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संगीत में गजब की क्षमता होती है, यह आपकी बिगड़ी मनोदशा को बदल सकता है, बारिश करा सकता है, और यहां तक की भारत के इतिहास में कई ऐसे वर्णन मिलते हैं, जब संगीत एवं शक्तिशाली रागों ने दीपों को प्रज्वलित कर दिया, और ऐसा करने वाले और कोई नहीं, बल्कि बादशाह अकबर के नौ रत्नों में से एक “तानसेन” थे।
तानसेन का वास्तविक नाम तनसुख तन्ना था और उनका जन्म 1486 में ग्वालियर के नजदीक एक गांव में हुआ। तनसुख बचपन से ही पशु-पक्षियों की आवाज की नकल करने के साथ-साथ मनमोहक गायन भी करते थे। उनके संगीत के गुणों से प्रभावित होकर एक दिन भक्त कवि, शास्त्रीय संगीतकार तथा कृष्णोपासक सखी संप्रदाय के प्रवर्तक स्वामी हरिदास ने तानसेन, को उनके पिता से मांग कर उन्हें संगीत सिखाया। उन्होंने ग्वालियर की महारानी मृगनयनी से भी संगीत सीखा और उन्हीं की दासी हुसैनी से विवाह किया।
इसके बाद कई साम्राज्यों के शासकों ने तानसेन को अपने दरबार में रहने और गायन करने का मौका दिया। वहीं एक बार अकबर के दरबारी अबुल फजल ने तनसुख की गायकी सुनी तो अकबर से उन्हें आगरा दरबार में बुलाने का आग्रह किया। दरबार आगमन के पश्चात् मुग़ल सम्राट अकबर ने तनसुख के गायन से प्रभावित होकर उन्हें अपने नौ रत्नों में संगीत रत्न तौर पर स्थान दिया। अकबर ने उनकी गायन शैली से प्रभावित होकर उन्हें तानसेन नाम दिया और संगीत सम्राट की उपाधि प्रदान की। जिसके पश्चात् तानसेन 1586 में अपनी मृत्यु तक मुगल दरबार में ही रहे।
शाही दरबार के इतिहासकार अबुल फजल तानसेन के बारे में लिखते हैं: "उनके जैसा गायक पिछले हज़ार साल से भारत में नहीं हुआ है।"
अकबर के पुत्र जहांगीर ने अपनी जीवनी में तानसेन के बारे में इन शब्दों में लिखा है: “उनके जैसा गायक किसी भी समय या उम्र में नहीं हुआ है। अपनी एक रचना में, उन्होंने एक अपने के चेहरे की तुलना सूर्य से की है और अपनी आंखों के खुलने की तुलना कमल के विस्तार और मधुमक्खी के बाहर निकलने से की है। एक अन्य स्थान पर, उन्होंने अपने प्रिय के पार्श्व-नज़र की तुलना उस कमल की गति से की है, जब मधुमक्खी उस पर उतरती है।"
तानसेन के भावपूर्ण गायन के बारे में कई किंवदंतियाँ हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब वह मेघ मल्हार राग गाते थे, तो मात्र कुछ ही क्षणों में बादल एकत्र हो जाते थे और बारिश होने लगती थी। वह अपने शक्तिशाली संगीत से जंगली जानवरों को वश में करने के लिए भी जाने जाते थे। उनकी सभी किंवदंतियों में सबसे प्रसिद्ध "दीपक राग" का प्रदर्शन करके आग लगा देना भी है। दरसल दीपक राग को जब प्राचीन काल में गाया जाता था तो इस राग को गाने और सुनने मात्र से ही व्यक्ति जलकर राख हो सकता था। कहा जाता है़ कि इस राग के गाते ही दीपक स्वयं ही जल उठते थे। इसीलिए इस राग को दीपक राग के नाम से जाना जाता है़।
तानसेन अकबर के बेहद प्रिय व्यक्ति थे और इसी कारण अकबर के कई दरबारी तानसेन से ईर्ष्या करते थे। उनकी बस एक ही इच्छा थी कि किसी प्रकार अकबर की नजरों मे तानसेन को नीचा दिखाया जाये। एक बार जब अकबर के एक मुस्लिम दरबारी का सामना एक शास्त्रीय गायक से हुआ, तो उसे पता चला कि संगीत में एक ऐसा भी राग है़ जिसको गाने से इंसान जल कर राख हो सकता है़। जब यह बात उस दरबारी ने दूसरे दरबारियों को बतायी तो उन्होंने मिलकर एक योजना बनायी।
योजना के अनुसार दूसरे दिन कुछ दरबारी सम्राट अकबर के पास पहुँचे और उन्होंने अकबर को बताया कि आपके दरबार की शोभा बढ़ाने वाले तानसेन जी “दीपक राग” का सुंदर गायन करते हैं। लेकिन अब तक महाराज को तानसेन ने दीपक राग नहीं सुनाया है़। इसके बाद जब संगीत सम्राट तानसेन जब दरबार में उपस्थित हुये तो अकबर ने तानसेन से दीपक राग सुनने की इच्छा जाहिर की।
तानसेन दरबारियों की चाल को भांप गए थे। हालांकि गायक तानसेन ने अकबर को दीपक राग सुनाने से मना किया, लेकिन अकबर तानसेन से दीपक राग सुनने के लिए अड़ गए। दरअसल अकबर यह नहीं जानते थे कि दीपक राग कितना खतरनाक है़। जिसके गाते ही अग्नि वर्षा होने लगेगी। लेकिन तानसेन को भी इसे न गाने पर मृत्यु दंड का भय था।
