पुरातत्व के तहत कलाकृतियों, वास्तुकला और पर्यावरणीय आंकड़ों जैसे भौतिक अवशेषों की खुदाई, विश्लेषण और व्याख्या का अहम् कार्य किया जाता है जिसके माध्यम से मानव इतिहास और प्रागैतिहासिक काल का वैज्ञानिक अध्ययन संभव है। पुरातत्व प्राचीन सभ्यताओं द्वारा छोड़े गए भौतिक साक्ष्यों की जांच करके पिछले मानव समाजों, संस्कृतियों और व्यवहारों को समझने का प्रयास करता है। तो आइए, आज पुरातत्व के बारे में और गहराई से जानते हैं और देखते हैं कि 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' (Archaeological Survey of India (ASI) के कितने मंडल हैं। इसके साथ ही हमारे क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण पुरातत्व स्थल ‘अहिच्छत्र’ के विषय में भी जानते है।
पुरातत्व प्राचीन वस्तुओं (कलाकृतियों) और स्थानों का अध्ययन करके अतीत के बारे में जानने का एक तरीका है। पुरातत्व स्थल तब बनते हैं जब लोग समय के साथ एक स्थान पर रहते हैं, घर बनाते हैं और मरम्मत करते हैं, भोजन तैयार करने जैसे नियमित कार्य करते हैं और उपयोग की जा चुकी चीज़ों को कूड़े के ढेर में फेंक देते हैं। समय के साथ ये और अन्य गतिविधियों में उपयुक्त वस्तुऐं ज़मीन में दफन हो जाती हैं। अब प्रश्न उठता है कि पुरातात्विक स्थलों का निर्माण कैसे होता है? उदाहरण के तौर पर, किसी घर की दीवारें ढह सकती हैं, जिससे उसका फर्श और अंदर की वस्तुएं दब जाएंगी। फिर लोग उसी स्थान पर नया घर बनाते हैं। जैसे-जैसे लोग एक ही स्थान पर रहना जारी रखते हैं, वस्तुओं एवं दीवार इत्यादि की परतें बनती जाती हैं। जब ऐसी परतें एक स्थान पर बनती हैं तो वे ऐसी विशेषताएं बनाती हैं जिन्हें “पुरातत्वविद् टीले” कहते हैं। पुरानी दीवारों और फर्शों के साक्ष्य मिलने से पुरातत्ववेत्ताओं को यह जानने में मदद मिलती है कि क्या टीले का निर्माण मुख्य रूप से घरों जैसी इमारतों के ढहने से हुआ था? और प्राचीन काल में घरों की संरचनाएं किस प्रकार की होती थीं? इसी प्रकार रोज़मर्रा की घरेलू गतिविधियों के कारण भी वस्तुएं जमीन में दब जाती हैं। समय के साथ ये वस्तुएं जमा हो जाती हैं जिसे “पुरातत्वविद मिडेन्स” (middens) कहते हैं। जब लोग लंबे समय तक वस्तुओं को एक ही स्थान पर फेंकते हैं, तो बीच की परतों से एक ऊंचे टीले का निर्माण हो सकता है। ये सभी वस्तुएं लोगों के जीवन के बारे में सुराग प्रदान करती हैं - जैसे कि, वे क्या खाते थे, वे कौन से उपकरण इस्तेमाल करते थे, वे किस प्रकार के घर में रहते थे और भी बहुत कुछ।
भारत में पुरातात्विक अनुसंधान और सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण का कार्य एक सरकारी एजेंसी 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' (ASI) द्वारा किया जाता है। इसकी स्थापना 1861 में हुई थी और यह संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) के तहत संचालित होता है। ASI खुदाई करने, सर्वेक्षण करने और विरासत स्थलों का दस्तावेज़ीकरण करने के लिए उत्तरदायी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के देश भर में कुल 29 मंडल हैं, जिनमें से प्रत्येक अपने संबंधित भौगोलिक क्षेत्र के भीतर पुरातात्विक अनुसंधान और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए उत्तरदायी है।
ASI के मंडल इस प्रकार हैं:
मंडल संख्या |
