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होम्योपैथी, प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद के बीच क्या है मूलभूत अंतर

रामपुर

 10-04-2024 09:43 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

बीमार पड़ने पर हम सभी को बीमारी से ज़्यादा डर मोटी मोटी कड़वी गोलियों और इंजेक्शन से लगता है। लेकिन यदि आप होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति से अपना इलाज कराते हैं तो आपको दवा के रूप में मोटी, कड़वी गोली नहीं बल्कि छोटी छोटी मीठी गोली खाने को मिलती है। लोगों को एलोपैथी की गाढ़ी कड़वी गोलियों से ज्यादा होम्योपैथी दवा का स्वाद पसंद आता है।
बच्चे हो या बड़े, हर कोई छोटी छोटी मीठी गोलियां खाकर ठीक हो जाना चाहता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि होम्योपैथी में दवा के रूप में उपयोग की जाने वाली ये मीठी गोलियां आखिर मीठी क्यों होती हैं? क्या वे सचमुच शर्करा से बनी होती हैं? तो आज विश्व होम्योपैथी दिवस के मौके पर आइए जानते हैं कि होम्योपैथी दवाएं किस पदार्थ से बनी होती हैं? साथ ही आपने ध्यान दिया होगा कि इन दवाओं को प्लास्टिक या कांच के कंटेनरों में रखा जाता है, तो क्या इन प्लास्टिक या कांच के कंटेनरों से इन दवाओं पर कोई फर्क पड़ता है? इसके साथ ही आइए हम होम्योपैथी, प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद के बीच के अंतर को भी समझते हैं।
होम्योपैथी चिकित्सा प्रणाली इस सिद्धांत पर आधारित है कि शरीर में यदि किसी पदार्थ के अधिक होने पर कोई बीमारी हो जाती है और यदि उसी पदार्थ का कम मात्रा में सेवन किया जाए, तो वह बीमारी ठीक हो सकती है। ऐसा माना जाता है कि इस छोटी खुराक से शरीर का उपचार तंत्र उत्तेजित हो जाता है। होम्योपैथी चिकित्सा में उपयोग की जाने वाली दवाएं प्राकृतिक रूप से उपलब्ध पदार्थों, जैसे पौधों और जानवरों के अर्क और खनिजों से प्राप्त की जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि ये पदार्थ शरीर की उपचार करने की जन्मजात क्षमता को उत्तेजित करते हैं। इन पदार्थों को तनुकृत (बार-बार पतला) करके दवाएं तैयार की जाती हैं।
इन तनुकृत पदार्थों को मंदक के साथ मिलाया जाता है जो एक मीठा, चूर्णित पदार्थ होता है। मंदक का मीठा स्वाद तनुकृत पदार्थों के स्वाद को छुपाने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त, निर्माता गोलियों को अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए उनमें लैक्टोज या सुक्रोज जैसे मीठा स्वाद देने वाले तत्व भी मिलाते हैं। फिर इस मिश्रण से गोलियां बनाई जाती हैं। तनुकरण के कारण होम्योपैथी दवाएं धीमी गति से कार्य करती है। होम्योपैथी दवा में सक्रिय तत्वों का स्तर बेहद कम या पता न चल पाने वाला होता है। चूँकि होम्योपैथी दवाएं बेहद तनुकृत होती हैं अतः इनका सेवन करते समय बेहद सावधानी बरतनी चाहिए। और अधिकतम प्रभावशीलता के लिए, होम्योपैथिक दवाओं को निम्नलिखित से दूर रखा जाना चाहिए:
1. माइक्रोवेव ओवन और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र उत्सर्जित कर सकते हैं जो दवा की शक्ति को प्रभावित कर सकते हैं।
2. कॉफ़ी पाउडर, चाय और ऐसी दवाएं जिनमें कैफीन की मात्रा अधिक होती है। कैफीन होम्योपैथिक दवा की कार्रवाई में हस्तक्षेप कर सकता है।
3. कपूर, मोथबॉल, बाम, शीतलन या गर्मी प्रभाव वाले मलहम, लिपस्टिक और इत्र। ये पदार्थ तेज़ गंध छोड़ सकते हैं जो दवा की शक्ति को प्रभावित कर सकते हैं।
4. टूथपेस्ट और च्युइंग गम में पुदीना, साथ ही लौंग का तेल, नीलगिरी, पुदीना और मेन्थॉल जैसे आवश्यक तेल।
