भारत में औद्योगीकरण का तात्पर्य, उद्योगों के तेज़ी से विकास और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था से विनिर्माण और सेवाओं के प्रभुत्व वाली अर्थव्यवस्था मेंबदलाव से है। यह परिवर्तन, 19वीं सदी के मध्य में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान कपड़ा, जूट, लोहा और इस्पात जैसे आधुनिक उद्योगों की शुरुआत के साथ शुरू हुआ था। रेलवे, बंदरगाहों और दूरसंचार प्रणालियों की स्थापना ने औद्योगिक विकास को और ज्यादा गति दी। आज, हम भारत में औद्योगीकरण के इतिहास के बारे में चर्चा करेंगे। फिर, हम भारत में सहकारी आंदोलन के इतिहास पर नज़र डालेंगे। हम भारत में सहकारी समितियों के प्रकारों पर भी गौर करेंगे। और, अंत में हम अमूल की सफ़ल कहानी के बारे में चर्चा करेंगे, जो भारत में अन्य सहकारी समितियों के लिए, एक आदर्श हो सकती है।
किसी देश के, औद्योगीकरण का अर्थ, देश को विकसित करने के लिए, कृषि उद्योगों के अलावा, विनिर्माण उद्योगों को, शामिल करना है। जो देश, केवल कृषि पर आधारित है, वह उतना विकास नहीं कर सकता, जितना, एक औद्योगीकृत देश कर सकता है। वास्तव में, ये दोनों ही, ऐसे स्तंभ हैं, जिन पर, किसी देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने, और स्थिर बनाए रखने की, ज़िम्मेदारी है। यद्यपि, औद्योगीकरण के अपने नुकसान भी हैं। फिर भी, अपनी तकनीकी प्रगति के साथ, यह देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिए, सभी आवश्यक तत्व प्रदान करता है। भारत में औद्योगीकरण की शुरुआत, 1854 में मुंबई की पहली सूती मिल से हुई थी। तब से भारत, अपने उद्योग व्यवस्था में हमेशा से ही आगे बढ़ा है, और इस प्रकार, यह एक अविकसित देश से विकासशील देश बन गया है।
औपनिवेशिक काल के दौरान, भारत ने, एक विकासशील देश के रूप में गैर-औद्योगिक मॉडल का पालन किया। हालांकि, कई भारतीयों ने, इस मॉडल को विकास करने की दिशा में एक बाधा के रूप में देखा। उनका मानना था, कि केवल औद्योगीकरण ही देश की आर्थिक वृद्धि को अधिकतम कर सकता है। स्वतंत्रता के बाद, भारत के पहले प्रधान मंत्री – जवाहरलाल नेहरू ने, देश से गरीबी उन्मूलन के लिए, औद्योगीकरण के उपकरणों का इस्तेमाल किया। औद्योगीकरण की शुरुआत के साथ, आंतरिक और बाहरी अर्थव्यवस्थाओं के प्रवाह के माध्यम से महत्वपूर्ण मात्रा में विकास हुआ था। इससे देश आत्मनिर्भरता की ओर चलने लगा था। इस के अलावा, सरकार को एहसास हुआ कि, निर्यात और कृषि की क्षमता भी सीमित थी। इसलिए, व्यापार की शर्तों के आधार पर कराधान भी हुआ। आयात प्रतिस्थापन पर बल देकर, देश के भारी उद्योग पर ध्यान दिया गया था। भारत में औद्योगीकरण की शुरूआत, केवल एक केंद्रीकृत और नियोजित अर्थव्यवस्था के निहितार्थ के माध्यम से ही की जा सकती है।
फिर, इन मॉडलों पर, प्रशासनिक नियंत्रण, ‘उद्योग अधिनियम, 1951’ की नींव के साथ हुआ, जो उद्योग के विकास,और विनियमन पर केंद्रित था। जबकि, कई पूर्वी एशियाई देश, राष्ट्र के हस्तक्षेप के माध्यम से मज़बूत निजी क्षेत्रों का निर्माण कर रहे थे। उसी अवधि के दौरान, भारतमहत्वपूर्ण उद्योगों पर, राष्ट्र विनियमन पर, ध्यान केंद्रित कर रहा था। 19वीं सदी के मध्य में, भारत में औद्योगीकरण, दो प्रमुख बदलावों से गुज़रा था, जो ग्रामीण विद्युतीकरण, नए बीज और उर्वरकों को सब्सिडी देने में देश की सक्रियता थे। बाद में, 1970 के अंत तक, हरित क्रांति की सफ़लता से भारत अनाज के मामले में आत्मनिर्भर था। इस अवधि के दौरान हुए, कुछ अन्य प्रमुख परिवर्तन – कीमतों पर नियमन, राष्ट्रीयकृत बैंक, व्यापार प्रतिबंध और विदेशी निवेश को कम करनाआदि शामिल थे। 19वीं सदी के अंत में, प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए, आर्थिक सुधार शुरू किए गए।
