Post Viewership from Post Date to 31-Jul-2022 (30th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
3058 19 3077

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

जगन्नाथ रथ यात्रा विशेष: दुनिया के सबसे बड़े रथ उत्सव से जुडी शानदार किवदंतियाँ

मेरठ

 01-07-2022 10:22 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

मेरठ के सभी जगन्नाथ या विष्णु भक्तों को बेसब्री से भारत के सबसे बड़े धार्मिक त्योहारों में से एक, जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का बेसब्री से इंतज़ार रहता है! सभी भक्तों के लिए सबसे बड़ी खुशखबरी यह है की, इस वर्ष जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा शुक्रवार यानी आज से शुरू हो रही है। चलिए इस पावन अवसर पर जगन्नाथ यात्रा के आसपास की विभिन्न विद्याओं और इससे जुड़ी कुछ दिलचस्प किवदंतियों के बारे में जानते हैं।
भारत के सबसे बड़े धार्मिक त्योहारों में से एक, जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा कई मायने में अनूठी है। इस पवित्र यात्रा के अवसर पर तीन प्रमुख हिंदू देवताओं को मंदिरों से, उनके भक्तों बीच एक उत्साहित जुलूस में ले जाया जाता है। इनमें से सबसे बड़ा जुलूस पूर्वी राज्य उड़ीसा के पुरी में आयोजित होता है, जबकि दूसरा बड़ा आयोजन पश्चिमी राज्य गुजरात में होता है।
यह त्योहार भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और छोटी बहन सुभद्रा के वार्षिक औपचारिक यात्रा का प्रतीक होता है। इस यात्रा को हजारों साल पहले लिखे गए पुराणों के रूप में अदिनांकित हिंदू पवित्र ग्रंथों में भी प्रलेखित किया गया है। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा त्योहार है, जहां देवताओं को दर्शन और यात्रा के लिए मंदिरों से निकाला जाता है, साथ ही यह दुनिया का सबसे बड़ा रथ जुलूस भी है। इस अवसर पर लाखों लोग भगवान "जगन्नाथ" को देखने के लिए आते हैं, जो तीन बड़े 18-पहिए वाले रथ में अपने भाई-बहनों के साथ भारी भीड़ के बीच से अपना रास्ता बनाते हुए निकलते हैं। ये रथ, जो वास्तुशिल्प के चमत्कार माने जाते हैं, का निर्माण 42 दिनों में 4,000 से अधिक लकड़ी के टुकड़ों से किया जाता है! इन रथों के निर्माण का वंशानुगत अधिकार केवल एक ही परिवार के पास है। किंवदंती के अनुसार रथ यात्रा के दिन हमेशा बारिश होती है। पहले पूरे एक सप्ताह तक मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और किसी को भी अंदर जाने की अनुमति नहीं होती है।
जगन्नाथ वास्तव में एक अप्रतिरोध्य शक्ति का प्रतीक हैं। और रथ पर जगन्नाथ के रूप में कृष्ण का वार्षिक जुलूस दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े त्योहारों में से एक माना जाता है। भारत में हजारों साल पुराना यह उत्सव 1960 के दशक के उत्तरार्ध से दुनिया भर के शहरों में फैल गया। भगवान जगन्नाथ का इतिहास, मनुष्य और भगवान के बीच शाश्वत प्रेम तथा भक्ति की कहानी कहता है। यह बताता है कि, कैसे एक भक्त की प्रार्थना ने भगवान को प्रकट होने पर विवश कर दिया। साथ ही यह भी दर्शाता है कि, कैसे श्री कृष्ण, श्री जगन्नाथ के रूप में आए, ताकि वे सभी वर्गों के भक्तों की प्रेमपूर्ण सेवा स्वीकार कर सकें।
