सिलादार प्रणाली जिसने भारतीय घुड़सवार सेना में अनियमित सैन्य दल को स्थापित किया

हथियार और खिलौने
16-07-2022 08:50 AM
Post Viewership from Post Date to 15- Aug-2022 (30th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
1948 9 0 1957
* Please see metrics definition on bottom of this page.
सिलादार प्रणाली जिसने भारतीय घुड़सवार सेना में अनियमित सैन्य दल को स्थापित किया

भारतीय सेना की 61वीं घुड़सवार सेना इकाई के घोड़े वर्षों से आर्मी की शान शौकत बढ़ाते आए हैं। विश्व भर में बची यह इकलौती घुड़सवार सेना है, लेकिन अब इसमें भी घोड़ों की जगह टैंकों का उपयोग करके इसे नियमित बख्तरबंद बनाने का बढ़ा फैसला लिया गया है। जयपुर स्थित 61वीं घुड़सवार सेना दल को टी-72 टैंकों से लैस किए जाने की संभावना है।अन्य सैन्य दल के तीन स्वतंत्र दस्ते को नई टैंक इकाई बनाने के लिए 61वीं घुड़सवार सेना के मुख्यालय के तहत समामेलित किया जा रहा है।प्रसिद्ध 61 वीं घुड़सवार इकाई को हटाने की वजह सेना की लड़ाकू क्षमता को बढ़ाना और अपने राजस्व व्यय को कम करना है।सैन्य दल के 300-विषम घोड़े (जयपुर में 200 और दिल्ली में 61वीं घुड़सवार सेना के दस्ते के साथ लगभग 100) एक नए घुड़सवारी गिरह का हिस्सा बनाए जाएंगे।61वीं घुड़सवार सेना की स्थापना जयपुर में अक्टूबर 1953 में भारत की पूर्ववर्ती रियासतों कीघुड़सवार सैन्य दल के घुड़सवार तत्वों को एक साथ रखकर की गई थी।वहीं आधुनिक भारतीय घुड़ सवार सेना की कहानी 1796 में शुरू हुई थी, जब ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) द्वारा बंगाल सेना में तीन में से पहली, यूरोपीय शैली की, देशी घुड़सवार सैन्य दल को स्थापित किया।उस समय भारत में तीन अध्यक्षपद थे- बॉम्बे, बंगाल और मद्रास। और प्रत्येक अध्यक्षपद की अपनी सेना होती थी। 1857 तक कंपनी के पास बंगाल सेना में घुड़सवार सेना की 10 नियमित सैन्य दल, मद्रास सेना में 8 और बॉम्बे सेना में 3 सैन्य दल थे। प्रत्येक सैन्य दल में लगभग 24 ब्रिटिश अधिकारी और 400 देशी घुड़सवार थे। हल्की घुड़सवार सेना की भूमिका के लिए, कंपनी अपने सहयोगियों द्वारा नियुक्त किए गए सैनिकों पर निर्भर थी, लेकिन अंततः 19 वीं शताब्दी की शुरुआत में, कंपनी द्वारा "लोकल हॉर्स (Local Horse)" शीर्षक के तहत अपनी इकाई बनानी पड़ी।ये अनियमित सैन्य दल थे, जिन्होंने 1857 के विद्रोह के दौरान कंपनी की नियमित सैन्य दल को इतनी बुरी तरह से मात दे दी थी कि बंगाल अध्यक्षपद में बंगाल सेना की लगभग सभी नियमित घुड़सवार श्रेणियों को भंग कर दिया गया और अनियमित घुड़सवार सैन्य दल को भारतीय घुड़सवार सेना का केंद्र बना दिया गया था।वहीं स्किनर हॉर्स (Skinner’s Horse) बंगाल घुड़सवार की पहली सैन्य दल बनी।
अनियमित सैन्य दलों के उत्कृष्ट प्रदर्शन के तीन मुख्य कारण निम्नलिखित थे:-
# अनियमित इकाइयों में कुछ ही ब्रिटिश अधिकारी थे, आमतौर पर सेनापति, सहायक सेनापति, सेनापति का विशेष सहायक और शल्यकार। इसलिए स्थानीय अधिकारियों को नियमित इकाइयों में समकक्षों की तुलना में उच्च दर्जा और अधिक अधिकार था। एक नियमित इकाई में, एक स्थानीय अधिकारी हमेशा सबसे पद में छोटे ध्वज वाहाक सेभी नीचे रहते थे।
# हथियार, वर्दी और हल्की घुड़सवार सेना की भूमिका देशी घुड़सवारों की प्रकृति और रीति-रिवाजों के अनुकूल थी। इन कारणों ने उच्चतम गुणवत्ता वाले पुरुषों को अनियमित सैन्य दलों की ओर आकर्षित किया।
# अनियमित घुड़सवार सैन्य दलसेनापति की अध्यक्षता में दरबार का आयोजन करते थे और सभी इकाई इसमें भाग लिया करती थी। ये दरबार नियमित अंतराल पर आयोजित किए जाते थे, कभी-कभी तो सप्ताह में एक बार।प्रत्येक व्यक्ति को अनुशासन, प्रशिक्षण, प्रशासन, अवकाश, शस्त्र आदि विषयों पर बोलने का अधिकार था।सभी विषयों पर निर्णय सेनापति द्वारा अपने अधिकारियों (ब्रिटिश और मूल निवासी समान रूप से) की सलाह से लिया जाता है। इस व्यवस्था ने सैन्य दल में एक बड़े परिवार की भावना को मजबूत किया और सभी सैनिकों की इस व्यवस्था में रुचि बढ़ी। अनियमित घुड़सवार सैन्य दल प्रणाली सिलादार की अवधारणा पर आधारित थी। सिलादार शब्द का अर्थ फ़ारसी में "हथियारों का वाहक" है और यह मूल घुड़सवारों को दिया गया नाम था जो अनियमित सैन्य दल में शामिल होते थे।