इसके अलावा, सहकारी समितियों का भी एक विशेष कालखंड देश में रहा है।
1. सहकारी समितियों की शुरुआत, सबसे पहले, यूरोप में धन या क्रेडिट(Credit) की कमी वाले, लोगों की सेवा के लिए, एक आत्मनिर्भर व स्व-प्रबंधित लोगों के आंदोलन के रूप में की गई थी। इसमें, सरकार की कोई भूमिका नहीं थी।
2. ब्रिटिश भारत ने, गरीब किसानों के दुख, विशेषकर साहूकारों द्वारा उत्पीड़न को कम करने के लिए, भारत में,राइफ़इसन (Raiffeisen) प्रकार के सहकारी आंदोलन को दोहराया था।
3. बैंकिंग में पहली, क्रेडिट सहकारी समिति का गठन, वर्ष 1903 में, बंगाल सरकार के सहयोग से किया गया था। क्रेडिट सहकारी समिति,ब्रिटिश सरकार के फ्रेंडली सोसायटी अधिनियम(Friendly Societies Act) के तहत, पंजीकृत किया गया था।
4. भारत का सहकारी क्रेडिट सोसायटी अधिनियम, 25 मार्च 1904 को अधिनियमित किया गया था।
5. सहकारी समिति, फिर से 1919 में राज्य का विषय बन गया था। 1951 में,501 केंद्रीय सहकारी संघों का नाम बदलकर, केंद्रीय सहकारी बैंककर दिया गया था।
6. भूमि बंधक सहकारी बैंकों की स्थापना, 1938 में ऋण राहत और भूमि सुधार के लिए, प्रारंभिक ऋण प्रदान करने हेतु की गई थी।
7. सहकारी समितियों ने हमारे देश की आज़ादीऔर विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
8. आज, सहकारी शब्द, ग्रामीण ऋण प्रणाली के समर्पित और कुशल प्रबंधन का पर्याय बन गया था।
9. भारतीय रिज़र्व बैंक ने 1939 से, मौसमी कृषि कार्यों के लिए, सहकारी समितियों को पुनर्वित्त देना शुरू किया।
10. इसके बाद, 1948 से रिज़र्व बैंक ने केंद्रीय सहकारी बैंकों और उनके माध्यम से,प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, राज्य सहकारी बैंकों को पुनर्वित्त देना शुरू किया।
11. 1954 में, अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण समिति ने किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए, राज्य की भागीदारी और संरक्षण के साथ डीसीसी बैंकों(DCC Banks) और पीएसीएस(PACS) को मज़बूत करने की सिफ़ारिश की थी।
12. सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार संबंधित, राज्य अधिनियम, 1962 से उनके संरक्षक बन गए।
13. रिज़र्व बैंक ने फ़सल ऋण के लिए, वित्त के मौसम-तत्व एवं स्तर की शुरुआत की। साथ ही, आपदाओं के कारण, फ़सल नुकसान से निपटने के लिए, रूपांतरण, पुनर्भुगतान और पुनर्निर्धारण की व्यवस्था की थी।
14. इस प्रकार, प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां, बहुउद्देश्यीय बन गईं।
15. 1964 में, रिज़र्व बैंक के, एक्शन प्रोग्राम के तहत, पीएसीएस को, व्यवहार्य इकाइयों में, पुनर्गठित करना शुरू किया गया।
16. अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण समीक्षा समिति, ने तब, निष्कर्ष दिया था, कि सहकारी समितियों की पहुंच मुश्किल से 30% किसानों तक ही सीमित है। यह, बैंकों के राष्ट्रीयकरण का कारण बना।
17. 1975 से, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना से, ग्रामीण ऋण की समस्याएं, कम नहीं हुई, क्योंकि, वे केवल 6% किसानों तक ही पहुंच सके।