अतः तानसेन को इस अग्नि से बचने का एक शानदार उपाय सूझा और उन्होंने इसे गाने से पूर्व अकबर से कुछ समय मांगा। इस दौरान उन्होंने अपनी बेटी को मेग मल्हार राग पढ़ाया। नियत दिन पर, पूरा शहर उसे गाते देखने के लिए दरबार के बाहर इकट्ठा हुआ। जब तानसेन ने दीपक राग गाना शुरू किया तो महल के दीये जल उठे और आग भड़क उठी। जब उनकी बेटी ने आग की लपटों को देखा, तो उसने मेघ मल्हार राग गाना शुरू कर दिया जो बादलों को बुलाता था और बारिश होने लगी। इस प्रकार बारिश और उनकी बेटी ने तानसेन की जान बचाई।
कहा जाता है की उस दिन तो तानसेन ठीक हो गए, लेकिन इसके बाद उनकी तबियत ख़राब रहने लगी और तीन साल बाद बीमार रहने के बाद तानसेन इस दुनिया से विदा हो गए। उनकी इच्छा के अनुसार उनके पार्थिव शरीर को उनके गुरु मोहम्मद गौस खान की कब्र के पास दफनाया गया। आज भी उनकी समाधि वहीं पर है।
दीपक राग का शुद्ध रूप अब देखने को नहीं मिलता है। कहते हैं कि अट्ठारहवि शताब्दी में ही ये राग लुप्त होने लगा था, क्योंकि इसके गाने से गायक के शरीर में अत्यधिक गर्मी पैदा होने लगती थी। द प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम, बॉम्बे (The Prince of Wales Museum, Bombay) में तानसेन का एक चित्र है। पेंटिंग के पीछे शिलालेख कहता है, "तानसेन ने राग दीपक गाया था, और उनके अद्भुत संगीत से प्रज्वलित आग ने उनके शरीर को भस्म कर दिया"। तानसेन ने बहुत से रागों की रचना की और रबाब नामक एक वाद्य यंत्र का भी आविष्कार किया। रबाब अब ज्यादातर उत्तरी भारत और पाकिस्तान में बजाया जाता है।
संगीतज्ञों के अनुसार दीपक राग रात्रि में दूसरे पहर में गाया जाने वाला राग है। पुरुष राग के छह रागों में दीपक और मल्हार राग प्रमुख माने जाते हैं। तानसेन ध्रुपद गायक थे और उन्होंने मियां की तोड़ी, दरबारी कान्हड़ा आदि रागों की भी रचना की। तानसेन की टक्कर के संगीतकार और गायक बैद्यनाथ उर्फ बैजू बावरा तथा कर्ण बताए जाते हैं। मान्यता है की उन्होंने अकबर के दरबार में प्रतियोगिता में तानसेन को भी हरा दिया था। दीपावली के दिन दीपक राग के गायन से उत्पन्न ऊर्जा-उष्मा दीपक की लौ में समा जाती थी। दीपावली की रात झिलमिल ज्योति पुंजों के साथ दीपक राग गाने से इसकी महत्ता बढ़ जाती है और यह शुभ फल प्रदान करता है। हालांकि राग दीपक दिवाली से संबंधित नहीं है, लेकिन यह दीपक अवश्य जलाता है। समृद्ध संगीत विरासत वाले परिवार से ताल्लुक रखने वाले, उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान रामपुर-सहसवान घराने से ताल्लुक रखते हैं। उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान ने हिंदी फिल्म उद्योग के कुछ प्रमुख गायकों के प्रशिक्षण के साथ भी काम किया है। वह पद्म भूषण और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार के प्राप्तकर्ता हैं। आज वह राग दीपक के ज्ञाता के तौर पर जाने जाते हैं।
स्पष्ट रूप से, यह गीत किसी भी तरह से मूल दीपक राग की व्याख्याओं के प्रलेखित साक्ष्य से संबंधित नहीं है। यहाँ रामपुर-सहसवान परंपरा के प्रवर्तक गुलाम मुस्तफा खान की ऐसी ही एक व्याख्या का प्रतिपादन है। पूरे उत्तर भारत में दीपावली को पारंपरिक रूप से कभी भी संगीत के उत्सव के साथ नहीं जोड़ा गया है, क्योंकि यह "अमावस्या" (काला दिन) पर आयोजित काली पूजा का दिन है। काली पूजा को काले जादू और तांत्रिक पूजा से भी जोड़ा जाता है, और उस शाम बाहर जाने की प्रथा नहीं थी। इसके अलावा, दीपावली की शाम को, पूरे भारत में, विशेष रूप से पूर्व और उत्तर में, लक्ष्मी पूजा की जाती है। लेकिन राग दीपक, उत्तर भारतीय परंपरा में छह मुख्य रागों में से एक, लेकिन कहा जाता है कि प्रकाश करने और लौ (दीपक) को प्रज्वलित करने के लिए निश्चित रूप से इसका प्रदर्शन नहीं किया गया होगा।
संदर्भ
https://bit.ly/3VxlCoi
https://bit.ly/3MzZg1D
https://bit.ly/3MA9XkI
https://bit.ly/3ezZEka
https://bit.ly/3VyfBrD
https://bit.ly/3Vwgy3D
https://bit.ly/3gfycIE
चित्र संदर्भ
1. दीपक राग से प्रज्वलित अग्नि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. तानसेन के काल्पनिक चित्र को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. तानसेन सहित मुग़ल दरबार को दर्शाता को दर्शाता एक चित्रण (Getarchive)
4. बादशाह अकबर, तानसेन और संत कवि हरिदास को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. राग मेघ की तैयारी करते तानसेन और उसकी पुत्री को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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