मंडल का नाम |
मुख्यालय |
1 |
आगरा मंडल |
आगरा |
2 |
औरंगाबाद मंडल |
औरंगाबाद |
3 |
भोपाल मंडल |
भोपाल |
4 |
भुवनेश्वर मंडल |
भुवनेश्वर |
5 |
चंडीगढ़ मंडल |
चंडीगढ़ |
6 |
चेन्नई मंडल |
चेन्नई |
7 |
देहरादून मंडल |
देहरादून |
8 |
गोवा मंडल |
गोवा |
9 |
गुवाहाटी मंडल |
गुवाहाटी |
10 |
हैदराबाद मंडल |
हैदराबाद |
11 |
दिल्ली मंडल |
दिल्ली |
12 |
जयपुर मंडल |
जयपुर |
13 |
कोलकाता मंडल |
कोलकाता |
14 |
लखनऊ मंडल |
लखनऊ |
15 |
मुंबई मंडल |
मुंबई |
16 |
नागपुर मंडल |
नागपुर |
17 |
पुडुचेरी मंडल |
पुडुचेरी |
18 |
पटना मंडल |
पटना |
19 |
रायपुर मंडल |
रायपुर |
20 |
रांची मंडल |
रांची |
21 |
सारनाथ मंडल |
सारनाथ |
22 |
शिमला मंडल |
शिमला |
23 |
शिलोंग मंडल |
शिलोंग |
24 |
त्रिसूर मंडल |
त्रिसूर |
25 |
वडोदरा मंडल |
वडोदरा |
26 |
विजयवाड़ा मंडल |
विजयवाड़ा |
27 |
विशाखापट्टनम मंडल |
विशाखापट्टनम |
28 |
जम्मू मंडल |
जम्मू |
29 |
रायगंज मंडल |
रायगंज |
अभी हाल ही में ASI ने अपना विस्तार भी किया है और कुछ नए मंडल जोड़े हैं।
हमसे निकट बरेली ज़िले में रामनगर गांव के पास भी एक प्राचीन शहर “अहिच्छत्र” है, जो एक समृद्ध पुरातात्विक स्थल है, और एक लंबे इतिहास को दर्शाता है। यहां से एक किला, मंदिर और मिट्टी के बर्तनों का पता चला है। यह शहर भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। माना जाता है कि यह शहर 16 महाजनपदों के काल से सम्बंधित हैं। अहिच्छत्र पांचाल साम्राज्य की राजधानी था, जो 6ठी शताब्दी ईसा पूर्व से 4थी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान 16 महाजनपदों या 'महान गणराज्यों' में से एक था। ऐसा माना जाता है कि राज्य दो प्रमुख क्षेत्रों में विभाजित था - उत्तरी पांचाल और दक्षिणी पांचाल। अहिच्छत्र उत्तरी पांचाल की राजधानी था और काम्पिल्य (जो वर्त्तमान में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद ज़िले में आधुनिक कम्पिल है) दक्षिण पांचाल की राजधानी। अहिच्छत्र एक महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल होने के साथ-साथ एक जैन तीर्थस्थल भी था। यह एक ऐसी जगह भी है जहां आप पिरामिडनुमा संरचना देख सकते हैं।
वेदों में अहिच्छत्र को 'परिचक्र' के नाम से सम्बोधित किया गया है। हालाँकि, बाद में, नाम बदलकर अहिच्छत्र हो गया। एक स्थानीय किंवदंती के अनुसार, जब यहां के प्राचीन लोगों के समूह नागों की पूजा करते थे, 'अहिच्छत्र' नाम एक नाग से लिया गया है, जिसने यहां एक बार अहीर वंश के सोते हुए राजा 'आदि-राजा' की रक्षा के लिए फनों की छतरी या 'छत्र' का निर्माण किया था। इसलिए इस स्थान का नाम 'अहि-छत्र' पड़ा।
1940 और 1946 के बीच अहिच्छत्र स्थल पर कार्य करने वाले भारतीय पुरातत्वविदों के अनुसार, यहां खोजी गई कुछ मुहरों से पता चलता है कि यह शहर गुप्त साम्राज्य के तहत एक प्रभाग था। इस स्थल पर लगातार 11वीं शताब्दी तक बसावट थी, जिसके बाद यह काफी हद तक वीरान रहा। अहिच्छत्र नगर आस्था का एक संपन्न केंद्र था। ह्वेन त्सांग के शहर के विवरण से पता चलता है कि यहां बौद्ध और हिंदू धर्म सह-अस्तित्व में थे। उन्होंने 12 मठों और नौ ब्राह्मण मंदिरों का उल्लेख किया है, जिनमें एक हज़ार भिक्षु और लगभग 300 ईश्वर देव (शिव) उपासक थे, जो अपने शरीर पर राख लगाते थे। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अहिच्छत्र जैन धर्म का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र था, और आज भी इसे प्रमुख जैन तीर्थों में से एक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पार्श्वनाथ ने अहिच्छत्र में 'सर्वज्ञता' प्राप्त की थी, जिससे यह जैन समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान बन गया।