5. पेंट, गोंद और वार्निश जैसे तेज़ गंध वाले पदार्थों के दैनिक या लंबे समय तक संपर्क से दवा की शक्ति प्रभावित हो सकती है।
6. ताजा लहसुन और प्याज से तेज गंध निकलती है जो दवा की शक्ति को प्रभावित कर सकती है।
इसके साथ ही दवा की समाप्ति तिथि की जांच करना और किसी भी समय समाप्त हो चुकी दवा को त्यागना भी बहुत महत्वपूर्ण है। होम्योपैथिक दवाओं के भंडारण और प्रबंधन पर विशिष्ट मार्गदर्शन के लिए किसी योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक से परामर्श करना हमेशा सर्वोत्तम होता है। स्वास्थ्य के लिए समग्र दृष्टिकोण की चर्चा करते समय होम्योपैथी के साथ साथ प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद दोनों भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इन दोनों चिकित्सा पद्धतियों का आदर्श भी किसी समस्या के मूल कारण को ज्ञात करके बीमारी का जड़ से इलाज करना है। हालाँकि, इन सभी विचारधाराओं के दर्शन और उपचार की पद्धतियां अलग-अलग हैं। होम्योपैथी और प्राकृतिक चिकित्सा दोनों के बीच एक बड़ा अंतर यह है कि होम्योपैथी बीमारी के उपचार के लिए अपने सिद्धांतों का उपयोग करती है, जबकि प्राकृतिक चिकित्सा में रोगियों के उपचार के लिए होम्योपैथी को अपने कई उपकरणों में से एक के रूप में उपयोग किया जाता है। यहां होम्योपैथी बनाम प्राकृतिक चिकित्सा के बीच कुछ अन्य विशिष्ट अंतर दिए गए हैं जो आपको अधिक जानकारीपूर्ण स्वास्थ्य विकल्प चुनने में मदद कर सकते हैं:
➼ उपचार की विधि: होम्योपैथिक उपचार प्राकृतिक चिकित्सा उपचार विधि से काफी भिन्न होते हैं। होम्योपैथी में पौधों और खनिजों को प्राकृतिक रूप से प्राप्त करके और उन्हें तनुकृत करके (पतला करके) दवाएं तैयार की जाती है। जबकि प्राकृतिक चिकित्सा में केवल साधारण उपचार ही शामिल नहीं हैं, इसमें सभी प्रकार के वैकल्पिक और सामान्य चिकित्सा उपकरण भी शामिल हो सकते हैं। इन विधियों में वनस्पति चिकित्सा, भौतिक चिकित्सा, जल चिकित्सा, आहार और पोषण, चिकित्सा, व्यायाम और जीवन शैली परामर्श भी शामिल हैं, और यह इससे भी कहीं अधिक है।
➼ नैदानिक पात्रता: अधिकांश राज्यों में होम्योपैथिक चिकित्सकों को एक बोर्ड द्वारा प्रमाणित किया जाता है, हालाँकि, अलग-अलग राज्यों में पात्रता से संबंधित अलग अलग कानून होते हैं। होम्योपैथिक चिकित्सकों को चिकित्सा में अपनी शुरुआत करने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन होम्योपैथिक बोर्ड वाले अधिकांश राज्यों को कुछ प्रकार के चिकित्सा प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। जबकि एक प्राकृतिक चिकित्सक के रूप में पूर्ण प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए, आपको पारंपरिक मेडिकल कॉलेज के समान प्रशिक्षण पूरा करना होता है। हालाँकि, आप उपचार के अपने पसंदीदा रूपों में से एक के रूप में डॉक्टर बनने के लिए प्रशिक्षण के दौरान होम्योपैथी का अध्ययन करना भी चुन सकते हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कुछ राज्यों में प्राकृतिक चिकित्सा डॉक्टरों के लिए लाइसेंसिंग प्रक्रिया नहीं है, इसलिए कोई भी प्राकृतिक चिकित्सक होने का दावा कर सकता है।
➼ दर्शन: होम्योपैथी "जैसा रोग वैसा उपचार" में विश्वास करती है और ऐसा किसी बीमारी के लक्षणों से लड़कर किया जाता है। होम्योपैथी का मानना ​​है कि लक्षणों का इलाज करके सीधे शरीर को बीमारियों से लड़ने में सक्षम बनाया जा सकता है।
जबकि प्राकृतिक चिकित्सा 6 बुनियादी सिद्धांतों का पालन करती है और इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जो भी चिकित्सा साधन आवश्यक समझती है उसका उपयोग करती है:

➼ हानिरहित उपचार- यह गैर-आक्रामक और कम से कम विषाक्त उपचार का उपयोग करने का दर्शन है।
➼ विज्ञान की उपचार शक्ति - होम्योपैथ की तरह, प्राकृतिक चिकित्सक शरीर की खुद को ठीक करने की क्षमता में विश्वास करते हैं।
➼ कारण को पहचान कर इलाज करना - होम्योपैथी के समान, प्राकृतिक चिकित्सक रोग के अंतर्निहित कारण का पता लगाते हैं और उसे दूर करते हैं।
➼ शिक्षक के रूप में चिकित्सक की भूमिका - प्राकृतिक चिकित्सकों का मानना ​​है कि आपको अपने मरीजों को शिक्षित करना चाहिए ताकि वे ➼ ➼ अपनी समस्याओं का इलाज करते समय अपने शरीर की जिम्मेदारी स्वयं ले सकें।
➼ व्यक्ति का समग्र उपचार - यह सिद्धांत रोगी को प्रभावित करने वाली जीवनशैली, पारिवारिक इतिहास, मानसिक और भावनात्मक कारकों के प्रभाव को पहचानता है।
➼ रोकथाम - भविष्य में होने वाली बीमारी को रोकने के लिए समग्र स्वास्थ्य देखभाल पर ज़ोर दिया जाता है। इसी प्रकार समग्र स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद और होम्योपैथी दोनों ही दृष्टिकोण स्वास्थ्य और उपचार पर अद्वितीय दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। हालाँकि, इन दोनों के अपने सिद्धांत और उपचार विधियां हैं।आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति बीमारी को रोकने के लिए निवारक देखभाल और आंतरिक संतुलन बनाए रखने के महत्व पर जोर देती है। आयुर्वेदिक चिकित्सा मूल रूप से इस विचार पर आधारित है कि शरीर में तत्वों और ऊर्जाओं का एक अनूठा संयोजन है, जिसे दोष के रूप में जाना जाता है।
इन दोषों को तीन तत्वों में विभाजित किया गया है:
➼ वात: वायु और अंतरिक्ष के तत्वों से संबद्ध, वात दोष श्वास, परिसंचरण और तंत्रिका आवेगों सहित गति को नियंत्रित करता है। यह रचनात्मकता, लचीलेपन और त्वरित सोच के लिए जिम्मेदार है। इसके असंतुलित होने पर, चिंता, अनिद्रा और पाचन संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
➼ पित्त: अग्नि और जल के तत्वों से संबद्ध, पित्त दोष चयापचय, पाचन और परिवर्तन को नियंत्रित करता है।
यह बुद्धि, महत्वाकांक्षा और शरीर के तापमान के नियमन के लिए ज़िम्मेदार है। इसके असंतुलित होने पर, क्रोध, सूजन, पाचन विकार और त्वचा की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
➼ कफ: पृथ्वी और जल के तत्वों से संबद्ध, कफ दोष संरचना, स्नेहन और स्थिरता को नियंत्रित करता है। यह शारीरिक शक्ति, सहनशक्ति और भावनात्मक स्थिरता प्रदान करता है। इसके असंतुलित होने पर, वजन बढ़ने, रक्‍ताधिक्य, सुस्ती आदि की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
➼ आयुर्वेद उपचार: आयुर्वेद में उपचार की कई विधियां शामिल हैं जो निम्न प्रकार हैं:
- हर्बल उपचार
- आहार संबंधी संशोधन
- जीवनशैली संबंधी परिवर्तन
- विषहरण तकनीक
- चिकित्सीय अभ्यास जैसे योग, ध्यान और मालिश जबकि होम्योपैथी में जैसा कि हमने ऊपर भी पढ़ा है अत्यधिक तनुकृत पदार्थों से दवाओं का निर्माण किया जाता है। आयुर्वेदिक उपचार का अंतिम लक्ष्य लक्षणों को कम करना, शरीर की प्राकृतिक रक्षा तंत्र को बढ़ाना, चिंताओं को कम करना और जीवन में सद्भाव को बढ़ावा देना है। वास्तव में इन तीनों ही चिकित्सा पद्धतियों का मूल लक्ष्य बीमारी को जड़ से खत्म करना है। यद्यपि इन तीनों के ही अपने अलग सिद्धांत एवं दर्शन हैं।

संदर्भ
https://t.ly/Qy1uk
https://t.ly/ibAHY
https://t.ly/mE5E7

चित्र संदर्भ
1. होम्योपैथी बनाम आयुर्वेद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, needpix)
2. होम्योपैथिक दवाइयों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. औषधियों के साथ रखी गई दवाइयों को दर्शाता एक चित्रण (PickPik)
4. पुरानी हो चुकी होम्योपैथिक दवाइयों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. रोगियों को तेल लगाने के लिए आयुर्वेदिक उपचार सेट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. एक विशिष्ट आयुर्वेदिक फार्मेसी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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