प्राचीन वैदिक साहित्य में इंद्रद्युम्न नामक एक महान राजा का वर्णन है! साहित्य में राजा द्वारा शासित राज्य को एक शांत और संपन्न स्थान के रूप में वर्णित किया गया है। हालांकि राजा के राज्य में शांति और समृद्धि व्याप्त थी, लेकिन राजा खुद को आंतरिक रूप से बेहद खोखला महसूस करते थे। राजा इंद्रद्युम्न भौतिक सीमाओं से परे का आनंद लेने के लिए लालायित रहते थे, और वह भगवान को आमने सामने देखना चाहते थे। हालांकि उनके लिए यह एक बेहद कठिन काम था, क्यों की गीता में कहा गया है कि, “ (ईश्वर को देखने) का वरदान, उन ही मनीषियों को प्राप्त होता है, जो अपना पूरा जीवन ईश्वर प्राप्ति के लिए समर्पित कर देते हैं। आमतौर पर, कोई व्यक्ति जितना अधिक भौतिक कार्यों में संलग्न होता है, उसके आध्यात्मिक उन्नति करने की संभावना उतनी ही कम होती है। तो सांसारिक मामलों में लीन एक राजा के लिए भगवान की विशेष दया प्राप्त करना कैसे संभव है?
राजा मानते थे की कृष्ण भौतिक धन या शक्ति के प्रदर्शन के पक्षधर नहीं हैं। उनके लिए यह सभी महत्वहीन हैं। हालांकि जो महत्वपूर्ण है, वह केवल प्रेम है, जो प्रत्येक आत्मा को प्रभु की ओर निर्देशित कर सकता है।
एक दिन जब इंद्रद्युम्न इस बात को लेकर बेहद दुखी थे कि, वह सीधे भगवान की सेवा करने में सक्षम नहीं है! तभी अचानक उनके सामने एक दिव्य तीर्थयात्री प्रकट हुआ। उसने राजा को बताया कि कैसे उसने वास्तव में भगवान को नील माधव देवता रूप में, प्रत्यक्ष प्रेमपूर्ण सेवा स्वीकार करते हुए देखा था। उसने कहा की भगवान युगों-युगों में अनेक रूपों में अवतरित होते हैं, और कभी-कभी वे केवल अपने भक्तों को प्रसन्न करने और उनकी प्रेममयी सेवा को स्वीकार करने के लिए पत्थर या लकड़ी के रूप में भी प्रकट होते हैं। यात्री ने वर्णन किया कि कैसे, नीलाद्रि के सुदूर पर्वत शिखर पर, उसने देवताओं को भगवान की पूजा करते देखा था। यात्री के वचनों को सुनकर राजा ने तुरंत अपने मुख्य ब्राह्मण पुजारी, विद्यापति को इन देवता (नील माधव देवता) को खोजने के लिए भेजा। राजा का आदेश पाकर विद्यापति, बिना आराम किये, एक महीने की यात्रा के बाद, निलाद्री पर्वत तक पहुंच सके, जहाँ उन्होंने उस पवित्र भूमि के पास डेरा डाले हुए, सुअर चरवाहों को देखा।
कुछ समय बाद वर्ग भेद से परे, यही पर ब्राह्मण पुजारी, विद्यापति ने आदिवासी सरदार “विश्ववासु” की बेटी से शादी कर ली, जो बड़ी गोपनीयता से भगवान की पूजा कर रही थी। विद्यापति के समझाने पर और अपनी बेटी की दलीलों के कारण, विश्ववासु आखिरकार विद्यापति को भगवान नील माधव के दर्शन कराने के लिए सहमत हो गए। लेकिन उसके लिए वह विद्यापति की आंखों पर पट्टी बांधकर उन्हें एक जगह पर ले गए। हालांकि चतुर विद्यापति अपने ससुर विश्ववासु से छुपाकर पूरे रास्ते में, राई के बीज छिड़कते गए ताकि वह बीच अंततः अंकुरित हों और उनके सहारे वह राजा के पास वापस जा सके, और उन्हें भगवान के दर्शन के बारे में बता सकें।
हालांकि विश्ववासु ने कई वर्षों तक भगवान नील माधव की सेवा केवल साधारण फलों और फूलों से ही की थी। लेकिन इस बार नील माधव ने विश्ववासु राजा इंद्रद्युम्न की इच्छा के अनुसार अपने भक्त विश्ववासु को अधिक भव्य पूजा या सेवा स्वीकार करने के लिए कहा, जिसके बाद वे गायब हो गए। हालांकि स्वयं देवता उससे बात कर रहे थे लेकिन विश्ववासु इस बात से प्रसन्न होने के बजाय, नील माधव के आसन्न गायब होने पर बहुत अधिक दुःख में लीन थे। उन्होंने नील माधव द्वारा राजा इंद्रद्युम्न की पूजा स्वीकार करने हेतु राजी करने के लिए अपने दामाद विद्यापति को दोषी ठहराया। उन्होंने विद्यापति पर उन्हें धोखा देने का आरोप लगाते हुए, उन्हें रस्सियों से बांध दिया। लेकिन उनकी बेटी ने मदद के लिए अपने पति विद्यापति की पुकार सुन ली और उन्हें अवंतीपुर लौटने के लिए मुक्त कर दिया। विद्यापति के अवंतीपुर लौटने और ईश्वर की सूचना मिलने के बाद, राजा इंद्रद्युम्न अपने रथ पर चढ़ गए और राई के पौधों का निशान के पीछे-पीछे सेना के साथ उस पहाड़ पर पहुच गए। लेकिन मूल स्थान पर पहुंचने पर उन्होंने देखा की भगवान नील माधव वहां से गायब हो गए थे।
