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बच्चों की जन्म दर में गिरावट क्यों पूर्णतः एक अच्छी खबर नहीं है?

रामपुर

 14-11-2022 10:59 AM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

आपको जानकर आश्चर्य होगा की भारत में हर दिन लगभग 67,385 बच्चों का जन्म होता हैं। लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, देश में प्रजनन दर पहले की तुलना में (प्रतिस्थापन स्तर 2) से नीचे गिर गई है, और महामारी की अनिश्चितता के कारण जन्म दर के और भी कम होने की संभावना है। जिसके प्रभावों के बारे में आगे विस्तार से जानते हैं। पिछले 50 वर्षों के दौरान भारत सहित दुनिया भर में प्रजनन दर में भारी गिरावट दर्ज की गई है। 1952 में, जहां वैश्विक परिवार में औसतन पाँच बच्चे थे वहीं अब उनकी संख्या तीन से कम हो गई हैं।
देश की जन्म दर और प्रजनन दर दोनों अलग-अलग होती हैं:
जन्म दर: प्रति 1,000 व्यक्तियों पर एक वर्ष में जन्में बच्चों की कुल संख्या।
प्रजनन दर: प्रति 1,000 महिलाओं पर एक वर्ष में जन्में बच्चों की कुल संख्या।
जानकार मानते हैं की किसी क्षेत्र में स्थिर जनसंख्या बनाए रखने के लिए कुल प्रजनन दर 2.1 की आवश्यकता होती है। लेकिन पिछली आधी सदी के दौरान, दुनिया भर में प्रजनन दर में लगातार कमी देखी गई है। जानकार मानते हैं की प्रजनन दर के प्रतिस्थापन से नीचे गिरने के साथ ही उच्च निर्भरता, बढ़ती स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा आवश्यकताओं की कई चुनौतियां सामने आएंगी। महामारी के डर और अनिश्चितता से जन्म दर और भी कम होने की संभावना है। हालांकि घटी हुई प्रजनन दर के कई लाभ भी हैं, लेकिन इस जनसांख्यिकीय उपलब्धि की हमें भारी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। आने वाले जनसांख्यिकीय परिवर्तन का भारत के स्वास्थ्य, राजकोषीय और लैंगिक नीतियों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। स्पष्ट है की जन्मों की संख्या में कमी के साथ, युवा आबादी भी सिकुड़ती रहेगी। और जैसे-जैसे युवा आबादी का आकार कम होता जाएगा, वैसे-वैसे वृद्ध वयस्कों की संख्या भी युवाओं से आगे निकल जाएगी। जिसके बाद भारत को अपने सामाजिक-सुरक्षा निर्धारित करने के लिए वृद्ध वयस्कों की बढ़ती संख्या को स्वास्थ्य सेवा, आय-सुरक्षा और बेहतर सामाजिक सुरक्षा भी मुहैया करानी होगी। भारत ने 1970 के दशक से खाद्य असुरक्षा को कम करने में कई मील के पत्थर हासिल किए हैं, लेकिन, वृद्ध वयस्कों के लिए अभी भी खाद्य और पोषण असुरक्षा का खतरा बना हुआ है, जिसका प्रमुख कारण है की उनकी घटती सामाजिक और आर्थिक सौदेबाजी की शक्ति अक्सर उन्हें सामाजिक सुरक्षा पर निर्भर बना देती है। भारत में लॉन्गिट्यूडिनल एजिंग स्टडी (Longitudinal Aging Study) के अनुसार, 45 वर्ष से अधिक आयु के 6% भारतीयों ने अपने घर में अपर्याप्त भोजन का अनुभव किया है। दुर्भाग्य से बढ़ती वृद्ध वयस्क आबादी के साथ ही इस संख्या के बढ़ने की उम्मीद भी की जा सकती है। स्वास्थ्य सेवा भारत के लिए हमेशा से एक चुनौती रही है। बढ़ती चिकित्सा लागत, महंगा स्वास्थ्य बीमा और परिवहन बाधाओं ने भारत में कम आय वाली आबादी के बीच स्वास्थ्य सेवा की पहुंच को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। बढ़ती हुई वयस्क आबादी के साथ, ये चुनौतियाँ भी और कठिन होती जा रही हैं। चूंकि घटते जन्मों के कारण परिवार का आकार भी सिकुड़ जाता है, ऐसे अनौपचारिक सुरक्षा जाल निकट भविष्य में एक व्यवहार्य विकल्प नहीं हो सकते हैं। स्पष्ट है की घटती प्रजनन दर बढ़ती निर्भरता अनुपात के रूप में एक राजकोषीय चुनौती भी पेश करेगी। एक सर्वेक्षण में 15-64 आयु वर्ग की जनसंख्या की तुलना में 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या के रूप में मापा गया, जिसके अनुसार भारत में निर्भरता अनुपात 1960 के 5.4 से बढ़कर 2020 में 9.8 हो गया और 2050 में यह अनुपात बढ़कर 20.3 से अधिक हो जाएगा। जैसे-जैसे युवा आबादी घटती जाएगी, युवाओं में संसाधन निवेश भी कम होता जाएगा। वृद्ध वयस्क आबादी के भीतर काम की मांग बढ़ेगी और इसके परिणामस्वरूप सेवानिवृत्ति में भी देरी हो सकती है, जिससे "नौकरी की कमी" हो सकती है। जैसे-जैसे आबादी का बड़ा हिस्सा बढ़ता जाएगा, वृद्ध वयस्क महिलाओं की संख्या भी पुरुषों की संख्या से अधिक होती