भारत की अपार जीवाश्म संपदा और विरासत और क्यों आवश्यकता है इन्हें संरक्षित रखने की

उत्पत्ति : 4 अरब ई.पू. से 0.2 लाख ई.पू.
03-03-2022 09:52 AM
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भारत की अपार जीवाश्म संपदा और विरासत और क्यों आवश्यकता है इन्हें संरक्षित रखने की

डायनासोर के अंडों के विशाल घोंसलों से लेकर विज्ञान के लिए नए प्रागैतिहासिक जीवों तक, भारत में हम पृथ्वी पर एक समय में मौजूद कुछ सबसे शानदार जीवों के जीवाश्म को देख सकते हैं। हालांकि कुछ की अभी खोज करना बाकी है तथा वे अभी भी जमीन के अंदर हैं।वर्ष2000 में, पश्चिमी भारत में नागपुर के केंद्रीय संग्रहालय का दौरा करते समय, जीवाश्म विज्ञानी जेफरी ए विल्सन ने स्वयं को सबसे आकर्षक जीवाश्मों में से एक के बीच पाया और उसे देख काफी आकर्षित हुए। वहीं उनके एक साथी ने 1984 में भारत के पश्चिमी तट पर गुजरात के ढोली डूंगरी गाँव में इस नमूने की खुदाई की थी।वे बताते हैं कि "ऐसा पहली बार था कि एक डायनासोर के बच्चे और उसके अंडे की हड्डियां एकही नमूने में एक साथ मिलीं।” लेकिन उनके आश्चर्य के लिए इन नमूनों में कई और नमुनें भी मौजूद थे।उन्होंने एक नमूने की हड्डियों की जांच की ओर पाया कि उनमें एक विशेष संयोजन के साथ दो छोटी कशेरुकाएं थीं, जो केवल सांप में होती हैं। तथा इस बात की पुष्टि करने के लिए वे जीवाश्म को भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण से अनुमति प्राप्त करके जीवाश्म की सफाई के लिए अमेरिका (America) ले गए। वहां पहुंचने के बाद, इसकी नरम और नाजुक हड्डियों के आसपास के चट्टानी आव्यूह को हटाने में पूरे एक साल का समय लगा। जिसके बाद उन्होंने न केवल एक प्रागैतिहासिक सांप की उपस्थिति की पुष्टि की, बल्कि यह भी पाया कि इसके जबड़े खुले हुए थे, जो उसी समय पैदा हुए डायनासोर के बच्चे को खाने के लिए खोले होंगे।डायनासोर के अंडों के एक समूह के पास वह बच्चा मौजूद था तथा वे अंडे भी कहीं से टूटे-फूटे नहीं थे। परियोजना का अध्ययन करने वाले भूविज्ञानी ने निष्कर्ष निकाला कि ये जानवर संभवतः एक तेजी से मिट्टी के धंसने से उसमें दफन हो गए होंगे। इस अध्ययन से वैज्ञानिकों ने पाया किया कि कैसे प्रागैतिहासिक सांपों में बड़े शिकार को निगलने के लिए अपने जबड़े खोलने की क्षमता नहीं थी, एक क्षमता जो कुछ आधुनिक सांपों ने विकास की प्रक्रिया के माध्यम से हासिल की है।
वहीं 1981 में पश्चिमी भारत में गुजरात के बालासिनोर में एक सीमेंट खदान में खनिज सर्वेक्षण करने वाले भूवैज्ञानिकों को हजारों जीवाश्म डायनासोर के अंडे मिले थे। पेलियोन्टोलॉजिस्ट्स का मानना है कि डायनासोर की कम से कम सात प्रजातियां यहां रहती थीं, जिसमें सबसे प्रसिद्ध स्क्वाट (Squat), टू-लेग्ड (Two-legged), मांसाहारी राजसौरस नर्मडेन्सिस (Rajasaurusnarmadensis)।