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जानें कितना घातक है इबोला वायरस, और क्या है इसके रोकथाम के लिए टीके में प्रयुक्त विज्ञान

रामपुर

 15-05-2024 09:33 AM
कोशिका के आधार पर

वर्ष 2020 में फैले कोरोना वायरस के प्रकोप से तो हम सभी भली-भांति परिचित हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि 2013 में पश्चिम अफ्रीका (West Africa) में इबोला (Ebola) नामक एक वायरस से भी एक ऐसी महामारी फैली थी, जिसमें 11,000 से अधिक लोगों ने अपनी जान गवां दी थी। इसके 6 वर्ष बाद 2019 में कांगो गणराज्य (Republic of Congo) में, इसी महामारी ने दूसरी बार हमला किया, जिसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization (WHO) द्वारा इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया गया है। इबोला को दुनिया की सबसे घातक बीमारियों में से एक माना जाता है, जिसकी मृत्यु दर 90% से भी अधिक है। इबोला वायरस रोग, जिसे इबोला रक्तस्रावी बुखार भी कहते हैं, मनुष्यों में होने वाली एक दुर्लभ बीमारी है, जो फिलोविरिडे (Filoviridae) परिवार के वायरस इबोला के कारण फैलती है, और यदि इसका समय पर उपचार न किया जाए, तो यह घातक साबित हो सकती है। इस वायरस का नाम कांगो में इबोला नदी के नाम पर रखा गया है, जहां 1976 में पहली बार इसका प्रकोप हुआ था। पहली बार 1976 में यह वायरस एक साथ दो स्थानों: दक्षिण सूडान (South Sudan) में, और दूसरा कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के यमबुकु (Yambuku, Democratic Republic of the Congo) में फैला था। ऐसा माना जाता है कि इबोला टेरोपोडिडे (Pteropodidae) परिवार के फल- चमगादड़ों द्वारा फैलता है। इबोला बीमार, या मृत संक्रमित जानवरों जैसे कि फल- चमगादड़, चिंपैंजी, गोरिल्ला, बंदर, वन मृग के रक्त, स्राव, अंगों या अन्य शारीरिक उत्सर्जन के निकट संपर्क के माध्यम से मानव आबादी में प्रवेश करता है। यह पहले से ही इबोला से प्रभावित किसी व्यक्ति के रक्त या उल्टी, और मल जैसे तरल पदार्थ से दूषित वस्तुओं के सीधे संपर्क से, मानव-से-मानव संचरण के माध्यम से भी फैलता है। हालांकि लक्षण प्रकट न होने तक इबोला वायरस से संक्रमित व्यक्ति के माध्यम से यह प्रसारित नहीं हो सकता। इसमें आमतौर पर संक्रमण के समय से, 2 से 21 दिन लगते हैं।
इबोला से पीड़ित व्यक्ति में आमतौर पर निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं:
- बुखार और गले में खराश
- मांसपेशियों में दर्द
- सिरदर्द और थकान
- उल्टी करना
- दस्त इबोला रोग के लक्षणों का प्रबंधन करके वायरस से संक्रमित व्यक्ति के जीवन के संकट को दूर किया जा सकता है। तरल पदार्थ, और शारीरिक लवण प्रदान करके निर्जलीकरण को रोका जा सकता है, तथा दस्त और उल्टी को नियंत्रित करने वाली दवाओं, और भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन सुनिश्चित करके इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है। हालांकि इस महामारी से निपटने के लिए स्थायी समाधान, और टीका खोजने के लिए परीक्षण अभी चल रहे हैं।
हमारे देश भारत में 'स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग' (भारत सरकार) के अनुसार, सौभाग्य से, भारत में इस घातक बीमारी का कोई मामला सामने नहीं आया है। 8 अगस्त, 2014 को 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' द्वारा पश्चिम अफ्रीका में इबोला रोग के प्रकोप को अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने के बाद, भारत सरकार द्वारा देश में इस बीमारी से निपटने के लिए तैयारियों की स्थिति की समीक्षा की गई। इसके तहत प्रभावित देशों से आने वाली उड़ानों के यात्रियों की सात अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों, और नौ प्रमुख बंदरगाहों पर जांच की गई। इन हवाई अड्डों पर प्रशिक्षित चिकित्सा, और पैरामेडिकल स्टाफ के तहत संचालित विशेष स्वास्थ्य इकाइयों द्वारा यह कार्य किया गया। एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम के तहत ऐसे यात्रियों को ट्रैक किया गया, जो प्रभावित देशों से आए थे, और जिनका किसी संदिग्ध या पुष्टि किए गए इबोला मामले के संपर्क का इतिहास था। उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों का 'राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र,' और 'राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान', पुणे में नैदानिक ​​​​नमूनों का परीक्षण किया गया। नमूने एकत्र करने, परीक्षण करने, और भंडारण करने के लिए आवश्यक जैव सुरक्षा स्तर मानकों वाली, दस और मौजूदा प्रयोगशालाओं की पहचान की गई। इन