रहेगी। यद्यपि भारत में जीवन प्रत्याशा में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है, लेकिन इससे पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से लाभ नहीं हुआ है। जीवन प्रत्याशा में इस बड़े अंतर के कारण, अधिक महिलाएं अपने जीवन के बाद के चरणों को विधवा के रूप में गुजारेंगी। और हम सभी जानते हैं की ऐतिहासिक रूप से, विधवापन भारत में सामाजिक और आर्थिक असुरक्षा से निकटता से जुड़ा हुआ है। नाइजीरिया (Nigeria) के उत्तर में नाइजर (Niger), प्रति मां 6.7 जन्म के साथ सूची में सबसे ऊपर है। प्रति महिला 5.2 बच्चों के साथ, वैश्विक औसत 2.4 से दोगुने से अधिक, नाइजीरिया दृढ़ता से दुनिया के शीर्ष 10 में शामिल है। हालांकि नाइजीरिया में, जनसंख्या वृद्धि लगभग 2.5% है। लेकिन यहां अभी भी पर्याप्त बिजली या पानी की उपलब्धता नहीं है। साथ ही स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के लिए धन की भी कमी है। विश्व बैंक के 2018/2019 के अनुमानों के अनुसार, नाइजीरिया की 200 मिलियन से अधिक की लगभग 40% आबादी अत्यधिक गरीबी में रह रही थी। नाइजीरिया में दुनिया के स्कूल न जाने वाले बच्चों का पांचवां हिस्सा रहता है। यहां पर आधी वयस्क आबादी बेरोजगार हैं।
हालाँकि नाइजीरिया के विपरीत दक्षिण कोरिया में आंकड़ें विपरीत प्रदर्शन कर रहे हैं। दक्षिण कोरिया आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, दक्षिण कोरिया ने दुनिया की सबसे कम प्रजनन दर के लिए अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया है। सरकार द्वारा संचालित सांख्यिकी कोरिया के अनुसार, देश की प्रजनन दर, 2021 में केवल 0.81 रही जो उसके पिछले वर्ष 2020 की तुलना में 0.03% कम रही। वहीँ 2021 में संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रजनन दर 1.6 और जापान में 1.3 थी, जिसने पिछले साल रिकॉर्ड स्तर पर इसकी सबसे कम दर भी देखी। कुछ अफ्रीकी देशों में, जहां प्रजनन दर दुनिया में सबसे ज्यादा है, यह आंकड़ा 5 या 6 है। एक स्थिर जनसंख्या बनाए रखने के लिए, देशों को 2.1 की प्रजनन दर की आवश्यकता होती है - इससे ऊपर की संख्या जनसंख्या वृद्धि को इंगित करती है। दक्षिण कोरिया की जन्म दर 2015 से गिर रही है, और 2020 में देश में पहली बार जन्म से अधिक मौतें दर्ज की गईं थी। इसका सीधा अर्थ है कि निवासियों की संख्या घट गई। इस बीच, दक्षिण कोरिया की आबादी वृद्ध भी हो रही है, जो जनसांख्यिकीय गिरावट का संकेत दे रही है। दक्षिण कोरिया और जापान में, जन्म में गिरावट के पीछे समान कारण हैं, जिसमें कार्य की मांग, स्थिर मजदूरी, जीवन यापन की बढ़ती लागत और आवास की आसमान छूती कीमतें शामिल हैं। कई दक्षिण कोरियाई महिलाओं का कहना है कि उनके पास बच्चों पर खर्च करने के लिए पर्याप्त समय, पैसा या भावनात्मक क्षमता नहीं है, क्योंकि वे अपने करियर को अत्यधिक प्रतिस्पर्धी नौकरी के बाजार में सबसे पहले रखती हैं जिसमें उन्हें अक्सर पितृसत्तात्मक संस्कृति और लैंगिक असमानता का सामना करना पड़ता है।
हालांकि दक्षिण कोरियाई सरकार ने हाल के वर्षों में गिरती प्रजनन दर से निपटने के लिए कई उपाय किए हैं, जिसमें माता-पिता दोनों को एक ही समय में माता-पिता की छुट्टी लेने की अनुमति देना और भुगतान किए गए पैतृक अवकाश को बढ़ाना भी शामिल है। हमारे देश में बच्चों के अधिकारों, शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए पूरे भारत में बाल दिवस भी मनाया जाता है। यह हर साल 14 नवंबर को भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन पर मनाया जाता है।

संदर्भ
https://bit.ly/3hB5z9N
https://bit.ly/3NXDq8U
https://cnn.it/3tpJ5uY
https://bit.ly/3NXDCVG

चित्र संदर्भ
1. माँ बच्चे को दर्शाता एक चित्रण ( needpix)
2. देश द्वारा कुल प्रजनन दर के नक़्शे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. बुजुर्ग लोगों, पेंशनभोगी, सेवानिवृत्त को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. 2016 तक भारत का टीएफआर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. राज्य के अनुसारनाइजीरिया की कुल प्रजनन दर (2018 डीएचएस) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. दक्षिण कोरियाई परिवार को दर्शता एक चित्रण (flickr)



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