इस बात से राजा बहुत दुखी हो गए थे, लेकिन वहाँ अचानक ऋषि नारद मुनि प्रकट हुए और उन्होंने बताया कि नील माधव अपनी इच्छा से वापस चले गए हैं। उन्होंने आगे कहा की नील माधव, भगवान जगन्नाथ के रूप में पूरी दुनिया को आशीर्वाद देने के लिए फिर से प्रकट होंगे।
नील माधव, विश्ववासु की सरल और अंतरंग सेवा से बहुत प्रसन्न थे इसलिए, उन्होंने जगन्नाथ के रूप में दर्शन देने का संदेश भिजवाया। इसके बाद नारद मुनि ने घोषणा की कि उनके आगमन के लिए एक महान मंदिर का निर्माण किया जाना आवश्यक है।
जब मंदिर का निर्माण कार्य अंत में पूरा हो गया, तो नारद मुनि, इंद्रद्युम्न को सत्य-लोक पर अपने पिता भगवान ब्रह्मा के निवास स्थान पर ले गए। भगवान ब्रह्मा के दर्शन सामान्य मनुष्यों के लिए दुर्गम होते है, लेकिन इंद्रद्युम्न की भगवान के प्रति भक्ति इतनी महान थी कि, भगवान ब्रह्मा भी उनसे मिलने के लिए उत्सुक थे। भगवान ब्रह्मा ने उन्हें बताया कि, कैसे भगवान जगन्नाथ एक महान कल्प-वृक्ष से लकड़ी के रूप में प्रकट होंगे। जैसे ही इंद्रद्युम्न ब्रह्मा के ग्रह से पृथ्वी पर लौटे, तो उन्होंने देखा कि पृथ्वी पर कई चीजें बदल गई हैं। हालांकि वह थोड़े समय के लिए दूर थे, लेकिन इस बीच पृथ्वी कई साल पुरानी हो चुकी थी। अपने ही राज्य में उन्हें किसी ने नहीं पहचाना और उनके विश्वस्त पुरोहित विद्यापति की जगह दूसरे ने ले ली थी। राजा तब हतप्रभ रह गए! लेकिन एक रहस्यमय कौवे ने उन्हें बताया की कैसे उनकी अनुपस्थिति में इंद्रद्युम्न के सभी सहयोगी मर गए थे। परमेश्वर की आराधना के लिए उन्होंने अपना परिवार, मित्र और राज्य सब कुछ खो दिया था।
इस कठिनाई के बावजूद, इंद्रद्युम्न अपने साहस पर अडिग रहे। वह जानते थे कि भगवान कभी-कभी स्नेह की अन्य सभी वस्तुओं को हटाकर अपने भक्तों के प्रेम की परीक्षा लेते हैं। राजा इंद्रद्युम्न ने अपनी मृत्यु तक उपवास करके भगवान के आगमन को जल्दी करने का दृढ़ संकल्प कर लिया था। अंततः जगन्नाथ प्रकट हुए - लेकिन केवल सम्राट के सपने में और उसे समुद्र में तैरते हुए एक बड़े लकड़ी के टुकड़े को ढूंढने के लिए निर्देशित किया।
उनके निर्देशानुसार पेड़ मिल भी गया! लेकिन यह कोई साधारण पेड़ नहीं था। यह विशाल पेड़ भगवान के अपने शरीर के समान दिव्य ऊर्जा का हिस्सा था। सेना की ताकत भी इसे नहीं हिला सकी। लेकिन तभी एक व्यक्ति (सबारा) ने भीड़ से निकलकर विशाल टुकटे को आसानी से उठा लिया। यह अद्भुत व्यक्ति विश्ववासु का वंशज था, और वह पवित्र टुकड़े को तैयारी के लिए गुंडिका मंदिर ले गया। शास्त्रों के आदेश के अनुसार, दुनिया भर के महानतम शिल्पकार भगवान को देवता के रूप को तराशने के लिए इकट्ठे हुए। लेकिन उनके सारे उपकरण बस टुकड़े-टुकड़े हो गए। फिर एक रहस्यमय बूढ़ा ब्राह्मण प्रकट हुआ, और वह भगवान के विग्रह (प्रतिमा) को तराशने के लिए तैयार हो गया। लेकिन उसकी एक शर्त थी, कि वो विग्रह बंद कमरे में बनायेगा और उसका काम खत्म होने तक कोई भी कमरे का द्वार नहीं खोलेगा, नहीं तो वो काम अधूरा छोड़ कर चला जायेगा। कुछ दिनों बाद अंदर से काम करने की आवाज आनी बंद हो गई तो राजा से रहा न गया और ये सोचते हुए कि ब्राह्मण को कुछ हो गया होगा, उसने द्वार खोल दिया। पर अन्दर उसे सिर्फ़ भगवान का अधूरा विग्रह ही मिला, और बूढ़ा ब्राह्मण लुप्त हो चुका था। तब राजा को आभास हुआ कि ब्राह्मण और कोई नहीं बल्कि देवों के वास्तुकार विश्वकर्मा थे। इस विग्रह (Deity) के हाथ और पैर नहीं बने थे! राजा को यह देखकर बेहद बुरा लगा और अपने द्वार खोलने पर वे पछतावा करने लगे।