सभी यात्रियों में केवल एक भारतीय नागरिक को छोड़कर, जो लाइबेरिया से आया था, और पहले संक्रमित होने के बाद संक्रमण मुक्त हो चुका था, सभी का परीक्षण नकारात्मक आया। इस यात्री को 'हवाईअड्डा स्वास्थ्य संगठन', दिल्ली के संगरोध केंद्र में तब तक छोड़ दिया गया, जब तक कि उसके शरीर के तरल पदार्थ का परीक्षण नकारात्मक नहीं हो गया। इबोला वायरस को ठीक करने के लिए जिस प्रकार के टीके का उपयोग किया जाता है, उसे वायरल वेक्टर वैक्सीन (Viral Vector Vaccine) कहा जाता है। वायरल वेक्टर-आधारित टीके अधिकांश पारंपरिक टीकों से भिन्न होते हैं, क्योंकि उनमें वास्तव में एंटीजन (antigens) नहीं होते हैं, बल्कि ये टीके शरीर में उन्हें उत्पन्न करने के लिए शरीर की कोशिकाओं का उपयोग करते हैं। वे एंटीजन के लिए आनुवंशिक कोड तैयार करने के लिए एक संशोधित वायरस (वेक्टर) का उपयोग करके ऐसा करते हैं। इबोला के विरुद्ध उपयोग की जाने वाली rVSV-ZEBOV वैक्सीन इसी प्रकार के वायरल वेक्टर वैक्सीन का एक उदाहरण है। वायरस अपने मेजबान के शरीर की कोशिकाओं पर आक्रमण करके, और शरीर में प्रोटीन बनाने वाली मशीनरी पर कब्जा करके जीवित रहते हैं, और अपनी संख्या बढ़ाते हैं। इसलिए वायरल वेक्टर टीका वायरस के आनुवंशिक कोड को पढ़ता है, और नए वायरस बनाता है। इन वायरस कणों में एंटीजन अणु होते हैं, जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर कर सकते हैं।
वायरल वेक्टर एक वितरण प्रणाली के रूप में कार्य करता है, जो कोशिका पर आक्रमण करने और एक अलग वायरस के एंटीजन के लिए कोड डालने का साधन प्रदान करता है। एक बार शरीर में इंजेक्ट होने के बाद, ये वैक्सीन वायरस हमारी कोशिकाओं को संक्रमित करना शुरू कर देते हैं और अपनी आनुवंशिक सामग्री (एंटीजन) को कोशिकाओं के नाभिक में डालना शुरू कर देते हैं। इसके बाद मानव कोशिकाओं द्वारा प्रोटीन के समान ही एंटीजन के निर्माण का कार्य किया जाता है। जब प्रतिरक्षा कोशिकाएं अन्य एंटीजन का पता लगाती हैं, तो वे उसके खिलाफ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करती हैं। यद्यपि इबोला वायरस की खोज 1976 में ही हो चुकी थी, लेकिन वैज्ञानिकों को इबोला के लिए लागत प्रभावी और मापनीय टीका विकसित करने में लगभग दो दशक लग गए। 1976 के अंत तक, वायरस के दो संबंधित प्रकार ज्ञात थे - इबोला ज़ैरे और इबोला सूडान। हालांकि अब इसके तीन अन्य उपभेदों के अस्तित्व में होने की जानकारी है। इसके लिए टीके का विकास 1970 के दशक के अंत में शुरू हो चुका था, और सूअरों में निष्क्रिय इबोला वैक्सीन के परीक्षण के परिणाम 1980 में लैंसेट (Lancet) में प्रकाशित हुए थे। उस दौरान इसका प्रकोप अत्यंत दुर्लभ होने एवं तुरंत ही इस पर काबू पा लेने के कारण, वाणिज्यिक वैक्सीन निर्माताओं द्वारा नैदानिक ​​​​परीक्षणों के माध्यम से टीकों के निर्माण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में बहुत कम तत्परता दिखाई गई। 2014 तक अधिकांशत केवल जानवरों पर परीक्षण किए गए टीके उपलब्ध थे। 2014 के प्रकोप के बाद इस प्रक्रिया में तेजी लाई गई। क्लिनिकलट्रायल्स.जीओवी (ClinicalTrials.gov) वेबसाइट पर कई इबोला वैक्सीन परीक्षण सूचीबद्ध हैं। इनमें मुख्य रूप से दो अग्रणी वैक्सीन 'जीएसके चिंपैंजी एडेनोवायरस वेक्टर वैक्सीन' (GSK chimpanzee adenovirus vector vaccine,) और 'मर्क/न्यूलिंक जेनेटिक्स रीकॉम्बिनेंट वैक्सीन' (Merck/NewLink Genetics recombinant vaccine) शामिल हैं। न्यूलिंक जेनेटिक्स द्वारा लाइसेंस प्राप्त इबोला वैक्सीन मूल रूप से कनाडा की सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसी द्वारा विकसित की गई थी, जिसके पास अभी भी इसके लिए बौद्धिक संपदा अधिकार हैं। जीएसके इबोला वैक्सीन का संस्करण केवल इबोला ज़ैरे से सुरक्षा प्रदान करता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4utw4jtp
https://tinyurl.com/mt85nynu
https://tinyurl.com/26te5aas
https://tinyurl.com/2yh867aw

चित्र संदर्भ
1. इबोला मरीज़ के पास जाते चिकित्सकों को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
2. इबोला वायरस को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
3. इबोला मरीज को दफ़न करने की प्रकिया को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
4. भूने गए मांस संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. बंद कक्ष में रखे गए इबोला मरीज को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. इबोला के टीकाकरण को दर्शाता चित्रण (wikimedia)



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