City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2431 | 1106 | 0 | 0 | 3537 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
भारतीय कालीन सारे विश्व में अपनी उत्कृष्ट गुणवत्ता और बनावट के लिए जानी जाती है, भारत द्वारा कालीन के विश्व स्तर के कुल निर्यात का 40 प्रतिशत निर्यात किया जाता है। वर्तमान परिदृश्य में, भारत विश्व भर में कालीन का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है, जहां कालीन की मात्रा और मूल्य दोनों हैं। भारत में निर्मित कालीन का लगभग 80 प्रतिशत निर्यात किया जाता है। भारत अपने उत्कृष्ट डिजाइन (Design) विशेषकर फारसी (Persian) डिजाइन के लिए वैश्विक बाजार में लोकप्रिय है। हस्तनिर्मित कालीनों के सबसे बड़े निर्यातक के रूप में अग्रणी भारत में हाथ से बुने हुए ऊनी कालीन, गुच्छेदार ऊनी कालीन, सांकल सिलाई के आसन, शुद्ध रेशम के कालीन, संश्लेषिक कालीन, हाथ से बने ऊनी दुपट्टे यूरोपीय (European) और अमेरिकी (American) बाजार में मांगे जाने वाले कुछ उत्पाद हैं।
हस्तनिर्मित कालीनों के निर्माण की प्रक्रिया में शामिल है, धागे को रंगना और फिर उन्हें सुखना, चरखी पर गुमावदार तरीके से बुनना, धागे को ताना और हाथ से बुनाई; प्रत्येक चरण में शामिल कुशल हाथ की प्रत्येक तकनीक एक सुंदर कालीन का निर्माण करती है। कालीन बुनने का व्यवसाय भारत के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है। इसका इतिहास हजारों साल पुराना है, 1580 ईस्वी में मुगल बादशाह अकबर अपने महल में कुछ पर्शियन बुनकर आगरा (उस समय का अकबराबाद) में लेकर आए। इसके बाद आगरा, दिल्ली, लाहौर (जो कि अब पाकिस्तान में है) पर्शियन कालीन के मुख्य उत्पादन और प्रशिक्षण के केंद्र बन गए। 1857 के आंदोलन के दौरान यह कालीन बुनकर आगरा से भागकर उत्तर प्रदेश के भदोही और मिर्जापुर के बीच एक गांव में जा बसे जिसका नाम था माधो सिंह और बहुत छोटे स्तर पर यह कारीगर कालीन बुनाई का काम करने लगे।
कुछ समय बाद उस समय के बनारस के महाराजा के सहयोग से कालीन बुनाई के क्षेत्र में विकास होने लगा। बहुत ही कम लोग जानते हैं कि ब्रिटिश राज में कैदियों को कालीन बनाना सिखाया जाता था और इसी कारण जेल से छूटे कई कैदियों ने अपना कालीन उद्योग शुरू किया। यह उद्योग न सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का प्रमुख साधन रहा है बल्कि भारत की आजादी के वक्त कमजोर अर्थव्यवस्था को इस व्यवसाय ने विदेशी मुद्रा राजस्व के रूप में बड़ा योगदान किया। वहीं रामपुर के हस्तनिर्मित कालीन विश्व विख्यात होने के साथ-साथ दुनिया के बाजार में ‘रामपुर कार्पेट (Rampur Carpet)’ नामक विशेष श्रेणी में बिकते हैं। इन प्रचलित हस्तनिर्मित कालीनों को 60% विस्कोस (Viscose) और 40% ऊन से मुख्य रूप से घुमावदार तकनीक का उपयोग कर बनाया जाता है।
उत्तर प्रदेश की भदोही मिर्जापुर क्षेत्र विभिन्न प्रकार के कालीन बनाने का गढ़ है और पूरे देश में सबसे बड़ी तादाद में कालीन उत्पादन यहीं होता है। भारत से जिन देशों को यह कालीन निर्यात होते हैं उनमें शामिल है- अमेरिका (America), कनाडा (Canada), स्पेन (Spain), तुर्की (Turki), मेक्सिको (Mexico), ऑस्ट्रेलिया (Australia), दक्षिण अफ्रीका (South Africa), बेल्जियम (Belgium), हॉलैंड (Holland), न्यूजीलैंड (New zealand), डेनमार्क (Denmark) और बहुत से यूरोपीय देश। रामपुर जिले के गांवों के कई परिवार इससे अपनी आजीविका प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन अमेरिका-यूके (UK) आधारित मशीनें प्रमुख हाथ-संबंधी काम की जगह ले रही हैं। हालांकि कई विदेशी और भारतीय ब्रांड (Brand) हस्तनिर्मित कार्य का समर्थन करने के लिए सामने आए हैं, लेकिन चूंकि यह एक असंगठित क्षेत्र है, इसलिए काम का उचित मूल्य बुनकर को नहीं मिल पता है। बुनकर को उचित मूल्य न मिल पाने की वजह से वे इस काम को छोड़कर अन्य हाथ-संबंधी कार्य को करना ज्यादा पसंद कर रहे हैं।
ऐसे में आवश्यकता है कि सरकार और स्वयंसेवी संस्थाएं मिलकर इस समस्या का कोई ठोस और कारगर समाधान निकालें जिससे कारीगरों को सम्मान पूर्वक उनका हक मिल सके।
© - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.