इस शहर की कहानी इसके किले के संदर्भ के बिना अधूरी है, जिसे पांडु का किला कहा जाता है। इसकी परिधि छह किलोमीटर तक फैली हुई है और इसमें 34 बुर्ज, कई विशाल टीले, अद्वितीय सीढ़ीदार मंदिर, संग्रहालय और स्तूप शामिल हैं। कुछ स्रोतों में किले को 'आदिकोट' भी कहा गया है। अहिच्छत्र में दूसरी महत्वपूर्ण खोज यहां खोजे गए मिट्टी के बर्तन हैं। इस स्थल पर सबसे पुराने सांस्कृतिक अवशेष गेरू रंग के मृदभांड (Ochre Coloured Pottery (OCP) संस्कृति (2000-1500 ईसा पूर्व) से संबंधित हैं।
1940-44 में खुदाई के दौरान निकले चित्रित धूसर मृदभांड, देशभर में पहली बार यहीं यहीं प्राप्त हुए थे। चित्रित धूसर मृदभांड उत्तरी भारत में प्रारंभिक लौह युग की पहचान हैं और इन्हें सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बाद सतलुज, घग्गर और ऊपरी गंगा-यमुना घाटियों में बसने वाले लोगों द्वारा प्रयुक्त मिट्टी के बर्तन माना जाता है। इस स्थल पर विभिन्न चरणों के दौरान किए गए उत्खनन में गेरू रंग के मृदभांड संस्कृति से लेकर प्रारंभिक मध्ययुगीन काल तक आठ सांस्कृतिक चरणों के अनुक्रम का पता चला है। अहिच्छत्र का सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाला स्थानीय राजवंश मित्र-पंचाल को माना जाता है। गुप्त युग के दौरान यह शहर टेराकोटा केंद्र के रूप में विकसित हुआ, जिसकी कुछ मूर्तियाँ अभी भी एक प्रमाण के रूप में यहां मौजूद हैं। अहिच्छत्र में खोजी गई गंगा और यमुना देवियों की मूर्तिकला, जो अब दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में हैं, उस स्थल पर विकसित हुई टेराकोटा कला का एक अच्छा उदाहरण हैं। स्थल से प्राप्त अन्य पुरातात्विक साक्ष्यों में शिव-पार्वती और मैत्रेय बुद्ध की मूर्तियाँ शामिल हैं। अहिच्छत्र अब भारत में रेशम मार्ग स्थलों के तहत यूनेस्को (UNESCO) की अस्थायी विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल है। यह शहर उत्तरी भारत में रेशम मार्ग के उत्तरापथ पर स्थित है, जो तक्षशिला, मथुरा और पाटलिपुत्र जैसे प्राचीन भारत के महान शहरों को जोड़ता था।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yevfhp9e
https://tinyurl.com/2t5hnm9r
https://tinyurl.com/32jpfw53
https://tinyurl.com/sva36b63
चित्र संदर्भ
1. अहिच्छत्र से उत्खनन में प्राप्त 7वीं शताब्दी ई.पू. की पार्श्वनाथ की मूर्ति, को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ईमारत को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक खंडित मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. अहिच्छत्र किला मंदिर बरेली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. अहिच्छत्र प्राचीन गांव मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. गेरू रंग के मृदभांड को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)