क्या आपने ध्यान दिया कि इस वर्ष सर्दियों का मौसम काफी लंबा हो रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं की ऐसा क्यों हुआ है? कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि यह वास्तव में दक्षिणी यूरोप की ठंड है जो भारत के उत्तरी हिस्सों में आई है। भूगोलवेत्ता के अनुसार यह ध्रुवीय भंवर के कारण होता है। तो आइए जानते हैं कि क्या है ये ध्रुवीय भंवर? ध्रुवीय भंवर पृथ्वी के ध्रुवों के आस-पास कम दबाव वाला क्षेत्र है। वैसे तो पृथ्वी के वायुमंडल में उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर निर्भर दो ध्रुवीय भंवर हैं। प्रत्येक ध्रुवीय भंवर स्थिर, बड़े पैमाने, कम दबाव वाले ज़ोन में 1,000 किलोमीटर से कम व्यास के हैं, जो उत्तरी ध्रुव पर काउंटर-क्लॉकवाइज (counter-clockwise) और दक्षिण ध्रुव पर क्लॉकवाइज (clockwise) घूमते हैं। जिससे यह पता चलता है कि दोनों ध्रुवीय भंवर ध्रुवों के चारों ओर पूर्व की ओर घूमते हैं। आर्कटिक वायु की इस ठंड को जेट स्ट्रीम या ध्रुवीय जेट स्ट्रीम द्वारा उच्च अक्षांश पर परिचालित किया जाता है। हालांकि, हाल के दशकों में जेट स्ट्रीम में बदलाव के कारण भंवर टूट रहा है, कुछ अध्ययनों में इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहराया गया है।
ध्रुवीय भंवर के बारे में पहली बार 1853 में वर्णित किया गया था। उत्तरी गोलार्ध में सर्दियों के दौरान स्ट्रैटोस्फेरिक वार्मिंग (stratospheric warming) की घटनाएं अचानक से सामने आई थी और 1952 में 20 किमी से अधिक ऊंचाई पर रेडियोसोंडे (Radiosonde) अवलोकन के माध्यम से इसे खोजा गया था। जनवरी 2019 के अंत में संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के अधिकांश हिस्सों में हुई ठंड के लिए ध्रुवीय भंवर को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। यूएस नेशनल वेदर सर्विस की चेतावनी कि “ऐसे छिड तापमान में 10 मिनट के लिए घरों से बाहर होने पर शीतदंश होने की संभावना है” से हम यह अनुमान लगा सकते हैं की वहाँ कितनी ठंड हो रही होगी और साथ ही वहाँ पर प्रभावित इलाकों में सैकड़ों स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय भी बंद कर दिए गए हैं। अमेरिका में भयंकर हिमपात के कारण लगभग 21 लोगों की मौत हुई।
2001 में हुए एक अध्ययन में पाया गया था कि स्ट्रैटोस्फेरिक सर्कुलेशन से मौसम की स्थिति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। उसी वर्ष, शोधकर्ताओं ने उत्तरी गोलार्ध में कमजोर ध्रुवीय भंवर और तीव्र ठंड के बीच सांख्यिकीय सहसंबंध पाया। वहीं ध्रुवीय भंवर के कमजोर होने के पीछे की सामान्य धारणा यह है कि आर्कटिक में बर्फ में कमी से समुद्री बर्फ सूर्य की किरणों को कम प्रभावित कर रही से जिससे वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन बढ़ रहा है। इनसे ध्रुवीय भंवर के दबाव और तापमान प्रवणता प्रभावित होते हैं, जिससे यह कमजोर होकर टूट जाते हैं।
कई शोध यह दावा करते हैं कि ध्रुवीय भंवर और भारतीय मौसम के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन आर्कटिक हवाएं पश्चिमी उपद्रव सहित विभिन्न मौसम प्रणालियों को प्रभावित करती है। भारत में छह ऐसी घटनाएं सामने आई जिसमें कई क्षेत्रों में अधिक हिमपात हुआ है। आमतौर पर ये उपद्रव जनवरी के अंत तक ऊपरी अक्षांशों पर जाने लगते हैं, लेकिन इस बार पश्चिमी उपद्रव के कारण राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और तेलंगाना में भी तापमान नीचे की ओर चला गया है। पश्चिम के मध्य अक्षांश के कमजोर पड़ने से दक्षिण पश्चिम में पश्चिमी उपद्रव के बदलाव के कारण जम्मू-कश्मीर सहित उत्तर भारत में सामान्य से अधिक हिमपात देखने को मिल रहा है।
संदर्भ :-
1.https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/what-is-polar-vortex-and-how-it-impacts-the-indian-climate-1549355905-1
2.https://www.ndtv.com/india-news/us-polar-vortex-could-be-behind-unusual-cold-in-north-india-experts-1988127
3.https://timesofindia.indiatimes.com/india/arctic-cold-blast-impacting-north-indias-winter-met/articleshow/67748314.cms
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Polar_vortex
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