वहीं राययोली के पड़ोसी क्षेत्र में, शोधकर्ताओं ने लगभग 10,000 डायनासोर के अंडों के जीवाश्मों का खुलासा किया है, जिससे यह दुनिया के सबसे बड़े ज्ञात डायनासोर के अंडे देने का स्थान बन गया।2017 में, मध्य प्रदेश में डेनवा गठन के लाल मिट्टी के पत्थर में श्रिंगसॉरस, एक सींग वाले, शाकाहारी डायनासोर की जीवाश्म हड्डियों की खोज की गई थी।लेकिन इस क्षेत्र के जीवाश्म, भारत की अधिकांश पुरापाषाणकालीन विरासत की तरह, बर्बर लोगों, अवसरवादियों और उदासीन सार्वजनिक अधिकारियों से खतरे में हैं।
उदाहरण के लिए, छोटे गांवों में डायनासोर के अंडे को कम से कम $7 में बेच दिया जाता है। जबकि अन्य जीवाश्म स्थल वनों की कटाई और खनन के माध्यम से नष्ट हो जाते हैं।भारत में पैलियोन्टोलॉजी विभिन्न कारकों से ग्रस्त है। भारत में जीवाश्मों की बर्बरता बड़े पैमाने पर है, क्योंकि इनके संरक्षण के लिए ऐसे कोई कानून नहीं है जो इन कीमती खोजों की रक्षा करते हैं। स्थलों तक पहुंच का अभाव मुख्य समस्या है, क्योंकि जमींदार मनमाने ढंग से खनन स्थलों को बंद कर सकते हैं।भारत से सबसे प्राचीन व्हेल, कुछ सबसे बड़े गैंडे और हाथी, डायनासोर के अंडे के विशाल घोंसलें और डायनासोर की उम्र से पहले के अजीब सींग वाले सरीसृपों जो कभी अस्तित्व में थे की खोज की गई है। लेकिन अभी भी बहुत सी कमियां हैं जिन्हें भरने की जरूरत है।और ऐसा इसलिए है क्योंकि पेशेवर जीवाश्म विज्ञानियों द्वारा भारत के बड़े हिस्से की व्यवस्थित रूप से खोज नहीं की गई है।साथ ही इनके संरक्षण के लिए सरकार और शोधकर्ताओं को युवा पीड़ी को जागरूक करने की जरूरत है। वहीं हाल ही में मेघालय के पश्चिम खासी हिल्स जिले के पास एक इलाके से करीब 10 करोड़ साल पहले के सॉरोपॉड डायनासोर की हड्डियों के जीवाश्म मिले हैं। अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि इस बार जिन हड्डियों की पहचान की गई है, वे 2019-2020 और 2020-21 में मिली थीं, जो अनुमानत: करीब 10 करोड़ साल पुरानी हैं।भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पूर्वोत्तर स्थित जीवाश्म विज्ञान के अनुसंधानकर्ताओं ने स्थल के अपने हालिया दौरे के बाद यह निष्कर्ष निकाला।भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के शोधकर्ताओं बताया कि यह इस क्षेत्र में यह पहली बार है कि पाए गए अवशेष संभवत: टाइटैनोसॉरियाई (Titanosaurian) मूल के सॉयरोपॉड (Sauropods) के हैं।सॉरोपॉड की लंबी गर्दन, लंबी पूंछ, शरीर के बाकी हिस्से की तुलना में छोटा सिर, चार मोटी एवं खंभे जैसी टांग होती थी।शोधकर्ताओं ने कहा कि गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के बाद मेघालय भारत का पांचवां राज्य और पहला पूर्वोत्तर राज्य है जहां टाइटैनोसॉरियन मूल के सॉरोपोड की हड्डियां मिली हैं। वहीं टाइटैनोसॉरियन अफ्रीका (Africa), एशिया (Asia), दक्षिण अमेरिका (America), उत्तरी अमेरिका, यूरोप (Europe), ऑस्ट्रेलिया (Australia) और अंटार्कटिका (Antarctica) के वंश सहित सैरोपोड डायनासोर का एक विविध समूह था।