अनियमित घुड़सवारसैन्य दल में जिन सैनिकों को भर्ती किया जाता था उन्हें स्वयं का घोड़ा, घुड़साल सेवक,चारा, शिविर उपकरण, कपड़े और हथियार लाने होते थे, हालांकि बाद में सरकार ने एकरूपता लाने के लिए हथियार और गोला-बारूद उपलब्ध कराना शुरू किया।इसके लिए, सिलादार को नियमित सैन्य दल (जिसे सरकार द्वारा पूरी तरह से खिलाया और सुसज्जित किया गया था) में अपने समकक्ष से अधिक वेतन प्राप्त होता था।
यदि सिलादार का घोड़ा युद्ध में मारा जाता था, तो उसे मुआवजा दिया जाता था, लेकिन अगर घोड़ा मर गया या लापरवाही या बीमारी के कारण अयोग्य हो गया, तो उसे घोड़े के प्रतिस्थापन की व्यवस्था स्वयं करनी होती थी।सिलादार प्रणाली का एक और दिलचस्प पहलू था, जिसमें प्रत्येक सिलादार के पास सैन्य दल में अपना रहने का स्थान हुआ करता था। इसे 'असमी (Asami)' कहा जाता था और इसे सिलादार की संपत्ति माना जाता था।असमी को पिता से उसके बेटे को सौंप दिया जा सकता था या विधवा या मृत सिलादार के परिवार के लिए निर्वाह के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता था।असमी का मालिक भर्ती होने के इच्छुक किसी भी सैनिक को इसे बेचने या किराए पर देने के लिए स्वतंत्र था। ऐसे रंगरूटों को बरगीर (Bargeer) कहा जाता था।बरगीर को वेतन का एक तिहाई हिस्सा दिया जाता था और दो तिहाई हिस्सा असमी के मालिक के पास जाता था। स्किनर्स घुड़सवारसैन्य दल में 400 से अधिक बरगीर थे।1841 में, सिंधे (Scinde) अनियमित घुड़सवारसैन्य दल में, 20 असमी उन लोगों के स्वामित्व में थे जो सैन्य दल में सेवा नहीं कर रहे थे और तीन एक भिस्ती (जल वाहक) के स्वामित्व में थे। यह व्यवस्था प्रथम विश्व युद्ध तक जारी रही लेकिन 1861 में इसके प्रतिस्थापन भाग को समाप्त कर दिया गया।इस प्रणाली की मुख्य समस्या एकरूपता, घटिया घोड़ों और उपकरणों की कमी थी, जो अंततः इसके उन्मूलन का मुख्य कारण बनी।
19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इस प्रणाली को संशोधित किया गया और सैन्य दल ने रंगरूटों को उनके मूल्य के लिए घोड़े, उपकरण और वर्दी प्रदान करना शुरू कर दिया। अपनी सेवानिवृत्ति पर, घुड़सवार द्वारा इन वस्तुओं को उनके बाजार मूल्य में नकदी लेकर वापस कर दिया जाता था। वहीं प्रतिष्ठि स्किनर्स घुड़सवार सैन्य दल द्वारा इस बदलाव को तब लागू किया गया जब सरकार ने सैन्य दल को छोटी बंदूकें प्रदान की।सन् 1872 में सैन्य दल में हॉर्स चुंडा फंड (Horse Chunda Fund) की स्थापना की गई और सैन्य दल में शामिल होने वाले प्रत्येक सैनिक को घोड़े और उपकरण प्राप्त करने के लिए एक निश्चित राशि का भुगतान करना अनिवार्य कर दिया गया था।
यह प्रणाली प्रथम विश्व युद्ध तक जारी रही जब एक भर्ती करने वाले को 250 रुपये घोड़े के लिए; खच्चर में आधे हिस्से के रूप में 50 रुपये और लगभग 150 रुपये वर्दी और उपकरण के लिए देने पड़ते थे। और इसमें सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि एक सैनिक का वेतन 34 रुपये प्रति माह और5-8 रुपये मंहगाई भत्ता दिया जाता था, तथा इसमें उसे अपने रहने के लिए तम्बू और परिवहन की व्यवस्था स्वयं करनी पड़ती थी। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि भारतीय घुड़सवार सेना सैन्य दल ब्रिटिश अभियान बल की ब्रिटिश घुड़सवार सैन्य दल के मुकाबले अच्छी तरह से सुसज्जित नहीं थे। इसके बाद से ही सिलादार व्यवस्था पूरी तरह से भंग हो गई। सैन्य दल के लिए युद्ध के सभी युद्ध क्षेत्र के लिए सैन्य दल प्रारूप उपकरण प्रदान करना और मृत और घायल सोवारों (जिनकी गिनती विश्व युद्ध के कारण तेजी से बढ़ रही थी) की असमियों को वापस करना असंभव हो गया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद, भारतीय सेना का पुनर्गठन किया गया और सिलादार प्रणाली इतिहास का हिस्सा बन कर रह गई।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3zasNKg
https://bit.ly/3oaQbAE
https://bit.ly/3yLcLon

चित्र संदर्भ
1. भारतीय घुड़सवार सेना को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. फ्रांसीसी कारखाने में एक भारतीय घुड़सवार घोड़ा अस्पताल, को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
3. गार्ड ऑफ ऑनर माउंटेड कांस्टेबुलरी, जैकोबाबाद' को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. इंडियन कैवेलरी एस्कॉर्ट के साथ सर जॉन फ्रेंच की हॉर्स राइडिंग, को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)