मेगाफौना खो गया था। लेकिन ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका और दक्षिण अमेरिका विशेष रूप से बुरी तरह प्रभावित हुए थे जहाँ मनुष्यों के आने के तुरंत बाद, अधिकांश बड़े स्तनधारी चले गए। इंसानों के हस्तक्षेप से ऑस्ट्रेलिया के विशाल 88% जीवों का खात्मा हुआ; उत्तरी अमेरिका में 83% का नुकसान हुआ; और दक्षिण अमेरिका, 72% जानवर विलुप्त हो गए थे। पारिस्थितिक तंत्र के साथ संतुलन की बात तो दूर, शिकारी-संग्रहकर्ताओं की बहुत छोटी आबादी ने उन्हें हमेशा के लिए बदल दिया। 8,000 ईसा पूर्व तक दुनिया में केवल लगभग 5 मिलियन लोग थे। लेकिन मात्र कुछ मिलियन लोगो ने ही सैकड़ों प्रजातियों को मार डाला जो हमें कभी वापस नहीं मिलेगी। आज सर्वसम्मति यह है कि इनमें से अधिकांश के विलुप्त होने का कारण मनुष्य हैं
दुनिया भर में मेगाफौना के विलुप्त होने का समय एक जैसा नहीं था। इसके बजाय, उनके निधन का समय प्रत्येक महाद्वीप पर मनुष्यों के आगमन के साथ निकटता से मेल खाता था। मनुष्य 65 से 44,000 साल पहले कहीं ऑस्ट्रेलिया पहुंचा था। 40,000 साल पहले के बीच, मेगाफौना का 82% सफाया हो गया था। यह इनके उत्तर और दक्षिण अमेरिका में विलुप्त होने से हजारों साल पहले हुआ था। इससे पहले और भी कई घटनाएं मेडागास्कर और कैरेबियाई द्वीपों में हुई थीं।
पृथ्वी के इतिहास में विलुप्त होने की कई घटनाएं हुई हैं। सामूहिक विलोपन की पांच बड़ी घटनाएं हुई हैं, और कई छोटी घटनाएँ हुई हैं। ये घटनाएँ आमतौर पर जानवरों के विशिष्ट समूहों को लक्षित नहीं करती हैं। बड़े पारिस्थितिक परिवर्तन स्तनधारियों से लेकर छोटे सरीसृपों, पक्षियों और मछलियों तक सभी को प्रभावित करते हैं। पिछले 66 मिलियन वर्षों ('सेनोज़ोइक काल (Cenozoic Era)') में उच्च जलवायु परिवर्तनशीलता के समय, न तो छोटे और न ही बड़े स्तनधारी विलुप्त होने के प्रति अधिक संवेदनशील थे। 10,000 ईसा पूर्व में, पृथ्वी की सतह का 40% हिस्सा पूरी तरह से जंगली था और मानव प्रभाव से मुक्त था, इसमें प्राचीन अछूते जंगल, जंगली घास के मैदान, झाड़ियाँ और रेगिस्तान शामिल थे। इस बिंदु तक कम से कम 60% भू-भाग को मनुष्यों द्वारा किसी तरह से छुआ गया था। हमने 8,000 ई.पू. में चारागाह के लिए पहली भूमि देखना शुरू किया। लगभग 7,000 ई.पू. के आसपास फसलें दिखाई दीं, इसके बाद लगभग 6,000 ई.पू गाँवों (घनी आबादी वाली कृषि बस्तियाँ) का उदय हुआ। देखते ही देखते मनुष्य बहुत जल्दी प्रमुख भूमि उपयोगकर्ता बन गया, और वर्ष 900 के आसपास भूमि उपयोग के 5% तक पहुंच गया; 1700 तक 10%; 1880 तक 25%; तक । आज धरती पर सारी भूमि का आधा भाग मनुष्य के कब्जे में है। हमने पिछले 10,000 वर्षों में सभी वनों का एक तिहाई हिस्सा खो दिया है।

संदर्भ
https://bit.ly/3u33h68
https://bit.ly/3OJ81Hq

चित्र संदर्भ
1. मिस्र की कृषि उत्पत्ति दर्शाता एक चित्रण (World History Encyclopedia)
2. मोहनजोदड़ो में बड़े बर्तनों में खेत की उपज ले जाने वाली बैलगाड़ी का मिट्टी और लकड़ी के मॉडल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. पटागोटिटन बनाम स्तनधारी स्केल आरेख को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. एंडीज़ के कठोर, उच्च-ऊंचाई वाले वातावरण में कृषि छतें आम थीं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कृषि के उद्भव और प्रसार के केंद्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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