भारत में मिले प्रागैतिहासिक काल के डायनासोर के अवशेष निम्नलिखित हैं:
# अलवाल्केरिया(Alwalkeria) :अल्वाल्केरिया डायनासोर छोटे सर्वाहारी होते हैं और इनके जीवाश्म दक्षिणी भारत में पाए गए थे।
# बारापासौरस (Barapasaurus) :कोटा गठन से बारापासौरस का जीवाश्म तेलंगाना के नलगोंडा जिले में पाया गया था। जीवाश्म अब आईएसआई के भूवैज्ञानिक संग्रहालय का हिस्सा है।
# ब्रुहथकायोसॉरस (Bruhathkayosaurus) : भारत में पाए जाने वाले डायनासोर में से सबसे विशाल ब्रुहथकायोसॉरस डायनासोर था, इसके अवशेष तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले में चट्टानों से बरामद किये गए थे।
# कंपसोसुचस (Compsosuchus) :कॉम्पसोसुचस डायनासोर मगरमच्छ की तरह थे, जो चाकमय कल्प के अंत के दौरान भारत में रहते थे।
# दंडकोसॉरस (Dandakosaurus) :डंडाकोसॉरस के जीवाश्म आंध्र प्रदेश से मिले थे।
# इंडोसॉरस (Indosaurus) :इंडोसॉरस छिपकली डायनासोर के जीवाश्म के सबूत जबलपुर में मिले थे, और ये लगभग 69 मिलियन साल पहले भारत में रहते थे।
# जैनोसॉरस (Jainosaurus) :जैनोसॉरस भारत का एक बहुत बड़ा टाइटानोसॉरियन डायनासोर था और इसके अवशेष कलकत्ता में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण में हैं।
# प्रधानिया (Pradhania) :प्रधानिया डायनासोर भारत के अपर धर्मराम फॉर्मेशन से थे।
#इसिसॉरस (Isisaurus) :भारत के लैमेटा फॉर्मेशन में डायनासोर के इसिसॉरस जीनस महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में वरोरा के पास पाए गए थे।
# जक्लापल्लीसॉरस (Jaklapallisaurus) :जक्लापल्लीसॉरसडायनासोर आंध्र प्रदेश राज्य से पाए गए थे।
# नंबालिया (Nambalia) :नंबेलिया डायनासोर ऊपरी मालेरी संरचना से थे, जो होलोटाइप से जाना जाता है और आंध्र प्रदेश से पाया जाता है।
# राजसौरस (Rajasaurus) :राजसौरस डायनासोर के अवशेषों की खुदाई गुजरात की नर्मदा नदी घाटी के साथ-साथ जबलपुर में नर्मदा के ऊपरी क्षेत्र से की गई थी।
# राहिओलिसॉरस (Rahiolisaurus) :राहियोलिसॉरस डायनासोर भारत में मौजूद थे और राजसौरस के साथ कई समानताएं साझा करते हैं।
अहमदाबाद में इंद्रोडा डायनासोर और जीवाश्म पार्क गुजरात भारत में सबसे बड़े डायनासोर जीवाश्म उत्खनन स्थल और एकमात्र डायनासोर संग्रहालय में से एक है। यह पार्क दुनिया में डायनासोर के अंडों की दूसरी सबसे बड़ी हैचरी (Hatchery) भी है और इसे भारत का जुरासिक पार्क (Jurrasic Park) माना जाता है।

संदर्भ :-
https://bbc.in/3M4ywp8
https://bit.ly/3sr9IQu
https://bit.ly/3swHmo8
https://bit.ly/3IyBn7w

चित्र संदर्भ
1. डॉयनासोर का कंकालों को दर्शाता एक चित्रण (outsider)
2. इन्ड्रोडा डायनासोर और फॉसिल पार्क में प्रदर्शित जीवाश्म डायनासोर के अण्डों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. संरक्षित भ्रूण के साथ एक सिटीपाटी ऑस्मोलस्काई अंडे को दर्शाता चित्रण (wikimedia)