18. सहकारी समितियां, 1991 तक, ग्रामीण ऋण में, पिछड़ रही थीं। लेकिन, 1991 और 2001 के बीच, ग्रामीण फ़सल ऋण में, 62% हिस्सेदारी के साथ, उन्होंने अपना प्रमुख स्थान पुनः प्राप्त कर लिया।
आज, भारत में सहकारी समितियां – खुदरा, बैंकिंग, आवास, विपणन, कृषि, विनिर्माण, क्रय और रोज़गार जैसे क्षेत्रों में मौजूद हैं। भारत में सबसे प्रसिद्ध सहकारी समितियों में से कुछ – अमूल, श्री महिला गृह उद्योग (लिज्जत पापड़), कृषक भारती को-ऑपरेटिव, और भारतीय किसान उर्वरक सहकारी आदि हैं।
जब भारत में अधिकांश अन्य सहकारी समितियां, विभिन्न चुनौतियों से, जूझ रही थीं, तब, ‘गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ(जीसीएमएमएफ)’, एक उल्लेखनीय सफ़लता की, कहानी के रूप में, सामने आया। जब, इस दिग्गज ने, अपनी स्वर्ण जयंती मनाई, तब, हमारे प्रधान मंत्री – नरेंद्र मोदी ने, हितधारकों से, इसे, दुनिया की, सबसे बड़ी डेयरी कंपनी का दर्जा देने का आह्वान किया। वास्तव में, यह महासंघ, पहले से ही विश्व स्तर पर आठवें सबसे बड़े डेयरी ब्रांड के रूप में स्थान प्राप्त करता है,और 50 से अधिक देशों में निर्यात भी करता है।
जीसीएमएमएफ की यात्रा, 1970 के दशक मेंशुरू हुई थी, जब गुजरात में हजारों किसान एक सहकारी आंदोलन के माध्यम से एक संपन्न डेयरी व्यवसाय बनाने के लिए, एकजुट हुए थें। प्रारंभ में, ‘कैरा ज़िला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ’ के रूप में ज्ञात – ‘अमूल’ की स्थापना, सरदार वल्लभभाई पटेल के मार्गदर्शन में की गई थी। यह सहकारी समिति, बाद में 9 जुलाई, 1973 को जीसीएमएमएफ बन गई, जब छह डेयरी सहकारी समितियों ने इसमें सहयोग किया। इस सफ़लता का श्रेय, मुख्य रूप से ‘मिल्कमैन ऑफ़ इंडिया’ – डॉ. वर्गीस कुरियन(Verghese Kurien) और भारत की श्वेत क्रांति के लिए, उनके दृष्टिकोण को दिया गया।
डॉ. कुरियन के नेतृत्व में जीसीएमएमएफ ने, न केवल ज़मीनी स्तर पर सहकारी व्यवसाय मॉडल को बेहतर बनाया, बल्कि, भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। वित्त वर्ष, 2025-26 तक, 1 ट्रिलियन मूल्य की कंपनी, बनने की इस ब्रांड की आकांक्षा, भारत में तेज़ी से बढ़ते, डेयरी क्षेत्र को दर्शाती है।
अन्य सहकारी समितियों में इस डेयरी ब्रांड की सफ़लता को दोहराने की कुंजी, पेशेवर प्रबंधन को अपनाने और राजनीतिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में निहित है।
इस ब्रांड की सफ़लता का श्रेय, केवल उसकी सहकारी संरचना को ही नहीं दिया जा सकता है। मज़बूत नेतृत्व, गुणवत्ता पर ध्यान, और उत्पाद नवाचार, इसकी सफ़लता के लिए, समान रूप से महत्वपूर्ण थे। हालांकि, सहकारी मॉडल की अंतर्निहित शक्तियों तथा किसान स्वामित्व और नियंत्रण ने भी सफ़लता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
संदर्भ
https://tinyurl.com/papjv2zp
https://tinyurl.com/4vfv8bvd
https://tinyurl.com/ca3679bt
https://tinyurl.com/4w679mbz
चित्र संदर्भ
1. समूह में बैठी महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. फ़ैक्ट्री में काम करती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. एक लघु यद्योग में काम करते युवकों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. सहकारिता (Cooperation) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. दूध विक्रेताओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)