पर तभी वहाँ पर ब्राह्मण के रूप में नारद मुनि पधारे और उन्होंने राजा से कहा कि भगवान इसी स्वरूप में अवतरित होना चाहते थे, और दरवाजा खोलने का विचार स्वयं श्री कृष्ण ने राजा के दिमाग में डाला था। और इस प्रकार तब से लेकर आज तक, जगन्नाथ पुरी का यह मंदिर लाखों-करोड़ों भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ती कर रहा है। जगन्नाथ पुरी के मंदिर से जुड़ी हुई एक किवदंती भी बेहद प्रचलित है, जिसके अनुसार: 10वीं शताब्दी तक, बौद्धों ने तर्क (Logic) देकर वेदों के मूलभूत सिद्धांतों की उपेक्षा करनी शुरू कर दी थी। इसे (नास्तिक दर्शन) कहा जाता था।
बौद्ध तर्कशास्त्री वेद को नष्ट करने के लिए व्यवस्थित रूप से तर्कों का प्रयोग कर रहे थे। ऐसे में कोई विलक्षण विद्वान ही सनातन मंदिरों और वेदों को बौद्धों के चंगुल से मुक्त कर सकता था। आखिरकार इसे दरभंगा के रहने वाले उदयनाचार्य ने अंजाम दिया था।
उदयनाचार्य का जन्म कमलानादी नदी के तट पर स्थित मंगरौनी नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था। उन्होंने वेदों को तार्किक बौद्ध तोड़फोड़ से बचाने के लिए एक स्पष्ट आह्वान दिया। उन्होंने वेदों पर आधारित ज्ञान-प्रणाली के रूप में तर्क को स्थापित करने के लिए कई ग्रंथ लिखे।
उदयनाचार्य एक बार ओडिशा के पुरी की तीर्थ यात्रा पर गए थे। वह जगन्नाथ को देखने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए उत्सुक थे। इसके लिए उन्होंने लंबा सफर तय किया था। लेकिन जब वह पहुंचे तो मंदिर बंद था। और इस बात से वे बेहद क्रोधित हो गए। उदयनाचार्य एक ऐसे व्यक्ति थे जो अपनी बात मनवाने के लिए कुछ भी कर सकते थे। इसलिए उन्होंने ब्रह्मांड के स्वामी जगन्नाथ को भी नहीं बख्शा। और यह सब इसलिए किया क्योंकि उनके आने पर मंदिर के दरवाजे खुले नहीं थे! उनमें यह घोषणा करने का दुस्साहस था कि जगन्नाथ का अस्तित्व पूरी तरह से उन पर निर्भर है। नास्तिक बौद्ध सभी मंदिरों को बंद करने के लिए कड़े प्रयास कर रहे थे। अपने बेहतरीन तर्कों से, वे सबसे मुखर विद्वानों को भी भय से कांपने के लिए मजबूर कर सकते थे।
विद्वान उदयनाचार्य अपनी तार्किक शक्ति से उन्हें दूर भगाने में सक्षम थे। इसने उन्हें सनातन धर्म का रक्षक और एक तरह से देवताओं का संरक्षक बना दिया। किंवदंती हमें बताती है कि, इसके तुरंत बाद जगन्नाथ के दरवाजे खुल गए। इसे भगवान जगन्नाथ पर अमोघ तर्क की जीत माना जाता है।

संदर्भ
https://bbc.in/3y6qYMD
https://bit.ly/3ugcrg1
https://bit.ly/3a6khlI
https://bit.ly/3ubsI68

चित्र संदर्भ
1. एक मानव उपासक और सुभद्रा के साथ एक राक्षसी जानवर (नवगुंजारा) के रूप में जगन्नाथ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. रथ यात्रा पुरी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. बलभद्र, सुभद्रा और जगन्नाथ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. इंद्रद्युम्न के स्वप्न में ईश्वर को दर्शाता एक चित्रण (facebook)
5. विश्ववासु, विद्यापतिऔर उसकी धर्मपत्नी को दर्शाता एक चित्रण (facebook)
6. राज दरबार में महर्षि नारद को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
7. समुद्र में तैरते हुए एक बड़े लकड़ी के टुकड़े के साथ राजा इंद्रद्युम्न और उनके वंशज को दर्शाता एक चित्रण (facebook)
8. जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
9. उदयनाचार्य को दर्शाता एक चित्रण (facebook)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id