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कोसी नदी जो रामपुर से होकर बहती है, रामगंगा नदी की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है।
यह उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण नदियों में से एक है, जो उच्च वेग के साथ
निचले हिमालय में लगभग 100 किलोमीटर की यात्रा करती है।यह भारत-गंगा के मैदानों में
रामनगर में निकलती है।चिंताजनक विषय यह है, कि यहां, शहर के सीवेज का एक बड़ा
हिस्सा इसमें बहा दिया जाता है।फिर, यह नदी काशीपुर के प्रसिद्ध चावल बेल्ट क्षेत्र से
होकर बहती है,जहां कई प्रदूषणकारी उद्योग अपने अत्यधिक प्रदूषित अपशिष्टों को इसमें
प्रवाहित कर देते हैं।इस बिंदु पर नदी सूक्ष्म प्लास्टिक से भरी हुई है, जिसे बाद में नदी के
सबसे छोटे जीवों द्वारा निगल लिया जाता है।प्लास्टिक के कचरे से पर्यावरण को कितना
नुकसान हुआ है,इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, कि एक तस्वीर, जिसमें
समुद्री कछुए प्लास्टिक की थैलियों को खाते हुए नजर आ रहे हैं, बहुत व्यापक हो गई
है।अवक्रमित प्लास्टिक, सिंथेटिक फाइबर (Synthetic fibres) और प्लास्टिक बीड्स
(Beads) के छोटे टुकड़ों को सामूहिक रूप से माइक्रोप्लास्टिक (Microplastics) कहा जाता
है, जिन्हें भारत की समुद्र तटीय रेत से लेकर शहरों और महासागरों या यूं कहें कि हमारे ग्रह
के हर कोने में देखा जा सकता है। ये सभी वातावरण में इतने व्यापक हो गए हैं कि
उन्होंने खाद्य श्रृंखला को प्रभावित करना शुरू कर दिया है।
तो चलिए जानते हैं, कि कैसे
मछलियों में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति दिखाई दे रही है, तथा यह खाद्य श्रृंखला को
कैसे प्रभावित कर रहा है।जैसा कि हम जानते ही हैं कि प्लास्टिक एक ऐसी वस्तु है, जो
हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बना हुआ है, इसके बिना शायद हमारी कोई दिनचर्या
पूरी नहीं हो सकती। प्लास्टिक मनुष्य द्वारा उपयोग तो किया जाता है, किंतु इसके
निपटान की कोई उचित व्यवस्था नहीं है, तथा परिणामस्वरूप यह कई नदी-नालों आदि के
किनारे तैरता हुआ नजर आता है।यह प्लास्टिक टूट-टूट कर माइक्रोप्लास्टिक का निर्माण
करता है।इसके साथ एक और समस्या तब जुड़ जाती है, जब मछली सहित अनेकों जलीय
जीव इसे अपना भोजन समझ कर निगल लेते हैं, तथा विभिन्न प्रकार से प्रभावित होते हैं।
कई मछलियों की जहां मृत्यु हो जाती है, तो वहीं अनेकों की कार्यिकी और व्यवहार में गहरा
परिवर्तन दिखाई पड़ता है। माइक्रोप्लास्टिक का आकार लगभग पाँच मिलीमीटर, या चावल
के दाने के आकार से लेकर बहुत सूक्ष्म हो सकता है, जिसका अर्थ है कि वे मनुष्यों के लिए
समुद्री खाद्य श्रृंखला का आधार बनाने वाले प्लवक द्वारा भी निगला जा सकता
है।अंतर्ग्रहीत माइक्रोप्लास्टिक कण शारीरिक रूप से अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और
खतरनाक रसायनों (हार्मोन-बाधित करने वाले बिस्फेनॉल ए (Bisphenol A) से लेकर
कीटनाशकों तक) का रिसाव कर सकते हैं, जो प्रतिरक्षा तंत्र,वृद्धि और प्रजनन को प्रभावित
करता है।माइक्रोप्लास्टिक और ये रसायन खाद्य श्रृंखला के हर स्तर पर पहुंच सकते हैं, तथा
पूरे पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं, जिसमें मिट्टी (जिसमें हम अपना भोजन
उगाते हैं), पानी जिसे हम पीते हैं, तथा हवा जिसमें हम सांस लेते हैं, भी शामिल है।
मछलियों, केंचुओं और अन्य प्रजातियों में माइक्रोप्लास्टिक्स की उपस्थिति परेशान करने
वाली है, लेकिन वास्तविक नुकसान तब होता है जब माइक्रोप्लास्टिक्स काफी समय तक
उनके शरीर में मौजूद रहते हैं, तथा आंतों, रक्तप्रवाह और अन्य अंगों में स्थानांतरित हो
जाते हैं। इससे शारीरिक क्षति की सम्भावना बहुत अधिक बढ़ जाती है।
ऐसा अनुमान है कि
अब तक, 386 समुद्री मछली प्रजातियों ने प्लास्टिक के मलबे को निगला हैं,जिसमें से 210
प्रजातियां व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। माइक्रोप्लास्टिक्स के संपर्क में आने से मछली
को कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव हो सकता है, जिनमें ऊतक क्षति,
ऑक्सीडेटिव (Oxidative) तनाव, और प्रतिरक्षा संबंधी जीन अभिव्यक्ति में परिवर्तन आदि
शामिल है।माइक्रोप्लास्टिक्स के संपर्क में आने के बाद, मछलियाँ न्यूरोटॉक्सिसिटी
(Neurotoxicity), विकास मंदता और व्यवहार संबंधी असामान्यताओं से भी ग्रसित हो
जाती हैं। चूंकि मछली प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, इसलिए
मानव द्वारा इसका उपभोग एक बहुत ही सामान्य बात है। यदि मनुष्य या अन्य जीव
ऐसी मछलियों का सेवन करते हैं, जिन्होंने माइक्रोप्लास्टिक को निगल लिया है, तो इसकी
संभावना बहुत अधिक होती है, कि वे भी माइक्रोप्लास्टिक से प्रभावित होंगे। इससे मनुष्यों
में ऑक्सीडेटिव तनाव, साइटोटोक्सिसिटी (Cytotoxicity), न्यूरोटॉक्सिसिटी
(neurotoxicity), प्रतिरक्षा प्रणाली में व्यवधान आदि समस्याएं उत्पन हो सकती हैं। कई
शोधों में यह देखा गया है, कि मछलियों से अधिक माइक्रोप्लास्टिक से वे लोग या जीव
प्रभावित होते हैं, जिन्होंने ऐसी मछलियों का सेवन किया है। इस प्रकार माइक्रोप्लास्टिक
खाद्य श्रृंखला के निम्न स्तर से उच्च स्तर तक पहुंच रहा है, तथा उच्च स्तर को अधिक
प्रभावित कर रहा है। इसलिए माइक्रोप्लास्टिक के प्रदूषण को कम करना बेहद महत्वपूर्ण
है।कुशल अपशिष्ट प्रबंधन विधियों को लागू करके तथा माइक्रोप्लास्टिक के प्रति लोगों में
जागरूकता बढ़ाकर पर्यावरण में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा को बहुत कम किया जा सकता है
तथा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्प्राप्त किया जा सकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3ekoOTr
https://bit.ly/3KGZmmT
https://bit.ly/2oJhByT
चित्र संदर्भ
1. पानी के भीतर प्लास्टिक के प्रभाव को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. नदी में फैले कूड़े को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. सूक्ष्मदर्शी में माइक्रोप्लास्टिक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. माइक्रोप्लास्टिक्स के परिवहन और एकीकरण के ज्ञात तंत्रों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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